+हनुमान्-बाहुक

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॥ श्रीहरिः॥
श्रीमद्गोस्वामी तुलसीदासजीविरचित
हनुमानबाहुक
त्वमेव माता च पिता त्वमेव
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव
त्वमेव सर्वं मम देवदेव॥
गीता सेवा ट्रस्ट

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प्रस्तावना

अनुवाद (हिन्दी)

संवत् १६६४ विक्रमाब्दके लगभग गोस्वामी तुलसीदासजीकी बाहुओंमें वात-व्याधिकी गहरी पीड़ा उत्पन्न हुई थी और फोड़े-फुंसियोंके कारण सारा शरीर वेदनाका स्थान-सा बन गया था। औषध, यन्त्र, मन्त्र, त्रोटक आदि अनेक उपाय किये गये, किन्तु घटनेके बदले रोग दिनोंदिन बढ़ता ही जाता था। असहनीय कष्टोंसे हताश होकर अन्तमें उसकी निवृत्तिके लिये गोस्वामी तुलसीदासजीने हनुमान् जी की वन्दना आरम्भ की। अंजनीकुमारकी कृपासे उनकी सारी व्यथा नष्ट हो गयी। यह वही ४४ पद्योंका ‘हनुमानबाहुक’ नामक प्रसिद्ध स्तोत्र है। असंख्य हरिभक्त श्रीहनुमान् जी के उपासक निरन्तर इसका पाठ करते हैं और अपने वांछित मनोरथको प्राप्त करके प्रसन्न होते हैं। संकटके समय इस सद्यःफलदायक स्तोत्रका श्रद्धा-विश्वासपूर्वक पाठ करना रामभक्तोंके लिये परमानन्ददायक सिद्ध हुआ है।
सज्जनोंका कृपाकांक्षी
महावीरप्रसाद मालवीय वैद्य ‘वीर’
मिति चैत्र शुक्ल १, सोमवार, संवत् १९९० विक्रमीय।

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीजानकीवल्लभो विजयते

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श्रीमद्गोस्वामितुलसीदासकृत

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हनुमानबाहुक