समुद्रोल्लङ्घन
विश्वास-प्रस्तुतिः
जब अङ्गदादिनकी मति-गति मंद भई,
पवनके पूतको न कूदिबेको पलु गो।
साहसी ह्वै सैलपर सहसा सकेलि आइ,
चितवत चहूँ ओर, औरनि को कलु गो॥
‘तुलसी’ रसातलको निकसि सलिलु आयो,
कोलु कलमल्यो, अहि-कमठको बलु गो।
चारिहू चरनके चपेट चाँपें चिपिटि गो,
उचकें उचकि चारि अंगुल अचलु गो॥
मूल
जब अङ्गदादिनकी मति-गति मंद भई,
पवनके पूतको न कूदिबेको पलु गो।
साहसी ह्वै सैलपर सहसा सकेलि आइ,
चितवत चहूँ ओर, औरनि को कलु गो॥
‘तुलसी’ रसातलको निकसि सलिलु आयो,
कोलु कलमल्यो, अहि-कमठको बलु गो।
चारिहू चरनके चपेट चाँपें चिपिटि गो,
उचकें उचकि चारि अंगुल अचलु गो॥
अनुवाद (हिन्दी)
जब अङ्गदादि वानरोंकी गति और बुद्धि मन्द पड़ गयी [अर्थात् किसीने पार जाना स्वीकार नहीं किया] तब वायुकुमार हनुमान् जी को कूदनेमें पलमात्रकी भी देरी नहीं हुई। वे साहसपूर्वक सहसा कौतुकसे ही पर्वतपर आ चारों ओर देखने लगे। इससे शत्रुओंकी शान्ति भंग हो गयी। गोसाईंजी कहते हैं कि रसातलसे जल निकल आया, वाराह भगवान् कलमला गये तथा शेष और कच्छप बलहीन हो गये। चारों चरणोंसे जोरसे दबानेसे पर्वत पृथ्वीमें चिपट गया और फिर उनके कूदनेपर पर्वत भी चार अङ्गुल उचक गया॥ १॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
(इति किष्किन्धाकाण्ड)
मूलम् (समाप्तिः)
(इति किष्किन्धाकाण्ड)