०३ प्रथम सर्ग

विषय (हिन्दी)

सप्तक—१

विश्वास-प्रस्तुति बानि बिनायकु अंब रबि गुरु हर रमा रमेस। सुमिरि करहु सब काज सुभ, मंगल देस बिदेस॥ १॥
मूल

बानि बिनायकु अंब रबि गुरु हर रमा रमेस।
सुमिरि करहु सब काज सुभ, मंगल देस बिदेस॥ १॥

अनुवाद (हिन्दी)

भगवती सरस्वती, श्रीगणेशजी, श्रीपार्वतीजी, श्रीसूर्यभगवान् , गुरुदेव, भगवान् शंकर, भगवती लक्ष्मी और भगवान् नारायणका स्मरण करके सभी शुभ-कार्य करो, स्वदेश और विदेशमें सब कहीं कल्याण होगा॥ १॥ (शुभ-कार्य-सम्बन्धी प्रश्न है तो सफलता मिलेगी।)

विश्वास-प्रस्तुति गुरु सरसइ सिंधुर बदन ससि सुरसरि सुरगाइ। सुमिरि चलहु मग मुदित मन, होइहि सुकृत सहाइ॥ २॥
मूल

गुरु सरसइ सिंधुर बदन ससि सुरसरि सुरगाइ।
सुमिरि चलहु मग मुदित मन, होइहि सुकृत सहाइ॥ २॥

अनुवाद (हिन्दी)

गुरुदेव, सरस्वती देवी, गणेशजी, चन्द्रमा, गंगाजी और कामधेनुका स्मरण करके मार्गमें प्रसन्न मनसे चलो, (तुम्हारे) पुण्य सहायक होंगे॥ २॥ (यात्रासम्बन्धी प्रश्न हो तो यात्रा सफल होगी।)

विश्वास-प्रस्तुति गिरा गौरि गुरु गनप हर मंगल मंगल मूल। सुमिरत करतल सिद्धि सब, होइ ईस अनुकूल॥ ३॥
मूल

गिरा गौरि गुरु गनप हर मंगल मंगल मूल।
सुमिरत करतल सिद्धि सब, होइ ईस अनुकूल॥ ३॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीसरस्वतीजी, पार्वतीजी, गुरुदेव, गणेशजी, शंकरजी और मंगलके दाता मंगल (ग्रह)-का स्मरण करनेसे दैव अनुकूल हो जाता है और सब सिद्धियाँ हाथमें आ जाती हैं॥ ३॥ (सभी प्रकारके कार्योंमें सफलता होगी।)

विश्वास-प्रस्तुति भरत भारती रिपु दवनु गुरु गनेस बुधवार। सुमिरत सुलभ सुधर्म फल, बिद्या बिनय बिचार॥ ४॥
मूल

भरत भारती रिपु दवनु गुरु गनेस बुधवार।
सुमिरत सुलभ सुधर्म फल, बिद्या बिनय बिचार॥ ४॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीभरतलाल, सरस्वती देवी, शत्रुघ्नकुमार, गुरुदेव, गणेशजी और बुधवार (के देवता बुध)-का स्मरण करनेसे उत्तम धर्मका फल, विद्या, विनय तथा विचार सुलभ हो जाते हैं॥ ४॥ (यदि अध्ययन, धर्मकार्य, शास्त्र-चर्चा सम्बन्धी प्रश्न है तो सफलता होगी।)

विश्वास-प्रस्तुति सुरगुरु गुरु सिय राम गन राउ गिरा उर आनि। जो कछु करिय सो होय सुभ, खुलहिं सुमंगल खानि॥ ५॥
मूल

सुरगुरु गुरु सिय राम गन राउ गिरा उर आनि।
जो कछु करिय सो होय सुभ, खुलहिं सुमंगल खानि॥ ५॥

अनुवाद (हिन्दी)

देवगुरु बृहस्पतिजी, गुरुदेव, श्रीजानकीजी, श्रीरामजी, गणेशजी और सरस्वती देवीका हृदयमें ध्यान करके जो कुछ किया जाता है, परिणाम शुभ होता है और सुमंगलकी खानें खुल जाती हैं (बराबर कल्याण ही होता रहता है।)॥ ५॥ (सभी प्रकारके प्रश्नोंके लिये सफलता सूचित होती है।)

विश्वास-प्रस्तुति सुक्र सुमिरि गुरु सारदा गनपु लखनु हनुमान। करिय काजु सब साजु भल, निपटहिं नीक निदान॥ ६॥
मूल

सुक्र सुमिरि गुरु सारदा गनपु लखनु हनुमान।
करिय काजु सब साजु भल, निपटहिं नीक निदान॥ ६॥

अनुवाद (हिन्दी)

दैत्यगुरु शुक्र, गुरुदेव, सरस्वती देवी, गणेशजी, लक्ष्मणजी और हनुमान् जी का स्मरण करके सब काम करना चाहिये, इससे सारी व्यवस्था ठीक हो जायगी और परिणाम भी अत्यन्त सुन्दर होगा॥ ६॥ (सभी प्रकारके कार्योंमें सफलता होगी।)

विश्वास-प्रस्तुति तुलसी तुलसी राम सिय, सुमिरि लखनु हनुमान। काजु बिचारेहु सो करहु, दिनु दिनु बड़ कल्यान॥ ७॥
मूल

तुलसी तुलसी राम सिय, सुमिरि लखनु हनुमान।
काजु बिचारेहु सो करहु, दिनु दिनु बड़ कल्यान॥ ७॥

अनुवाद (हिन्दी)

तुलसीदासजी कहते हैं कि तुलसी (पौधे), श्रीराम, जानकीजी, श्रीलक्ष्मणजी और हनुमान् जी का स्मरण करके जो कार्य सोचा है, उसे करो। दिनोंदिन बड़ा कल्याण होगा॥ ७॥ (सभी प्रकारके कार्योंमें सफलता होगी।)

विषय (हिन्दी)

सप्तक—२

विश्वास-प्रस्तुति दसरथ राज न ईति भय, नहिं दुख दुरित दुकाल। प्रमुदित प्रजा प्रसन्न सब, सब सुख सदा सुकाल॥ १॥
मूल

दसरथ राज न ईति भय, नहिं दुख दुरित दुकाल।
प्रमुदित प्रजा प्रसन्न सब, सब सुख सदा सुकाल॥ १॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज दशरथके राज्यमें न ईति (अतिवृष्टि, अनावृष्टि, टिड्डी, चूहे तथा सुग्गोंके उपद्रव तथा शत्रु राजाओंके आक्रमण)- का भय था, न दुःख, पाप या अकालका ही भय था। सारी प्रजा प्रसन्न थी, सब प्रकारका सुख था, सदा सुकाल (सुभिक्ष) रहता था॥ १॥ (यदि प्रश्न किसी भय या रोगनिवृत्तिके सम्बन्धमें है तो वह भय या रोग दूर होगा।)

विश्वास-प्रस्तुति कौसल्या पद नाइ सिर, सुमिरि सुमित्रा पाय। करहु काज मंगल कुसल, बिधि हरि संभु सहाय॥ २॥
मूल

कौसल्या पद नाइ सिर, सुमिरि सुमित्रा पाय।
करहु काज मंगल कुसल, बिधि हरि संभु सहाय॥ २॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीकौसल्याजीके चरणोंमें मस्तक झुकाकर और सुमित्राजीके चरणोंका स्मरण करके काम करो, आनन्द-मंगल होगा। ब्रह्मा, विष्णु और शंकरजी सहायक होंगे॥ २॥ (सभी कार्योंमें सफलता होगी।)

विश्वास-प्रस्तुति बिधिबस बन मृगया फिरत दीन्ह अन्ध मुनि साप। सो सुनि बिपति बिषाद बड़, प्रजहिं सोक संताप॥ ३॥
मूल

बिधिबस बन मृगया फिरत दीन्ह अन्ध मुनि साप।
सो सुनि बिपति बिषाद बड़, प्रजहिं सोक संताप॥ ३॥

अनुवाद (हिन्दी)

(महाराज दशरथको) दैववश वनमें आखेटके लिये घूमते समय अन्धे मुनिने शाप दे दिया। उसे सुनकर प्रजाको बड़ी विपत्तिका बोध हुआ, महान् दुःख, शोक और सन्ताप हुआ॥ ३॥ (प्रश्न-फल अनिष्टकी सूचना देता है।)

विश्वास-प्रस्तुति सुतहित बिनती कीन्ह नृप, कुलगुरु कहा उपाउ। होइहि भल संतान सुनि प्रमुदित कोसल राउ॥ ४॥
मूल

सुतहित बिनती कीन्ह नृप, कुलगुरु कहा उपाउ।
होइहि भल संतान सुनि प्रमुदित कोसल राउ॥ ४॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज दशरथने पुत्रप्राप्तिके लिये प्रार्थना की, कुलगुरु वसिष्ठजीने उसका उपाय बतलाया (और कहा—) ‘अच्छी सन्तान उत्पन्न होगी।’ यह सुनकर महाराज दशरथ अत्यन्त प्रसन्न हुए॥ ४॥ (सन्तान-प्राप्तिसम्बन्धी प्रश्न है तो सफलता होगी।)

विश्वास-प्रस्तुति पुत्र जागु करवाइ रिषि राजहि दीन्ह प्रसाद। सकल सुमंगल मूल जग भूसुर आसिरबाद॥ ५॥
मूल

पुत्र जागु करवाइ रिषि राजहि दीन्ह प्रसाद।
सकल सुमंगल मूल जग भूसुर आसिरबाद॥ ५॥

अनुवाद (हिन्दी)

महर्षि वसिष्ठजीने पुत्रेष्टि-यज्ञ कराकर महाराजको प्रसाद दिया। ब्राह्मणोंका आशीर्वाद संसारमें सभी श्रेष्ठ मंगलोंका मूल (देनेवाला) है॥५॥ (प्रश्न-फल उत्तम है।)

विश्वास-प्रस्तुति राम जनम घर घर अवध मंगल गान निसान। सगुन सुहावन होइ सत मंगल मोद निधान॥ ६॥
मूल

राम जनम घर घर अवध मंगल गान निसान।
सगुन सुहावन होइ सत मंगल मोद निधान॥ ६॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीरामका जन्म (अवतार) होनेपर अयोध्याके प्रत्येक घरमें मंगलगीत गाये जाने लगे, नौबत बजने लगी। यह शकुन शुभदायक है, कल्याण एवं प्रसन्नताका निधान पुत्र होगा॥ ६॥

विश्वास-प्रस्तुति राम भरतु सानुज लखन दसरथ बालक चारि। तुलसी सुमिरत सगुन सुभ मंगल कहब पचारि॥ ७॥
मूल

राम भरतु सानुज लखन दसरथ बालक चारि।
तुलसी सुमिरत सगुन सुभ मंगल कहब पचारि॥ ७॥

अनुवाद (हिन्दी)

तुलसीदासजी कहते हैं कि महाराज दशरथके चारों कुमार श्रीराम, भरत, शत्रुघ्न तथा लक्ष्मणका स्मरण करनेसे शुभ-शकुन और मंगल होता है, यह मैं घोषणा करके कह देता हूँ॥ ७॥ (प्रश्न-फल शुभ है।)

विषय (हिन्दी)

सप्तक—३

विश्वास-प्रस्तुति भूप भवन भाइन्ह सहित रघुबर बाल बिनोद। सुमिरत सब कल्यान जग, पग पग मंगल मोद॥ १॥
मूल

भूप भवन भाइन्ह सहित रघुबर बाल बिनोद।
सुमिरत सब कल्यान जग, पग पग मंगल मोद॥ १॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज दशरथके राजभवनमें भाइयोंके साथ श्रीराम बालक्रीड़ा करते हैं। इसका स्मरण करनेसे संसारमें सब प्रकार कल्याण होता है और पद-पदपर (सर्वदा) मंगल एवं आनन्द होता है॥ १॥ (प्रश्न-फल शुभ है।)

विश्वास-प्रस्तुति करन बेध चूड़ा करन, श्रीरघुबर उपबीत। समय सकल कल्यानमय, मंजुल मंगल गीत॥ २॥
मूल

करन बेध चूड़ा करन, श्रीरघुबर उपबीत।
समय सकल कल्यानमय, मंजुल मंगल गीत॥ २॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीरघुनाथजीके कर्णवेध-संस्कार, मुण्डन-संस्कार और यज्ञोपवीत-संस्कारके समय समस्त कल्याणमय सुन्दर मंगल-गीत गाये गये॥ २॥ (कर्ण-वेध, यज्ञोपवीतादि संस्कारोंसे सम्बन्धित प्रश्न है तो फल शुभ होगा।)

विश्वास-प्रस्तुति भरत सत्रुसूदन लखन सहित सुमिरि रघुनाथ। करहु काज सुभ साज सब, मिलहिं सुमंगल साथ॥ ३॥
मूल

भरत सत्रुसूदन लखन सहित सुमिरि रघुनाथ।
करहु काज सुभ साज सब, मिलहिं सुमंगल साथ॥ ३॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीभरतजी, शत्रुघ्नकुमार और लक्ष्मणलालके साथ श्रीरघुनाथजीका स्मरण करके काम करो, सभी संयोग उत्तम मिलेंगे, कल्याणकारी साथी प्राप्त होंगे॥ ३॥

विश्वास-प्रस्तुति राम लखनु कौसिक सहित सुमिरहु करहु पयान। लच्छि लाभ जय जगत जसु, मंगल सगुन प्रमान॥ ४॥
मूल

राम लखनु कौसिक सहित सुमिरहु करहु पयान।
लच्छि लाभ जय जगत जसु, मंगल सगुन प्रमान॥ ४॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीराम-लक्ष्मणका विश्वामित्रजीके साथ स्मरण करके यात्रा करो। संसारमें सुयश, विजय तथा धनकी प्राप्ति होगी। यह प्रामाणिक मंगल शकुन है॥ ४॥ (प्रश्न-फल शुभ है।)

विश्वास-प्रस्तुति मुनिमखपाल कृपाल प्रभु चरनकमल उर आनु। तजहु सोच, संकट मिटिहि, सत्य सगुन जियँ जानु॥ ५॥
मूल

मुनिमखपाल कृपाल प्रभु चरनकमल उर आनु।
तजहु सोच, संकट मिटिहि, सत्य सगुन जियँ जानु॥ ५॥

अनुवाद (हिन्दी)

मुनि विश्वामित्रजीके यज्ञकी रक्षा करनेवाले प्रभु श्रीरामके चरण-कमलको हृदयमें ले आओ, चिन्ता छोड़ दो, संकट दूर हो जायगा। इस शकुनको चित्तमें सत्य समझो॥ ५॥ (विपत्तिके दूर होनेके सम्बन्धमें प्रश्न है तो वह दूर होगी।)

विश्वास-प्रस्तुति हानि मीचु दारिद दुरित आदि अंत गत बीच। राम बिमुख अघ आपने गये निसाचर नीच॥ ६॥
मूल

हानि मीचु दारिद दुरित आदि अंत गत बीच।
राम बिमुख अघ आपने गये निसाचर नीच॥ ६॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीरामसे विमुख होनेपर आदि, अन्त और मध्य—सभी दशामें हानि, मौत, दरिद्रता तथा कष्ट है। (देख लो) श्रीरामसे विमुख नीच राक्षस अपने ही पापसे नष्ट हो गये॥ ६॥ (प्रश्न-फल अनिष्ट-सूचक है।)

विश्वास-प्रस्तुति सिला साप मोचन चरन सुमिरहु तुलसीदास। तजहु सोच, संकट मिटहि, पूजिहि मन कै आस॥ ७॥
मूल

सिला साप मोचन चरन सुमिरहु तुलसीदास।
तजहु सोच, संकट मिटहि, पूजिहि मन कै आस॥ ७॥

अनुवाद (हिन्दी)

शिलारूप अहल्याके शापको छुड़ानेवाले (श्रीरघुनाथजीके) चरणोंका स्मरण करो। तुलसीदासजी कहते हैं कि चिन्ता छोड़ दो, संकट दूर हो जायगा और मनकी अभिलाषा पूरी होगी॥ ७॥ (प्रश्न-फल शुभ है।)

विषय (हिन्दी)

सप्तक—४

विश्वास-प्रस्तुति सीय स्वयंबर समउ भल, सगुन साध सब काज। कीरति बिजय बिबाह बिधि, सकल सुमंगल साज॥ १॥
मूल

सीय स्वयंबर समउ भल, सगुन साध सब काज।
कीरति बिजय बिबाह बिधि, सकल सुमंगल साज॥ १॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीजानकीजीके स्वयंवरका समय उत्तम है, यह शकुन सब कार्योंको सिद्ध करनेवाला है। कीर्ति, विजय तथा विवाह आदि कार्योंमें सब प्रकारके मंगलमय संयोग उपस्थित होंगे॥ १॥

विश्वास-प्रस्तुति राजत राज समाज महँ राम भंजि भव चाप। सगुन सुहावन, लाभ बड़, जय पर सभा प्रताप॥ २॥
मूल

राजत राज समाज महँ राम भंजि भव चाप।
सगुन सुहावन, लाभ बड़, जय पर सभा प्रताप॥ २॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजाओंके समाजमें शंकरजीके धनुषको तोड़कर श्रीराम सुशोभित हैं। यह शकुन सुहावना है, बड़ा लाभ होगा, दूसरेकी सभामें विजय तथा प्रतापकी प्राप्ति होगी॥ २॥

विश्वास-प्रस्तुति लाभ मोद मंगल अवधि सिय रघुबीर बिबाहु। सकल सिद्धि दायक समउ सुभ सब काज उछाहु॥ ३॥
मूल

लाभ मोद मंगल अवधि सिय रघुबीर बिबाहु।
सकल सिद्धि दायक समउ सुभ सब काज उछाहु॥ ३॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीसीता-रामजीका विवाह लाभ तथा आनन्द-मंगलकी सीमा है। यह समय बड़ा शुभ तथा सभी सिद्धियोंको देनेवाला है, सभी कार्योंमें उत्साह रहेगा॥ ३॥

विश्वास-प्रस्तुति कोसल पालक बाल उर सिय मेली जयमाल। समउ सुहावन सगुन भल, मुद मंगल सब काज॥ ४॥
मूल

कोसल पालक बाल उर सिय मेली जयमाल।
समउ सुहावन सगुन भल, मुद मंगल सब काज॥ ४॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीअयोध्यानरेश (महाराज दशरथ)-के कुमार (श्रीराम)-के गलेमें श्रीजानकीजीने जयमाला डाल दी। यह समय शुभ है, शकुन उत्तम है, सब कार्योंमें आनन्द और भलाई होगी॥ ४॥

विश्वास-प्रस्तुति हरषि बिबुध बरषहिं सुमन, मंगल गान निसान। जय जय रबिकुल कमल रबि मंगल मोद निधान॥ ५॥
मूल

हरषि बिबुध बरषहिं सुमन, मंगल गान निसान।
जय जय रबिकुल कमल रबि मंगल मोद निधान॥ ५॥

अनुवाद (हिन्दी)

देवता प्रसन्न होकर पुष्प-वर्षा कर रहे हैं, मंगलगीत गाये जा रहे हैं, नगारे बज रहे हैं, सूर्यकुलरूपी कमल (को प्रफुल्लित करने)-के लिये सूर्यके समान आनन्द और मंगलके निधान श्रीरामजीकी जय हो! जय हो!॥ ५॥ (प्रश्न-फल उत्तम है।)

विश्वास-प्रस्तुति सतानंद पठये जनक दसरथ सहित समाज। आये तिरहुत सगुन सुभ, भये सिद्ध सब काज॥ ६॥
मूल

सतानंद पठये जनक दसरथ सहित समाज।
आये तिरहुत सगुन सुभ, भये सिद्ध सब काज॥ ६॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज जनकजीने अपने कुलपुरोहित शतानन्दजीको (अयोध्या) भेजा, महाराज दशरथ बरातके साथ जनकपुर आये। (उनके) सभी कार्य सिद्ध हुए। यह शकुन शुभ है॥ ६॥

विश्वास-प्रस्तुति दसरथ पूरन परम बिधु, उदित समय संजोग। जनक नगर सर कुमुदगन, तुलसी प्रमुदित लोग॥ ७॥
मूल

दसरथ पूरन परम बिधु, उदित समय संजोग।
जनक नगर सर कुमुदगन, तुलसी प्रमुदित लोग॥ ७॥

अनुवाद (हिन्दी)

तुलसीदास कहते हैं कि इस (शुभ) समय (श्रीराम-विवाह)- का संयोग आनेसे (जनकपुरमें) महाराज दशरथरूपी पूर्ण चन्द्रका उदय हुआ है। इससे जनकपुररूपी सरोवरके कुमुदपुष्पके समान सब लोग (नगरवासी) प्रफुल्लित हो गये हैं॥ ७॥ (यह प्रश्न-फल प्रियजनका मिलन बतलाता है।)

विषय (हिन्दी)

सप्तक—५

विश्वास-प्रस्तुति मन मलीन मानी महिप कोक कोकनद बृंद। सुहृद समाज चकोर चित प्रमुदित परमानंद॥ १॥
मूल

मन मलीन मानी महिप कोक कोकनद बृंद।
सुहृद समाज चकोर चित प्रमुदित परमानंद॥ १॥

अनुवाद (हिन्दी)

(श्रीरामके धनुष तोड़नेसे) चकवा पक्षी और कमल-समूहके समान अभिमानी राजाओंका मन मलिन (म्लान) हो गया और (महाराज जनकके) प्रियजनोंके समाजका चित्त चकोरोंके समान अत्यन्त आनन्दसे प्रसन्न हो गया॥ १॥ (यह शकुन विपक्षपर विजय सूचित करता है।)

विश्वास-प्रस्तुति तेहि अवसर रावन नगर असगुन असुभ अपार। होहिं हानि भय मरन दुख सूचक बारहिं बार॥ २॥
मूल

तेहि अवसर रावन नगर असगुन असुभ अपार।
होहिं हानि भय मरन दुख सूचक बारहिं बार॥ २॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस समय रावणके नगर (लंका)-में अशुभदायक बहुत अधिक अपशकुन हुए, जो बार-बार यह सूचित करते थे कि हानि, भयकी प्राप्ति, मरण और दुःख होगा॥ २॥ (यह शकुन अनिष्ट सूचित करता है।)

विश्वास-प्रस्तुति मधु माधव दसरथ जनक, मिलब राज रितुराज। सगुन सुवन नव दल सुतरु, फूलत फलत सुकाज॥ ३॥
मूल

मधु माधव दसरथ जनक, मिलब राज रितुराज।
सगुन सुवन नव दल सुतरु, फूलत फलत सुकाज॥ ३॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज दशरथ और महाराज जनक चैत्र-वैशाखके समान हैं, उनका मिलन ऋतुराज वसन्त है। इस समयके शकुन उत्तम वृक्षसे नवीन कोपल फूटनेके समान हैं, जो शुभकार्यरूपी पुष्प और फल देते हैं॥ ३॥ (शुभकार्य-सम्बन्धी प्रश्नका फल सुखदायक है।)

विश्वास-प्रस्तुति बिनय पराग सुप्रेम रस, सुमन सुभग संबाद। कुसुमित काज रसाल तरु सगुन सुकोकिल नाद॥ ४॥
मूल

बिनय पराग सुप्रेम रस, सुमन सुभग संबाद।
कुसुमित काज रसाल तरु सगुन सुकोकिल नाद॥ ४॥

अनुवाद (हिन्दी)

उनकी (महाराज दशरथ और जनकजीकी परस्परकी) विनम्रता पुष्प-पराग है, (परस्परका) उत्तम प्रेम रस (मधु) है और उनका परस्पर सम्भाषण पुष्प है। इस समयका कार्य (श्रीसीता-रामका विवाह) ही आमके वृक्षमें पुष्प (मौर) लगना है, जिसमें शकुन कोकिलकी कूकके समान होते हैं॥ ४॥ (प्रश्न-फल उत्तम है।)

विश्वास-प्रस्तुति उदित भानु कुल भानु लखि लुके उलूक नरेस। गये गँवाइ गरूर पति, धनु मिस हये महेस॥ ५॥
मूल

उदित भानु कुल भानु लखि लुके उलूक नरेस।
गये गँवाइ गरूर पति, धनु मिस हये महेस॥ ५॥

अनुवाद (हिन्दी)

सूर्यकुलके सूर्य (श्रीराम)-को उदित देखकर उल्लुओंके समान (अभिमानी) राजालोग अपना गर्व और सम्मान खोकर छिप गये। मानो शंकरजीने ही (अपने) धनुषके बहाने उन्हें नष्ट कर दिया॥ ५॥ (प्रश्नका फल पराजय-सूचक तथा निकृष्ट है।)

विश्वास-प्रस्तुति चारि चारु दसरथ कुँवर निरखि मुदित पुर लोग। कोसलेस मिथिलेस को समउ सराहन जोग॥ ६॥
मूल

चारि चारु दसरथ कुँवर निरखि मुदित पुर लोग।
कोसलेस मिथिलेस को समउ सराहन जोग॥ ६॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज दशरथके चारों सुन्दर कुमारोंको देखकर जनकपुरके लोग आनन्दित हो रहे हैं। महाराज दशरथ तथा महाराज जनकका समय (सौभाग्य) प्रशंसा करनेयोग्य है॥ ६॥ (प्रश्नका फल उत्तम है।)

विश्वास-प्रस्तुति एक बितान बिबाहि सब सुवन सुमंगल रूप। तुलसी सहित समाज सुख सुकृत सिंधु दोउ भूप॥ ७॥
मूल

एक बितान बिबाहि सब सुवन सुमंगल रूप।
तुलसी सहित समाज सुख सुकृत सिंधु दोउ भूप॥ ७॥

अनुवाद (हिन्दी)

तुलसीदासजी कहते हैं—पुण्यके समुद्रस्वरूप दोनों नरेश (दशरथजी और जनकजी) एक ही मण्डपके नीचे सुमंगलके मूर्तिमान् रूप सभी (चारों) पुत्रोंका विवाह करके समाजके साथ सुखी हो रहे हैं॥ ७॥ (विवाहादि मंगल-कार्यसम्बन्धी प्रश्नका फल उत्तम है।)

विषय (हिन्दी)

सप्तक—६

विश्वास-प्रस्तुति दाइज भयउ अनेक बिधि, सुनि सिहाहिं दिसिपाल। सुख संपति संतोषमय, सगुन सुमंगल माल॥ १॥
मूल

दाइज भयउ अनेक बिधि, सुनि सिहाहिं दिसिपाल।
सुख संपति संतोषमय, सगुन सुमंगल माल॥ १॥

अनुवाद (हिन्दी)

अनेक प्रकारसे (जनकजीद्वारा) दहेज दिया गया, जिसे सुनकर दिक्पाल भी सिहाते (ईर्ष्या करने लगते) हैं। यह शकुन सुख, सम्पत्ति तथा सन्तोषदायी एवं श्रेष्ठ मंगल-परम्पराका सूचक है॥ १॥

विश्वास-प्रस्तुति बर दुलहिनि सब परसपर मुदित पाइ मनकाम। चारु चारि जोरी निरखि दुहुँ समाज अभिराम॥ २॥
मूल

बर दुलहिनि सब परसपर मुदित पाइ मनकाम।
चारु चारि जोरी निरखि दुहुँ समाज अभिराम॥ २॥

अनुवाद (हिन्दी)

मनकी साध पूर्ण होनेसे सभी वर एवं दुलहिनें परस्पर प्रसन्न हो रही हैं। इन सुन्दर चारों जोड़ियोंको देखकर दोनों (अयोध्या और जनकपुरके) समाज, अत्यन्त सुखी हैं॥ २॥ (प्रश्न-फल उत्तम है।)

विश्वास-प्रस्तुति चारिउ कुँवर बियाहि पुर गवने दसरथ राउ। भये मंजु मंगल सगुन गुर सुर संभु पसाउ॥ ३॥
मूल

चारिउ कुँवर बियाहि पुर गवने दसरथ राउ।
भये मंजु मंगल सगुन गुर सुर संभु पसाउ॥ ३॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज दशरथ चारों कुमारोंका विवाह करके अपने नगर (अयोध्या)-को लौट गये। गुरु वसिष्ठ, देवताओं तथा शंकरजीकी कृपासे मंगलमय शकुन हुए॥ ३॥ (मंगलकार्य-सम्बन्धी प्रश्नका फल उत्तम है।)

विश्वास-प्रस्तुति पंथ परसु धर आगमन समय सोच सब काहु। राज समाज विषाद बड़, भय बस मिटा उछाहु॥ ४॥
मूल

पंथ परसु धर आगमन समय सोच सब काहु।
राज समाज विषाद बड़, भय बस मिटा उछाहु॥ ४॥

अनुवाद (हिन्दी)

मार्गमें परशुरामजीके आ जानेके समय सभीको चिन्ता हो गयी। राजसमाजमें बड़ी उदासी छा गयी, भयके कारण उत्साह नष्ट हो गया॥ ४॥ (प्रश्नका फल अशुभ है।)

विश्वास-प्रस्तुति रोष कलुष लोचन भ्रुकुटि, पानि परसु धनु बान। काल कराल बिलोकि मुनि सब समाज बिलखान॥ ५॥
मूल

रोष कलुष लोचन भ्रुकुटि, पानि परसु धनु बान।
काल कराल बिलोकि मुनि सब समाज बिलखान॥ ५॥

अनुवाद (हिन्दी)

क्रोधसे लाल नेत्र एवं टेढ़ी भौंहें किये तथा हाथमें फरसा और धनुष-बाण लिये मुनि परशुरामजीको (साक्षात्) भयंकर कालके समान देखकर पूरा समाज दुःखी हो गया॥ ५॥ (प्रश्न-फल निकृष्ट है।)

विश्वास-प्रस्तुति प्रभुहि सौंपि सारंग मुनि दीन्ह सुआसिरबाद। जय मंगल सूचक सगुन राम राम संबाद॥ ६॥
मूल

प्रभुहि सौंपि सारंग मुनि दीन्ह सुआसिरबाद।
जय मंगल सूचक सगुन राम राम संबाद॥ ६॥

अनुवाद (हिन्दी)

प्रभु श्रीरामको अपना शार्ङ्गधनुष देकर मुनि परशुरामजीने उन्हें आशीर्वाद दिया। श्रीराम और परशुरामजीकी वार्ताका यह शकुन विजय और मंगल सूचित करनेवाला है॥ ६॥

विश्वास-प्रस्तुति अवध अनंद बधावनो, मंगल गान निसान। तुलसी तोरन कलस पुर चँवर पताक बितान॥ ७॥
मूल

अवध अनंद बधावनो, मंगल गान निसान।
तुलसी तोरन कलस पुर चँवर पताक बितान॥ ७॥

अनुवाद (हिन्दी)

तुलसीदासजी कहते हैं कि अयोध्यामें आनन्दकी बधाई बज रही है, मंगल-गीत गाये जा रहे हैं, डंकोंपर चोट पड़ रही है; नगरमें तोरण बँधे हैं, कलश सजे हैं; चँवर-पताकासहित मण्डप सजाये गये हैं॥ ७॥ (प्रश्न-फल शुभ है।)

विषय (हिन्दी)

सप्तक—७

विश्वास-प्रस्तुति साजि सुमंगल आरती, रहस बिबस रनिवासु। मुदित मात परिछन चलीं उमगत हृदयँ हुलासु॥ १॥
मूल

साजि सुमंगल आरती, रहस बिबस रनिवासु।
मुदित मात परिछन चलीं उमगत हृदयँ हुलासु॥ १॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अयोध्याका) रनिवास आनन्दमग्न हो गया। मंगल-आरती सजाकर माताएँ (वर-दुलहिनका) परिछन करने चलीं। हृदयमें आनन्दकी बाढ़ आ रही है॥ १॥ (प्रश्न-फल शुभ है।)

विश्वास-प्रस्तुति करहिं निछावरि आरती, उमगि उमगि अनुराग। बर दुलहिन अनुरूप लखि सखी सराहहिं भाग॥ २॥
मूल

करहिं निछावरि आरती, उमगि उमगि अनुराग।
बर दुलहिन अनुरूप लखि सखी सराहहिं भाग॥ २॥

अनुवाद (हिन्दी)

सखियाँ प्रेमसे बार-बार उमंगमें आकर आरती करके न्योछावर करती हैं और वर तथा दुलहिनोंको परस्पर देखकर (अपने) भाग्यकी प्रशंसा करती हैं॥ २॥ (प्रश्न-फल उत्तम है।)

विश्वास-प्रस्तुति मुदित नगर नर नारि सब, सगुन सुमंगल मूल। जय धुनि मुनि सुर दुंदुभी बाजहिं बरषहिं फूल॥ ३॥
मूल

मुदित नगर नर नारि सब, सगुन सुमंगल मूल।
जय धुनि मुनि सुर दुंदुभी बाजहिं बरषहिं फूल॥ ३॥

अनुवाद (हिन्दी)

अयोध्या-नगरवासी सभी स्त्री-पुरुष प्रसन्न हैं। मुनिगण जयध्वनि कर रहे हैं और देवता नगारे बजाकर पुष्प-वर्षा कर रहे हैं। यह शकुन सुमंगलका मूल (मंगलदायी) है॥ ३॥

विश्वास-प्रस्तुति आये कोसलपाल पुर, कुसल समाज समेत। समउ सुनत सुमिरत सुखद, सकल सिद्धि सुभ देत॥ ४॥
मूल

आये कोसलपाल पुर, कुसल समाज समेत।
समउ सुनत सुमिरत सुखद, सकल सिद्धि सुभ देत॥ ४॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीकोसलनाथ (महाराज दशरथ) बरातके साथ कुशलपूर्वक नगरमें आ गये। यह अवसर सुननेसे तथा स्मरण करनेसे सुख देनेवाला है और सभी शुभ सिद्धियाँ देता है॥ ४॥

विश्वास-प्रस्तुति रूप सील बय बंस गुन, सम बिबाह भये चारि। मुदित राउ रानी सकल, सानुकूल त्रिपुरारि॥ ५॥
मूल

रूप सील बय बंस गुन, सम बिबाह भये चारि।
मुदित राउ रानी सकल, सानुकूल त्रिपुरारि॥ ५॥

अनुवाद (हिन्दी)

रूप, शील, अवस्था, वंश और गुणमें चारों विवाह समान हुए, इससे महाराज (दशरथ) तथा सब रानियाँ प्रसन्न हैं कि भगवान् शंकर (हमारे) अनुकूल हैं॥ ५॥ (प्रश्न-फल शुभ है।)

विश्वास-प्रस्तुति बिधि हरि हर अनुकूल अति दशरथ राजहि आजु। देखि सराहत सिद्ध सुर संपति समय समाजु॥ ६॥
मूल

बिधि हरि हर अनुकूल अति दशरथ राजहि आजु।
देखि सराहत सिद्ध सुर संपति समय समाजु॥ ६॥

अनुवाद (हिन्दी)

आज महाराज दशरथके लिये ब्रह्मा, विष्णु तथा शंकरजी अत्यन्त अनुकूल हैं। उनकी सम्पत्ति तथा सौभाग्यमय समाजको देखकर सिद्ध तथा देवतातक उनकी प्रशंसा करते हैं॥ ६॥ (प्रश्न-फल शुभ है।)

विश्वास-प्रस्तुति सगुन प्रथम उनचास सुभ, तुलसी अति अभिराम। सब प्रसन्न सुर भूमिसुर, गो गन गंगा राम॥ ७॥
मूल

सगुन प्रथम उनचास सुभ, तुलसी अति अभिराम।
सब प्रसन्न सुर भूमिसुर, गो गन गंगा राम॥ ७॥

अनुवाद (हिन्दी)

तुलसीदासजी कहते हैं कि प्रथम सर्गका यह उनचासवाँ दोहा शुभ शकुनका सूचक, अत्यन्त सुन्दर है। देवता, ब्राह्मण, गायें, गंगाजी तथा श्रीराम—सभी प्रसन्न हैं॥ ७॥