०६ चतुर्थ सर्ग

विषय (हिन्दी)

सप्तक—१

विश्वास-प्रस्तुति राम जनम सुभ सगुन भल सकल सुकृत सुख सारु। पुत्र लाभ कल्यानु बड़, मंगल चारु बिचारु॥ १॥
मूल

राम जनम सुभ सगुन भल सकल सुकृत सुख सारु।
पुत्र लाभ कल्यानु बड़, मंगल चारु बिचारु॥ १॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीरामका जन्म उत्तम शुभ शकुन है, समस्त पुण्योंका तथा सुखोंका सार है। पुत्रकी प्राप्ति होगी, परम कल्याण होगा, सुन्दर मंगल समझो॥ १॥

विश्वास-प्रस्तुति दसरथ कुल गुरु की कृपाँ सुत हित जाग कराइ। पायस पाइ बिभाग करि रानिन्ह दीन्ह बुलाइ॥ २॥
मूल

दसरथ कुल गुरु की कृपाँ सुत हित जाग कराइ।
पायस पाइ बिभाग करि रानिन्ह दीन्ह बुलाइ॥ २॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज दशरथने कुलगुरु (वसिष्ठजी)-की कृपासे पुत्रेष्टि यज्ञ कराकर (प्रसादरूपमें) खीर पाकर; रानियोंको बुलाकर उसका विभाग करके उन्हें दे दिया॥ २॥ (प्रश्न-फल शुभ है।)

विश्वास-प्रस्तुति सब सगरभ सोहहिं सदन सकल सुमंगल खानि। तेज प्रताप प्रसन्नता रूप न जाहिं बखानि॥ ३॥
मूल

सब सगरभ सोहहिं सदन सकल सुमंगल खानि।
तेज प्रताप प्रसन्नता रूप न जाहिं बखानि॥ ३॥

अनुवाद (हिन्दी)

सब रानियाँ गर्भवती होकर (अयोध्याके) राजमहलमें सुशोभित हो रही हैं। वे समस्त शुभ मंगलोंकी खानें (निवासभूता) हैं। उनके तेज, प्रताप, आनन्द और सौन्दर्यका वर्णन नहीं किया जा सकता॥ ३॥ (प्रश्न-फल श्रेष्ठ है।)

विश्वास-प्रस्तुति देखि सुहावन सपन सुभ सगुन सुमंगल पाइ। कहहिं भूप सन मुदित मन हर्ष न हृदयँ समाइ॥ ४॥
मूल

देखि सुहावन सपन सुभ सगुन सुमंगल पाइ।
कहहिं भूप सन मुदित मन हर्ष न हृदयँ समाइ॥ ४॥

अनुवाद (हिन्दी)

सुहावना स्वप्न देखकर तथा मंगलमय शकुन पाकर प्रसन्न मनसे (रानियाँ उसका वर्णन) महाराज (दशरथ)-से कहती हैं, प्रसन्नता हृदयमें समाती नहीं (बाहर फूटी पड़ती है)॥ ४॥ (प्रश्न-फल शुभ है।)

विश्वास-प्रस्तुति सपन सगुन सुनि राउ कह कुलगुरु आसिरबाद। पूजिहि सब मन कामना, संकर गौरि प्रसाद॥ ५॥
मूल

सपन सगुन सुनि राउ कह कुलगुरु आसिरबाद।
पूजिहि सब मन कामना, संकर गौरि प्रसाद॥ ५॥

अनुवाद (हिन्दी)

(रानियोंका) स्वप्न तथा शकुन सुनकर महाराज दशरथजी कहते हैं—(यह सब) कुलगुरु (वसिष्ठजी)-का आशीर्वाद है। श्रीशंकरजी तथा पार्वतीजीकी कृपासे मनकी सब अभिलाषा पूर्ण होगी॥ ५॥ (प्रश्न-फल उत्तम है।)

विश्वास-प्रस्तुति मास पाख तिथि जोग सुभ नखत लगन ग्रह बार। सकल सुमंगल मूल जग राम लीन्ह अवतार॥ ६॥
मूल

मास पाख तिथि जोग सुभ नखत लगन ग्रह बार।
सकल सुमंगल मूल जग राम लीन्ह अवतार॥ ६॥

अनुवाद (हिन्दी)

जिस समय समस्त श्रेष्ठ कल्याणोंके मूल श्रीरामने संसारमें अवतार लिया, उस समय महीना, पक्ष, तिथि, योग, नक्षत्र, लग्न, ग्रह तथा दिन—सभी शुभ थे॥ ६॥ (प्रश्न-फल शुभ है।)

विश्वास-प्रस्तुति भरत लखन रिपुदवन सब सुवन सुमंगल मूल। प्रगट भए नृप सुकृत फल तुलसी बिधि अनुकूल॥ ७॥
मूल

भरत लखन रिपुदवन सब सुवन सुमंगल मूल।
प्रगट भए नृप सुकृत फल तुलसी बिधि अनुकूल॥ ७॥

अनुवाद (हिन्दी)

भरत, लक्ष्मण, शत्रुघ्न—ये सब श्रेष्ठ मंगलोंके मूलस्वरूप पुत्र महाराज दशरथके पुण्योंके फलस्वरूप प्रकट हुए। तुलसीदासजी कहते हैं कि (इस शकुनद्वारा सूचित होता है कि) विधाता (भाग्य) अनुकूल है॥ ७॥

विषय (हिन्दी)

सप्तक—२

विश्वास-प्रस्तुति घर घर अवध बधावने, मुदित नगर नर नारि। बरषि सुमन हरषहिं बिबुध, बिधि त्रिपुरारि मुरारि॥ १॥
मूल

घर घर अवध बधावने, मुदित नगर नर नारि।
बरषि सुमन हरषहिं बिबुध, बिधि त्रिपुरारि मुरारि॥ १॥

अनुवाद (हिन्दी)

अयोध्याके प्रत्येक घरमें बधाई बज रही है। नगरके नर-नारी सब आनन्दित हैं। पुष्प-वर्षा करके देवता, ब्रह्माजी, शंकरजी और विष्णुभगवान् प्रसन्न हो रहे हैं॥ १॥ (प्रश्न-फल श्रेष्ठ है।)

विश्वास-प्रस्तुति मंगल गान निसान नभ, नगर मुदित नर नारि। भूप सुकृत सुरतरु निरखि फरे चारु फल चारि॥ २॥
मूल

मंगल गान निसान नभ, नगर मुदित नर नारि।
भूप सुकृत सुरतरु निरखि फरे चारु फल चारि॥ २॥

अनुवाद (हिन्दी)

आकाशमें (देवताओंद्वारा) मंगल-गान हो रहा है तथा नगारे बज रहे हैं, नगरके स्त्री-पुरुष महाराज दशरथके पुण्यरूपी कल्पवृक्षमें (पुत्ररूपी) चार सुन्दर फल लगे देखकर आनन्दमग्न हैं॥ २॥ (प्रश्न-फल शुभ है।)

विश्वास-प्रस्तुति पुत्र काज कल्यान नृप दिए दान बहु भाँति। रहस बिबस रनिवास सब मुद मंगल दिन राति॥ ३॥
मूल

पुत्र काज कल्यान नृप दिए दान बहु भाँति।
रहस बिबस रनिवास सब मुद मंगल दिन राति॥ ३॥

अनुवाद (हिन्दी)

पुत्रोंके कल्याणके लिये महाराजने बहुत प्रकारसे दान दिये। पूरा रनिवास आनन्दमें मग्न है। दिन-रात आनन्द-मंगल हो रहा है॥ ३॥ (प्रश्न-फल श्रेष्ठ है।)

विश्वास-प्रस्तुति अनुदिन अवध बधावने, नित नव मंगल मोद। मुदित मातु पितु लोग लखि रघुबर बाल बिनोद॥ ४॥
मूल

अनुदिन अवध बधावने, नित नव मंगल मोद।
मुदित मातु पितु लोग लखि रघुबर बाल बिनोद॥ ४॥

अनुवाद (हिन्दी)

अयोध्यामें प्रतिदिन बधाईके बाजे बज रहे हैं। नित्य नवीन आनन्द-मंगल हो रहा है। श्रीरघुनाथजीकी बालक्रीड़ा देखकर माताएँ, पिता तथा सब लोग प्रसन्न होते हैं॥ ४॥ (प्रश्न-फल उत्तम है।)

विश्वास-प्रस्तुति करनबेध चूड़ाकरन लौकिक बैदिक काज। गुरु आयसु भूपति करत मंगल साज समाज॥ ५॥
मूल

करनबेध चूड़ाकरन लौकिक बैदिक काज।
गुरु आयसु भूपति करत मंगल साज समाज॥ ५॥

अनुवाद (हिन्दी)

गुरुदेवकी आज्ञासे महाराज मंगल-साज सजाकर कर्णवेध, चूड़ाकरण (मुण्डन) आदि लौकिक-वैदिक विधियोंसहित वे समाजके साथ करते हैं॥ ५॥ (प्रश्न-फल शुभ है।)

विश्वास-प्रस्तुति राज अजिर राजत रुचिर कोसल पालक बाल। जानु पानि चर चरित बर सगुन सुमंगल माल॥ ६॥
मूल

राज अजिर राजत रुचिर कोसल पालक बाल।
जानु पानि चर चरित बर सगुन सुमंगल माल॥ ६॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजभवनके आँगनमें कोसलनरेश महाराज दशरथके सुन्दर बालक घुटनों तथा हाथोंके बल चलते एवं सुन्दर चरित (क्रीड़ा) करते सुशोभित होते हैं। यह शकुन सुमंगलोंकी माला (सदा कल्याणकारी) है॥ ६॥

विश्वास-प्रस्तुति लहे मातु पितु भाग बस सुत जग जलधि ललाम। पुत्र लाभ हित सगुन सुभ, तुलसी सुमिरहु राम॥ ७॥
मूल

लहे मातु पितु भाग बस सुत जग जलधि ललाम।
पुत्र लाभ हित सगुन सुभ, तुलसी सुमिरहु राम॥ ७॥

अनुवाद (हिन्दी)

माता-पिताने सौभाग्यवश संसार-सागरमें रत्नस्वरूप पुत्र पाये। तुलसीदासजी कहते हैं कि श्रीरामका स्मरण करो, यह शकुन पुत्र-प्राप्तिके लिये शुभ है॥ ७॥

विषय (हिन्दी)

सप्तक—३

विश्वास-प्रस्तुति बाल बिभूषन बसन धर, धूरि धूसरित अंग। बालकेलि रघुबर करत बाल बंधु सब संग॥ १॥
मूल

बाल बिभूषन बसन धर, धूरि धूसरित अंग।
बालकेलि रघुबर करत बाल बंधु सब संग॥ १॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीरघुनाथजी बालकोपयुक्त आभूषण और वस्त्र पहने बालक्रीड़ा कर रहे हैं। उनका शरीर धूलिसे सना है और साथमें छोटे भाई तथा अन्य बालक हैं॥ १॥ (प्रश्न-फल शुभ है।)

विश्वास-प्रस्तुति राम भरत लछिमन ललित सत्रुसमन सुभ नाम। सुमिरत दसरथ सुवन सब पूजिहिं सब मन काम॥ २॥
मूल

राम भरत लछिमन ललित सत्रुसमन सुभ नाम।
सुमिरत दसरथ सुवन सब पूजिहिं सब मन काम॥ २॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीराम, भरत, लक्ष्मण, शत्रुघ्न—ये सुन्दर शुभ नाम हैं। महाराज दशरथके इन पुत्रोंका स्मरण करनेसे सभी मनोकामनाएँ पूरी होंगी॥ २॥

विश्वास-प्रस्तुति नाम ललित लीला ललित ललित रूप रघुनाथ। ललित बसन भूषन ललित ललित अनुज सिसु साथ॥ ३॥
मूल

नाम ललित लीला ललित ललित रूप रघुनाथ।
ललित बसन भूषन ललित ललित अनुज सिसु साथ॥ ३॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीरघुनाथजीका नाम सुन्दर है, लीलाएँ सुन्दर हैं, स्वरूप सुन्दर है, वस्त्र सुन्दर हैं, आभूषण सुन्दर हैं तथा छोटे भाई एवं साथके बालक भी सुन्दर हैं॥ ३॥ (प्रश्न-फल उत्तम है।)

विश्वास-प्रस्तुति सुदिन साधि मंगल किए, दिए भूप ब्रतबंध। अवध बधाव बिलोकि सुर बरषत सुमन सुगंध॥ ४॥
मूल

सुदिन साधि मंगल किए, दिए भूप ब्रतबंध।
अवध बधाव बिलोकि सुर बरषत सुमन सुगंध॥ ४॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज दशरथने शुभ दिन शोधकर मंगल-कार्य करके (पुत्रोंका) यज्ञोपवीत-संस्कार कराया। अयोध्यामें बधाईके बाजे बजते देख देवता सुगन्धित पुष्पोंकी वर्षा कर रहे हैं॥ ४॥ (प्रश्न-फल शुभ है।)

विश्वास-प्रस्तुति भूपति भूसुर भाट नट जाचक पुर नर नारि। दिए दान सनमानि सब, पूजे कुल अनुहारि॥ ५॥
मूल

भूपति भूसुर भाट नट जाचक पुर नर नारि।
दिए दान सनमानि सब, पूजे कुल अनुहारि॥ ५॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराजने ब्राह्मण, भाट, नट, भिक्षुक तथा नगरके सभी स्त्री-पुरुषोंको उनके कुलके अनुसार सम्मानपूर्वक दान देकर उनकी पूजा की॥ ५॥ (प्रश्न-फल श्रेष्ठ है।)

विश्वास-प्रस्तुति सखीं सुआसिनि बिप्रतिय सनमानीं सब रायँ। ईस मनाय असीस सुभ देहिं सनेह सुभायँ॥ ६॥
मूल

सखीं सुआसिनि बिप्रतिय सनमानीं सब रायँ।
ईस मनाय असीस सुभ देहिं सनेह सुभायँ॥ ६॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराजने (रानियोंकी) सखियों, सौभाग्यवती स्त्रियों तथा ब्राह्मणोंकी स्त्रियों—सबका सम्मान किया। वे स्वाभाविक प्रेमवश ईश्वरको मनाकर शुभाशीर्वाद देती हैं॥ ६॥ (प्रश्न-फल उत्तम है।)

विश्वास-प्रस्तुति राम काज कल्यान सब सगुन सुमंगल मूल। चिर जीवहु तुलसीस सब, कहि सुर बरषहिं फूल॥ ७॥
मूल

राम काज कल्यान सब सगुन सुमंगल मूल।
चिर जीवहु तुलसीस सब, कहि सुर बरषहिं फूल॥ ७॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीरामचन्द्रजीके कल्याणके लिये सभी सुमंगलोंके मूल (अत्यन्त कल्याणकारी) शकुन हो रहे हैं। तुलसीदासके सब स्वामी (चारों भाई) चिरंजीवी हों, यह कहकर देवता पुष्प-वर्षा कर रहे हैं॥ ७॥ (प्रश्न-फल शुभ है।)

विषय (हिन्दी)

सप्तक—४

विश्वास-प्रस्तुति राम जनम सुभ काज सब कहत देवरिषि आइ। सुनि सुनि मन हनुमान के प्रेम उमँग न अमाइ॥ १॥
मूल

राम जनम सुभ काज सब कहत देवरिषि आइ।
सुनि सुनि मन हनुमान के प्रेम उमँग न अमाइ॥ १॥

अनुवाद (हिन्दी)

देवर्षि नारदजी आकर श्रीरामके अवतारसे होनेवाले सभी शुभ-कार्योंका वर्णन करते हैं। उनकी चर्चा बार-बार (किष्किन्धामें) सुनकर हनुमान् जी के मनमें प्रेमकी उमंग समाती नहीं॥ १॥ (प्रियजनका संवाद मिलेगा।)

विश्वास-प्रस्तुति भरतु स्यामतन राम सम, सब गुन रूप निधान। सेवक सुखदायक सुलभ सुमिरत सब कल्यान॥ २॥
मूल

भरतु स्यामतन राम सम, सब गुन रूप निधान।
सेवक सुखदायक सुलभ सुमिरत सब कल्यान॥ २॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीभरतजी श्रीरघुनाथजीके समान ही साँवले शरीरवाले और समस्त गुणों तथा रूपके खजाने हैं। वे सेवकोंको सुख देनेवाले हैं। उनका स्मरण करनेसे सभी कल्याण सुलभ हो जाते हैं॥ २॥ (प्रश्न-फल शुभ है।)

विश्वास-प्रस्तुति ललित लाहु लोने लखनु, लोयन लाहु निहारि। सुत ललाम लालहु ललित, लेहु ललकि फल चारि॥ ३॥
मूल

ललित लाहु लोने लखनु, लोयन लाहु निहारि।
सुत ललाम लालहु ललित, लेहु ललकि फल चारि॥ ३॥

अनुवाद (हिन्दी)

परम सुन्दर श्रीलक्ष्मणजीके प्रिय-मिलन (दर्शन)-को नेत्र पानेका लाभ समझो (यह शकुन कहता है कि) सुन्दर पुत्ररत्न (पाकर) उसका लालन-पालन करो और समुत्सुक बनकर चारों फल (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) प्राप्त करो॥ ३॥

विश्वास-प्रस्तुति मंगल मूरति मोद निधि, मधुर मनोहर बेष। राम अनुग्रह पुत्र फल होइहि सगुन बिसेष॥ ४॥
मूल

मंगल मूरति मोद निधि, मधुर मनोहर बेष।
राम अनुग्रह पुत्र फल होइहि सगुन बिसेष॥ ४॥

अनुवाद (हिन्दी)

मंगलकी मूर्ति, आनन्दनिधि, मधुरिमामय मनोहर रूपवाले श्रीरघुनाथजीकी कृपासे पुत्र होगा, यह इस शकुनका विशेष फल है॥ ४॥

विश्वास-प्रस्तुति सोधत मख महि जनकपुर सीय सुमंगल खानि। भूपति पुन्य पयोधि जनु रमा प्रगट भइ आनि॥ ५॥
मूल

सोधत मख महि जनकपुर सीय सुमंगल खानि।
भूपति पुन्य पयोधि जनु रमा प्रगट भइ आनि॥ ५॥

अनुवाद (हिन्दी)

यज्ञ-भूमि शुद्ध करते समय जनकपुरमें श्रेष्ठ मंगलोंकी खानि सीताजी इस प्रकार प्रकट हुईं, मानो महाराज जनकके पुण्यरूपी समुद्रसे निकलकर लक्ष्मी प्रकट हो गयी हों॥ ५॥ (कन्याकी प्राप्ति होगी।)

विश्वास-प्रस्तुति नाम सत्रुसूदन सुभग सुषमा सील निकेत। सेवत सुमिरत सुलभ सुख सकल सुमंगल देत॥ ६॥
मूल

नाम सत्रुसूदन सुभग सुषमा सील निकेत।
सेवत सुमिरत सुलभ सुख सकल सुमंगल देत॥ ६॥

अनुवाद (हिन्दी)

सौन्दर्य एवं शीलके भवन शत्रुघ्नजीका नाम मनोहर है, उनकी सेवा एवं स्मरणमें बड़ी सुगमता है और वे सम्पूर्ण सुख एवं कल्याण प्रदान करते हैं॥ ६॥ (प्रश्न-फल श्रेष्ठ है।)

विश्वास-प्रस्तुति बालक कोसलपाल के सेवक पाल कृपाल। तुलसी मन मानस बसत मंगल मंजु मराल॥ ७॥
मूल

बालक कोसलपाल के सेवक पाल कृपाल।
तुलसी मन मानस बसत मंगल मंजु मराल॥ ७॥

अनुवाद (हिन्दी)

कोसलनरेश (महाराज दशरथ)-के कृपालु पुत्र सेवकोंका पालन करनेवाले हैं। तुलसीदासके मनरूपी मानसरोवरमें वे मंगलमय सुन्दर हंसोंके समान निवास करते हैं॥ ७॥ (प्रश्न-फल उत्तम है।)

विषय (हिन्दी)

सप्तक—५

विश्वास-प्रस्तुति जनकनंदिनी जनकपुर जब तें प्रगटीं आइ। तब तें सब सुखसंपदा अधिक अधिक अधिकाइ॥ १॥
मूल

जनकनंदिनी जनकपुर जब तें प्रगटीं आइ।
तब तें सब सुखसंपदा अधिक अधिक अधिकाइ॥ १॥

अनुवाद (हिन्दी)

जबसे जनकपुरमें श्रीसीताजी आकर प्रकट हुईं, तबसे वहाँ सभी सुख एवं सम्पत्तियाँ दिनोदिन अधिकाधिक बढ़ती जाती हैं॥ १॥ (यह शकुन सुख-सम्पत्तिकी प्राप्ति तथा उन्नतिकी सूचना देता है।)

विश्वास-प्रस्तुति सीय स्वयंबर जनकपुर सुनि सुनि सकल नरेस। आए साज समाज सजि भूषन बसन सुदेस॥ २॥
मूल

सीय स्वयंबर जनकपुर सुनि सुनि सकल नरेस।
आए साज समाज सजि भूषन बसन सुदेस॥ २॥

अनुवाद (हिन्दी)

सीताजीके स्वयंवरका समाचार सुनकर सभी राजा आभूषण और वस्त्रोंसे भली प्रकार सजकर, अपना समाज सजाकर जनकपुर आये॥ २॥ (प्रश्न-फल शुभ है।)

विश्वास-प्रस्तुति चले मुदित कौसिक अवध सगुन सुमंगल साथ। आए सुनि सनमानि गृहँ आने कोसलनाथ॥ ३॥
मूल

चले मुदित कौसिक अवध सगुन सुमंगल साथ।
आए सुनि सनमानि गृहँ आने कोसलनाथ॥ ३॥

अनुवाद (हिन्दी)

महर्षि विश्वामित्र प्रसन्न होकर अयोध्या चले। श्रेष्ठ मंगलदायक शकुन उनके साथ-साथ चल रहे थे—मार्गमें होते जाते थे। महाराज दशरथ उनका आगमन सुनकर (आगे जाकर) आदरपूर्वक उन्हें राजभवनमें ले आये॥ ३॥ (प्रश्न-फल श्रेष्ठ है।)

विश्वास-प्रस्तुति सादर सोरह भाँति नृप पूजि पहुनई कीन्हि। बिनय बड़ाई देखि मुनि अभिमत आसिष दीन्हि॥ ४॥
मूल

सादर सोरह भाँति नृप पूजि पहुनई कीन्हि।
बिनय बड़ाई देखि मुनि अभिमत आसिष दीन्हि॥ ४॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज दशरथने आदरपूर्वक षोडशोपचारसे (विश्वामित्रजीका) पूजन करके आतिथ्य सत्कार किया। (महाराजका) विनम्रभाव तथा सम्मान देखकर मुनि (विश्वामित्रजी)-ने अभीष्ट आशीर्वाद दिया॥ ४॥ (प्रश्न-फल उत्तम है।)

विश्वास-प्रस्तुति मुनि माँगे दसरथ दिए रामु लखनु दोउ भाइ। पाइ सगुन फल सुकृत फल प्रमुदित चले लेवाइ॥ ५॥
मूल

मुनि माँगे दसरथ दिए रामु लखनु दोउ भाइ।
पाइ सगुन फल सुकृत फल प्रमुदित चले लेवाइ॥ ५॥

अनुवाद (हिन्दी)

मुनिके माँगनेपर महाराज दशरथने उन्हें श्रीराम-लक्ष्मण दोनों भाइयोंको सौंप दिया। (पहले हुए) शकुनोंका फल तथा अपने पुण्योंका फल पा अत्यन्त प्रसन्न हो (मुनि दोनों भाइयोंको) साथ ले चले॥ ५॥ (प्रश्न-फल श्रेष्ठ है।)

विश्वास-प्रस्तुति स्यामल गौर किसोर बर धरें तून धनु बान। सोहत कौसिक सहित मग मुद मंगल कल्यान॥ ६॥
मूल

स्यामल गौर किसोर बर धरें तून धनु बान।
सोहत कौसिक सहित मग मुद मंगल कल्यान॥ ६॥

अनुवाद (हिन्दी)

साँवले और गोरे श्रेष्ठ किशोर (दोनों भाई) तरकस और धनुष-बाण लिये विश्वामित्रजीके साथ मार्गमें ऐसे सुशोभित हैं, मानो (मूर्तिमान्) आनन्द, मंगल एवं कल्याण हों॥ ६॥ (प्रश्न-फल उत्तम है।)

विश्वास-प्रस्तुति सैल सरित सर बाग बन, मृग बिहंग बहुरंग। तुलसी देखत जात प्रभु मुदित गाधिसुत संग॥ ७॥
मूल

सैल सरित सर बाग बन, मृग बिहंग बहुरंग।
तुलसी देखत जात प्रभु मुदित गाधिसुत संग॥ ७॥

अनुवाद (हिन्दी)

तुलसीदासजी कहते हैं कि प्रभु पर्वत, नदी, सरोवर, वन, उपवन तथा अनेक रंगोंके पशु-पक्षी देखते हुए आनन्दित हो विश्वामित्रजीके साथ जा रहे हैं॥ ७॥ (यात्रा सुखद होगी।)

विषय (हिन्दी)

सप्तक—६

विश्वास-प्रस्तुति लेत बिलोचन लाभु सब बड़भागी मग लोग। राम कृपाँ दरसनु सुगम, अगम जाग जप जोग॥ १॥
मूल

लेत बिलोचन लाभु सब बड़भागी मग लोग।
राम कृपाँ दरसनु सुगम, अगम जाग जप जोग॥ १॥

अनुवाद (हिन्दी)

मार्गके सब लोग बड़े भाग्यशाली हैं, वे नेत्रोंका लाभ (श्रीरामका दर्शन) पा रहे हैं—जो (श्रीरामका) दर्शन यज्ञ, जप तथा योगद्वारा भी अगम्य है, परन्तु श्रीरामकी कृपासे सुगम (सुलभ) हो जाता है॥ १॥ (प्रश्न-फल श्रेष्ठ है।)

विश्वास-प्रस्तुति जलद छाँह मृदु मग अवनि सुखद पवन अनुकूल। हरषत बिबुध बिलोकि प्रभु बरषत सुरतरु फूल॥ २॥
मूल

जलद छाँह मृदु मग अवनि सुखद पवन अनुकूल।
हरषत बिबुध बिलोकि प्रभु बरषत सुरतरु फूल॥ २॥

अनुवाद (हिन्दी)

बादल छाया कर रहे हैं, मार्गकी भूमि कोमल हो गयी है, सुखदायी अनुकूल वायु चल रही है। प्रभुको देखकर देवता प्रसन्न हो रहे हैं और कल्पवृक्षके पुष्पोंकी वर्षा कर रहे हैं॥ २॥ (प्रश्न-फल शुभ है।)

विश्वास-प्रस्तुति दले मलिन खल राखि मख, मुनि सिष आसिष दीन्ह। बिद्या बिस्वामित्र सब सुथल समरपित कीन्हि॥ ३॥
मूल

दले मलिन खल राखि मख, मुनि सिष आसिष दीन्ह।
बिद्या बिस्वामित्र सब सुथल समरपित कीन्हि॥ ३॥

अनुवाद (हिन्दी)

(प्रभुने) दुष्ट राक्षसोंको नष्ट कर दिया और इस प्रकार यज्ञकी रक्षा की। मुनि विश्वामित्रजीने उन्हें शिक्षा और आशीर्वाद दिया तथा पुण्यस्थलमें सारी विद्याएँ दान की॥ ३॥ (प्रश्न-फल उत्तम है।)

विश्वास-प्रस्तुति अभय किए मुनि राखि मख, धरें बान धनु हाथ। धनु मख कौतुक जनकपुर चले गाधिसुत साथ॥ ४॥
मूल

अभय किए मुनि राखि मख, धरें बान धनु हाथ।
धनु मख कौतुक जनकपुर चले गाधिसुत साथ॥ ४॥

अनुवाद (हिन्दी)

हाथमें धनुष-बाण लेकर (प्रभुने) यज्ञकी रक्षा की और मुनियोंको निर्भय कर दिया। फिर वे विश्वामित्रजीके साथ धनुष-यज्ञकी क्रीड़ा देखने जनकपुर चले॥ ४॥ (प्रश्न-फल श्रेष्ठ है।)

विश्वास-प्रस्तुति गौतम तिय तारन चरन कमल आनि उर देखु। सकल सुमंगल सिद्धि सब करतल सगुन बिसेषु॥ ५॥
मूल

गौतम तिय तारन चरन कमल आनि उर देखु।
सकल सुमंगल सिद्धि सब करतल सगुन बिसेषु॥ ५॥

अनुवाद (हिन्दी)

गौतम मुनिकी पत्नी (अहल्या)-का उद्धार करनेवाले चरणोंको हृदयमें लाकर देखो (हृदयमें उनका ध्यान करो)। यह शकुन विशेषरूपसे सूचित करता है कि सब प्रकारका परम कल्याण तथा सारी सफलता हाथमें (प्राप्त ही) समझो॥ ५॥

विश्वास-प्रस्तुति जनक पाइ प्रिय पाहुने पूजे पूजन जोग। बालक कोसलपाल के देखि मगन पुर लोग॥ ६॥
मूल

जनक पाइ प्रिय पाहुने पूजे पूजन जोग।
बालक कोसलपाल के देखि मगन पुर लोग॥ ६॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज जनकने पूजा करनेयोग्य प्रिय अतिथियोंको पाकर उनका पूजन किया। कोसलनरेश (महाराज दशरथ)-के कुमारोंको देखकर नगरवासी आनन्दमग्न हो रहे हैं॥ ६॥ (प्रश्न-फल शुभ है।)

विश्वास-प्रस्तुति सनमाने आने सदन पूजे अति अनुराग। तुलसी मंगल सगुन सुभ भूरि भलाई भाग॥ ७॥
मूल

सनमाने आने सदन पूजे अति अनुराग।
तुलसी मंगल सगुन सुभ भूरि भलाई भाग॥ ७॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज जनक श्रीराम-लक्ष्मणसहित विश्वामित्रजीको सम्मानपूर्वक राजभवनमें ले आये और अत्यन्त प्रेमपूर्वक उनकी पूजा की। तुलसीदासजी कहते हैं कि यह शुभ शकुन मंगलकारी है, भाग्यमें बहुत अधिक बड़ाई है॥ ७॥

विषय (हिन्दी)

सप्तक—७

विश्वास-प्रस्तुति कौसिक देखन धनुष मख चले संग दोउ भाइ। कुँअर निरखि पुर नारि नर मुदित नयन फल पाइ॥ १॥
मूल

कौसिक देखन धनुष मख चले संग दोउ भाइ।
कुँअर निरखि पुर नारि नर मुदित नयन फल पाइ॥ १॥

अनुवाद (हिन्दी)

विश्वामित्रजी दोनों भाइयोंके साथ धनुषयज्ञ देखने चले। दोनों कुमारोंको देखकर नगरके स्त्री-पुरुष नेत्रोंका फल पाकर प्रसन्न हो रहे हैं॥ १॥ (प्रश्न-फल श्रेष्ठ है।)

विश्वास-प्रस्तुति भूप सभाँ भव चाप दलि राजत राजकिसोर। सिद्धि सुमंगल सगुन सुभ जय जय जय सब ओर॥ २॥
मूल

भूप सभाँ भव चाप दलि राजत राजकिसोर।
सिद्धि सुमंगल सगुन सुभ जय जय जय सब ओर॥ २॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजाओंकी सभामें शंकरजीके धनुषको तोड़कर (अयोध्याके) राजकुमार (श्रीराम) शोभित हो रहे हैं। सब ओर उनकी जय-जयकार हो रही है। यह शुभ शकुन सफलतादायक एवं परम कल्याणकारी है॥ २॥

विश्वास-प्रस्तुति जयमय मंजुल माल उर मंगल मूरति देखि। गान निसान प्रसून झरि मंगल मोद बिसेषि॥ ३॥
मूल

जयमय मंजुल माल उर मंगल मूरति देखि।
गान निसान प्रसून झरि मंगल मोद बिसेषि॥ ३॥

अनुवाद (हिन्दी)

विजयसूचक मनोहर जयमाला वक्षःस्थलपर धारण किये (श्रीरामकी) मंगलमयी मूर्ति देखकर मंगलगान तथा पुष्पवर्षा हो रही है और नगारे बज रहे हैं, अत्यन्त आनन्द-मंगल हो रहा है॥ ३॥ (प्रश्न-फल शुभ है।)

विश्वास-प्रस्तुति समाचार सुनि अवधपति आए सहित समाज। प्रीति परस्पर मिलत मुद, सगुन सुमंगल साज॥ ४॥
मूल

समाचार सुनि अवधपति आए सहित समाज।
प्रीति परस्पर मिलत मुद, सगुन सुमंगल साज॥ ४॥

अनुवाद (हिन्दी)

समाचार सुनकर अयोध्यानाथ (महाराज दशरथ) बरातके साथ आये। दोनों नरेश प्रेमपूर्वक एक-दूसरेसे मिलते हुए बड़े ही आनन्दका अनुभव कर रहे हैं। यह शकुन परम मंगलकारी है॥ ४॥

विश्वास-प्रस्तुति गान निसान बितान बर बिरचे बिबिध बिधान। चारि बिबाह उछाह बड़, कुसल काज कल्यान॥ ५॥
मूल

गान निसान बितान बर बिरचे बिबिध बिधान।
चारि बिबाह उछाह बड़, कुसल काज कल्यान॥ ५॥

अनुवाद (हिन्दी)

मंगलगान हो रहा है, नगारे बज रहे हैं, अनेक प्रकारकी कारीगरीसे युक्त श्रेष्ठ मण्डप बनाये गये हैं, (एक साथ) चार विवाह होनेसे बड़ा उत्सव हो रहा है। (यह शकुन) कुशलपूर्वक विवाह-कार्यको पूर्ण करनेवाला है॥ ५॥

विश्वास-प्रस्तुति दाइज पाइ अनेक बिधि सुत सुतबधुन समेत। अवधनाथु आए अवध सकल सुमंगल लेत॥ ६॥
मूल

दाइज पाइ अनेक बिधि सुत सुतबधुन समेत।
अवधनाथु आए अवध सकल सुमंगल लेत॥ ६॥

अनुवाद (हिन्दी)

अनेक प्रकारका दहेज पाकर पुत्र और पुत्रवधुओंके साथ अयोध्यानाथ (महाराज दशरथ) समस्त सुमंगल प्राप्त करके अयोध्या लौटे॥ ६॥ (प्रश्न-फल उत्तम है।)

विश्वास-प्रस्तुति चौथ चारु उनचास पुर घर घर मंगलचार। तुलसिहि सब दिन दाहिने दसरथ राजकुमार॥ ७॥
मूल

चौथ चारु उनचास पुर घर घर मंगलचार।
तुलसिहि सब दिन दाहिने दसरथ राजकुमार॥ ७॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अयोध्यामें) घर-घर मंगलाचार हो रहा है। तुलसीदासजी कहते हैं कि चौथे सर्गका उनचासवाँ दोहा शुभ है, दशरथकुमार (श्रीराम) सब समय अनुकूल हैं॥ ७॥