राग अड़ानौ
विषय (हिन्दी)
(६२)
विश्वास-प्रस्तुतिः
कह ल्यायौ, तजि प्रानजिवन-धन।
राम-कृष्न कहि मुरछि परी धर, जसुदा देखत ही पुर लोगन॥
बिद्यमान हरि बचन स्रवन सुनि, कैसैं गए न प्रान छूटि तन।
सुनी न कथा राम-दसरथ की, अहो न लाज भई तेरे मन॥
मंद-हीनमति भयौ नंद अति, होत कहा पछिताने छन-छन।
सूर नंद फिरि जाहु मधुपुरी, ल्यावहु सुत, करि कोटि जतनघन॥
मूल
कह ल्यायौ, तजि प्रानजिवन-धन।
राम-कृष्न कहि मुरछि परी धर, जसुदा देखत ही पुर लोगन॥
बिद्यमान हरि बचन स्रवन सुनि, कैसैं गए न प्रान छूटि तन।
सुनी न कथा राम-दसरथ की, अहो न लाज भई तेरे मन॥
मंद-हीनमति भयौ नंद अति, होत कहा पछिताने छन-छन।
सूर नंद फिरि जाहु मधुपुरी, ल्यावहु सुत, करि कोटि जतनघन॥
अनुवाद (हिन्दी)
(सूरदासजीके शब्दोंमें माता कह रही हैं—व्रजराय!) मेरे प्राणोंके जीवनधनको (मथुरा) छोड़कर (वहाँसे आप) क्या लेकर आये? (यह कहती हुई) बलराम और श्रीकृष्णका नाम ले-लेकर व्रजके लोगोंके देखते-देखते यशोदाजी मूर्छित होकर पृथ्वीपर गिर पड़ीं। (फिर कुछ चेतना लौटनेपर बोलीं—) श्यामसुन्दरके सामने रहते, (उनके न लौटनेकी) बात सुनकर (आपकी) शरीरसे प्राण कैसे न छूटे! क्या आपने श्रीराम (-के वियोगमें दशरथ महाराजके प्राण त्यागने)-की कथा नहीं सुनी? अहो! आपके मनमें (लौटते हुए) लज्जा (भी) नहीं आयी। नन्दराय! आप (उस समय) विचारहीन और मन्दबुद्धि हो गये? अब क्षण-क्षणपर पश्चात्ताप करनेसे क्या होता है? व्रजराज! (तुम) फिर मथुरा जाओ और करोड़ों ठोस प्रयत्न करके मेरे (आनन्दघन) पुत्रोंको ले आओ।