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॥ श्रीहरिः॥
श्रीगोस्वामी तुलसीदासजीरचित
जानकी-मंगल
सरल भावार्थसहित
त्वमेव माता च पिता त्वमेव
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव
त्वमेव सर्वं मम देवदेव॥
गीता सेवा ट्रस्ट
भागसूचना
निवेदन
अनुवाद (हिन्दी)
जानकी-मंगलमें (जैसा कि इसके नामसे ही स्पष्ट है) प्रातः-स्मरणीय गोस्वामीजीने जगज्जननी आद्याशक्ति भगवती श्रीजानकीजी तथा परात्पर पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् श्रीरामके परम मंगलमय विवाहोत्सवका बड़े ही मधुर शब्दोंमें वर्णन किया है। जनकपुरमें स्वयंवरकी तैयारीसे आरम्भ करके विश्वामित्रके अयोध्या जाकर श्रीराम-लक्ष्मणको यज्ञ-रक्षाके व्याजसे अपने साथ ले आने, यज्ञ-रक्षाके अनन्तर धनुष-यज्ञ दिखानेके बहाने उन्हें जनकपुर ले जाने, रंग-भूमिमें पधारकर श्रीरामके धनुष तोड़ने तथा श्रीजनकराजतनयाके उन्हें वरमाला पहनाने, लग्न-पत्रिका तथा तिलककी सामग्री लेकर जनकपुरोधा महर्षि शतानन्दजीके अयोध्या जाने, महाराज दशरथके बरात लेकर जनकपुर जाने, विवाह-संस्कार सम्पन्न होनेके अनन्तर बरातके बिदा होने, मार्गमें भृगुनन्दन परशुरामजीसे भेंट होने तथा अन्तमें अयोध्या पहुँचनेपर वहाँ आनन्द मनाये जाने आदि प्रसंगोंका संक्षेपमें बड़ा ही सरस एवं सजीव वर्णन किया गया है; जो प्रायः रामचरितमानससे मिलता-जुलता ही है। कहीं-कहीं तो रामचरितमानसके शब्द ही ज्यों-के-त्यों दुहराये गये हैं।
श्रीसीतारामजीके इस परम पावन चरित्रके अनुशीलनसे जनताका अशेष मंगल होगा—इसी आशासे उनकी यह वस्तु उन्हींके पाद-पद्मोंमें निवेदित है।
विनीत
हनुमानप्रसाद पोद्दार
भागसूचना
श्रीजानकी-मंगल