०५ तृतीय सर्ग

विषय (हिन्दी)

सप्तक—१

विश्वास-प्रस्तुति दंडकबन पावन करन चरन सरोज प्रभाउ। ऊसर जामहिं, खल तरहिं, होइँ रंक तें राउ॥ १॥
मूल

दंडकबन पावन करन चरन सरोज प्रभाउ।
ऊसर जामहिं, खल तरहिं, होइँ रंक तें राउ॥ १॥

अनुवाद (हिन्दी)

दण्डकवनको पवित्र करनेवाले (श्रीरामके) चरणकमलोंके प्रभावसे ऊसर भूमिमें भी अन्न उगने लगता है, दुर्जन भी (संसार-सागरसे) पार हो जाते हैं और (मनुष्य) दरिद्रसे राजा हो जाता है॥ १॥ (प्रश्न-फल परम शुभ है।)

विश्वास-प्रस्तुति कपट रूप मन मलिन गइ सूपनखा प्रभु पास। कुसगुन कठिन कुनारि कृत कलह कलुष उपहास॥ २॥
मूल

कपट रूप मन मलिन गइ सूपनखा प्रभु पास।
कुसगुन कठिन कुनारि कृत कलह कलुष उपहास॥ २॥

अनुवाद (हिन्दी)

मलिन मनवाली शूर्पणखा छलसे रूपवती बनकर प्रभुके समीप गयी। यह भारी अपशकुन है, दुष्टा नारीके कारण झगड़ा, पाप तथा हँसी (अकीर्ति) होगी॥ २॥

विश्वास-प्रस्तुति नाक कान बिनु बिकल भइ, बिकट कराल कुरूप। कुसगुन पाउ न देब मग, पग पग कंटक कूप॥ ३॥
मूल

नाक कान बिनु बिकल भइ, बिकट कराल कुरूप।
कुसगुन पाउ न देब मग, पग पग कंटक कूप॥ ३॥

अनुवाद (हिन्दी)

(शूर्पणखा) नाक-कानके (काटे जानेसे उनके) बिना व्याकुल हो गयी, उसका रूप अटपटा, भयंकर तथा भद्दा हो गया। यह अपशकुन है—(यात्राके लिये) मार्गमें पैर मत रखना, पद-पदपर काँटे और कुएँ (विघ्न-बाधाएँ) हैं॥ ३॥

विश्वास-प्रस्तुति खर दूषन देखी दुखित, चले साजि सब साज। अनरथ असगुन अघ असुभ अनभल अखिल अकाज॥ ४॥
मूल

खर दूषन देखी दुखित, चले साजि सब साज।
अनरथ असगुन अघ असुभ अनभल अखिल अकाज॥ ४॥

अनुवाद (हिन्दी)

खर-दूषणने (शूर्पणखाको) दुःखी देखा तो (सेनाका) सब साज सजाकर चले। यह अपशकुन बुराइयों, पाप, अशुभ, अहित तथा सब प्रकारकी हानि बतलाता है॥ ४॥

विश्वास-प्रस्तुति कटु कुठायँ करटा रटहिं, केंकरहिं फेरु कुभाँति। नीच निसाचर मीच बस अनी मोह मद माति॥ ५॥
मूल

कटु कुठायँ करटा रटहिं, केंकरहिं फेरु कुभाँति।
नीच निसाचर मीच बस अनी मोह मद माति॥ ५॥

अनुवाद (हिन्दी)

कौवे बुरे स्थानोंमें बैठे बार-बार कठोर ध्वनि करते हैं, शृगाल बुरी तरह रो रहे हैं, नीच राक्षसोंकी सेना मृत्युके वश होकर मोह तथा गर्वसे मतवाली हो रही है॥ ५॥ (शकुन अनिष्टसूचक है।)

विश्वास-प्रस्तुति राम रोष पावक प्रबल निसिचर सलभ समान। लरत परत जरि जरि मरत, भए भसम जगु जान॥ ६॥
मूल

राम रोष पावक प्रबल निसिचर सलभ समान।
लरत परत जरि जरि मरत, भए भसम जगु जान॥ ६॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीरामजीका क्रोध प्रज्वलित अग्निके समान है और राक्षस पतंगोंके समान हैं। लड़ाई करते हुए वे उस (क्रोधाग्नि)-में पड़कर जल-जलकर मर रहे हैं। इस प्रकार वे भस्म हो गये, यह बात संसार जानता है॥ ६॥ (प्रश्न-फल अशुभ है।)

विश्वास-प्रस्तुति सीता लखन समेत प्रभु सोहत तुलसीदास। हरषत सुर बरषत सुमन सगुन सुमंगल बास॥ ७॥
मूल

सीता लखन समेत प्रभु सोहत तुलसीदास।
हरषत सुर बरषत सुमन सगुन सुमंगल बास॥ ७॥

अनुवाद (हिन्दी)

तुलसीदासजी कहते हैं कि प्रभु श्रीराम श्रीजानकी और लक्ष्मणजीके साथ सुशोभित हैं। देवता प्रसन्न होकर पुष्प-वर्षा कर रहे हैं। यह शकुन सुमंगलका निवासरूप है॥ ७॥

विषय (हिन्दी)

सप्तक—२

विश्वास-प्रस्तुति सुभट सहस चौदह सहित भाइ काल बस जानि। सूपनखा लंकहि चली असुभ अमंगल खानि॥ १॥
मूल

सुभट सहस चौदह सहित भाइ काल बस जानि।
सूपनखा लंकहि चली असुभ अमंगल खानि॥ १॥

अनुवाद (हिन्दी)

चौदह सहस्र उच्च कोटिके योद्धा राक्षसोंसहित भाइयों (खर-दूषण)-को कालवश हुआ (मरा) जानकर अशुभ और अमंगलोंकी खान शूर्पणखा लंकाके लिये प्रस्थित हुई॥ १॥ (प्रश्न-फल अशुभ है।)

विश्वास-प्रस्तुति बसन सकल सोनित समल, बिकट बदन गत गात। रोवति रावन की सभाँ, तात मात हा भ्रात॥ २॥
मूल

बसन सकल सोनित समल, बिकट बदन गत गात।
रोवति रावन की सभाँ, तात मात हा भ्रात॥ २॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस (शूर्पणखा)-के सब वस्त्र रक्तसे लथपथ हैं, भयंकर मुख है और अंग (नाक-कान) कटे हैं। रावणकी सभामें वह ‘हाय बाप! हाय मैया! हाय भैया!’ कहकर रो रही है॥ २॥ (प्रश्न-फल अशुभ है।)

विश्वास-प्रस्तुति काल कि मूरति कालिका कालराति बिकराल। बिनु पहिचाने लंकपति सभा सभय तेहि काल॥ ३॥
मूल

काल कि मूरति कालिका कालराति बिकराल।
बिनु पहिचाने लंकपति सभा सभय तेहि काल॥ ३॥

अनुवाद (हिन्दी)

कालकी मूर्ति, कालिका अथवा कालरात्रिके समान भयंकर उसे (शूर्पणखाको) पहचान न सकनेके कारण उस समय रावणकी सभाके लोग भयभीत हो गये॥ ३॥ (प्रश्न-फल अनिष्ट है।)

विश्वास-प्रस्तुति सूपनखा सब भाँति गत असुभ अमंगल मूल। समय साढ़साती सरिस नृपहि प्रजहि प्रतिकूल॥ ४॥
मूल

सूपनखा सब भाँति गत असुभ अमंगल मूल।
समय साढ़साती सरिस नृपहि प्रजहि प्रतिकूल॥ ४॥

अनुवाद (हिन्दी)

शनैश्चरकी साढ़े सात वर्षकी दशाके समान सब प्रकारसे अशुभ और अमंगलकी जड़ शूर्पणखा राजा रावण तथा उसकी प्रजाके लिये प्रतिकूल (विपत्ति लानेवाली) बनकर (लंका) पहुँची॥ ४॥ (प्रश्न-फल राजा-प्रजा सबके लिये अनिष्टसूचक है।)

विश्वास-प्रस्तुति बरबस गवनत रावनहि असगुन भए अपार। नीचु गनत नहिं मीचु बस मिलि मारीच बिचार॥ ५॥
मूल

बरबस गवनत रावनहि असगुन भए अपार।
नीचु गनत नहिं मीचु बस मिलि मारीच बिचार॥ ५॥

अनुवाद (हिन्दी)

हठपूर्वक (पंचवटीकी ओर) जाते समय रावणको अपार (बहुत अधिक) अपशकुन हुए; किंतु मृत्युवश हुआ वह नीच उनको गिनता (समझता) नहीं, मारीचसे मिलकर (सीताहरणका) विचार करता है॥ ५॥ (प्रश्न-फल अनिष्ट है।)

विश्वास-प्रस्तुति इत रावन उत राम कर मीचु जानि मारीच। कनक कपट मृग बेस तब कीन्ह निसाचर नीच॥ ६॥
मूल

इत रावन उत राम कर मीचु जानि मारीच।
कनक कपट मृग बेस तब कीन्ह निसाचर नीच॥ ६॥

अनुवाद (हिन्दी)

इधर रावण और उधर श्रीरामके हाथों दोनों ओर मृत्यु (निश्चित) समझकर नीच राक्षस मारीचने तब स्वर्णमृगका कपटमय रूप बनाया॥ ६॥ (प्रश्न-फल अशुभ है।)

विश्वास-प्रस्तुति पंचबटी बट बिटप तर सीता लखन समेत। सोहत तुलसीदास प्रभु सकल सुमंगल देत॥ ७॥
मूल

पंचबटी बट बिटप तर सीता लखन समेत।
सोहत तुलसीदास प्रभु सकल सुमंगल देत॥ ७॥

अनुवाद (हिन्दी)

तुलसीदासजी कहते हैं कि पंचवटीमें एक वटवृक्षके नीचे श्रीजानकीजी तथा लक्ष्मणजीके साथ प्रभु शोभित हैं, वे समस्त मंगल (शुभ-फल) प्रदान करते हैं॥ ७॥ (प्रश्न-फल शुभ है।)

विषय (हिन्दी)

सप्तक—३

विश्वास-प्रस्तुति मायामृग पहिचानि प्रभु चले सीय रुचि जानि। बंचक चोर प्रपंच कृत सगुन कहब हित मानि॥ १॥
मूल

मायामृग पहिचानि प्रभु चले सीय रुचि जानि।
बंचक चोर प्रपंच कृत सगुन कहब हित मानि॥ १॥

अनुवाद (हिन्दी)

मायासे बने हुए उस मृगको पहचान लेनेपर भी (कि यह राक्षस है) श्रीजानकीजीकी इच्छा जानकर प्रभु (उसे मारने) चले। मैं कहूँगा कि ठग, चोर तथा पाखण्डियोंके लिये इस शकुनको हितकर समझो॥ १॥

विश्वास-प्रस्तुति सीय हरन अवसर सगुन भय संसय संताप। नारि काज हित निपट गत प्रगट पराभव पाप॥ २॥
मूल

सीय हरन अवसर सगुन भय संसय संताप।
नारि काज हित निपट गत प्रगट पराभव पाप॥ २॥

अनुवाद (हिन्दी)

सीता-हरणके समयका यह शकुन भय, सन्देह और दुःख बतलाता है। स्त्रियोंकी भलाई-सम्बन्धी कार्य पूर्णतः नष्ट हो जायँगे और पराजय तथा पाप प्रकट (प्रसिद्ध) होंगे॥ २॥

विश्वास-प्रस्तुति गीधराज रावन समर घायल बीर बिराज। सूर सुजसु संग्राम महि मरन सुसाहिब काज॥ ३॥
मूल

गीधराज रावन समर घायल बीर बिराज।
सूर सुजसु संग्राम महि मरन सुसाहिब काज॥ ३॥

अनुवाद (हिन्दी)

वीर गृध्रराज जटायु रावणसे युद्ध करके घायल पड़े अत्यन्त सुशोभित हो रहे हैं। (यह शकुन कहता है कि) संग्रामभूमिमें वीर सुयश पायेंगे, श्रेष्ठ स्वामीके लिये उनकी मृत्यु होगी॥ ३॥

विश्वास-प्रस्तुति राम लखनु बन बन बिकल फिरत सीय सुधि लेत। सूचत सगुन बिषादु बड़ असुभ अरिष्ट अचेत॥ ४॥
मूल

राम लखनु बन बन बिकल फिरत सीय सुधि लेत।
सूचत सगुन बिषादु बड़ असुभ अरिष्ट अचेत॥ ४॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीराम-लक्ष्मण व्याकुल होकर वन-वन सीताजीका पता लगाते घूमते हैं। यह शकुन भारी शोक, अशुभ और व्याकुल कर देनेवाले अमंगलको सूचित करता है॥ ४॥

विश्वास-प्रस्तुति रघुबर बिकल बिहंग लखि सो बिलोकि दोउ बीर। सिय सुधि कहि सिय राम कहि तजी देह मतिधीर॥ ५॥
मूल

रघुबर बिकल बिहंग लखि सो बिलोकि दोउ बीर।
सिय सुधि कहि सिय राम कहि तजी देह मतिधीर॥ ५॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीरघुनाथजी पक्षी (जटायु)-को देखकर व्याकुल हो गये। उस (जटायु)-ने दोनों भाइयोंको देखा, उनसे श्रीजानकीका समाचार कहा और उस धीरबुद्धिने ‘श्रीसीता-राम’ कहकर शरीर छोड़ दिया॥ ५॥ (प्रश्न-फल अशुभ है।)

विश्वास-प्रस्तुति दसरथ ते दसगुन भगति सहित तासु करि काज। सोचत बंधु समेत प्रभु कृपासिंधु रघुराज॥ ६॥
मूल

दसरथ ते दसगुन भगति सहित तासु करि काज।
सोचत बंधु समेत प्रभु कृपासिंधु रघुराज॥ ६॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज दशरथजीसे भी दसगुनी भक्तिपूर्वक उस (गृध्रराज)-का अन्त्येष्टि कर्म करके कृपासागर प्रभु श्रीरघुनाथजी भाई (लक्ष्मण)-के साथ शोक कर रहे हैं॥ ६॥ (प्रश्न-फल शोकसूचक है।)

विश्वास-प्रस्तुति तुलसी सहित सनेह नित सुमिरहु सीताराम। सगुन सुमंगल सुभ सदा आदि मध्य परिनाम॥ ७॥
मूल

तुलसी सहित सनेह नित सुमिरहु सीताराम।
सगुन सुमंगल सुभ सदा आदि मध्य परिनाम॥ ७॥

अनुवाद (हिन्दी)

तुलसीदासजी कहते हैं कि नित्य प्रेमपूर्वक श्रीसीतारामका स्मरण करो। यह शकुन शुभ है; प्रारम्भ, मध्य तथा अन्तमें सदा मंगल होगा॥ ७॥

विषय (हिन्दी)

सप्तक—४

विश्वास-प्रस्तुति सकल काज सुभ समउ भल, सगुन सुमंगल जानु। कीरति बिजय बिभूति भलि, हियँ हनुमानहि आनु॥ १॥
मूल

सकल काज सुभ समउ भल, सगुन सुमंगल जानु।
कीरति बिजय बिभूति भलि, हियँ हनुमानहि आनु॥ १॥

अनुवाद (हिन्दी)

सभी कामोंके लिये उत्तम शुभ समय है। इस शकुनको कल्याणदायक समझो। हृदयमें श्रीहनुमान् जी का स्मरण करो; कीर्ति, विजय तथा श्रेष्ठ ऐश्वर्य प्राप्त होगा॥ १॥

विश्वास-प्रस्तुति सुमिरि सत्रुसूदन चरन चलहु करहु सब काज। सत्रु पराजय निज बिजय, सगुन सुमंगल साज॥ २॥
मूल

सुमिरि सत्रुसूदन चरन चलहु करहु सब काज।
सत्रु पराजय निज बिजय, सगुन सुमंगल साज॥ २॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीशत्रुघ्नजीके चरणोंका स्मरण करके चलो, सब काम करो। यह शकुन शत्रुकी पराजय एवं अपनी विजय तथा कल्याणकी सामग्री जुटानेवाला है॥ २॥

विश्वास-प्रस्तुति भरत नाम सुमिरत मिटहिं कपट कलेस कुचालि। नीति प्रीति परतीति हित, सगुन सुमंगल सालि॥ ३॥
मूल

भरत नाम सुमिरत मिटहिं कपट कलेस कुचालि।
नीति प्रीति परतीति हित, सगुन सुमंगल सालि॥ ३॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीभरतजीके नामका स्मरण करते ही कपट, क्लेश और (दुष्टोंकी) कुचाल (दुर्नीति) मिट जाती है। नीति-व्यवहार, प्रेम तथा विश्वासके लिये यह शकुन मंगलदायक है॥ ३॥

विश्वास-प्रस्तुति राम नाम कलि कामतरु, सकल सुमंगल कंद। सुमिरत करतल सिद्धि जग, पग पग परमानंद॥ ४॥
मूल

राम नाम कलि कामतरु, सकल सुमंगल कंद।
सुमिरत करतल सिद्धि जग, पग पग परमानंद॥ ४॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीरामनाम कलियुगमें कल्पवृक्षके समान (अभीष्टदाता) है, समस्त श्रेष्ठ मंगलोंका मूल है, उसका स्मरण करनेसे संसारमें सब सिद्धियाँ हाथमें आ जाती हैं और पद-पदपर परम सुख प्राप्त होता है॥ ४॥ (प्रश्न-फल शुभ है।)

विश्वास-प्रस्तुति सीता चरन प्रनाम करि, सुमिरि सुनाम सनेम। सुतिय होहिं पतिदेवता, प्राननाथ प्रिय प्रेम॥ ५॥
मूल

सीता चरन प्रनाम करि, सुमिरि सुनाम सनेम।
सुतिय होहिं पतिदेवता, प्राननाथ प्रिय प्रेम॥ ५॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीजानकीजीके चरणोंमें प्रणाम करके और उनके सुन्दर नामका नियमपूर्वक स्मरण करके उत्तम स्त्रियाँ पतिव्रता होती हैं और प्राणनाथ प्रियतम (पति)-का प्रेम प्राप्त करती हैं॥ ५॥ (स्त्रियोंको पतिप्रेमकी प्राप्तिका सूचक शकुन है।)

विश्वास-प्रस्तुति लखन ललित मूरति मधुर सुमिरहु सहित सनेह। सुख संपति कीरति बिजय सगुन सुमंगल गेह॥ ६॥
मूल

लखन ललित मूरति मधुर सुमिरहु सहित सनेह।
सुख संपति कीरति बिजय सगुन सुमंगल गेह॥ ६॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीलक्ष्मणजीकी मधुरिमामयी सुन्दर मूर्तिका प्रेमपूर्वक स्मरण करो। यह शकुन सुख, सम्पत्ति, कीर्ति, विजय आदि सुमंगलोंका घर ही है॥ ६॥

विश्वास-प्रस्तुति तुलसी तुलसी मंजरी, मंगल मंजुल मूल। देखत सुमिरत सगुन सुभ, कलपलता फल फूल॥ ७॥
मूल

तुलसी तुलसी मंजरी, मंगल मंजुल मूल।
देखत सुमिरत सगुन सुभ, कलपलता फल फूल॥ ७॥

अनुवाद (हिन्दी)

तुलसीदासजी कहते हैं कि तुलसीकी मंजरी उत्तम कल्याणकी जड़ है। उसका दर्शन और स्मरण शुभ शकुन है। वह कल्पलताके फलपुष्पके समान (अभीष्ट फल देनेवाली) है॥ ७॥ (शकुन-फल श्रेष्ठ है।)

विषय (हिन्दी)

सप्तक—५

विश्वास-प्रस्तुति खल बल अंध कबंध बस परे सुबंधु समेत। सगुन सोच संकट कहब, भूत प्रेत दुख देत॥ १॥
मूल

खल बल अंध कबंध बस परे सुबंधु समेत।
सगुन सोच संकट कहब, भूत प्रेत दुख देत॥ १॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रेष्ठ भाई लक्ष्मणके साथ प्रभु बलके गर्वसे अंधे दुष्ट कबन्धके चंगुलमें पड़ गये (उसने दोनों भाइयोंको पकड़ लिया)। मैं कहूँगा कि यह शकुन शोक, विपत्ति तथा भूत-प्रेतकी पीड़ाका सूचक है॥ १॥

विश्वास-प्रस्तुति पाई नीच सुमीचु भलि, मिटा महा मुनि साप। बिहँग मरन सिय सोच मन, सगुन सभय संताप॥ २॥
मूल

पाई नीच सुमीचु भलि, मिटा महा मुनि साप।
बिहँग मरन सिय सोच मन, सगुन सभय संताप॥ २॥

अनुवाद (हिन्दी)

नीच मारीचने उत्तम एवं श्लाघ्य मृत्यु पायी, महामुनि अगस्त्यजीका शाप* दूर हो गया। पक्षी (जटायु)-की मृत्यु और सीताजी (के वियोग)-का शोक (प्रभुके) मनमें है। यह शकुन भय तथा क्लेशकी प्राप्ति बतलाता है॥ २॥

पादटिप्पनी
  • सुन्द नामक यक्षके द्वारा ताड़काके गर्भसे मारीच उत्पन्न हुआ था। महर्षि अगस्त्यके शापसे सुन्द भस्म हो गया। उस समय ताड़का अपने पुत्र मारीचके साथ महर्षिको खाने दौड़ी, तब महर्षि अगस्त्यजीने दोनोंको शाप दे दिया—‘तुम राक्षस हो जाओ।’ श्रीरामद्वारा मारे जानेपर दोनों इस शापसे छूटे।
विश्वास-प्रस्तुति कहि सबरी सब सीय सुधि, प्रभु सराहि फल खात। सोच समयँ संतोष सुनि सगुन सुमंगल बात॥ ३॥
मूल

कहि सबरी सब सीय सुधि, प्रभु सराहि फल खात।
सोच समयँ संतोष सुनि सगुन सुमंगल बात॥ ३॥

अनुवाद (हिन्दी)

शबरीने (प्रभुसे) सीताजीका सब समाचार कहा। प्रभु प्रशंसा करके (उसके दिये) फल खाते हैं। यह शकुन कहता है कि चिन्ताके समय श्रेष्ठ कल्याणकारी बात सुनकर सन्तोष होगा॥ ३॥

विश्वास-प्रस्तुति पवनसुवन सन भेंट भइ, भूमि सुता सुधि पाइ। सोच बिमोचन सगुन सुभ मिला सुसेवक आइ॥ ४॥
मूल

पवनसुवन सन भेंट भइ, भूमि सुता सुधि पाइ।
सोच बिमोचन सगुन सुभ मिला सुसेवक आइ॥ ४॥

अनुवाद (हिन्दी)

(प्रभुकी) श्रीहनुमान् जी से भेंट हुई। श्रीसीताजीका समाचार भी उन्होंने पाया। (स्वामी श्रीरामको) उत्तम सेवक आ मिला। यह शकुन शुभ है, शोकको दूर करनेवाला है॥ ४॥

विश्वास-प्रस्तुति राम लखन हनुमान मन, दुहुँ दिसि परम उछाहु। मिला सुसाहिब सेवकहि, प्रभुहि सुसेवक लाहु॥ ५॥
मूल

राम लखन हनुमान मन, दुहुँ दिसि परम उछाहु।
मिला सुसाहिब सेवकहि, प्रभुहि सुसेवक लाहु॥ ५॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीराम-लक्ष्मणके तथा हनुमान् जी के भी मनमें दोनों ओर परम उत्साह है। इधर तो सेवक (हनुमान् जी )-को उत्तम स्वामी मिला और उधर प्रभुको उत्तम सेवक प्राप्त हुआ॥ ५॥ (स्वामी-सेवक-सम्बन्धी प्रश्नका फल शुभ है।)

विश्वास-प्रस्तुति कीन्ह सखा सुग्रीव प्रभु, दीन्हि बाँह रघुबीर। सुभ सनेह हित सगुन फल, मिटइ सोच भय भीर॥ ६॥
मूल

कीन्ह सखा सुग्रीव प्रभु, दीन्हि बाँह रघुबीर।
सुभ सनेह हित सगुन फल, मिटइ सोच भय भीर॥ ६॥

अनुवाद (हिन्दी)

सुग्रीवने प्रभुको मित्र बनाया और श्रीरघुनाथजीने उन्हें (सुग्रीवको) अपनी (अभय) भुजाका आश्रय दिया। इस शकुनका फल मित्रताके लिये शुभसूचक है; चिन्ता, भय और विपत्ति दूर होगी॥ ६॥

विश्वास-प्रस्तुति बली बालि बलसालि दलि, सखा कीन्ह कपिराज। तुलसी राम कृपालु को बिरद गरीब निवाज॥ ७॥
मूल

बली बालि बलसालि दलि, सखा कीन्ह कपिराज।
तुलसी राम कृपालु को बिरद गरीब निवाज॥ ७॥

अनुवाद (हिन्दी)

तुलसीदासजी कहते हैं—(प्रभुने) अत्यन्त बलवान् वालीको नष्ट करके मित्र सुग्रीवको वानरोंका राजा बनाया। कृपामय श्रीरामका यही व्रत है कि वे दीनोंपर कृपा करनेवाले हैं॥ ७॥ (प्रश्न-फल शुभ है।)

विषय (हिन्दी)

सप्तक—६

विश्वास-प्रस्तुति बंधु बिरोध न कुसल कुल कुसगुन कोटि कुचालि। रावन रबि को राहु सो भयो काल बस बालि॥ १॥
मूल

बंधु बिरोध न कुसल कुल कुसगुन कोटि कुचालि।
रावन रबि को राहु सो भयो काल बस बालि॥ १॥

अनुवाद (हिन्दी)

भाईसे विरोध करनेपर कुलका कुशल नहीं होता। वही (भाई विभीषणका विरोध) रावणरूपी सूर्यके लिये राहु हो गया और उसीसे वाली कालके वश हुआ (मारा गया)। यह अपशकुन करोड़ों कुचक्रोंका सूचक है॥ १॥

विश्वास-प्रस्तुति कीन्ह बास बरषा निरखि गिरिबर सानुज राम। काज बिलंबित सगुन फल होइहि भल परिनाम॥ २॥
मूल

कीन्ह बास बरषा निरखि गिरिबर सानुज राम।
काज बिलंबित सगुन फल होइहि भल परिनाम॥ २॥

अनुवाद (हिन्दी)

वर्षा-ऋतु देखकर छोटे भाईके साथ श्रीरामने श्रेष्ठ पर्वतपर निवास किया। इस शकुनका फल है कि कार्यकी सफलतामें देर होगी, किन्तु परिणाम अच्छा होगा॥ २॥

विश्वास-प्रस्तुति सीय सोध कपि भालु सब बिदा किए कपिनाथ। जतन करहु आलस तजहु नाइ राम पद माथ॥ ३॥
मूल

सीय सोध कपि भालु सब बिदा किए कपिनाथ।
जतन करहु आलस तजहु नाइ राम पद माथ॥ ३॥

अनुवाद (हिन्दी)

वानरराज सुग्रीवने सीताजीका पता लगानेके लिये सब वानर-भालुओंको विदा किया। श्रीरामके चरणोंमें मस्तक झुकाकर प्रयत्न करो, आलस्य त्याग दो। (कार्य सफल होगा।)॥ ३॥

विश्वास-प्रस्तुति हनूमान हियँ हरषि तब राम जोहारे जाइ। मंगल मूरति मारुतिहि सादर लीन्ह बुलाइ॥ ४॥
मूल

हनूमान हियँ हरषि तब राम जोहारे जाइ।
मंगल मूरति मारुतिहि सादर लीन्ह बुलाइ॥ ४॥

अनुवाद (हिन्दी)

तब चित्तमें प्रसन्न होकर (सम्मुख) जाकर हनुमान् जी ने श्रीरामको प्रणाम किया। मंगलमूर्ति प्रभुने श्रीहनुमान् जी को आदरपूर्वक (पास) बुला लिया॥ ४॥ (प्रश्न-फल शुभ है।)

विश्वास-प्रस्तुति डाँटे बानर भालु सब अवधि गये बिन काज। जो आइहि सो काल बस कोपि कहा कपिराज॥ ५॥
मूल

डाँटे बानर भालु सब अवधि गये बिन काज।
जो आइहि सो काल बस कोपि कहा कपिराज॥ ५॥

अनुवाद (हिन्दी)

कपिराज सुग्रीवने क्रोध करके सब वानर-भालुओंको डाँटते हुए कहा—‘समय बीत जानेपर कार्य किये बिना जो आयेगा, वह कालका शिकार होगा (मारा जायगा)’॥ ५॥ (प्रश्न-फल अनिष्ट है।)

विश्वास-प्रस्तुति जान सिरोमनि जानि जियँ कपि बल बुद्धि निधानु। दीन्हि मुद्रिका मुदित प्रभु, पाइ मुदित हनुमानु॥ ६॥
मूल

जान सिरोमनि जानि जियँ कपि बल बुद्धि निधानु।
दीन्हि मुद्रिका मुदित प्रभु, पाइ मुदित हनुमानु॥ ६॥

अनुवाद (हिन्दी)

प्रभुने हृदयमें हनुमान् जी को ज्ञानियोंमें शिरोमणि तथा बल-बुद्धिका निधान (खजाना) जानकर प्रसन्न होकर अपनी अँगूठी दी, उसे पाकर हनुमान् जी प्रसन्न हुए॥ ६॥ (प्रश्न-फल शुभ है।)

विश्वास-प्रस्तुति तुलसी करतल सिद्धि सब, सगुन सुमंगल साज। करि प्रनाम रामहि चलहु, साहस सिद्ध सुकाज॥ ७॥
मूल

तुलसी करतल सिद्धि सब, सगुन सुमंगल साज।
करि प्रनाम रामहि चलहु, साहस सिद्ध सुकाज॥ ७॥

अनुवाद (हिन्दी)

तुलसीदासजी कहते हैं कि श्रीरामको प्रणाम करके चलो (प्रस्थान करो)। यह शकुन सुमंगल देनेवाला है, सब सिद्धियाँ (सफलताएँ) हाथमें (प्राप्त ही) समझो, साहस करनेसे सब उत्तम कार्य सफल होंगे॥ ७॥

विषय (हिन्दी)

सप्तक—७

विश्वास-प्रस्तुति नाथ हाथ माथे धरेउ, प्रभु मुदरी मुँह मेलि। चलेउ सुमिरि सारंगधर, आनिहि सिद्धि सकेलि॥ १॥
मूल

नाथ हाथ माथे धरेउ, प्रभु मुदरी मुँह मेलि।
चलेउ सुमिरि सारंगधर, आनिहि सिद्धि सकेलि॥ १॥

अनुवाद (हिन्दी)

प्रभुने मस्तकपर हाथ रखा, (उनकी) अँगूठी मुखमें रखकर उन शार्ङ्गधनुषधारीका स्मरण करके (हनुमान् जी) चले, वे सफलताओंको समेट लायेंगे॥ १॥ (यात्राके लिये उत्तम प्रश्न-फल है।)

विश्वास-प्रस्तुति संग नील नल कुमुद गद जामवंत जुबराज। चले राम पद नाइ सिर, सगुन सुमंगल साज॥ २॥
मूल

संग नील नल कुमुद गद जामवंत जुबराज।
चले राम पद नाइ सिर, सगुन सुमंगल साज॥ २॥

अनुवाद (हिन्दी)

साथमें नील, नल, कुमुद, गद, जाम्बवान् और युवराज अंगद श्रीरामके चरणोंमें मस्तक झुकाकर चले। यह शकुन कल्याण देनेवाला है॥ २॥

विश्वास-प्रस्तुति पैठि बिबर मिलि तापसिहि अँचइ पानि फलु खाइ। सगुन सिद्ध साधक दरस अभिमत होइ अघाइ॥ ३॥
मूल

पैठि बिबर मिलि तापसिहि अँचइ पानि फलु खाइ।
सगुन सिद्ध साधक दरस अभिमत होइ अघाइ॥ ३॥

अनुवाद (हिन्दी)

(हनुमान् जी आदि वानर वीर) गुफामें प्रविष्ट होकर तपस्विनीसे मिले, वहाँ जल पिया और फल खाये। इस शकुनका फल है कि किसी साधकका दर्शन होगा और अभीष्ट कार्य पूर्ण-रूपसे सफल होगा॥ ३॥

विश्वास-प्रस्तुति बनचर बिकल बिषाद बस, देखि उदधि अवगाह। असमंजस बढ़ सगुन गत, बिधि बस होइ निबाह॥ ४॥
मूल

बनचर बिकल बिषाद बस, देखि उदधि अवगाह।
असमंजस बढ़ सगुन गत, बिधि बस होइ निबाह॥ ४॥

अनुवाद (हिन्दी)

अथाह समुद्रको देखकर सभी वानर दुःखसे व्याकुल हो गये। शकुनका फल यह है कि जो भारी कठिनाई आयी है, वह बीत जायगी और भाग्यवश उससे छुटकारा हो जायगा॥ ४॥

विश्वास-प्रस्तुति सब सभीत संपाति लखि, हहरे हृदयँ हरास। कहत परस्पर गीध गति, परिहरि जीवन आस॥ ५॥
मूल

सब सभीत संपाति लखि, हहरे हृदयँ हरास।
कहत परस्पर गीध गति, परिहरि जीवन आस॥ ५॥

अनुवाद (हिन्दी)

सम्पाती गीधको देखकर सभी (वानर) डर गये; हृदयमें निराशासे खिन्न हो गये। जीवित रहनेकी आशा छोड़कर परस्पर जटायुकी सद्गतिका वर्णन करने लगे॥ ५॥ (अकस्मात् भय प्राप्त होगा।)

विश्वास-प्रस्तुति नव तनु पाइ देखाइ प्रभु महिमा कथा सुनाइ। धरहु धीर साहस करहु मुदित सीय सुधि पाइ॥ ६॥
मूल

नव तनु पाइ देखाइ प्रभु महिमा कथा सुनाइ।
धरहु धीर साहस करहु मुदित सीय सुधि पाइ॥ ६॥

अनुवाद (हिन्दी)

नवीन शरीर पाकर, प्रभुकी महिमा (प्रत्यक्ष) दिखलाकर तथा (अपनी) कथा* सुनाकर सम्पातीने कहा—‘धैर्य धारण करो। साहस बटोरो। सीताजीका समाचार पाकर प्रसन्न होगे’॥ ६॥ (कठिनाईसे पार होनेका मार्ग मिलेगा।)

पादटिप्पनी
  • गरुड़जीके बड़े भाई अरुणके दो पुत्र थे—सम्पाती और जटायु। ये दोनों भाई बलके गर्वसे सूर्यका स्पर्श करने ऊपर उड़े। सूर्यका प्रचण्ड ताप सहन न होनेसे जटायु तो लौट आये; किन्तु उनके बड़े भाई सम्पाती ऊपर उड़ते ही गये। अन्तमें उनके पंख भस्म हो गये। वे गिर पड़े। संयोगवश उन्हें एक चन्द्रमा नामके मुनिने देख लिया। मुनिने उन्हें आश्वासन दिया कि श्रीरामके दूत जब सीताजीको ढूँढ़ते यहाँ आयेंगे तब उनके दर्शनसे तुम्हारे ये पंख फिर उग जायँगे, वानरोंके दर्शनसे सम्पातीके पंख उग आये।
विश्वास-प्रस्तुति तुलसी राम प्रभाउ कहि मुदित चले संपाति। सुभ तीसर उनचास भल सगुन सुमंगल पाँति॥ ७॥
मूल

तुलसी राम प्रभाउ कहि मुदित चले संपाति।
सुभ तीसर उनचास भल सगुन सुमंगल पाँति॥ ७॥

अनुवाद (हिन्दी)

तुलसीदासजी कहते हैं कि श्रीरामके प्रभावका वर्णन करके सम्पाती प्रसन्न होकर चले गये। तीसरे सर्गका यह उनचासवाँ दोहा उत्तम शकुन है, आनन्द-मंगलकी पंक्ति (बहुत ही कल्याणकारी) है॥ ७॥