विषय (हिन्दी)
सप्तक—१
विश्वास-प्रस्तुति
राम नाम कलि कामतरु राम भगति सुरधेनु। सगुन सुमंगल मूल जग गुरु पद पंकज रेनु॥१॥मूल
राम नाम कलि कामतरु राम भगति सुरधेनु।
सगुन सुमंगल मूल जग गुरु पद पंकज रेनु॥१॥
अनुवाद (हिन्दी)
कलियुगमें श्रीराम-नाम कल्पवृक्ष (मनचाहा वस्तु देनेवाला) है और रामभक्ति कामधेनु है। गुरुदेवके चरणकमलोंकी धूलि जगत् में सारे शुभ शकुनों तथा कल्याणोंकी जड़ है॥ १॥ (प्रश्न-फल शुभ है।)
विश्वास-प्रस्तुति
जलधि पार मानस अगम रावन पालित लंक। सोच बिकल कपि भालु सब, दुहुँ दिसि संकट संक॥२॥मूल
जलधि पार मानस अगम रावन पालित लंक।
सोच बिकल कपि भालु सब, दुहुँ दिसि संकट संक॥२॥
अनुवाद (हिन्दी)
समुद्रके पार मनसे भी अगम्य रावणद्वारा पालित लंका नगरी है। सारे वानर-भालू इस चिन्तासे व्याकुल हो रहे हैं कि दोनों ओर (समुद्रपार होनेमें और बिना कार्य पूरा किये लौटनेमें) शंका और विपत्ति है॥ २॥ (प्रश्न-फल निकृष्ट है।)
विश्वास-प्रस्तुति
जामवंत हनुमान बलु कहा पचारि पचारि। राम सुमिरि साहसु करिय, मानिय हिएँ न हारि॥ ३॥मूल
जामवंत हनुमान बलु कहा पचारि पचारि।
राम सुमिरि साहसु करिय, मानिय हिएँ न हारि॥ ३॥
अनुवाद (हिन्दी)
जाम्बवन्तजीने बार-बार ललकारकर हनुमान् जी के बलका वर्णन किया। (प्रश्न-फल यह है कि) श्रीरामका स्मरण करके साहस करो। हृदयमें हार मत मानो। (हताश मत हो।)॥ ३॥
विश्वास-प्रस्तुति
राम काज लगि जनमु जग, सुनि हरषे हनुमान। होइ पुत्र फलु सगुन सुभ, राम भगतु बलवान॥ ४॥मूल
राम काज लगि जनमु जग, सुनि हरषे हनुमान।
होइ पुत्र फलु सगुन सुभ, राम भगतु बलवान॥ ४॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘तुम्हारा संसारमें जन्म ही श्रीरामका कार्य करनेके लिये हुआ है’ यह सुनकर हनुमान् जी प्रसन्न हो गये। यह शकुन शुभ है, इसका फल यह है कि श्रीरामभक्त बलवान् पुत्र होगा॥ ४॥
विश्वास-प्रस्तुति
कहत उछाहु बढ़ाइ कपि साथी सकल प्रबोधि। लागत राम प्रसाद मोहि गोपद सरिस पयोधि॥ ५॥मूल
कहत उछाहु बढ़ाइ कपि साथी सकल प्रबोधि।
लागत राम प्रसाद मोहि गोपद सरिस पयोधि॥ ५॥
अनुवाद (हिन्दी)
सभी साथियोंको आश्वासन देकर उनका उत्साह बढ़ाते हुए हनुमान् जी कहते हैं—‘श्रीरामकी कृपासे समुद्र मुझे गायके खुरसे बने गड्ढ़ेके समान लगता है’॥ ५॥ (प्रश्न-फल शुभ है, कठिनाई दूर होगी।)
विश्वास-प्रस्तुति
राखि तोषि सबु साथ सुभ, सगुन सुमंगल पाइ। कूदि कुधर चढ़ि आनि उर, सीय सहित दोउ भाइ॥ ६॥मूल
राखि तोषि सबु साथ सुभ, सगुन सुमंगल पाइ।
कूदि कुधर चढ़ि आनि उर, सीय सहित दोउ भाइ॥ ६॥
अनुवाद (हिन्दी)
साथके सब लोगोंको वहीं रखकर (रहनेको कहकर) तथा सन्तोष देकर उत्तम मंगलकारी शकुन पाकर, श्रीजानकीजीके साथ दोनों भाई (श्रीराम-लक्ष्मण)-को हृदयमें ले आकर (स्मरण करके) कूदकर (हनुमान् जी) पर्वतपर चढ़ गये॥ ६॥ (यात्राके लिये शुभ शकुन है।)
विश्वास-प्रस्तुति
हरषि सुमन बरषत बिबुध, सगुन सुमंगल होत। तुलसी प्रभु लंघेउ जलधि प्रभु प्रताप करि पोत॥ ७॥मूल
हरषि सुमन बरषत बिबुध, सगुन सुमंगल होत।
तुलसी प्रभु लंघेउ जलधि प्रभु प्रताप करि पोत॥ ७॥
अनुवाद (हिन्दी)
देवता प्रसन्न होकर पुष्प-वर्षा कर रहे हैं, श्रेष्ठ मंगलकारी शकुन हो रहे हैं। तुलसीदासजीके स्वामी (हनुमान् जी) प्रभु श्रीरामके प्रतापको जहाज बनाकर (श्रीरामके प्रतापसे) समुद्र कूद गये॥ ७॥ (प्रश्न-फल श्रेष्ठ है।)
विषय (हिन्दी)
सप्तक—२
विश्वास-प्रस्तुति
राहु मातु माया मलिन मारी मारुत पूत। समय सगुन मारग मिलहिं, छल मलीन खल धूत॥ १॥मूल
राहु मातु माया मलिन मारी मारुत पूत।
समय सगुन मारग मिलहिं, छल मलीन खल धूत॥ १॥
अनुवाद (हिन्दी)
माया करनेवाली मलिन (कपटसे भरी) राहुकी माता सिंहिकाको श्रीपवनकुमारने मार दिया। यह शकुन कहता है कि यात्राके समय मार्गमें कपटी, पापी, दुष्ट और धूर्त मिलेंगे (उनसे सावधान रहना चाहिये।)॥ १॥
विश्वास-प्रस्तुति
पूजा पाइ मिनाक पहिं सुरसा कपि संबादु। मारग अगम सहाय सुभ होइहि राम प्रसादु॥ २॥मूल
पूजा पाइ मिनाक पहिं सुरसा कपि संबादु।
मारग अगम सहाय सुभ होइहि राम प्रसादु॥ २॥
अनुवाद (हिन्दी)
मैनाक पर्वतसे सत्कार पाकर आगे जाते हुए हनुमान् जी से (नागमाता) सुरसाकी बातचीत हुई। (शकुन-फल यह है कि) श्रीरामकी कृपासे विकट मार्गमें भी शुभ सहायता प्राप्त होगी॥ २॥
विश्वास-प्रस्तुति
लंकाँ लोलुप लंकिनी काली काल कराल। काल करालहि कीन्हि बलि कालरूप कपि काल॥ ३॥मूल
लंकाँ लोलुप लंकिनी काली काल कराल।
काल करालहि कीन्हि बलि कालरूप कपि काल॥ ३॥
अनुवाद (हिन्दी)
कालके समान भयंकर एवं काली, लोभमूर्ति लंकिनी राक्षसी लंकामें (प्रवेश करते ही) मिली, उसे कालरूप बनकर स्वयं भी कालरूप (भयंकर वेश) धारी हनुमान् जी ने भयंकर काल (मृत्यु)-के बलि अर्पण कर दिया (मार डाला)॥ ३॥ (कार्यमें आयी बाधा नष्ट होगी।)
विश्वास-प्रस्तुति
मसक रूप दसकंध पुर निसि कपि घर घर देखि। सीय बिलोकि असोक तर हरष बिसाद बिसेषि॥ ४॥मूल
मसक रूप दसकंध पुर निसि कपि घर घर देखि।
सीय बिलोकि असोक तर हरष बिसाद बिसेषि॥ ४॥
अनुवाद (हिन्दी)
मच्छरके समान (छोटा) रूप धारण करके हनुमान् जी ने रात्रिमें रावणकी पुरी लंकाका एक-एक घर छान डाला। (अन्तमें) श्रीजानकीजीको अशोकवृक्षके नीचे देखकर उन्हें प्रसन्नता और अत्यधिक दुःख दोनों हुए॥ ४॥ (प्रश्न-फल मध्यम है, हर्ष-शोक दोनोंका सूचक है।)
विश्वास-प्रस्तुति
फरकत मंगल अंग सिय बाम बिलोचन बाहु। त्रिजटा सुनि कह सगुन फल, प्रिय सँदेस बड़ लाहु॥ ५॥मूल
फरकत मंगल अंग सिय बाम बिलोचन बाहु।
त्रिजटा सुनि कह सगुन फल, प्रिय सँदेस बड़ लाहु॥ ५॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीजानकीजीके मंगलसूचक अंग बायीं आँख और भुजा फड़क रही हैं। इसे सुनकर त्रिजटा शकुनका फल बतलाती है कि ‘प्रियतमके सन्देशकी प्राप्तिरूपी बड़ा लाभ होगा’॥ ५॥ (प्रियजनका समाचार मिलेगा।)
विश्वास-प्रस्तुति
सगुन समुझि त्रिजटा कहति, सुनु सिय अबहीं आजु। मिलिहि राम सेवक कहिहि कुसल लखनु रघुराजु॥ ६॥मूल
सगुन समुझि त्रिजटा कहति, सुनु सिय अबहीं आजु।
मिलिहि राम सेवक कहिहि कुसल लखनु रघुराजु॥ ६॥
अनुवाद (हिन्दी)
शकुनको समझकर त्रिजटा कहती है—‘जानकीजी! सुनो। आज (अभी) श्रीरामका सेवक मिलेगा और लक्ष्मण तथा रघुनाथजीकी कुशल कहेगा॥ ६॥ (प्रियजनका कुशल-समाचार प्राप्त होगा।)
विश्वास-प्रस्तुति
तुलसी प्रभु गुन गन बरनि आपनि बात जनाइ। कुसल खेम सुग्रीव पुर रामु लखनु दोउ भाइ॥ ७॥मूल
तुलसी प्रभु गुन गन बरनि आपनि बात जनाइ।
कुसल खेम सुग्रीव पुर रामु लखनु दोउ भाइ॥ ७॥
अनुवाद (हिन्दी)
तुलसीदासजी कहते हैं कि (हनुमान् जी ने श्रीजानकीजीसे) प्रभु श्रीरामके गुणोंका वर्णन करके अपनी बात जनायी (अपना परिचय दिया और कहा—) ‘सुग्रीवकी नगरी (किष्किन्धा)-में श्रीराम-लक्ष्मण दोनों भाई कुशलपूर्वक हैं’॥ ७॥ (प्रियजनका समाचार मिलेगा।)
विषय (हिन्दी)
सप्तक—३
विश्वास-प्रस्तुति
सुरुख जानकी जानि कपि कहे सकल संकेत। दीन्हि मुद्रिका लीन्हि सिय प्रीति प्रतीति समेत॥ १॥मूल
सुरुख जानकी जानि कपि कहे सकल संकेत।
दीन्हि मुद्रिका लीन्हि सिय प्रीति प्रतीति समेत॥ १॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीजानकीजीको प्रसन्न समझकर हनुमान् जी ने सब संकेत (श्रीरामका गुप्त सन्देश) कहा और मुद्रिका दी, उसे श्रीजानकीजीने प्रेम तथा विश्वासपूर्वक लिया॥ १॥ (दुःखके समय आश्वासन प्राप्त होगा।)
विश्वास-प्रस्तुति
पाइ नाथ कर मुद्रिका सिय हियँ हरषु बिषादु। प्राननाथ प्रिय सेवकहि दीन्ह सुआसिरबादु॥ २॥मूल
पाइ नाथ कर मुद्रिका सिय हियँ हरषु बिषादु।
प्राननाथ प्रिय सेवकहि दीन्ह सुआसिरबादु॥ २॥
अनुवाद (हिन्दी)
स्वामीके हाथकी अँगूठी पाकर श्रीजानकीजीके चित्तमें प्रसन्नता तथा शोक दोनों हुए, प्राणनाथके प्रिय सेवक (श्रीहनुमान् जी)- को उन्होंने शुभ आशीर्वाद दिया॥ २॥ (प्रश्न-फल शुभ है।)
विश्वास-प्रस्तुति
नाथ सपथ पन रोपि कपि कहत चरन सिरु नाइ। नहिं बिलंब जगदंब अब आइ गए दोउ भाइ॥ ३॥मूल
नाथ सपथ पन रोपि कपि कहत चरन सिरु नाइ।
नहिं बिलंब जगदंब अब आइ गए दोउ भाइ॥ ३॥
अनुवाद (हिन्दी)
स्वामी श्रीरामकी शपथ करके प्रतिज्ञापूर्वक हनुमान् जी (श्रीजानकीजीके) चरणोंमें मस्तक झुकाकर कहते हैं—जगन्माता! अब देर नहीं है, दोनों भाई आ ही गये (ऐसा मानो)॥ ३॥ (प्रश्न-फल उत्तम है।)
विश्वास-प्रस्तुति
समाचार कहि सुनत प्रभु सानुज सहित सहाय। आए अब रघुबंस मनि, सोचु परिहरिय माय॥ ४॥मूल
समाचार कहि सुनत प्रभु सानुज सहित सहाय।
आए अब रघुबंस मनि, सोचु परिहरिय माय॥ ४॥
अनुवाद (हिन्दी)
(मैं लौटकर) समाचार कहूँगा, उसे सुनते ही प्रभु श्रीरघुनाथजी छोटे भाई तथा सहायकों (वानरी सेना)-के साथ यह पहुँच ही गये (ऐसा मानकर) माता! चिन्ता त्याग दो॥ ४॥ (प्रश्न-फल श्रेष्ठ है।)
विश्वास-प्रस्तुति
गए सोच संकट सकल, भए सुदिन जियँ जानु। कौतुक सागर सेतु करि आए कृपा निधानु॥ ५॥मूल
गए सोच संकट सकल, भए सुदिन जियँ जानु।
कौतुक सागर सेतु करि आए कृपा निधानु॥ ५॥
अनुवाद (हिन्दी)
सभी चिन्ता और विपत्तियाँ दूर हो गयीं, अच्छे दिन आ गये—ऐसा चित्तमें समझो। खेलमें ही समुद्रपर सेतु बाँधकर कृपानिधान श्रीराम आ गये॥ ५॥ (प्रश्न-फल शुभ है।)
विश्वास-प्रस्तुति
सकुल सदल जमराजपुर चलन चहत दसकंधु। काल न देखत काल बस बीस बिलोचन अंधु॥ ६॥मूल
सकुल सदल जमराजपुर चलन चहत दसकंधु।
काल न देखत काल बस बीस बिलोचन अंधु॥ ६॥
अनुवाद (हिन्दी)
रावण अपने पूरे कुल और सारी सेनाके साथ यमलोक जाना चाहता है। बीस नेत्र होनेपर भी ऐसा अन्धा हो गया है कि अपना काल (मृत्यु) देख नहीं पाता॥ ६॥ (प्रश्न-फल निकृष्ट है।)
विश्वास-प्रस्तुति
आसिष आयसु पाय कपि सीय चरनु सिर नाइ। तुलसी रावन बाग फल खात बराइ बराइ॥ ७॥मूल
आसिष आयसु पाय कपि सीय चरनु सिर नाइ।
तुलसी रावन बाग फल खात बराइ बराइ॥ ७॥
अनुवाद (हिन्दी)
तुलसीदासजी कहते हैं—आशीर्वाद और आज्ञा पाकर, श्रीजानकीजीके चरणोंमें मस्तक झुकाकर हनुमान् जी रावणके बगीचेमें छाँट-छाँटकर फल खा रहे हैं॥ ७॥ (प्रश्न-फल उत्तम है।)
विषय (हिन्दी)
सप्तक—४
विश्वास-प्रस्तुति
सूर सिरोमनि साहसी सुमति समीर कुमार। सुमिरत सब सुख संपदा मुद मंगल दातार॥ १॥मूल
सूर सिरोमनि साहसी सुमति समीर कुमार।
सुमिरत सब सुख संपदा मुद मंगल दातार॥ १॥
अनुवाद (हिन्दी)
शूरशिरोमणि, साहसी, बुद्धिमान् श्रीपवनकुमार स्मरण किये जानेपर सब प्रकारके सुख, सम्पत्ति और आनन्द-मंगलके देनेवाले हैं॥ १॥ (प्रश्न-फल श्रेष्ठ है।)
विश्वास-प्रस्तुति
सत्रुसमन पदपंकरुह सुमिरि करहु सब काज। कुसल खेम कल्यान सुभ सगुन सुमंगल साज॥ २॥मूल
सत्रुसमन पदपंकरुह सुमिरि करहु सब काज।
कुसल खेम कल्यान सुभ सगुन सुमंगल साज॥ २॥
अनुवाद (हिन्दी)
शत्रुघ्नजीके चरण-कमलोंका स्मरण करके सब कार्य करो। कुशल-क्षेम रहेगा, कल्याण होगा। यह शुभ शकुन सुन्दर मंगलका सृष्टि करनेवाला है॥ २॥
विश्वास-प्रस्तुति
भरत भलाई की अवधि, सील सनेह निधान। धरम भगति भायप समय, सगुन कहब कल्यान॥ ३॥मूल
भरत भलाई की अवधि, सील सनेह निधान।
धरम भगति भायप समय, सगुन कहब कल्यान॥ ३॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीभरतलालजी अच्छाईकी सीमा, शील और स्नेहके निधान, धर्मात्मा, भ्रातृभावसे भक्ति करनेवाले हैं। इस समयका शकुन कल्याण सूचित करता है॥ ३॥
विश्वास-प्रस्तुति
सेवकपाल कृपाल चित रबि कुल कैरव चंद। सुमिरि करहु सब काज सुभ, पग पग परमानंद॥ ४॥मूल
सेवकपाल कृपाल चित रबि कुल कैरव चंद।
सुमिरि करहु सब काज सुभ, पग पग परमानंद॥ ४॥
अनुवाद (हिन्दी)
सेवकोंकी रक्षा करनेवाले, दयालुहृदय, सूर्यवंशरूपी कुमुदिनीके लिये (आह्लादकारी) चन्द्रमाके समान श्रीरघुनाथजीका स्मरण करके सब काम करो। परिणाममें शुभ होगा, पद-पदपर (सदा) परम आनन्द होगा॥ ४॥
विश्वास-प्रस्तुति
सिय पद सुमिरि सुतीय हित सगुन सुमंगल जानु। स्वामि सोहागिल भाग बड़ पुत्र काजु कल्यानु॥ ५॥मूल
सिय पद सुमिरि सुतीय हित सगुन सुमंगल जानु।
स्वामि सोहागिल भाग बड़ पुत्र काजु कल्यानु॥ ५॥
अनुवाद (हिन्दी)
उत्तम स्त्रियोंके लिये श्रीजानकीजीके चरणोंका स्मरणरूपी शकुन परम मंगलकारी समझो। स्वामीका सौभाग्य प्राप्त होगा (सौभाग्यवती रहेंगी), बड़ा (उत्तम) भाग्य है, पुत्र-प्राप्ति होगी तथा कल्याण होगा॥ ५॥
विश्वास-प्रस्तुति
लछिमन पद पंकज सुमिरि, सगुन सुमंगल पाइ। जय बिभूति कीरति कुसल अभिमत लाभु अघाइ॥ ६॥मूल
लछिमन पद पंकज सुमिरि, सगुन सुमंगल पाइ।
जय बिभूति कीरति कुसल अभिमत लाभु अघाइ॥ ६॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीलक्ष्मणजीके चरण-कमलोंका स्मरण करो। यह परम मंगलकारी शकुन पा लेनेपर विजय, ऐश्वर्य, कीर्ति, कुशल तथा अभीष्टप्राप्ति भरपूर होगी॥ ६॥
विश्वास-प्रस्तुति
तुलसी कानन कमल बन, सकल सुमंगल बास। राम भगत हित सगुन सुभ, सुमिरत तुलसीदास॥ ७॥मूल
तुलसी कानन कमल बन, सकल सुमंगल बास।
राम भगत हित सगुन सुभ, सुमिरत तुलसीदास॥ ७॥
अनुवाद (हिन्दी)
तुलसीदासजी कहते हैं कि तुलसीका वन अथवा कमलवन समस्त उत्तम कल्याणोंका निवास है, उसका स्मरण करना श्रीरामभक्तके लिये शुभ शकुन है॥ ७॥
विषय (हिन्दी)
सप्तक—५
विश्वास-प्रस्तुति
रूख निपातत खात फल, रक्षक अक्ष निपाति। कालरूप बिकराल कपि, सभय निसाचर जाति॥ १॥मूल
रूख निपातत खात फल, रक्षक अक्ष निपाति।
कालरूप बिकराल कपि, सभय निसाचर जाति॥ १॥
अनुवाद (हिन्दी)
कालस्वरूप भयंकर आकृतिवाले हनुमान् जी (वनके) रक्षकों तथा अक्षयकुमारको मारकर वृक्षोंको गिरा रहे हैं तथा फल खा रहे हैं (उन्हें देखकर) निशाचरमात्र डर गये हैं॥ १॥ (प्रश्न-फल निकृष्ट है।)
विश्वास-प्रस्तुति
बनु उजारि जारेउ नगर कूदि कूदि कपिनाथ। हाहाकार पुकारि सब, आरत मारत माथ॥ २॥मूल
बनु उजारि जारेउ नगर कूदि कूदि कपिनाथ।
हाहाकार पुकारि सब, आरत मारत माथ॥ २॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीहनुमान् जी ने अशोकवन उजाड़कर कूद-कूदकर लंका जला दी। सब (राक्षस) हाहाकार करके चिल्ला रहे हैं और दुःखी होकर सिर पीट रहे हैं॥ २॥ (प्रश्न-फल अशुभ है।)
विश्वास-प्रस्तुति
पूँछ बुताइ प्रबोधि सिय आइ गहे प्रभु पाइ। खेम कुसल जय जानकी जय जय जय रघुराइ॥ ३॥मूल
पूँछ बुताइ प्रबोधि सिय आइ गहे प्रभु पाइ।
खेम कुसल जय जानकी जय जय जय रघुराइ॥ ३॥
अनुवाद (हिन्दी)
पूँछ बुझाकर श्रीजानकीजीको आश्वासन देकर, लौटकर (हनुमान् जी ने) प्रभु श्रीरामजीका चरण पकड़कर कहा—‘श्रीजानकीजी जीवित हैं और कुशलसे हैं, उनकी जय हो! श्रीरघुनाथजीकी जय हो! जय हो!! जय हो!!!’॥ ३॥ (प्रश्न-फल उत्तम है।)
विश्वास-प्रस्तुति
सुनि प्रमुदित रघुबंस मनि सानुज सेन समेत। चले सकल मंगल सगुन बिजय सिद्धि कहि देत॥ ४॥मूल
सुनि प्रमुदित रघुबंस मनि सानुज सेन समेत।
चले सकल मंगल सगुन बिजय सिद्धि कहि देत॥ ४॥
अनुवाद (हिन्दी)
(यह) सुनकर श्रीरघुनाथजी अत्यन्त प्रसन्न हुए एवं छोटे भाई लक्ष्मण तथा सेनाके साथ वे (लंकाके लिये) चल दिये। (उस समय) सभी मंगल शकुन होने लगे, जो विजय और सफलताकी घोषणा कर रहे थे॥ ४॥ (प्रश्न-फल यात्राके लिये शुभ है।)
विश्वास-प्रस्तुति
राम पयान निसान नभ बाजहिं गाजहिं बीर। सगुन सुमंगल समर जय कीरति कुसल सरीर॥ ५॥मूल
राम पयान निसान नभ बाजहिं गाजहिं बीर।
सगुन सुमंगल समर जय कीरति कुसल सरीर॥ ५॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीरामजीके प्रस्थानके समय आकाशमें (देवताओंके) नगारे बज रहे हैं। वीर (वानर) गर्जना कर रहे हैं। यह शकुन मंगलकारी है, युद्धमें विजय होगी, कीर्ति मिलेगी, शरीर सकुशल रहेगा॥ ५॥
विश्वास-प्रस्तुति
कृपासिंधु प्रभु सिंधु सन मागेउ पंथ न देत। बिनय न मानहिं जीव जड़, डाटे नवहिं अचेत॥ ६॥मूल
कृपासिंधु प्रभु सिंधु सन मागेउ पंथ न देत।
बिनय न मानहिं जीव जड़, डाटे नवहिं अचेत॥ ६॥
अनुवाद (हिन्दी)
कृपासागर प्रभुने समुद्रसे (लंका जानेका) मार्ग माँगा, पर वह (मार्ग) देता नहीं। मूर्ख प्राणी प्रार्थना करनेसे नहीं मानते, बुद्धिहीन लोग तो डाँटनेसे ही झुकते हैं॥ ६॥ (प्रश्न-फल झगड़ा सूचित करता है।)
विश्वास-प्रस्तुति
लाभु लाभु लोवा कहत, छेमकरी कह छेम। चलत बिभीषन सगुन सुनि तुलसी पुलकत प्रेम॥ ७॥मूल
लाभु लाभु लोवा कहत, छेमकरी कह छेम।
चलत बिभीषन सगुन सुनि तुलसी पुलकत प्रेम॥ ७॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘लाभ होगा, लाभ होगा’ यह लोमड़ी कह रही है, ‘कुशल होगी’ यह चील सूचित कर रही है। ये शकुन (श्रीरामकी ओर) चलते समय विभीषणजीको हुए, यह सुनकर तुलसीदास प्रेमसे रोमांचित हो रहा है॥ ७॥ (प्रश्न-फल श्रेष्ठ है।)
विषय (हिन्दी)
सप्तक—६
विश्वास-प्रस्तुति
पाहि पाहि असरन सरन, प्रनतपाल रघुराज। दियो तिलक लंकेस कहि राम गरीब नेवाज॥ १॥मूल
पाहि पाहि असरन सरन, प्रनतपाल रघुराज।
दियो तिलक लंकेस कहि राम गरीब नेवाज॥ १॥
अनुवाद (हिन्दी)
(विभीषणने श्रीरामके पास जाकर कहा—) ‘हे अशरणशरण! शरणागतरक्षक श्रीरघुनाथजी! रक्षा करो! रक्षा करो!’ (यह सुनकर) दीनोंपर कृपा करनेवाले श्रीरामने (विभीषणको) लंकेश कहकर राजतिलक कर दिया॥ १॥ (प्रश्न-फल शुभ है।)
विश्वास-प्रस्तुति
लंक असुभ चरचा चलति हाट बाट घर घाट। रावन सहित समाज अब जाइहि बारह बाट॥ २॥मूल
लंक असुभ चरचा चलति हाट बाट घर घाट।
रावन सहित समाज अब जाइहि बारह बाट॥ २॥
अनुवाद (हिन्दी)
लंकाके बाजारोंमें, मार्गोंपर, घरोंमें तथा घाटोंपर यही अमंगल-चर्चा होती रहती है कि ‘अब समाजके साथ रावण नष्ट हो जायगा’॥ २॥ (प्रश्न-फल अशुभ है।)
विश्वास-प्रस्तुति
ऊकपात दिकदाह दिन, फेकरहिं स्वान सियार। उदित केतु गतहेतु महि कंपति बारहि बार॥ ३॥मूल
ऊकपात दिकदाह दिन, फेकरहिं स्वान सियार।
उदित केतु गतहेतु महि कंपति बारहि बार॥ ३॥
अनुवाद (हिन्दी)
(लंकामें) दिनमें ही उल्कापात होता है, दिशाओंमें अग्निदाह होता है, कुत्ते और सियार रोते हैं, स्वार्थका नाशक धूमकेतु उगता है और बार-बार पृथ्वी काँपती (भूकम्प होता) है॥ ३॥ (प्रश्न-फल महान् अनर्थका सूचक है।)
विश्वास-प्रस्तुति
राम कृपाँ कपि भालु करि कौतुक सागर सेतु। चले पार बरसत बिबुध सुमन सुमंगल हेतु॥ ४॥मूल
राम कृपाँ कपि भालु करि कौतुक सागर सेतु।
चले पार बरसत बिबुध सुमन सुमंगल हेतु॥ ४॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीरामकी कृपासे खेल-ही-खेलमें समुद्रपर सेतु बनाकर वानर-भालु समुद्रपार चले, उनके मंगलके लिये देवता पुष्प-वर्षा कर रहे हैं॥ ४॥ (प्रश्न-फल श्रेष्ठ है।)
विश्वास-प्रस्तुति
नीच निसाचर मीचु बस चले साजि चतुरंग। प्रभु प्रताप पावक प्रबल उड़ि उड़ि परत पतंग॥ ५॥मूल
नीच निसाचर मीचु बस चले साजि चतुरंग।
प्रभु प्रताप पावक प्रबल उड़ि उड़ि परत पतंग॥ ५॥
अनुवाद (हिन्दी)
नीच राक्षस मृत्युके वश होकर चतुरंगिणी (पैदल, घुड़सवार, हाथी और रथोंकी) सेना सजाकर चले। प्रभु श्रीरामजीका प्रताप प्रचण्ड अग्निके समान है, जिसमें पतिंगोंके समान ये उड़-उड़कर गिर रहे हैं॥ ५॥ (प्रश्न-फल अशुभ है।)
विश्वास-प्रस्तुति
साजि साजि बाहन चलहिं जातुधानु बलवानु। असगुन असुभ न गनहिं गत आइ कालु नियरानु॥ ६॥मूल
साजि साजि बाहन चलहिं जातुधानु बलवानु।
असगुन असुभ न गनहिं गत आइ कालु नियरानु॥ ६॥
अनुवाद (हिन्दी)
बलवान् राक्षस वाहन (सवारी) सजाकर चलते हैं। अशुभसूचक अपशकुन हो रहे हैं; पर ये उन्हें गिनते नहीं (उनपर ध्यान नहीं देते, क्योंकि) उनकी आयु समाप्त हो गयी है और उनका मृत्यु-काल समीप आ गया है॥ ६॥ (प्रश्न-फल विनाशसूचक है।)
विश्वास-प्रस्तुति
लरत भालु कपि सुभट सब निदरि निसाचर घोर। सिर पर समरथ राम सो साहिब तुलसी तोर॥ ७॥मूल
लरत भालु कपि सुभट सब निदरि निसाचर घोर।
सिर पर समरथ राम सो साहिब तुलसी तोर॥ ७॥
अनुवाद (हिन्दी)
वानर-भालुओंके सभी श्रेष्ठ योधा घोर राक्षसोंकी उपेक्षा करके युद्ध कर रहे हैं; क्योंकि श्रीराम-जैसे सर्वसमर्थ प्रभु उनके सिरपर (रक्षक) हैं। तुलसीदासजी कहते हैं कि वे ही तुम्हारे (मेरे) भी स्वामी हैं॥ ७॥ (शकुन शत्रुपर विजय सूचित करता है।)
विषय (हिन्दी)
सप्तक—७
विश्वास-प्रस्तुति
मेघनादु अतिकाय भट परे महोदर खेत। रावन भाइ जगाइ तब कहा प्रसंगु अचेत॥ १॥मूल
मेघनादु अतिकाय भट परे महोदर खेत।
रावन भाइ जगाइ तब कहा प्रसंगु अचेत॥ १॥
अनुवाद (हिन्दी)
मेघनाद, अतिकाय, महोदर आदि योधा युद्धभूमिमें मारे गये, तब मूर्ख रावणने अपने भाई कुम्भकर्णको जगाकर सब बातें कहीं॥ १॥ (प्रश्न-फल अशुभ है।)
विश्वास-प्रस्तुति
उठि बिसाल बिकराल बड़ कुंभकरन जमुहान। लखि सुदेस कपि भालु दल जनु दुकाल समुहान॥ २॥मूल
उठि बिसाल बिकराल बड़ कुंभकरन जमुहान।
लखि सुदेस कपि भालु दल जनु दुकाल समुहान॥ २॥
अनुवाद (हिन्दी)
विशाल शरीरवाले अत्यन्त भयंकर कुम्भकर्णने उठकर जम्हाई ली तो ऐसा दीख पड़ा मानो अकाल (मूर्तिमान् होकर) वानर-भालु-सेनारूप उत्तम देशके सामने आ गया है॥ २॥ (शकुन अकालसूचक है।)
विश्वास-प्रस्तुति
राम स्याम बारिद सघन बसन सुदामिनि माल। बरषत सर हरषत बिबुध दला दुकालु दयाल॥ ३॥मूल
राम स्याम बारिद सघन बसन सुदामिनि माल।
बरषत सर हरषत बिबुध दला दुकालु दयाल॥ ३॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीराम घने काले मेघके समान हैं और उनके वस्त्र विद्युत्-मालाके समान हैं। उनके बाण-वर्षा करनेसे देवता प्रसन्न होते हैं, (इस प्रकार) उन दयालुने अकाल (रूपी) कुम्भकर्णको नष्ट कर दिया॥ ३॥ (सुवृष्टि होगी, अकाल दूर होगा।)
विश्वास-प्रस्तुति
राम रावनहिं परसपर होति रारि रन घोर। लरत पचारि पचारि भट समर सोर दुहुँ ओर॥ ४॥मूल
राम रावनहिं परसपर होति रारि रन घोर।
लरत पचारि पचारि भट समर सोर दुहुँ ओर॥ ४॥
अनुवाद (हिन्दी)
युद्धमें श्रीराम और रावणके बीच परस्पर भयंकर संग्राम हो रहा है। योधा एक-दूसरेको ललकार-ललकारकर युद्ध कर रहे हैं। युद्धमें दोनों दलोंमें कोलाहल हो रहा है॥ ४॥ (प्रश्न-फल कलहसूचक है।)
विश्वास-प्रस्तुति
बीस बाहु दस सीस दलि, खंड खंड तनु कीन्ह। सुभट सिरोमनि लंकपति पाछे पाउ न दीन्ह॥ ५॥मूल
बीस बाहु दस सीस दलि, खंड खंड तनु कीन्ह।
सुभट सिरोमनि लंकपति पाछे पाउ न दीन्ह॥ ५॥
अनुवाद (हिन्दी)
(श्रीरामने) रावणकी बीस भुजा तथा दस मस्तक काटकर शरीरके टुकड़े-टुकड़े कर दिये; किंतु (इतनेपर भी) उस शूर-शिरोमणिने (युद्धसे) पीछे पैर नहीं रखा॥ ५॥ (प्रश्न-फल पराजयसूचक है।)
विश्वास-प्रस्तुति
बिबुध बजावत दुंदुभी, हरषत बरषत फूल। राम बिराजत जीति रन सुर सेवक अनुकूल॥ ६॥मूल
बिबुध बजावत दुंदुभी, हरषत बरषत फूल।
राम बिराजत जीति रन सुर सेवक अनुकूल॥ ६॥
अनुवाद (हिन्दी)
देवता नगारे बजा रहे हैं और प्रसन्न होकर पुष्प-वर्षा कर रहे हैं। देवताओं तथा सेवकोंके नित्य अनुकूल रहनेवाले श्रीराम युद्धमें जीतकर सुशोभित हो रहे हैं॥ ६॥ (प्रश्न-फल विजयसूचक है।)
विश्वास-प्रस्तुति
लंका थापि बिभीषनहि बिबुध बसाइ सुबास। तुलसी जय मंगल कुसल, सुभ पंचम उनचास॥ ७॥मूल
लंका थापि बिभीषनहि बिबुध बसाइ सुबास।
तुलसी जय मंगल कुसल, सुभ पंचम उनचास॥ ७॥
अनुवाद (हिन्दी)
(प्रभुने) लंकामें विभीषणको (राज्य देकर) स्थापित किया और देवताओंको भली प्रकार (निर्भय करके) बसाया। तुलसीदासजी कहते हैं कि पंचम सर्गका यह उनचासवाँ दोहा शुभ है, विजय, मंगल तथा कुशलका सूचक है॥ ७॥