०६ सवैया

विश्वास-प्रस्तुति रामगुलाम तुही हनुमान गोसाँइ सुसाँइ सदा अनुकूलो। पाल्यो हौं बाल ज्यों आखर दू पितु मातु सों मंगल मोद समूलो॥ बाँहकी बेदन बाँहपगार पुकारत आरत आनँद भूलो। श्रीरघुबीर निवारिये पीर रहौं दरबार परो लटि लूलो॥ ३६॥
मूल

रामगुलाम तुही हनुमान
गोसाँइ सुसाँइ सदा अनुकूलो।
पाल्यो हौं बाल ज्यों आखर दू
पितु मातु सों मंगल मोद समूलो॥
बाँहकी बेदन बाँहपगार
पुकारत आरत आनँद भूलो।
श्रीरघुबीर निवारिये पीर
रहौं दरबार परो लटि लूलो॥ ३६॥

अनुवाद (हिन्दी)

भावार्थ—हे गोस्वामी हनुमान् जी! आप श्रेष्ठ स्वामी और सदा श्रीरामचन्द्रजीके सेवकोंके पक्षमें रहनेवाले हैं। आनन्द-मंगलके मूल दोनों अक्षरों (राम-नाम)-ने माता-पिताके समान मेरा पालन किया है। हे बाहुपगार (भुजाओंका आश्रय देनेवाले)! बाहुकी पीड़ासे मैं सारा आनन्द भुलाकर दुःखी होकर पुकार रहा हूँ। हे रघुकुलके वीर! पीड़ाको दूर कीजिये, जिससे दुर्बल और पंगु होकर भी आपके दरबारमें पड़ा रहूँ॥ ३६॥