०४ द्वितीय सर्ग

विषय (हिन्दी)

सप्तक—१

विश्वास-प्रस्तुति समय राम जुबराज कर मंगल मोद निकेतु। सगुन सुहावन संपदा सिद्धि सुमंगल हेतु॥ १॥
मूल

समय राम जुबराज कर मंगल मोद निकेतु।
सगुन सुहावन संपदा सिद्धि सुमंगल हेतु॥ १॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीरामके युवराज-पदपर अभिषेकका समय आनन्द-मंगलका धाम है। यह शकुन सुहावना है। सम्पत्ति, सिद्धि और मंगलोंका कारण (देनेवाला) है॥ १॥

विश्वास-प्रस्तुति सुर माया बस केकई कुसमयँ कीन्हि कुचालि। कुटिल नारि मिस होइ छलु अनभल आजु कि कालि॥ २॥
मूल

सुर माया बस केकई कुसमयँ कीन्हि कुचालि।
कुटिल नारि मिस होइ छलु अनभल आजु कि कालि॥ २॥

अनुवाद (हिन्दी)

देवताओंकी मायाके वश होकर महारानी कैकेयीने बुरे समय (अनवसर)-में कुचाल चली। किसी दुष्टा स्त्रीके बहाने छल होगा, आज या कलमें ही (बहुत शीघ्र) बुराई होनेवाली है॥ २॥

विश्वास-प्रस्तुति कुसमय कुसगुन कोटि सम, राम सीय बन बास। अनरथ अनभल अवधि जग, जानब सरबस नास॥ ३॥
मूल

कुसमय कुसगुन कोटि सम, राम सीय बन बास।
अनरथ अनभल अवधि जग, जानब सरबस नास॥ ३॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीराम-जानकीका वनवास करोड़ों बुरे समय तथा अपशकुनोंके समान है। यह संसारमें अनर्थ और बुराईकी सीमा है। सर्वस्वका विनाश (निश्चित) समझो॥ ३॥

विश्वास-प्रस्तुति सोचत पुर परिजन सकल, बिकल राउ रनिवास। छल मलीन मन तीय मिस बिपति बिषाद बिनास॥ ४॥
मूल

सोचत पुर परिजन सकल, बिकल राउ रनिवास।
छल मलीन मन तीय मिस बिपति बिषाद बिनास॥ ४॥

अनुवाद (हिन्दी)

सभी नगरवासी तथा कुटुम्बीजन चिन्तित हैं, महाराज तथा रनिवास व्याकुल हो रहा है, (देवताओंने) मलिन-मनकी स्त्री (मन्थरा)-के बहाने छल करके विपत्ति, शोक तथा विनाशका साज बना दिया॥ ४॥ (प्रश्न-फल अशुभ है।)

विश्वास-प्रस्तुति लखन राम सिय बन गमनु सकल अमंगल मूल। सोच पोच संताप बस कुसमय संसय सूल॥ ५॥
मूल

लखन राम सिय बन गमनु सकल अमंगल मूल।
सोच पोच संताप बस कुसमय संसय सूल॥ ५॥

अनुवाद (हिन्दी)

लक्ष्मणजी, श्रीरामजी और श्रीजानकीजीका वन जाना समस्त अमंगलोंकी जड़ है। शोक एवं निम्न कोटिके सन्तापके वश होकर बुरे समयमें सन्देहवश वेदना भोगनी होगी॥ ५॥

विश्वास-प्रस्तुति प्रथम बास सुरसरि निकट सेवा कीन्हि निषाद। कहब सुभासुभ सगुन फल बिसमय हर्ष बिषाद॥ ६॥
मूल

प्रथम बास सुरसरि निकट सेवा कीन्हि निषाद।
कहब सुभासुभ सगुन फल बिसमय हर्ष बिषाद॥ ६॥

अनुवाद (हिन्दी)

(श्रीरामने) प्रथम दिन गंगाजीके समीप (शृंगवेरपुर)-में निवास किया तथा निषादराज गुहने उनकी सेवा की। इस शकुनका फल मैं शुभ और अशुभ दोनों कहूँगा। आश्चर्य, हर्ष तथा (अन्तमें) शोक प्राप्त होगा॥ ६॥

विश्वास-प्रस्तुति चले नहाइ प्रयाग प्रभु लखन सीय रघुराज। तुलसी जानब सगुन फल, होइहि साधुसमाज॥ ७॥
मूल

चले नहाइ प्रयाग प्रभु लखन सीय रघुराज।
तुलसी जानब सगुन फल, होइहि साधुसमाज॥ ७॥

अनुवाद (हिन्दी)

(गंगाजीमें) स्नान करके प्रभु श्रीरघुनाथजी, लक्ष्मणजी और जानकीके साथ प्रयागको चले। तुलसीदासजी कहते हैं कि सत्पुरुषोंका संग होगा, यही इस शकुनका फल जानना चाहिये॥ ७॥

विषय (हिन्दी)

सप्तक—२

विश्वास-प्रस्तुति सीय राम लोने लखन तापस वेष अनूप। तप तीरथ जप जाग हित सगुन सुमंगल रूप॥ १॥
मूल

सीय राम लोने लखन तापस वेष अनूप।
तप तीरथ जप जाग हित सगुन सुमंगल रूप॥ १॥

अनुवाद (हिन्दी)

लावण्यमय श्रीराम-लक्ष्मण तथा सीताजीका तपस्वी-वेष अनुपम है। तपस्या, तीर्थयात्रा, जप तथा यज्ञ करनेके लिये यह शकुन सुमंगल-स्वरूप (मंगल-सूचक) है॥ १॥

विश्वास-प्रस्तुति सीता लखन समेत प्रभु, जमुना उतरि नहाइ। चले सकल संकट समन सगुन सुमंगल पाइ॥ २॥
मूल

सीता लखन समेत प्रभु, जमुना उतरि नहाइ।
चले सकल संकट समन सगुन सुमंगल पाइ॥ २॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीसीताजी और लक्ष्मणजीके साथ प्रभु यमुनाजीके पार उतरकर स्नान करके, समस्त संकटोंको नष्ट करनेवाले मंगलमय शकुन पाकर आगे चले॥ २॥ (यात्राके लिये उत्तम फल सूचित होता है।)

विश्वास-प्रस्तुति अवध सोक संताप बस बिकल सकल नर नारि। बाम बिधाता राम बिनु माँगत मीचु पुकारि॥ ३॥
मूल

अवध सोक संताप बस बिकल सकल नर नारि।
बाम बिधाता राम बिनु माँगत मीचु पुकारि॥ ३॥

अनुवाद (हिन्दी)

अयोध्यामें सभी नर-नारी श्रीरामके बिना शोक-सन्तापके कारण व्याकुल होकर प्रतिकूल हुए विधातासे पुकारकर मृत्यु माँगते हैं॥ ३॥ (प्रश्न-फल अनिष्ट है।)

विश्वास-प्रस्तुति लखन सीय रघुबंस मनि पथिक पाय उर आनि। चलहु अगम मग सुगम सुभ, सगुन सुमंगल खानि॥ ४॥
मूल

लखन सीय रघुबंस मनि पथिक पाय उर आनि।
चलहु अगम मग सुगम सुभ, सगुन सुमंगल खानि॥ ४॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीरघुनाथजी, श्रीजानकीजी तथा लक्ष्मणजी—इन पथिकोंके श्रीचरणोंको हृदयमें लाकर (उनका ध्यान करके) अगम्य (विकट) मार्गमें भी चलो तो वह सुगम और शुभ हो जायगा। यह शकुन कल्याणकी खानि है॥ ४॥

विश्वास-प्रस्तुति ग्राम नारि नर मुदित मन लखन राम सिय देखि। होइ प्रीति पहिचान बिनु मान बिदेस बिसेषि॥ ५॥
मूल

ग्राम नारि नर मुदित मन लखन राम सिय देखि।
होइ प्रीति पहिचान बिनु मान बिदेस बिसेषि॥ ५॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीराम-लक्ष्मण तथा जानकीजीका दर्शन करके गाँवोंके स्त्री-पुरुष मन-ही-मन आनन्दित हो रहे हैं। (इस शकुनका फल यह है कि) बिना पहचानके भी प्रेम होगा और विदेशमें विशेष सम्मान प्राप्त होगा॥ ५॥

विश्वास-प्रस्तुति बन मुनि गन रामहि मिलहिं मुदित सुकृत फल पाइ। सगुन सिद्ध साधक दरस, अभिमत होइ अघाइ॥ ६॥
मूल

बन मुनि गन रामहि मिलहिं मुदित सुकृत फल पाइ।
सगुन सिद्ध साधक दरस, अभिमत होइ अघाइ॥ ६॥

अनुवाद (हिन्दी)

वनमें श्रीरामसे मुनिगण मिलते हैं और अपने पुण्योंका फल (श्रीराम-दर्शन) पाकर प्रसन्न होते हैं। यह शकुन साधकको सिद्ध पुरुषका दर्शन होनेकी सूचना देता है, मनचाहा फल भरपूर प्राप्त होगा॥ ६॥

विश्वास-प्रस्तुति चित्रकूट पय तीर प्रभु बसे भानु कुल भानु। तुलसी तप जप जोग हित सगुन सुमंगल जानु॥ ७॥
मूल

चित्रकूट पय तीर प्रभु बसे भानु कुल भानु।
तुलसी तप जप जोग हित सगुन सुमंगल जानु॥ ७॥

अनुवाद (हिन्दी)

सूर्यकुलके (प्रकाशक) सूर्य प्रभु श्रीरामने चित्रकूटमें पयस्विनी नदीके किनारे निवास किया। तुलसीदासजी कहते हैं कि तपस्या, जप तथा योगसाधनाके लिये यह शकुन मंगलप्रद समझो॥ ७॥

विषय (हिन्दी)

सप्तक—३

विश्वास-प्रस्तुति हंस बंस अवतंस जब कीन्ह बास पय पास। तापस साधक सिद्ध मुनि, सब कहँ सगुन सुपास॥ १॥
मूल

हंस बंस अवतंस जब कीन्ह बास पय पास।
तापस साधक सिद्ध मुनि, सब कहँ सगुन सुपास॥ १॥

अनुवाद (हिन्दी)

सूर्यवंशावतंस (श्रीराम)-ने जब पयस्विनी नदीके पास निवास किया तब तपस्वी, साधक, सिद्ध, मुनिगण—सभीको सुख-सुविधा हो गयी। ऐसे लोगोंकी सुख-सुविधा यह शकुन सूचित करता है॥ १॥

विश्वास-प्रस्तुति बिटप बेलि फूलहिं फलहिं जल थल बिमल बिसेषि। मुदित किरात बिहंग मृग मंगल मूरति देखि॥ २॥
मूल

बिटप बेलि फूलहिं फलहिं जल थल बिमल बिसेषि।
मुदित किरात बिहंग मृग मंगल मूरति देखि॥ २॥

अनुवाद (हिन्दी)

वृक्ष और लताएँ फूलने-फलने लगीं, जल और स्थल विशेषरूपसे निर्मल हो गये। मंगलमूर्ति श्रीरामको देखकर (वनके) किरात, पक्षी, पशु—सभी प्रसन्न हो गये॥ २॥ (प्रश्न-फल शुभ है।)

विश्वास-प्रस्तुति सींचति सीय सरोज कर बये बिटप बट बेलि। समय सुकाल किसान हित सगुन सुमंगल केलि॥ ३॥
मूल

सींचति सीय सरोज कर बये बिटप बट बेलि।
समय सुकाल किसान हित सगुन सुमंगल केलि॥ ३॥

अनुवाद (हिन्दी)

अपने बोये वटवृक्ष एवं लताओंको श्रीजानकीजी अपने करकमलोंसे सींचती हैं। यह शकुन किसानोंके लिये सुकाल एवं आनन्दमयी क्रीड़ाका सूचक है॥ ३॥

विश्वास-प्रस्तुति हय हाँके फिरि दखिन दिसि हेरि हेरि हिहिनात। भये निषाद बिषाद बस अवध सुमंतहि जात॥ ४॥
मूल

हय हाँके फिरि दखिन दिसि हेरि हेरि हिहिनात।
भये निषाद बिषाद बस अवध सुमंतहि जात॥ ४॥

अनुवाद (हिन्दी)

सुमन्त्रजीने अयोध्या जाते समय घोड़ोंको हाँका तो वे बार-बार मुड़कर दक्षिण दिशाकी ओर देख-देखकर हिनहिनाते हैं, इससे निषादलोग भी शोकसंतप्त हो गये॥ ४॥ (प्रियवियोग तथा शोकसूचक शकुन है।)

विश्वास-प्रस्तुति सचिव सोच ब्याकुल सुनत असगुन अवध प्रबेस। समाचार सुनि सोक बस माँगी मीचु नरेस॥ ५॥
मूल

सचिव सोच ब्याकुल सुनत असगुन अवध प्रबेस।
समाचार सुनि सोक बस माँगी मीचु नरेस॥ ५॥

अनुवाद (हिन्दी)

अयोध्यामें प्रवेश करते समय (सियारोंका रोना आदि) अमंगल-सूचक शब्द होते सुनकर मन्त्री (सुमन्त्र) शोकसे व्याकुल हो गये। उनसे (श्रीरामका) समाचार सुनकर शोकविवश महाराज दशरथने मृत्यु माँगी॥ ५॥ (प्रश्न-फल अशुभ है।)

विश्वास-प्रस्तुति राम राम कहि राम सिय राम सरन भये राउ। सुमिरहु सीताराम अब, नाहिन आन उपाउ॥ ६॥
मूल

राम राम कहि राम सिय राम सरन भये राउ।
सुमिरहु सीताराम अब, नाहिन आन उपाउ॥ ६॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज दशरथ राम-राम, सीता-राम कहकर श्रीरामकी शरण चले गये (देह त्याग दिया), अब (तुम भी) श्रीसीतारामका स्मरण करो, (घोर संकटसे बचनेका) दूसरा कोई उपाय नहीं है॥ ६॥

विश्वास-प्रस्तुति राम बिरहँ दसरथ मरनु, मुनि मन अगम सुमीचु। तुलसी मंगल मरन तरु, सुचि सनेह जल सींचु॥ ७॥
मूल

राम बिरहँ दसरथ मरनु, मुनि मन अगम सुमीचु।
तुलसी मंगल मरन तरु, सुचि सनेह जल सींचु॥ ७॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीरामके वियोगमें महाराज दशरथकी मृत्यु ऐसी उत्तम मृत्यु है कि (ऐसी उत्तम मृत्युकी प्राप्ति) मुनियोंके मनके लिये भी अगम्य (अचिन्त्य) है। तुलसीदासजी कहते हैं कि ऐसी मंगलमयी मृत्युके वृक्षको प्रेमके पवित्र जलसे सींचो॥ ७॥ (शकुन शुभ मृत्यु उत्तम गतिका सूचक है।)

विषय (हिन्दी)

सप्तक—४

विश्वास-प्रस्तुति धीर बीर रघुबीर प्रिय सुमिरि समीर कुमारु। अगम सुगम सब काज करु, करतल सिद्धि बिचारु॥ १॥
मूल

धीर बीर रघुबीर प्रिय सुमिरि समीर कुमारु।
अगम सुगम सब काज करु, करतल सिद्धि बिचारु॥ १॥

अनुवाद (हिन्दी)

धैर्यशाली वीर रघुनाथजीके प्रिय श्रीहनुमान् जी का स्मरण करके कठिन या सरल—जो भी कार्य करो, सबकी सफलता हाथमें आयी हुई समझो॥ १॥

विश्वास-प्रस्तुति सुमिरि सत्रु सूदन चरन सगुन सुमंगल मानि। परपुर बाद बिबाद जय जूझ जुआ जय जानि॥ २॥
मूल

सुमिरि सत्रु सूदन चरन सगुन सुमंगल मानि।
परपुर बाद बिबाद जय जूझ जुआ जय जानि॥ २॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीशत्रुघ्नजीके चरणोंका स्मरण करो। यह शकुन मंगलप्रद मानो। दूसरेके नगरमें वाद-विवादमें विजय तथा युद्ध और जुएमें भी विजय समझो॥ २॥

विश्वास-प्रस्तुति सेवक सखा सुबंधु हित सगुन बिचारु बिसेषि। भरत नाम गुनगन बिमल सुमिरि सत्य सब लेखि॥ ३॥
मूल

सेवक सखा सुबंधु हित सगुन बिचारु बिसेषि।
भरत नाम गुनगन बिमल सुमिरि सत्य सब लेखि॥ ३॥

अनुवाद (हिन्दी)

विशेषरूपसे सेवकों, मित्रों तथा अच्छे (अनुकूल) भाइयोंके लिये इस शकुनका विचार है। श्रीभरतजीके नाम तथा उनके निर्मल गुणोंका स्मरण करके सब (कार्य) सत्य (सफल) समझो॥ ३॥

विश्वास-प्रस्तुति साहिब समरथ सीलनिधि सेवत सुलभ सुजान। राम सुमिरि सेइअ सुप्रभु, सगुन कहब कल्यान॥ ४॥
मूल

साहिब समरथ सीलनिधि सेवत सुलभ सुजान।
राम सुमिरि सेइअ सुप्रभु, सगुन कहब कल्यान॥ ४॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीराम शक्ति-सम्पन्न, शील-निधान एवं परम सयाने स्वामी हैं; उनकी सेवा अत्यन्त सुलभ है। उन श्रीरामका स्मरण करके उत्तम स्वामीकी सेवा करो। इस शकुनको (नौकरी आदिके लिये) हम मंगलमय कहेंगे॥ ४॥

विश्वास-प्रस्तुति सुकृत सील सोभा अवधि सीय सुमंगल खानि। सुमिरि सगुन तिय धर्म हित कहब सुमंगल जानि॥ ५॥
मूल

सुकृत सील सोभा अवधि सीय सुमंगल खानि।
सुमिरि सगुन तिय धर्म हित कहब सुमंगल जानि॥ ५॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीजानकीजी पुण्य, शील और सौन्दर्यकी सीमा तथा मंगलकी खानि हैं; उनका स्मरण करो। इस शकुनको हम मंगलकारी जानकर स्त्रियोंके पातिव्रत-धर्मके अनुकूल कहेंगे॥ ५॥

विश्वास-प्रस्तुति ललित लखन मूरति हृदयँ आनि धरें धनु बान। करहु काज सुभ सगुन सब मुद मंगल कल्यान॥ ६॥
मूल

ललित लखन मूरति हृदयँ आनि धरें धनु बान।
करहु काज सुभ सगुन सब मुद मंगल कल्यान॥ ६॥

अनुवाद (हिन्दी)

धनुष-बाण लिये लक्ष्मणजीकी सुन्दर मूर्ति हृदयमें ले आकर कार्य करो। शकुन शुभ है। सब प्रकारसे आनन्द-मंगल एवं कल्याण होगा॥ ६॥

विश्वास-प्रस्तुति राम नाम पर राम ते प्रीति प्रतीति भरोस। सो तुलसी सुमिरत सकल सगुन सुमंगल कोस॥ ७॥
मूल

राम नाम पर राम ते प्रीति प्रतीति भरोस।
सो तुलसी सुमिरत सकल सगुन सुमंगल कोस॥ ७॥

अनुवाद (हिन्दी)

तुलसीदासजी कहते हैं कि मेरा प्रेम, विश्वास और भरोसा श्रीरामसे अधिक राम-नामपर है। उस (राम-नाम)-का स्मरण करनेसे शकुन सभी सुमंगलका कोष हो जाता है॥ ७॥

विषय (हिन्दी)

सप्तक—५

विश्वास-प्रस्तुति गुरु आयसु आये भरत निरखि नगर नर नारि। सानुज सोचत पोच बिधि लोचन मोचत बारि॥ १॥
मूल

गुरु आयसु आये भरत निरखि नगर नर नारि।
सानुज सोचत पोच बिधि लोचन मोचत बारि॥ १॥

अनुवाद (हिन्दी)

गुरु (वसिष्ठ)-की आज्ञासे भरतजी (ननिहालसे) लौट आये। अयोध्याके स्त्री-पुरुषों (की दशा)-को देखकर छोटे भाई (शत्रुघ्न)-के साथ वे सोचते हैं कि ‘विधाता बड़ा नीच काम करनेवाला है’ और नेत्रोंसे आँसू बहाते हैं॥ १॥ (प्रश्न-फल अशुभ है।)

विश्वास-प्रस्तुति भूप मरनु प्रभु बन गवनु सब बिधि अवध अनाथ। रोवत समुझि कुमातु कृत, मीजि हाथ धुनि माथ॥ २॥
मूल

भूप मरनु प्रभु बन गवनु सब बिधि अवध अनाथ।
रोवत समुझि कुमातु कृत, मीजि हाथ धुनि माथ॥ २॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज दशरथकी मृत्यु, प्रभु श्रीरामका वन जाना तथा सब प्रकारसे अयोध्याका अनाथ होना—इन सबको दुष्टहृदया माता (कैकेयी)-की करतूत समझकर वे हाथ मलते और सिर पीटकर रोते हैं॥ २॥ (प्रश्न-फल निकृष्ट है।)

विश्वास-प्रस्तुति बेदबिहित पितु करम करि, लिये संग सब लोग। चले चित्रकूटहि भरत ब्याकुल राम बियोग॥ ३॥
मूल

बेदबिहित पितु करम करि, लिये संग सब लोग।
चले चित्रकूटहि भरत ब्याकुल राम बियोग॥ ३॥

अनुवाद (हिन्दी)

वैदिक विधिसे पिताका अन्त्येष्टि-कर्म करके भरतजीने सब लोगोंको साथ ले लिया और श्रीरामके वियोगमें व्याकुल होकर वे चित्रकूटको चल पड़े॥ ३॥ (प्रश्न-फल अशुभ है।)

विश्वास-प्रस्तुति राम दरस हियँ हरषु बड़ भूपति मरन बिषादु। सोचत सकल समाज सुनि राम भरत संबादु॥ ४॥
मूल

राम दरस हियँ हरषु बड़ भूपति मरन बिषादु।
सोचत सकल समाज सुनि राम भरत संबादु॥ ४॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीरामके दर्शनसे (सबके) हृदयमें बड़ी प्रसन्नता है, (साथ ही) महाराज दशरथकी मृत्युका दुःख (भी) है। अब श्रीराम तथा भरतका परस्पर वार्तालाप सुनकर समस्त समाज चिन्ता करने लगा है॥ ४॥ (प्रश्न-फल असफलता तथा दुःखसूचक है।)

विश्वास-प्रस्तुति सुनि सिख आसिष पाँवरी पाइ नाइ पद माथ। चले अवध संताप बस, बिकल लोग सब साथ॥५॥
मूल

सुनि सिख आसिष पाँवरी पाइ नाइ पद माथ।
चले अवध संताप बस, बिकल लोग सब साथ॥५॥

अनुवाद (हिन्दी)

(प्रभुकी) शिक्षा सुनकर, आशीर्वाद तथा चरणपादुका पाकर एवं उनके चरणोंमें मस्तक झुकाकर सन्तापवश (दुःखित-चित्त) भरत अयोध्या चले, साथके सभी लोग व्याकुल हैं॥ ५॥ (प्रश्न-फल अशुभ है।)

विश्वास-प्रस्तुति भरत नेम ब्रत धरम सुभ राम चरन अनुराग। सगुन समुझि साहस करिय, सिद्ध होइ जप जाग॥ ६॥
मूल

भरत नेम ब्रत धरम सुभ राम चरन अनुराग।
सगुन समुझि साहस करिय, सिद्ध होइ जप जाग॥ ६॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीभरतजीके शुभ नियम, व्रत, धर्माचरण तथा श्रीरामके चरणोंमें प्रेमको उत्तम शकुन समझकर साहसपूर्वक (कार्य प्रारम्भ) करो; इससे जप और यज्ञ सिद्ध (सफल) होंगे॥ ६॥

विश्वास-प्रस्तुति चित्रकूट सब दिन बसत प्रभु सिय लखन समेत। राम नाम जप जापकहि तुलसी अभिमत देत॥ ७॥
मूल

चित्रकूट सब दिन बसत प्रभु सिय लखन समेत।
राम नाम जप जापकहि तुलसी अभिमत देत॥ ७॥

अनुवाद (हिन्दी)

प्रभु श्रीराम श्रीजानकीजी तथा लक्ष्मणजीके साथ सर्वदा चित्रकूटमें निवास करते हैं। तुलसीदासजी कहते हैं कि श्रीराम-नामका जप जापकको अभीष्ट फल देता है॥ ७॥ (जाप आदि साधन सफल होंगे।)

विषय (हिन्दी)

सप्तक—६

विश्वास-प्रस्तुति पय पावनि, बन भूमि भलि, सैल सुहावन पीठ। रागिहि सीठ बिसेषि थलु, बिषय बिरागिहि मीठ॥ १॥
मूल

पय पावनि, बन भूमि भलि, सैल सुहावन पीठ।
रागिहि सीठ बिसेषि थलु, बिषय बिरागिहि मीठ॥ १॥

अनुवाद (हिन्दी)

पयस्विनी नदी पवित्र है, वन-भूमि उत्तम है, चित्रकूट पर्वत सुहावना तथा देवस्थान-स्वरूप है। यह स्थल संसारके भोगोंमें आसक्त लोगोंके लिये अत्यन्त नीरस है; परन्तु विषयोंसे विरक्त लोगोंके लिये मधुर (प्रिय) है॥ १॥ (सांसारिक कामना है तो असफलता और भजन-पूजन-सम्बन्धी प्रश्न है तो सफलता प्राप्त होगी।)

विश्वास-प्रस्तुति फटिक सिला मन्दाकिनी सिय रघुबीर बिहार। राम भरत हित सगुन सुभ, भूतल भगति भँडार॥ २॥
मूल

फटिक सिला मन्दाकिनी सिय रघुबीर बिहार।
राम भरत हित सगुन सुभ, भूतल भगति भँडार॥ २॥

अनुवाद (हिन्दी)

मन्दाकिनी-तटपर स्फटिकशिला श्रीसीतारामजीकी क्रीड़ाभूमि है। श्रीरामभक्तोंके लिये शकुन शुभ है। पृथ्वीपर (इसी जन्ममें) भक्तिका भण्डार (श्रेष्ठ भक्ति) प्राप्ति होगी॥ २॥

विश्वास-प्रस्तुति सगुन सकल संकट समन, चित्रकूट चलि जाहु। सीता राम प्रसाद सुभ, लघु साधन बड़ लाहु॥ ३॥
मूल

सगुन सकल संकट समन, चित्रकूट चलि जाहु।
सीता राम प्रसाद सुभ, लघु साधन बड़ लाहु॥ ३॥

अनुवाद (हिन्दी)

यह शकुन समस्त संकटोंको दूर करनेवाला है। चित्रकूट चले जाओ, वहाँ श्रीसीतारामकी कृपासे भला होगा, थोड़े साधनसे भी वहाँ बड़ा लाभ होगा॥ ३॥

विश्वास-प्रस्तुति दिए अत्रि तिय जानकिहि बसन बिभूषन भूरि। राम कृपा संतोष सुख होहिं सकल दुख दूरि॥ ४॥
मूल

दिए अत्रि तिय जानकिहि बसन बिभूषन भूरि।
राम कृपा संतोष सुख होहिं सकल दुख दूरि॥ ४॥

अनुवाद (हिन्दी)

महर्षि अत्रिकी पत्नी अनुसूयाजीने श्रीजानकीजीको बहुत-से वस्त्र और आभूषण दिये। श्रीरामकी कृपासे सन्तोष तथा सुख प्राप्त होंगे और सब दुःख दूर हो जायँगे॥ ४॥

विश्वास-प्रस्तुति काक कुचालि बिराध बध देह तजी सरभंग। हानि मरन सूचक सगुन अनरथ असुभ प्रसंग॥ ५॥
मूल

काक कुचालि बिराध बध देह तजी सरभंग।
हानि मरन सूचक सगुन अनरथ असुभ प्रसंग॥ ५॥

अनुवाद (हिन्दी)

काक (जयन्त)-ने कुचाल चली (श्रीजानकीजीके चरणोंमें चोंच मारी), विराध राक्षसको (प्रभुने) मारा, शरभंग ऋषिने (प्रभुके सम्मुख) शरीर छोड़ा। यह शकुन हानि, मृत्यु, अनर्थ और अशुभ अवसरोंके आनेका सूचक है॥ ५॥

विश्वास-प्रस्तुति राम लखन मुनि गन मिलन मंजुल मंगल मूल। सत समाज तब होइ जब रमा राम अनुकूल॥ ६॥
मूल

राम लखन मुनि गन मिलन मंजुल मंगल मूल।
सत समाज तब होइ जब रमा राम अनुकूल॥ ६॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीराम-लक्ष्मणके साथ मुनियोंका मिलन सुन्दर कल्याणका मूल है। जब श्रीराम-जानकी अनुकूल हों, तभी सत्पुरुषोंका साथ होता है॥ ६॥ (सत्संग-प्राप्तिका सूचक शकुन है।)

विश्वास-प्रस्तुति मिले कुंभसंभव मुनिहिं लखन सीय रघुराज। तुलसी साधु समाज सुख, सिद्ध दरस सुभ काज॥ ७॥
मूल

मिले कुंभसंभव मुनिहिं लखन सीय रघुराज।
तुलसी साधु समाज सुख, सिद्ध दरस सुभ काज॥ ७॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीलक्ष्मण तथा श्रीजानकीजीके साथ श्रीरघुनाथजी महर्षि अगस्त्यजीसे मिले। तुलसीदासजी कहते हैं कि साधु-पुरुषोंके संगका सुख होगा तथा उनके दर्शनसे शुभ कार्य सफल होंगे॥ ७॥

विषय (हिन्दी)

सप्तक—७

विश्वास-प्रस्तुति सुनि मुनि आयसु प्रभु कियो पंचबटी बर बास। भइ महि पावनि परसि पद, भा सब भाँति सुपास॥ १॥
मूल

सुनि मुनि आयसु प्रभु कियो पंचबटी बर बास।
भइ महि पावनि परसि पद, भा सब भाँति सुपास॥ १॥

अनुवाद (हिन्दी)

मुनि (अगस्त्यजी)-की आज्ञा पाकर प्रभु श्रीरामने सुन्दर पंचवटीमें निवास किया। उनके श्रीचरणोंका स्पर्श करके वह (दण्डक-वनकी शापग्रस्त) भूमि पवित्र हो गयी, सब प्रकारसे वहाँ सुख-सुविधा हो गयी॥ १॥ (विपत्ति दूर होकर सुख होगा।)

विश्वास-प्रस्तुति सरित सरोबर सजल सब जलज बिपुल बहु रंग। समउ सुहावन सगुन सुभ राजा प्रजा प्रसंग॥ २॥
मूल

सरित सरोबर सजल सब जलज बिपुल बहु रंग।
समउ सुहावन सगुन सुभ राजा प्रजा प्रसंग॥ २॥

अनुवाद (हिन्दी)

सब नदियाँ और सरोवर जलसे भरे रहने लगे। उनमें अनेक रंगोंके कमल खिल गये। बड़ा सुहावना समय हो गया। राजा-प्रजाके सम्बन्धमें यह शकुन शुभ है॥ २॥

विश्वास-प्रस्तुति बिटप बेलि फूलहिं फलहिं, सीतल सुखद समीर। मुदित बिहँग मृग मधुप गन बन पालक दोउ बीर॥ ३॥
मूल

बिटप बेलि फूलहिं फलहिं, सीतल सुखद समीर।
मुदित बिहँग मृग मधुप गन बन पालक दोउ बीर॥ ३॥

अनुवाद (हिन्दी)

वृक्ष और लताएँ फूलती-फलती हैं, सुखदायी शीतल वायु चलती है; पक्षी, पशु तथा भौंरे आनन्दमें हैं; क्योंकि दोनों भाई (श्रीराम-लक्ष्मण) अब वनकी रक्षा करनेवाले हैं॥ ३॥ (प्रश्न-फल श्रेष्ठ है।)

विश्वास-प्रस्तुति मोदाकर गोदावरी, बिपिन सुखद सब काल। निर्भय मुनि जप तप करहिं, पालक राम कृपाल॥ ४॥
मूल

मोदाकर गोदावरी, बिपिन सुखद सब काल।
निर्भय मुनि जप तप करहिं, पालक राम कृपाल॥ ४॥

अनुवाद (हिन्दी)

गोदावरी नदी आनन्ददायिनी है और वन सभी समय सुखदायी है। अब कृपालु श्रीरामके रक्षक होनेसे वहाँ मुनिगण भयरहित होकर जप-तप करते हैं॥ ४॥ (साधन-भजन निर्विघ्न सफल होगा।)

विश्वास-प्रस्तुति भेंट गीध रघुराज सन, दुहुँ दिसि हृदयँ हुलासु। सेवक पाइ सुसाहिबहि, साहिब पाइ सुदासु॥ ५॥
मूल

भेंट गीध रघुराज सन, दुहुँ दिसि हृदयँ हुलासु।
सेवक पाइ सुसाहिबहि, साहिब पाइ सुदासु॥ ५॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीरघुनाथजीसे गीधराज जटायुकी भेंट होनेपर दोनों ओर चित्तमें आनन्द हुआ; सेवक (जटायु)-को पाकर उत्तम स्वामी (श्रीराम)-को और स्वामी (श्रीराम)-को पाकर उत्तम सेवक (जटायु)-को॥ ५॥ (सेवा और भक्ति-सम्बन्धी प्रश्नका फल शुभ है।)

विश्वास-प्रस्तुति पढ़हिं पढ़ावहिं मुनि तनय आगम निगम पुरान। सगुन सुबिद्या लाभ हित जानब समय समान॥ ६॥
मूल

पढ़हिं पढ़ावहिं मुनि तनय आगम निगम पुरान।
सगुन सुबिद्या लाभ हित जानब समय समान॥ ६॥

अनुवाद (हिन्दी)

मुनि-बालक परस्पर वेद, स्मृति, पुराण पढ़ते-पढ़ाते हैं। यह शकुन समयके अनुसार उत्तम विद्याकी प्राप्तिके लिये लाभप्रद समझना॥ ६॥

विश्वास-प्रस्तुति निज कर सींचति जानकी तुलसी लाइ रसाल। सुभ दूती उनचास भलि बरषा कृषी सुकाल॥ ७॥
मूल

निज कर सींचति जानकी तुलसी लाइ रसाल।
सुभ दूती उनचास भलि बरषा कृषी सुकाल॥ ७॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीजानकीजी आमके वृक्ष लगाकर उन्हें अपने हाथोंसे सींचती हैं। तुलसीदासजी कहते हैं कि दूसरे सर्गका यह उनचासवाँ दोहा अच्छी वर्षा, उत्तम खेती तथा सुकालका शुभसूचक है॥ ७॥