०१ मंगलाचरण

विश्वास-प्रस्तुति गुरु गनपति गिरिजापति गौरि गिरापति। सारद सेष सुकबि श्रुति संत सरल मति॥ १॥ हाथ जोरि करि बिनय सबहि सिर नावौं। सिय रघुबीर बिबाहु जथामति गावौं॥ २॥
मूल

गुरु गनपति गिरिजापति गौरि गिरापति।
सारद सेष सुकबि श्रुति संत सरल मति॥ १॥
हाथ जोरि करि बिनय सबहि सिर नावौं।
सिय रघुबीर बिबाहु जथामति गावौं॥ २॥

अनुवाद (हिन्दी)

गुरु, गणपति (गणेशजी), शिवजी, पार्वतीजी, वाणीके स्वामी बृहस्पति अथवा विष्णुभगवान्, शारदा, शेष, सुकवि, वेद और सरलमति संत—सबको हाथ जोड़कर विनयपूर्वक सिर नवाता हूँ और अपनी बुद्धिके अनुसार श्रीरामचन्द्रजी और जानकीजीके विवाहोत्सवका गान करता हूँ॥ १-२॥