विश्वास-प्रस्तुति
गे मुनि अवध बिलोकि सुसरित नहायउ। सतानंद सत कोटि नाम फल पायउ॥ ११६॥मूल
गे मुनि अवध बिलोकि सुसरित नहायउ।
सतानंद सत कोटि नाम फल पायउ॥ ११६॥
अनुवाद (हिन्दी)
[इधर] मुनि (शतानन्द)-ने अयोध्या पहुँचकर सरयूमें स्नान किया और सौ करोड़ नाम जपनेका फल पाया॥ ११६॥
विश्वास-प्रस्तुति
नृप सुनि आगे आइ पूजि सनमानेउ। दीन्हि लगन कहि कुसल राउ हरषानेउ॥ ११७॥ सुनि पुर भयउ अनंद बधाव बजावहिं। सजहिं सुमंगल कलस बितान बनावहिं॥ ११८॥मूल
नृप सुनि आगे आइ पूजि सनमानेउ।
दीन्हि लगन कहि कुसल राउ हरषानेउ॥ ११७॥
सुनि पुर भयउ अनंद बधाव बजावहिं।
सजहिं सुमंगल कलस बितान बनावहिं॥ ११८॥
अनुवाद (हिन्दी)
शतानन्दमुनिका आगमन सुनकर महाराज (दशरथ) आगे आये और पूजा करके उनका सम्मान किया। फिर मुनिने कुशल सुनाकर उन्हें लग्नपत्रिका दी। [इससे] राजा दशरथ बहुत हर्षित हुए॥ ११७॥ इस समाचारको सुनकर नगरमें बड़ा आनन्द हुआ और बधावे बजने लगे। सब ओर [विवाहार्थ] मंगल-कलश सजाये जाने लगे और जहाँ-तहाँ वितान (चाँदनियाँ) ताने गये॥ ११८॥
विश्वास-प्रस्तुति
राउ छाँड़ि सब काज साज सब साजहिं। चलेउ बरात बनाइ पूजि गनराजहिं॥ ११९॥ बाजहिं ढोल निसान सगुन सुभ पाइन्हि। सिय नैहर जनकौर नगर नियराइन्हि॥ १२०॥मूल
राउ छाँड़ि सब काज साज सब साजहिं।
चलेउ बरात बनाइ पूजि गनराजहिं॥ ११९॥
बाजहिं ढोल निसान सगुन सुभ पाइन्हि।
सिय नैहर जनकौर नगर नियराइन्हि॥ १२०॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज (दशरथ) [अन्य] सब कामोंको छोड़कर बरातका सामान सजाने लगे और बरात बनाकर गणेशजीका पूजन करके चल पड़े॥ ११९॥ ढोल और नगारे बज रहे हैं और शुभ शकुन हो रहे हैं। इस प्रकार जानकीजीका नैहर जनकौर (जनकपुर) समीप आ गया॥ १२०॥
विश्वास-प्रस्तुति
नियरानि नगर बरात हरषी लेन अगवानी गए। देखत परस्पर मिलत मानत प्रेम परिपूरन भए॥ आनंदपुर कौतुक कोलाहल बनत सो बरनत कहाँ। लै दियो तहँ जनवास सकल सुपास नित नूतन जहाँ॥ १५॥मूल
नियरानि नगर बरात हरषी लेन अगवानी गए।
देखत परस्पर मिलत मानत प्रेम परिपूरन भए॥
आनंदपुर कौतुक कोलाहल बनत सो बरनत कहाँ।
लै दियो तहँ जनवास सकल सुपास नित नूतन जहाँ॥ १५॥
अनुवाद (हिन्दी)
बरात नगरके समीप पहुँच गयी। तब सब लोग प्रसन्न होकर अगवानी लेने (स्वागत करने) गये। सब एक-दूसरेको देखते और मिलते हैं तथा आप्तकाम होकर बड़ा प्रेम मानते हैं। नगरमें बड़ा आनन्द, कौतुक (खेल) और कोलाहल (हल्ला) हो रहा है; उसका वर्णन कहाँ हो सकता है। फिर बरातको ले जाकर जहाँ सब प्रकारका नित्य-नूतन सुभीता था, वहाँ जनवासा दिया (बरातको ठहराया गया)॥ १५॥
विश्वास-प्रस्तुति
गे जनवासहिं कौसिक राम लखन लिए। हरषे निरखि बरात प्रेम प्रमुदित हिए॥ १२१॥ हृदयँ लाइ लिए गोद मोद अति भूपहि। कहि न सकहिं सत सेष अनंद अनूपहि॥ १२२॥मूल
गे जनवासहिं कौसिक राम लखन लिए।
हरषे निरखि बरात प्रेम प्रमुदित हिए॥ १२१॥
हृदयँ लाइ लिए गोद मोद अति भूपहि।
कहि न सकहिं सत सेष अनंद अनूपहि॥ १२२॥
अनुवाद (हिन्दी)
कौशिकमुनि श्रीरामचन्द्रजी और लक्ष्मणजीको साथ लिये जनवासेमें गये और बरातको देखकर अति आनन्दित हुए, उनका हृदय प्रेमसे प्रफुल्लित था॥ १२१॥ महाराजने श्रीराम और लक्ष्मणको हृदयसे लगाकर गोदमें बिठा लिया। उस समय उन्हें अत्यन्त आनन्द हुआ। उस अनुपम आनन्दको सैकड़ों शेष भी वर्णन नहीं कर सकते॥ १२२॥
विश्वास-प्रस्तुति
रायँ कौसिकहि पूजि दान बिप्रन्ह दिए। राम सुमंगल हेतु सकल मंगल किए॥ १२३॥ ब्याह बिभूषन भूषित भूषन भूषन। बिस्व बिलोचन बनज बिकासक पूषन॥ १२४॥मूल
रायँ कौसिकहि पूजि दान बिप्रन्ह दिए।
राम सुमंगल हेतु सकल मंगल किए॥ १२३॥
ब्याह बिभूषन भूषित भूषन भूषन।
बिस्व बिलोचन बनज बिकासक पूषन॥ १२४॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज दशरथने कौशिकमुनिकी पूजा करके ब्राह्मणोंको दान दिये और श्रीरामचन्द्रजीके कल्याणके लिये सब प्रकारके मांगलिक कृत्य किये। जो संसारके नेत्ररूपी कमलोंको विकसित करनेवाले सूर्यके समान हैं। वे भूषणोंके भूषण श्रीरामचन्द्रजी विवाहके आभूषणोंसे भूषित हैं॥ १२३-१२४॥
विश्वास-प्रस्तुति
मध्य बरात बिराजत अति अनुकूलेउ। मनहुँ काम आराम कलपतरु फूलेउ॥ १२५॥ पठई भेंट बिदेह बहुत बहु भाँतिन्ह। देखत देव सिहाहिं अनंद बरातिन्ह॥ १२६॥मूल
मध्य बरात बिराजत अति अनुकूलेउ।
मनहुँ काम आराम कलपतरु फूलेउ॥ १२५॥
पठई भेंट बिदेह बहुत बहु भाँतिन्ह।
देखत देव सिहाहिं अनंद बरातिन्ह॥ १२६॥
अनुवाद (हिन्दी)
वे बरातके मध्यमें अत्यन्त प्रसन्न चित्तसे सुशोभित हैं, ऐसा जान पड़ता है, मानो कामदेवके बागमें कल्पवृक्ष फूला हुआ हो॥ १२५॥ महाराज जनकने अनेक प्रकारके बहुत-से उपहार भेजे, जिन्हें देखकर देवता (भी) ईर्ष्या करते हैं और बरातियोंको भी बड़ा आनन्द होता है॥ १२६॥