अनुवाद (हिन्दी)
इसी ग्रन्थके सप्तम सर्गके सातवें सप्तकमें गोस्वामी तुलसीदासजीने स्वयं प्रश्नका उत्तर निकालनेकी विधि दी है। वह विधि यह है—
किसी अच्छे दिन सायंकाल ग्रन्थको निमन्त्रण देना चाहिये। अर्थात् सायंकाल अच्छे आसनपर ग्रन्थको रखकर प्रार्थना करनी चाहिये—‘कल मैं आपसे कुछ आवश्यक बात जाननेकी इच्छा करूँगा। मुझपर अनुग्रह करके सत्य फल सूचित करनेकी कृपा करें।’
विश्वास-प्रस्तुति
अष्टोत्तर सत कमल फल मुष्टी तीन प्रमान।. सप्त सप्त तजि सेषको राखै सब बिलगान॥ प्रथम सर्ग जो शेष रह, दूजे सप्तक होइ।. तीजे दोहा जानिये, सगुन बिचारब सोइ॥मूल
अष्टोत्तर सत कमल फल मुष्टी तीन प्रमान।.
सप्त सप्त तजि सेषको राखै सब बिलगान॥
प्रथम सर्ग जो शेष रह, दूजे सप्तक होइ।.
तीजे दोहा जानिये, सगुन बिचारब सोइ॥
अनुवाद (हिन्दी)
दूसरे दिन प्रातःकाल स्नान-सन्ध्यादि नित्यकर्म करके पुस्तककी पुष्प, चन्दन, धूप-दीप आदिसे पहले पूजा करनी चाहिये। फिर श्रद्धा-विश्वासपूर्वक पहले गुरुदेव, गणेशजी, शिव-पार्वती, श्रीसीता-राम, लक्ष्मण और हनुमान् का स्मरण करके जो प्रश्न करना हो, वह प्रश्न करके १०८ कमलगट्टे (कमलके पके फल) अंजलिमें लेकर ग्रन्थके पास सामने रख दें। फिर उसमेंसे एक-एक करके तीन मुट्ठी कमलगट्टे उठायें और उनको अलग-अलग रखते जायँ। पहली बारकी मुट्ठीके कमलगट्टोंको गिनकर उस संख्यामें सातका भाग दें। भाग देनेपर जो बाकी बचे, उसे ग्रन्थके सर्गकी संख्या समझें। यदि कुछ बाकी न बचे तो ग्रन्थका सातवाँ सर्ग समझें। इसी प्रकार दूसरी मुट्ठीके कमलगट्टे गिनकर उनकी संख्यामें सातका भाग दें और जो शेष बचे उसे पहले आये हुए सर्गके सप्तककी संख्या समझें और कुछ शेष न बचे तो उस सर्गका सातवाँ सप्तक समझें। अब तीसरी मुट्ठीके कमलगट्टोंको गिनकर सातका भाग उस संख्यामें दें। जो शेष बचे, वह उस ज्ञात सप्तकके दोहेकी संख्या है। यदि कुछ न बचे तो उस सप्तकका सातवाँ दोहा समझें। अब ग्रन्थ खोलकर उस सर्गके उस सप्तकका वह दोहा देख लें और दोहेके अनुसार अपने प्रश्नका फल समझ लें।
उदाहरणके लिये पहली मुट्ठीके कमलगट्टे गने तो १७ निकले, उनमें सातका भाग देनेसे ३ बचा, यह ग्रन्थके तीसरे सर्गकी सूचना हुई। दूसरी मुट्ठीके कमलगट्टे गिननेपर २५ निकले। इसमें सातका भाग देनेसे चार बचा, यह सप्तककी सूचना हुई। तीसरी मुट्ठीके कमलगट्टे गिननेपर २७ निकले। इस संख्यामें सातका भाग दिया तो ६ शेष रहा जो दोहेकी संख्या है। अब ग्रन्थमें तीसरे सर्गके चौथे सप्तकका छठा दोहा देखा तो वह दोहा निकला—
विश्वास-प्रस्तुति
लखन ललित मूरति मधुर सुमिरहु सहित सनेह। सुख संपति कीरति विजय सगुन सुमंगल गेह॥मूल
लखन ललित मूरति मधुर सुमिरहु सहित सनेह।
सुख संपति कीरति विजय सगुन सुमंगल गेह॥
अनुवाद (हिन्दी)
इसका तात्पर्य है कि यदि प्रश्न सुख, सम्पत्ति, कीर्ति या विजयके सम्बन्धमें है तो लक्ष्मणजीका स्मरण करके कार्य आरम्भ करो, सफलता प्राप्त होगी।