१४ पंथी-वचन देवकीके प्रति

राग आसावरी

विषय (हिन्दी)

(८४)

विश्वास-प्रस्तुतिः

हौं यहाँ गोकुल ही तैं आई।
देवकि माइ पाँइ लागति हौं, जसुमति मोहि पठाई॥
तुम सौं महर जुहार कह्यौ है, पालागन नँद-नारी।
मेरे हूतौ राम-कृष्न कौं भैंट्यौ भरि अँकवारी॥
औरौ इक संदेस कह्यौ है, कहौ तौ तुम्हैं सुनाऊँ।
बारक बहुरि तुम्हारे सुत कौ, कैसैंहु दरसन पाऊँ॥
तुम्ह जननी जग-बिदित सूर प्रभु, हम हरि की हैं धाइ।
कृपा करौ पठवौ इहि नातें, जीवैं दरसन पाइ॥

मूल

हौं यहाँ गोकुल ही तैं आई।
देवकि माइ पाँइ लागति हौं, जसुमति मोहि पठाई॥
तुम सौं महर जुहार कह्यौ है, पालागन नँद-नारी।
मेरे हूतौ राम-कृष्न कौं भैंट्यौ भरि अँकवारी॥
औरौ इक संदेस कह्यौ है, कहौ तौ तुम्हैं सुनाऊँ।
बारक बहुरि तुम्हारे सुत कौ, कैसैंहु दरसन पाऊँ॥
तुम्ह जननी जग-बिदित सूर प्रभु, हम हरि की हैं धाइ।
कृपा करौ पठवौ इहि नातें, जीवैं दरसन पाइ॥

अनुवाद (हिन्दी)

(पथिक—नारी कह रही है—) मैं यहाँ गोकुलसे ही आयी हूँ। माता देवकी! मैं आपके चरण स्पर्श करती हूँ, मुझे यशोदाजीने भेजा है। आपसे श्रीव्रजराजने प्रणाम और नन्दपत्नीने चरण स्पर्श कहा है (और उन्होंने कहा है कि आप) मेरी ओरसे बलराम तथा श्रीकृष्णको भुजाओंमें भर तथा हृदयसे लगाकर मिलना। (उन्होंने) और भी एक संदेश कहा है, यदि आप आज्ञा दें तो आपको सुनाऊँ—(वह यह कि) ‘किसी प्रकार आपके पुत्रका हम एक बार फिर दर्शन पा जायँ। यह तो संसारमें विख्यात है कि आप श्यामसुन्दरकी माता और मैं श्यामसुन्दरकी धाय हूँ; अतः कृपा करके इसी सम्बन्धसे उन्हें (एक बार यहाँ) भेज दीजिये, जिससे (हम) उनका दर्शन पाकर जीवित रहें।’

राग सारंग

विषय (हिन्दी)

(८५)

विश्वास-प्रस्तुतिः

जौ पै राखति हौ पहिचानि।
तौ अब कैं वह मोहनि मूरति, मोहि दिखावौ आनि॥
तुम्ह रानी बसुदेव-गेहिनी, हम अहीर ब्रजबासी।
पठै देहु मेरे लाल लड़ैतैं, वारौं ऐसी हाँसी॥
भली करी कंसादिक मारे, सब सुर-काज किए।
अब इन्हि गैयन कौन चरावै, भरि-भरि लेति हिए॥
खान-पान, परिधान, राज-सुख, जो कोउ कोटि लड़ावै।
तदपि सूर मेरौ बाल कन्हैया, माखनहीं सचु पावै॥

मूल

जौ पै राखति हौ पहिचानि।
तौ अब कैं वह मोहनि मूरति, मोहि दिखावौ आनि॥
तुम्ह रानी बसुदेव-गेहिनी, हम अहीर ब्रजबासी।
पठै देहु मेरे लाल लड़ैतैं, वारौं ऐसी हाँसी॥
भली करी कंसादिक मारे, सब सुर-काज किए।
अब इन्हि गैयन कौन चरावै, भरि-भरि लेति हिए॥
खान-पान, परिधान, राज-सुख, जो कोउ कोटि लड़ावै।
तदपि सूर मेरौ बाल कन्हैया, माखनहीं सचु पावै॥

अनुवाद (हिन्दी)

(सूरदासजीके शब्दोंमें श्रीयशोदाजीका संदेश पथिक-नारी फिर कहती है—देवकी रानी!) यदि आप (पूर्वकी) पहचान (सम्बन्ध-परिचय) मानती हैं तो वह (श्यामसुन्दरकी) मोहिनी मूर्ति अबकी बार आकर मुझे दिखा जायँ। आप श्रीवसुदेवजीके घरकी रानी हैं और हम व्रजवासी अहीर, मेरे दुलारे लालको (अब) यहाँ भेज दीजिये। यह परिहास (जो आप मोहनको अपना पुत्र कहा करती हैं) ठीक नहीं। उसने अच्छा किया कि कंस आदि (राक्षसों)-को मार देवताओंका सब काम कर दिया; किंतु अब इन गायोंको कौन चरायेगा? इनका हृदय तुम्हारे लिये बार-बार भर आता है। भोजनकी, पीनेकी और वस्त्रादि पहननेकी सामग्रीके साथ राज्यके दूसरे सुखोंसे (उसे) कोई करोड़ों प्रकारसे (ही क्यों न) दुलराये, परंतु मेरा नन्हा-सा कन्हैया (तो) मक्खनसे ही आनन्दित होता है।

राग सोरठ

विषय (हिन्दी)

(८६)

विश्वास-प्रस्तुतिः

मेरे कुँवर कान्ह बिन सब कुछ वैसहिं धरॺौ रहै।
को उठि प्रात होत लै माखन, को कर नेति गहै॥
सूने भवन जसोदा सुत के, गुन गुनि सूल सहै।
दिन उठि घर घेरत ही ग्वारिन, उरहन कोउ न कहै॥
जो ब्रज में आनंद हुतौ, मुनि मनसाहू न गहै।
सूरदास-स्वामी बिन गोकुल, कौड़ी हू न लहै॥

मूल

मेरे कुँवर कान्ह बिन सब कुछ वैसहिं धरॺौ रहै।
को उठि प्रात होत लै माखन, को कर नेति गहै॥
सूने भवन जसोदा सुत के, गुन गुनि सूल सहै।
दिन उठि घर घेरत ही ग्वारिन, उरहन कोउ न कहै॥
जो ब्रज में आनंद हुतौ, मुनि मनसाहू न गहै।
सूरदास-स्वामी बिन गोकुल, कौड़ी हू न लहै॥

अनुवाद (हिन्दी)

सूरदासजीके शब्दोमें फिर पथिक-नारी श्रीयशोदाजीका सँदेसा कहती हैं—‘मेरे कुँवर कन्हैयाके बिना सब कुछ वैसे ही धरा रखा है (किसी वस्तुको कोई काममें ही नहीं लाया)। अब सबेरे ही उठकर कौन मक्खन ले और कौन हाथसे मथानीकी रस्सी पकड़े?’ इस प्रकार यशोदाजी अपने सुनसान भवनमें पुत्रके गुण सोच-सोचकर दुःख सहती हैं। (और सोचती हैं—पहले तो) प्रत्येक दिन सबेरे उठते ही गोपियाँ मुझे (उलाहना देनेको) घेर लेती थीं, पर अब कोई उलाहना नहीं देती। (उस समय) व्रजमें जो आनन्द था, वह मुनियोंके मनकी पकड़ (ध्यान)-में भी नहीं आता था; किंतु अब अपने स्वामीके बिना गोकुल अपने मूल्यमें एक कौड़ी भी नहीं पाता (वह कौड़ी मूल्यका भी नहीं रहा)।