विश्वास-प्रस्तुति
जानत जहान हनुमानको निवाज्यौ जन, मन अनुमानि, बलि, बोल न बिसारिये। सेवा-जोग तुलसी कबहुँ कहा चूक परी, साहेब सुभाव कपि साहिबी सँभारिये॥ अपराधी जानि कीजै सासति सहस भाँति, मोदक मरै जो, ताहि माहुर न मारिये। साहसी समीरके दुलारे रघुबीरजूके, बाँह पीर महाबीर बेगि ही निवारिये॥ २०॥मूल
जानत जहान हनुमानको निवाज्यौ जन,
मन अनुमानि, बलि, बोल न बिसारिये।
सेवा-जोग तुलसी कबहुँ कहा चूक परी,
साहेब सुभाव कपि साहिबी सँभारिये॥
अपराधी जानि कीजै सासति सहस भाँति,
मोदक मरै जो, ताहि माहुर न मारिये।
साहसी समीरके दुलारे रघुबीरजूके,
बाँह पीर महाबीर बेगि ही निवारिये॥ २०॥
अनुवाद (हिन्दी)
भावार्थ—हे हनुमान् जी! बलि जाता हूँ, अपनी प्रतिज्ञाको न भुलाइये, जिसको संसार जानता है, मनमें विचारिये, आपका कृपापात्र जन बाधारहित और सदा प्रसन्न रहता है। हे स्वामी कपिराज! तुलसी कभी सेवाके योग्य था? क्या चूक हुई है, अपनी साहिबीको सँभालिये, मुझे अपराधी समझते हों तो सहस्रों भाँतिकी दुर्दशा कीजिये, किंतु जो लड्डू देनेसे मरता हो उसको विषसे न मारिये। हे महाबली, साहसी, पवनके दुलारे, रघुनाथजीके प्यारे! भुजाओंकी पीड़ाको शीघ्र ही दूर कीजिये॥ २०॥
विश्वास-प्रस्तुति
बालक बिलोकि, बलि, बारेतें आपनो कियो, दीनबंधु दया कीन्हीं निरुपाधि न्यारिये। रावरो भरोसो तुलसीके, रावरोई बल, आस रावरीयै, दास रावरो बिचारिये॥ बड़ो बिकराल कलि, काको न बिहाल कियो, माथे पगु बलीको, निहारि सो निवारिये। केसरीकिसोर, रनरोर, बरजोर बीर, बाँहुपीर राहुमातु ज्यौं पछारि मारिये॥ २१॥मूल
बालक बिलोकि, बलि, बारेतें आपनो कियो,
दीनबंधु दया कीन्हीं निरुपाधि न्यारिये।
रावरो भरोसो तुलसीके, रावरोई बल,
आस रावरीयै, दास रावरो बिचारिये॥
बड़ो बिकराल कलि, काको न बिहाल कियो,
माथे पगु बलीको, निहारि सो निवारिये।
केसरीकिसोर, रनरोर, बरजोर बीर,
बाँहुपीर राहुमातु ज्यौं पछारि मारिये॥ २१॥
अनुवाद (हिन्दी)
भावार्थ—हे दीनबन्धु! बलि जाता हूँ, बालकको देखकर आपने लड़कपनसे ही अपनाया और मायारहित अनोखी दया की। सोचिये तो सही, तुलसी आपका दास है, इसको आपका भरोसा, आपका ही बल और आपकी ही आशा है। अत्यन्त भयानक कलिकालने किसको बेचैन नहीं किया? इस बलवान् का पैर मेरे मस्तकपर भी देखकर उसको हटाइये। हे केशरीकिशोर, बरजोर वीर! आप रणमें कोलाहल उत्पन्न करनेवाले हैं, राहुकी माता सिंहिकाके समान बाहुकी पीड़ाको पछाड़कर मार डालिये॥ २१॥
विश्वास-प्रस्तुति
उथपे थपनथिर थपे उथपनहार, केसरीकुमार बल आपनो सँभारिये। रामके गुलामनिको कामतरु रामदूत, मोसे दीन दूबरेको तकिया तिहारिये॥ साहेब समर्थ तोसों तुलसीके माथे पर, सोऊ अपराध बिनु बीर, बाँधि मारिये। पोखरी बिसाल बाँहु, बलि बारिचर पीर, मकरी ज्यौं पकरिकै बदन बिदारिये॥ २२॥मूल
उथपे थपनथिर थपे उथपनहार,
केसरीकुमार बल आपनो सँभारिये।
रामके गुलामनिको कामतरु रामदूत,
मोसे दीन दूबरेको तकिया तिहारिये॥
साहेब समर्थ तोसों तुलसीके माथे पर,
सोऊ अपराध बिनु बीर, बाँधि मारिये।
पोखरी बिसाल बाँहु, बलि बारिचर पीर,
मकरी ज्यौं पकरिकै बदन बिदारिये॥ २२॥
अनुवाद (हिन्दी)
भावार्थ—हे केशरीकुमार! आप उजड़े हुए (सुग्रीव-विभीषण)-को बसानेवाले और बसे हुए (रावणादि)-को उजाड़नेवाले हैं, अपने उस बलका स्मरण कीजिये। हे रामदूत! रामचन्द्रजीके सेवकोंके लिये आप कल्पवृक्ष हैं और मुझ-सरीखे दीन-दुर्बलोंको आपका ही सहारा है। हे वीर! तुलसीके माथेपर आपके समान समर्थ स्वामी विद्यमान रहते हुए भी वह बाँधकर मारा जाता है। बलि जाता हूँ, मेरी भुजा विशाल पोखरीके समान है और यह पीड़ा उसमें जलचरके सदृश है, सो आप मकरीके समान इस जलचरीको पकड़कर इसका मुख फाड़ डालिये॥ २२॥
विश्वास-प्रस्तुति
रामको सनेह, राम साहस लखन सिय, रामकी भगति, सोच संकट निवारिये। मुद-मरकट रोग-बारिनिधि हेरि हारे, जीव-जामवंतको भरोसो तेरो भारिये॥ कूदिये कृपाल तुलसी सुप्रेम-पब्बयतें, सुथल सुबेल भालु बैठिकै बिचारिये। महाबीर बाँकुरे बराकी बाँहपीर क्यों न, लंकिनी ज्यों लातघात ही मरोरि मारिये॥ २३॥मूल
रामको सनेह, राम साहस लखन सिय,
रामकी भगति, सोच संकट निवारिये।
मुद-मरकट रोग-बारिनिधि हेरि हारे,
जीव-जामवंतको भरोसो तेरो भारिये॥
कूदिये कृपाल तुलसी सुप्रेम-पब्बयतें,
सुथल सुबेल भालु बैठिकै बिचारिये।
महाबीर बाँकुरे बराकी बाँहपीर क्यों न,
लंकिनी ज्यों लातघात ही मरोरि मारिये॥ २३॥
अनुवाद (हिन्दी)
भावार्थ—मुझमें रामचन्द्रजीके प्रति स्नेह, रामचन्द्रजीकी भक्ति, राम-लक्ष्मण और जानकीजीकी कृपासे साहस (दृढ़तापूर्वक कठिनाइयोंका सामना करनेकी हिम्मत) है, अतः मेरे शोक-संकटको दूर कीजिये। आनन्दरूपी बंदर रोगरूपी अपार समुद्रको देखकर मनमें हार गये हैं, जीवरूपी जाम्बवन्तको आपका बड़ा भरोसा है। हे कृपालु! तुलसीके सुन्दर प्रेमरूपी पर्वतसे कूदिये, श्रेष्ठ स्थान (हृदय)-रूपी सुबेलपर्वतपर बैठे हुए जीवरूपी जाम्बवन्तजी सोचते (प्रतीक्षा करते) हैं। हे महाबली बाँके योद्धा! मेरे बाहुकी पीड़ारूपिणी लंकिनीको लातकी चोटसे क्यों नहीं मरोड़कर मार डालते?॥ २३॥
विश्वास-प्रस्तुति
लोक-परलोकहूँ तिलोक न बिलोकियत, तोसे समरथ चष चारिहूँ निहारिये। कर्म, काल, लोकपाल, अग-जग जीवजाल, नाथ हाथ सब निज महिमा बिचारिये॥ खास दास रावरो, निवास तेरो तासु उर, तुलसी सो देव दुखी देखियत भारिये। बात तरुमूल बाँहुसूल कपिकच्छु-बेलि, उपजी सकेलि कपिकेलि ही उखारिये॥ २४॥मूल
लोक-परलोकहूँ तिलोक न बिलोकियत,
तोसे समरथ चष चारिहूँ निहारिये।
कर्म, काल, लोकपाल, अग-जग जीवजाल,
नाथ हाथ सब निज महिमा बिचारिये॥
खास दास रावरो, निवास तेरो तासु उर,
तुलसी सो देव दुखी देखियत भारिये।
बात तरुमूल बाँहुसूल कपिकच्छु-बेलि,
उपजी सकेलि कपिकेलि ही उखारिये॥ २४॥
अनुवाद (हिन्दी)
भावार्थ—लोक, परलोक और तीनों लोकोंमें चारों नेत्रोंसे देखता हूँ, आपके समान योग्य कोई नहीं दिखायी देता। हे नाथ! कर्म, काल, लोकपाल तथा सम्पूर्ण स्थावर-जंगम जीवसमूह आपके ही हाथमें हैं, अपनी महिमाको विचारिये। हे देव! तुलसी आपका निजी सेवक है, उसके हृदयमें आपका निवास है और वह भारी दुःखी दिखायी देता है। वातव्याधिजनित बाहुकी पीड़ा केवाँचकी लताके समान है, उसकी उत्पन्न हुई जड़को बटोरकर वानरी खेलसे उखाड़ डालिये॥ २४॥
विश्वास-प्रस्तुति
करम-कराल-कंस भूमिपालके भरोसे, बकी बकभगिनी काहूतें कहा डरैगी। बड़ी बिकराल बालघातिनी न जात कहि, बाँहुबल बालक छबीले छोटे छरैगी॥ आई है बनाइ बेष आप ही बिचारि देख, पाप जाय सबको गुनीके पाले परैगी। पूतना पिसाचिनी ज्यौं कपिकान्ह तुलसीकी, बाँहपीर महाबीर, तेरे मारे मरैगी॥ २५॥मूल
करम-कराल-कंस भूमिपालके भरोसे,
बकी बकभगिनी काहूतें कहा डरैगी।
बड़ी बिकराल बालघातिनी न जात कहि,
बाँहुबल बालक छबीले छोटे छरैगी॥
आई है बनाइ बेष आप ही बिचारि देख,
पाप जाय सबको गुनीके पाले परैगी।
पूतना पिसाचिनी ज्यौं कपिकान्ह तुलसीकी,
बाँहपीर महाबीर, तेरे मारे मरैगी॥ २५॥
अनुवाद (हिन्दी)
भावार्थ—कर्मरूपी भयंकर कंसराजाके भरोसे बकासुरकी बहिन पूतना राक्षसी क्या किसीसे डरेगी? बालकोंको मारनेमें बड़ी भयावनी,जिसकी लीला कही नहीं जाती है, वह अपने बाहुबलसे छोटे छबिमान् शिशुओंको छलेगी। आप ही विचारकर देखिये, वह सुन्दर रूप बनाकर आयी है, यदि आप-सरीखे गुणीके पाले पड़ेगी तो सभीका पाप दूर हो जायगा। हे महाबली कपिराज! तुलसीकी बाहुकी पीड़ा पूतना पिशाचिनीके समान है और आप बालकृष्णरूप हैं, यह आपके ही मारनेसे मरेगी॥ २५॥
विश्वास-प्रस्तुति
भालकी कि कालकी कि रोषकी त्रिदोषकी है, बेदन बिषम पाप-ताप छलछाँहकी। करमन कूटकी कि जंत्रमंत्र बूटकी, पराहि जाहि पापिनी मलीन मनमाँहकी॥ पैहहि सजाय नत कहत बजाय तोहि, बावरी न होहि बानि जानि कपिनाँहकी। आन हनुमानकी दोहाई बलवानकी, सपथ महाबीरकी जो रहै पीर बाँहकी॥ २६॥मूल
भालकी कि कालकी कि रोषकी त्रिदोषकी है,
बेदन बिषम पाप-ताप छलछाँहकी।
करमन कूटकी कि जंत्रमंत्र बूटकी,
पराहि जाहि पापिनी मलीन मनमाँहकी॥
पैहहि सजाय नत कहत बजाय तोहि,
बावरी न होहि बानि जानि कपिनाँहकी।
आन हनुमानकी दोहाई बलवानकी,
सपथ महाबीरकी जो रहै पीर बाँहकी॥ २६॥
अनुवाद (हिन्दी)
भावार्थ—यह कठिन पीड़ा कपालकी लिखावट है या समय, क्रोध अथवा त्रिदोषका या मेरे भयंकर पापोंका परिणाम है, दुःख किंवा धोखेकी छाया है। मारणादि प्रयोग अथवा यन्त्र-मन्त्ररूपी वृक्षका फल है; अरी मनकी मैली पापिनी पूतना! भाग जा, नहीं तो मैं डंका पीटकर कहे देता हूँ कि कपिराजका स्वभाव जानकर तू पगली न बने। जो बाहुकी पीड़ा रहे तो मैं महाबीर बलवान् हनुमान् जी की दोहाई और सौगन्ध करता हूँ अर्थात् अब वह नहीं रह सकती॥ २६॥
विश्वास-प्रस्तुति
सिंहिका सँहारि बल, सुरसा सुधारि छल, लंकिनी पछारि मारि बाटिका उजारी है। लंक परजारि मकरी बिदारि बारबार, जातुधान धारि धूरिधानी करि डारी है॥ तोरि जमकातरि मदोदरि कढ़ोरि आनी, रावनकी रानी मेघनाद महँतारी है। भीर बाँहपीरकी निपट राखी महाबीर, कौनके सकोच तुलसीके सोच भारी है॥ २७॥मूल
सिंहिका सँहारि बल, सुरसा सुधारि छल,
लंकिनी पछारि मारि बाटिका उजारी है।
लंक परजारि मकरी बिदारि बारबार,
जातुधान धारि धूरिधानी करि डारी है॥
तोरि जमकातरि मदोदरि कढ़ोरि आनी,
रावनकी रानी मेघनाद महँतारी है।
भीर बाँहपीरकी निपट राखी महाबीर,
कौनके सकोच तुलसीके सोच भारी है॥ २७॥
अनुवाद (हिन्दी)
भावार्थ—सिंहिकाके बलका संहार करके सुरसाके छलको सुधारकर लंकिनीको मार गिराया और अशोकवाटिकाको उजाड़ डाला। लंकापुरीको अच्छी तरहसे जलाकर मकरीको विदीर्ण करके बारंबार राक्षसोंकी सेनाका विनाश किया। यमराजका खड्ग अर्थात् परदा फाड़कर मेघनादकी माता और रावणकी पटरानी मन्दोदरीको राजमहलसे बाहर निकाल लाये। हे महाबली कपिराज! तुलसीको बड़ा सोच है, किसके संकोचमें पड़कर आपने केवल मेरे बाहुकी पीड़ाके भयको छोड़ रखा है॥ २७॥
विश्वास-प्रस्तुति
तेरो बालकेलि बीर सुनि सहमत धीर, भूलत सरीरसुधि सक्र-रबि-राहुकी। तेरी बाँह बसत बिसोक लोकपाल सब, तेरो नाम लेत रहै आरति न काहुकी॥ साम दान भेद बिधि बेदहू लबेद सिधि, हाथ कपिनाथहीके चोटी चोर साहुकी। आलस अनख परिहासकै सिखावन है, एते दिन रही पीर तुलसीके बाहुकी॥ २८॥मूल
तेरो बालकेलि बीर सुनि सहमत धीर,
भूलत सरीरसुधि सक्र-रबि-राहुकी।
तेरी बाँह बसत बिसोक लोकपाल सब,
तेरो नाम लेत रहै आरति न काहुकी॥
साम दान भेद बिधि बेदहू लबेद सिधि,
हाथ कपिनाथहीके चोटी चोर साहुकी।
आलस अनख परिहासकै सिखावन है,
एते दिन रही पीर तुलसीके बाहुकी॥ २८॥
अनुवाद (हिन्दी)
भावार्थ—हे वीर! आपके लड़कपनका खेल सुनकर धीरजवान् भी भयभीत हो जाते हैं और इन्द्र, सूर्य तथा राहुको अपने शरीरकी सुध भुला जाती है। आपके बाहुबलसे सब लोकपाल शोकरहित होकर बसते हैं और आपका नाम लेनेसे किसीका दुःख नहीं रह जाता। साम, दान और भेद-नीतिका विधान तथा वेद-लवेदसे भी सिद्ध है कि चोर-साहुकी चोटी कपिनाथके ही हाथमें रहती है। तुलसीदासके जो इतने दिन बाहुकी पीड़ा रही है सो क्या आपका आलस्य है अथवा क्रोध, परिहास या शिक्षा है॥ २८॥
विश्वास-प्रस्तुति
टूकनिको घर-घर डोलत कँगाल बोलि, बाल ज्यों कृपाल नतपाल पालि पोसो है। कीन्ही है सँभार सार अंजनीकुमार बीर, आपनो बिसारिहैं न मेरेहू भरोसो है॥ इतनो परेखो सब भाँति समरथ आजु, कपिराज साँची कहौं को तिलोक तोसो है। सासति सहत दास कीजे पेखि परिहास, चीरीको मरन खेल बालकनिको सो है॥ २९॥मूल
टूकनिको घर-घर डोलत कँगाल बोलि,
बाल ज्यों कृपाल नतपाल पालि पोसो है।
कीन्ही है सँभार सार अंजनीकुमार बीर,
आपनो बिसारिहैं न मेरेहू भरोसो है॥
इतनो परेखो सब भाँति समरथ आजु,
कपिराज साँची कहौं को तिलोक तोसो है।
सासति सहत दास कीजे पेखि परिहास,
चीरीको मरन खेल बालकनिको सो है॥ २९॥
अनुवाद (हिन्दी)
भावार्थ—हे गरीबोंके पालन करनेवाले कृपानिधान! टुकड़ेके लिये दरिद्रतावश घर-घर मैं डोलता-फिरता था, आपने बुलाकर बालकके समान मेरा पालन-पोषण किया है। हे वीर अंजनीकुमार! मुख्यतः आपने ही मेरी रक्षा की है, अपने जनको आप न भुलायेंगे, इसका मुझे भी भरोसा है। हे कपिराज! आज आप सब प्रकार समर्थ हैं, मैं सच कहता हूँ, आपके समान भला तीनों लोकोंमें कौन है? किंतु मुझे इतना परेखा (पछतावा) है कि यह सेवक दुर्दशा सह रहा है, लड़कोंका खेलवाड़ होनेके समान चिड़ियाकी मृत्यु हो रही है और आप तमाशा देखते हैं॥ २९॥
विश्वास-प्रस्तुति
आपने ही पापतें त्रितापतें कि सापतें, बढ़ी है बाँहबेदन कही न सहि जाति है। औषध अनेक जंत्र-मंत्र-टोटकादि किये, बादि भये देवता मनाये अधिकाति है॥ करतार, भरतार, हरतार, कर्म, काल, को है जगजाल जो न मानत इताति है। चेरो तेरो तुलसी तू मेरो कह्यो रामदूत, ढील तेरी बीर मोहि पीरतें पिराति है॥ ३०॥मूल
आपने ही पापतें त्रितापतें कि सापतें,
बढ़ी है बाँहबेदन कही न सहि जाति है।
औषध अनेक जंत्र-मंत्र-टोटकादि किये,
बादि भये देवता मनाये अधिकाति है॥
करतार, भरतार, हरतार, कर्म, काल,
को है जगजाल जो न मानत इताति है।
चेरो तेरो तुलसी तू मेरो कह्यो रामदूत,
ढील तेरी बीर मोहि पीरतें पिराति है॥ ३०॥
अनुवाद (हिन्दी)
भावार्थ—मेरे ही पाप वा तीनों ताप अथवा शापसे बाहुकी पीड़ा बढ़ी है, वह न कही जाती और न सही जाती है। अनेक ओषधि, यन्त्र-मन्त्र-टोटकादि किये, देवताओंको मनाया, पर सब व्यर्थ हुआ, पीड़ा बढ़ती ही जाती है। ब्रह्मा, विष्णु, महेश, कर्म, काल और संसारका समूह-जाल कौन ऐसा है जो आपकी आज्ञाको न मानता हो। हे रामदूत! तुलसी आपका दास है और आपने इसको अपना सेवक कहा है। हे वीर! आपकी यह ढील मुझे इस पीड़ासे भी अधिक पीड़ित कर रही है॥ ३०॥
विश्वास-प्रस्तुति
दूत रामरायको, सपूत पूत बायको, समत्थ हाथ पायको सहाय असहायको। बाँकी बिरदावली बिदित बेद गाइयत, रावन सो भट भयो मुठिकाके घायको॥ एते बड़े साहेब समर्थको निवाजो आज, सीदत सुसेवक बचन मन कायको। थोरी बाँहपीरकी बड़ी गलानि तुलसीको, कौन पाप कोप, लोप प्रगट प्रभायको॥ ३१॥मूल
दूत रामरायको, सपूत पूत बायको,
समत्थ हाथ पायको सहाय असहायको।
बाँकी बिरदावली बिदित बेद गाइयत,
रावन सो भट भयो मुठिकाके घायको॥
एते बड़े साहेब समर्थको निवाजो आज,
सीदत सुसेवक बचन मन कायको।
थोरी बाँहपीरकी बड़ी गलानि तुलसीको,
कौन पाप कोप, लोप प्रगट प्रभायको॥ ३१॥
अनुवाद (हिन्दी)
भावार्थ—आप राजा रामचन्द्रके दूत, पवनदेवके सत्पुत्र, हाथ-पाँवके समर्थ और निराश्रितोंके सहायक हैं। आपके सुन्दर यशकी कथा विख्यात है, वेद गान करते हैं और रावण-जैसा त्रिलोकविजयी योद्धा आपके घूँसेकी चोटसे घायल हो गया। इतने बड़े योग्य स्वामीके अनुग्रह करनेपर भी आपका श्रेष्ठ सेवक आज तन-मन-वचनसे दुःख पा रहा है। तुलसीको इस थोड़ी-सी बाहु-पीड़ाकी बड़ी ग्लानि है, मेरे कौन-से पापके कारण वा क्रोधसे आपका प्रत्यक्ष प्रभाव लुप्त हो गया है?॥ ३१॥
विश्वास-प्रस्तुति
देवी देव दनुज मनुज मुनि सिद्ध नाग, छोटे बड़े जीव जेते चेतन अचेत हैं। पूतना पिसाची जातुधानी जातुधान बाम, रामदूतकी रजाइ माथे मानि लेत हैं॥ घोर जंत्र मंत्र कूट कपट कुरोग जोग, हनूमान आन सुनि छाड़त निकेत हैं। क्रोध कीजे कर्मको प्रबोध कीजे तुलसीको, सोध कीजे तिनको जो दोष दुख देत हैं॥ ३२॥मूल
देवी देव दनुज मनुज मुनि सिद्ध नाग,
छोटे बड़े जीव जेते चेतन अचेत हैं।
पूतना पिसाची जातुधानी जातुधान बाम,
रामदूतकी रजाइ माथे मानि लेत हैं॥
घोर जंत्र मंत्र कूट कपट कुरोग जोग,
हनूमान आन सुनि छाड़त निकेत हैं।
क्रोध कीजे कर्मको प्रबोध कीजे तुलसीको,
सोध कीजे तिनको जो दोष दुख देत हैं॥ ३२॥
अनुवाद (हिन्दी)
भावार्थ—देवी, देवता, दैत्य, मनुष्य, मुनि, सिद्ध और नाग आदि छोटे-बड़े जितने जड़-चेतन जीव हैं तथा पूतना, पिशाचिनी, राक्षसी-राक्षस जितने कुटिल प्राणी हैं, वे सभी रामदूत पवनकुमारकी आज्ञा शिरोधार्य करके मानते हैं। भीषण यन्त्र-मन्त्र, धोखाधारी, छलबाज और दुष्ट रोगोंके आक्रमण हनुमान् जी की दोहाई सुनकर स्थान छोड़ देते हैं। मेरे खोटे कर्मपर क्रोध कीजिये, तुलसीको सिखावन दीजिये और जो दोष हमें दुःख देते हैं उनका सुधार करिये॥ ३२॥
विश्वास-प्रस्तुति
तेरे बल बानर जिताये रन रावनसों, तेरे घाले जातुधान भये घर-घरके। तेरे बल रामराज किये सब सुरकाज, सकल समाज साज साजे रघुबरके॥ तेरो गुनगान सुनि गीरबान पुलकत, सजल बिलोचन बिरंचि हरि हरके। तुलसीके माथेपर हाथ फेरो कीसनाथ, देखिये न दास दुखी तोसे कनिगरके॥ ३३॥मूल
तेरे बल बानर जिताये रन रावनसों,
तेरे घाले जातुधान भये घर-घरके।
तेरे बल रामराज किये सब सुरकाज,
सकल समाज साज साजे रघुबरके॥
तेरो गुनगान सुनि गीरबान पुलकत,
सजल बिलोचन बिरंचि हरि हरके।
तुलसीके माथेपर हाथ फेरो कीसनाथ,
देखिये न दास दुखी तोसे कनिगरके॥ ३३॥
अनुवाद (हिन्दी)
भावार्थ—आपके बलने युद्धमें वानरोंको रावणसे जिताया और आपके ही नष्ट करनेसे राक्षस घर-घरके (तीन-तेरह) हो गये। आपके ही बलसे राजा रामचन्द्रजीने देवताओंका सब काम पूरा किया और आपने ही रघुनाथजीके समाजका सम्पूर्ण साज सजाया। आपके गुणोंका गान सुनकर देवता रोमांचित होते हैं और ब्रह्मा, विष्णु, महेशकी आँखोंमें जल भर आता है। हे वानरोंके स्वामी! तुलसीके माथेपर हाथ फेरिये, आप-जैसे अपनी मर्यादाकी लाज रखनेवालोंके दास कभी दुःखी नहीं देखे गये॥ ३३॥
विश्वास-प्रस्तुति
पालो तेरे टूकको परेहू चूक मूकिये न, कूर कौड़ी दूको हौं आपनी ओर हेरिये। भोरानाथ भोरेही सरोष होत थोरे दोष, पोषि तोषि थापि आपनो न अवडेरिये॥ अंबु तू हौं अंबुचर, अंब तू हौं डिंभ, सो न, बूझिये बिलंब अवलंब मेरे तेरिये। बालक बिकल जानि पाहि प्रेम पहिचानि, तुलसीकी बाँह पर लामीलूम फेरिये॥ ३४॥मूल
पालो तेरे टूकको परेहू चूक मूकिये न,
कूर कौड़ी दूको हौं आपनी ओर हेरिये।
भोरानाथ भोरेही सरोष होत थोरे दोष,
पोषि तोषि थापि आपनो न अवडेरिये॥
अंबु तू हौं अंबुचर, अंब तू हौं डिंभ, सो न,
बूझिये बिलंब अवलंब मेरे तेरिये।
बालक बिकल जानि पाहि प्रेम पहिचानि,
तुलसीकी बाँह पर लामीलूम फेरिये॥ ३४॥
अनुवाद (हिन्दी)
भावार्थ—आपके टुकड़ोंसे पला हूँ, चूक पड़नेपर भी मौन न हो जाइये। मैं कुमार्गी दो कौड़ीका हूँ, पर आप अपनी ओर देखिये। हे भोलानाथ! अपने भोलेपनसे ही आप थोड़े दोषसे रुष्ट हो जाते हैं, सन्तुष्ट होकर मेरा पालन करके मुझे बसाइये, अपना सेवक समझकर दुर्दशा न कीजिये। आप जल हैं तो मैं मछली हूँ, आप माता हैं तो मैं छोटा बालक हूँ, देरी न कीजिये, मुझको आपका ही सहारा है। बच्चेको व्याकुल जानकर प्रेमकी पहचान करके रक्षा कीजिये, तुलसीकी बाँहपर अपनी लंबी पूँछ फेरिये (जिससे पीड़ा निर्मूल हो जावे)॥ ३४॥
विश्वास-प्रस्तुति
घेरि लियो रोगनि कुजोगनि कुलोगनि ज्यौं, बासर जलद घन घटा धुकि धाई है। बरसत बारि पीर जारिये जवासे जस, रोष बिनु दोष, धूम-मूल मलिनाई है॥ करुनानिधान हनुमान महाबलवान, हेरि हँसि हाँकि फूँकि फौजें तैं उड़ाई है। खाये हुतो तुलसी कुरोग राढ़ राकसनि, केसरीकिसोर राखे बीर बरिआई है॥ ३५॥मूल
घेरि लियो रोगनि कुजोगनि कुलोगनि ज्यौं,
बासर जलद घन घटा धुकि धाई है।
बरसत बारि पीर जारिये जवासे जस,
रोष बिनु दोष, धूम-मूल मलिनाई है॥
करुनानिधान हनुमान महाबलवान,
हेरि हँसि हाँकि फूँकि फौजें तैं उड़ाई है।
खाये हुतो तुलसी कुरोग राढ़ राकसनि,
केसरीकिसोर राखे बीर बरिआई है॥ ३५॥
अनुवाद (हिन्दी)
भावार्थ—रोगों, बुरे योगों और दुष्ट लोगोंने मुझे इस प्रकार घेर लिया है जैसे दिनमें बादलोंका घना समूह झपटकर आकाशमें दौड़ता है। पीड़ारूपी जल बरसाकर इन्होंने क्रोध करके बिना अपराध यशरूपी जवासेको अग्निकी तरह झुलसकर मूर्च्छित कर दिया। हे दयानिधान महाबलवान् हनुमान् जी! आप हँसकर निहारिये और ललकारकर विपक्षकी सेनाको अपनी फूँकसे उड़ा दीजिये। हे केशरीकिशोर वीर! तुलसीको कुरोगरूपी निर्दय राक्षसने खा लिया था, आपने जोरावरीसे मेरी रक्षा की है॥ ३५॥