मारीचानुधावन
विश्वास-प्रस्तुतिः
पंचबटीं बर पर्नकुटी तर बैठे हैं रामु सुभायँ सुहाए।
सोहै प्रिया, प्रिय बंधु लसै, ‘तुलसी’ सब अंग घने छबि-छाए॥
देखि मृगा मृगनैनी कहे प्रिय बैन, ते प्रीतमके मन भाए।
हेमकुरंगके संग सरासनु सायकु लै रघुनायकु धाए॥
मूल
पंचबटीं बर पर्नकुटी तर बैठे हैं रामु सुभायँ सुहाए।
सोहै प्रिया, प्रिय बंधु लसै, ‘तुलसी’ सब अंग घने छबि-छाए॥
देखि मृगा मृगनैनी कहे प्रिय बैन, ते प्रीतमके मन भाए।
हेमकुरंगके संग सरासनु सायकु लै रघुनायकु धाए॥
अनुवाद (हिन्दी)
पञ्चवटीमें सुन्दर पर्णकुटीके समीप स्वभावसे ही सुन्दर श्रीरामचन्द्रजी बैठे हैं। (साथमें) प्रिया (श्रीजानकीजी) और प्रिय बन्धु शोभित हैं। गोसाईंजी कहते हैं—उनके सब अङ्ग बड़े ही शोभामय हैं। उस समय एक (सोनेके) मृगको देखकर मृगनयनी (श्रीजानकीजी) ने [उसे लानेके लिये] जो प्रिय वचन कहे, वे प्रियतमके मनको बहुत प्रिय लगे, तब रघुनाथजी धनुष-बाण ले उस सोनेके मृगके पीछे दौड़ पड़े॥ १॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
(इति अरण्यकाण्ड)
मूलम् (समाप्तिः)
(इति अरण्यकाण्ड)