०२ विरह-पदावलीके पदोंकी अकारादिसूची

अनुवाद (हिन्दी)

पद-संख्या, पद
१४५- अँखियाँ करति हैं अति
१४१- अति रस-लंपट मेरे नैन
००७- अनल तैं बिरह-अगिनि
१०३- अब कछु औरहि चाल चली
०८३- अब कैं लाल, होहु फिरि
०९५- अब तौ ऐसेई दिन मेरे
००५- अब देखि लै री, स्याम कौ
३१६- अब निज नैन अनाथ
२०३- अब बरषा कौ आगम
२३०- अब ब्रज नाहिंन नंद
२४४- अब मेरी को बोलै साखि
२२०- अब मेरे नैननहीं
३३१- अब मोहि निसि देखत
२५०- अब यह बरषौ बीति गई
२६९- अब या तनहि राखि का
११९- अब यौं ही लागे दिन जान
०६५- अब वह सुरति होत कित
१०५- अब वे मधुपुरी हैं माधौ!
०३८- अब वे बातैं हीं ह्याँ रहीं
१०४- अब वे बातैं उलटि गईं
१६८- अब, सखि, नींदौ तौ जु
०६७- अब हम निपटहिं भईं
२६८- अब हरि कौन सौं रति
२७५- अब हरि निपटहिं निठुर
१०६- अब हौं कहा करौं री माई!
१६२- अब ह्याँ हेत है कहाँ
२२४- आज घन स्याम की
२१९- आज बन बोलन लागे
२३५- आज बन मोरन गायौ
०४०- आज रैनि नहिं नीद परी
३२०- आयौ नहिं, माई! कोइ
१५८- आली, देखत रहे नैन
१६१- इतनी दूरि गोपालहि माई
११०- इतने जतन काहे कौं किए
१०७- इहिं बिरियाँ बन तैं ब्रज
३२३- उघरि आयौ परदेसी कौ
३१७- उती दूर तैं को आवै री
३०८- उन्ह कौं ब्रज बसिबौ नहिं
२८१- उन्ह ब्रजदेव नैकु चित
०५३- उलटि पग कैसैं दीन्हौ नंद
२८७- एक द्यौस कुंजनि में माई
०९४- एकहिं बेर दई सब ठेरी
२२८- ऐसे बादर ता दिन आए,
२९०- ऐसे समय जो हरि जू
०९३- ऐसे हम नहिं जाने स्यामहि
१२०- एसौ कोउ नाहिंनै सजनी
२१८- ऐसी जो पावस रितु प्रथम
२७२- ऐसौ सुनियत है द्वै माह
२७३- ऐसौ सुनियत है द्वै सावन
१२२- कब देखौं इहिं भाँति
१८५- कमल-नैन अपनै गुन
०११- (मेरे) कमलनैन प्राननि
३०५- कर कपोल, भुज धरि
०९०- करि गए थोरे दिन की प्रीति
३०७- करिहौ, मोहन! कहूँ
०६२- कह ल्यायौ, तजि प्रान
१००- कहा परदेसी कौ पतियारौ
१०१- कहा परदेसी कौ पतियारौ
१२५- कहाँ लौं मानौं अपनी चूक
१५२- कहा इन्ह नैननि कौ
१२६- कहा दिन ऐसैं ही चलि
०६०- कहाँ रह्यौ मेरौ मन-मोहन
०४५- कहा हौं ऐसैं ही मरि जैहौं
०७८- कहियौ, स्याम सौं समुझाइ
०६३- कहौ नंद, कहाँ छाँड़े कुमार
२८३- कहौ री! जो कहिबे की
०३६- कान्ह धौं हम सौं कहा
२७४- काहे कौं पिय-पियहि
१३२- काहें पीठि दई हरि!
२९३- किते दिन हरि-दरसन
२१४- किधौं घन गरजत नहिं
०१७- (गुपाल राई) किहिं अवलंबन रहिहैं प्रान
०३३- केतिक दूरि गयौ रथ, माई?
२२५- कैसैं कैं भरिहैं री दिन
२३८- कोउ, माई! बरजै री
२६६- कोउ, माई! बरजै री या
२४८- कोकिल! हरि कौ बोल
२२३- गगन सघन गरजत भयौ
०४६- गुपालराई, हौं न चरन
१२९- गोपालहि पावौं धौं किहिं
०२८- गोपालहि राखहु मधुबन
२९९- गोबिंद अजहूँ नहिं आए
२५२- गोबिंद बिनु कौन हरै
२१५- घटा! मधुबन पै बरषै
२२७- घन गरजत माधौ बिन
०८७- चलत गुपाल के सब चले
०४- चलत जानि चितवतिं ब्रज
१८१- चलत न माधौ की गही
०२३- चलत हरि, धिक जु रहत
०३१- चलतहुँ फेरि न चितए
०२२- चलन कौं कहियत हैं हरि
००३- चलन, चलन स्याम कहत
०४९- चले नंद ब्रज कौं समुहाइ
२४३- चातक न होइ, कोउ
१५३- चितवत हि मधुबन दिन
०६८- चूक परी हरि की सेवकाईं
२५८- छूटि गई ससि-सीतलताई
०७२- जद्यपि मन समुझावत
०७९- जद्यपि मन समुझावत
१९५- जनि कोउ काहू कें बस
१५९- जब तैं बिछुरै कुंज-बिहारी
०५७- जसुदा कान्ह कान्ह कै
०१९- जसुमति अतिहीं भई
०१६- जसोदा बार-बार यौं भाखै
२७१- जियहिं क्यौं कमलिनि
२२९- जो पै नंद-सुवन ब्रज होते
१६५- जौ जागौं तौ कोऊ नाहीं
२४७- जौ तू नैंकहूँ उड़ि जाहि
२९५- जौ पै कोउ माधौ सौं कहै
०८५- जौ पै राखति हौ
३२२- जौ पै लै जाइ कोउ मोहि
११६- जौ सखि नाहिनै ब्रज
२८०- तउ गुपाल गोकुल के
१९३- तब काहे कौं भए
०६१- तब तू मारिबोई करति
१३९- तब तैं नैन अनाथ भए
३०९- तब तैं बहुरि न कोऊ
०६४- तब तैं मिटे सब आनंद
०३७- तब न बिचारी ही यह बात
३२१- तातैं अति मरियत अप
१७५- तिरिया रैन घटें सचु
३०१- तुम्हरी प्रीति, हरि! पूरब
३११- तुम्हरे देस कागद-मसि
२१७- तुम्हारौ गोकुल, हो
१०९- ते गुन बिसरत नाहीं उर तैं
३२६- दधि-सुत! जात हौ उहिं
१९६- दिन-ही-दिन को सहै
२६४- दूरि करहि बीना कर
१५७- देखि-देखि मधुबन की
०९७- दिखियत कालिंदी अति
२०७- देखियत चहुँ दिसि तैं
१५५- देखि सखी, उत है वह
२१६- देखौ, माई! स्याम-सुरति
०९२- देखौ, माधौ की मित्राइ
०५४- दोउ ढोटा गोकुल-नाइक
०१५- नहिं कोहु स्यामहि
०९६- नाथ, अनाथन की सुधि
२८९- नाहिंनैं अब ब्रज नंद
१३८- निसि-दिन बरषत नैन
१४०- नैनन नाध्यौ है झर
१७७- नैन सलोने स्याम, बहुरि
१५०- नैना अब लागे पछतान
१४८- (मेरे) नैना बिरह की बेलि
३१५- नैना भए अनाथ हमारे
१३७- नैना सावन-भादौं जीते
०५५- नंद, कहौ हो कहँ छाँड़े
०७४- नंद, ब्रज लीजै ठोक-बजाइ
०५८- नंद, हरि तुम्ह सौं कहा
०५१- नंदहि आवत देखि
०४८- नंदहि कहत हरि ब्रज जाहु
३१२- पथिक कह्यौ ब्रज जाइ,
०९८- परेखौ कौन बोल कौ कीजै
०३५- पाछैं ही चितवत मेरे
१७४- पिय बिनु नागिन कारी
०७७- पंथी, इतनी कहियौ बात
१३४- प्रीतम बिनु ब्याकुल अति
१८८- प्रीति करि काहू सुख न
०९१- प्रीति करि दीन्ही गरें छुरी
१९०- प्रीति तो मरिबौई न
१९१- प्रीति बटाऊ सौं कित
१३०- फिरि ब्रज आइऐ गोपाल
१३१- फिरि ब्रज बसहु गोकुल
२१०- बदरिया बधन बिरहिनी
२२६- बरषा रितु आई,
२१२- बरु ए बदरा बरषन आए
२४५- बहुत दिन जीवौ, पपिहा
०१०- बहुत दुख पैयत है इहिं
१९९- बहुरि न कबहूँ, सखी!
२४०- बहुरि पपीहा बोल्यौ माई
२३३- बहुरि बन बोलन लागे
२१३- बहुरि हरि आवहिंगे किहि
१७९- बहुरौ गोपाल मिलैं
१२१- बहुरौ देखिबौ इहिं भाँति
१६७- बहुरौ भूलि न आँखि
३१०- बहुरौ हो ब्रज बात न
०८९- बातन सब कोउ जिय
१३५- बारक जाइयौ मिलि
०५०- बार-बार मग जोवति माता
११८- बिचारत ही लागे दिन जान
०३२- बिछुरत श्रीब्रजराज आज
१९२- बिछुरन जनि काहू सौं
२८४- बिछुरे री! मेरे बाल
११२- बिछुरें स्याम, बहुत दुख
१९७- बिथा, माई! कौन सों
२६५- बिधु बैरी सिर पै बसै;
०२५- बिनु परबै उपराग आज
३०४- बिनु माधौ राधा-तन,
२४६- (हौं तो मोहन के) बिरह
२९४- बिरह भरॺौ घर-आँगन
३२७- बीर बटाऊ, पाती लीजो
१९८- बोलि, सखी! चातक,
००२- ब्याकुल भए ब्रज के लोग
२९१- ब्रज कहा खोरी
०७३- ब्रज तजि गए माधौ
२०१- ब्रज तैं पावस पै न टरी
२०६- ब्रज पै बदरा आए गाजन
३३०- ब्रज पै बहुरौ लागे गाजन
३२९- ब्रज पै मँडर करत है
२०८- ब्रज पै सजि पावस दल
१४९- ब्रज बसि काके बोल
०१२- ब्रजबासिनि के सरबस
२००- ब्रज में दोउ बिधि हानि
१२४- ब्रज में वै उनहार नहीं
०६६- ब्रज री, मनौ अनाथ
१८७- मति कोउ प्रीति कें फंग
१५४- मथुरा के द्रुम देखियत
११५- मधुबन तुम्ह क्यौं रहत
१८२- मन की मन ही माँझ रही
१८४- मन की मन ही में नहिं
१९४- मरियत देखिबे की हौं
१४४- महा दुखित दोउ मेरे नैन
२५७- माई, बहुरि न बाजी बेन
२६७- माई, मोकौं चंद लग्यौ
३२४- माई री! कैसै बनै हरि कौ
२०५- माई री, ये मेघ गाजैं
०७५- माई, हौं किन संग गई
३३२- माधौ! या लगि है जग
२७८- माधौ, दरसन की
३१९- मानौ बिधि अब उलटि
२३१- मानौ, माई! सबनि यहै है
१११- मिलि बिछुरन की बेदन
२५५- मुरली कौन बजावै आज
०३९- मेरी बज्र की छाती किन
०८२- मेरे कान्ह, कमल-दल
०८६- मेरे कुँवर कान्ह बिन सब
०५९- मेरौ अति प्यारौ नँद-नंद
०८०- मेरौ कहा करत ह्वै है
१८३- मेरौ मन वैसिऐ सुरति
०१४- मेरौ माई निधनी कौ धन
१६४- मैं जान्यौ री आए हैं हरि
२५४- मैं सब लिखि सोभा
१७६- मोकौं, माई, जमुना जम ह्वै
२३४- (इहिं बन) मोर नहीं ये
०१८- मोहन! इतौ मोह चित धरिऐ
१०८- मोहन जा दिन बनहि न
०४७- (मेरे) मोहन तुमहिं बिना
०२९- मोहन नैकु बदन तन हेरौ
११३- यह कुमया जौ तबहीं
१२३- यह जिय हौंसै पै जु रही
२९८- यह दुख कौन सौं कहौं
०५६- यह मति नंद तोहि क्यौं
२५९- यह ससि, सीतल काहें
२०- यह सुनि गिरी धरनि झुकि
२६२- या बिनु होत कहा ह्याँ
२०२- ये दिन रूसिबे के नाहीं
२३९- रहु, रहु, रे, बिहँग
०३०- रहीं जहाँ सो तहाँ सब
०४४- री मोहि भवन भयानक
०७०- लै आवहु गोकुल
०८८- लोग सब कहत सयानी
१४७- लोचन चातक ज्यौं हैं
१४३- लोचन ब्याकुल दोऊ दीन
१४६- लोचन लालच तैं न टरैं
१५६- लिखि नहिं पठवत हैं, द्वै
२७७- वहु दिन ऐसौइ हौ री
१७८- वे नहिं आए प्रान-पियारे
३०२- (माई) वै दिन इहिं देह
२६०- सखि! कर धनु लै चंदहि
२३२- सखि, कोउ नई बात
२७९- सखि री, बिरह यह
१३६- सखी, इन नैननि तैं घन
१६९- सखी री, काहे रहति
२४२- सखी री, चातक मोहि
१२८- सखी री, दिखरावहु
२०९- सखी री, पावस-सैन
२२१- सखी री, बूँद अचानक
०३४- सखी री, वह देखौ रथ
१८०- सखी री, हरि आवहिं
१०२- सखी री, हरिहि दोष जनि
०१३- सखी री, हौ गोपालहिं
२०४- सँदेसनि मधुबन-कूप
०८१- सँदेसौ देवकी सौं कहियौ
१६३- सपनें हरि आए, हौं
१६०- सपनेहू में देखिऐ, जौ नैन
०२७- सब ब्रज की सोभा स्याम
००६- सब मुरझानीं री, चलिबे की
२५३- सबै रितु औरै लागति
३०६- सबै सुख लै जु गए
२५१- सरद-समैं हू स्याम न
०७१- सराहौं तेरौ नंद! हियौ
२४१- सारँग! स्यामहि सुरति
२२२- सावन (माई), स्याम
२३६- सिखिनि सिखर चढ़ि टेर
२६३- सिंधु-मथत काहें बिधु
०४३- सुंदर बदन सुख-सदन
१७२- सुनौ सखी, ते धन्य नारि
३२५- सुनियत कहुँ द्वारिका
०९९- सुनियत मुरली देखि
२४९- सुनि री सखी! समुझि
०२१- सुने हैं स्याम मधुपुरी जात
००१- सुन्यौ ब्रज-लोग कहत यह
२९६- सुरति करि ह्वाँ की रोइ
००८- स्याम गऐं सखि प्रान रहैंगे?
०२४- स्याम चलन चहत कह्यौ
२११- स्याम बिना उनए ये बदरा
३२८- स्याम बिनु भई सरद
२८२- स्याम बिनोदी रे मधु
०५२- स्याम-राम मथुरा तजि
१२७- स्याम सिधारे कौने देस
१७३- हम कौं जागत रैनि
१७०- हम कौं सपनेहू मैं सोच
३१४- हम तैं कमल-नैन भए
३३३- हम तौ इतनें ही सचु पायौ
२७०- हमहि कहा, सखि, तन के
२३७- हमारे, माई! मुरवा बैर
३१३- हमारे हरि चलन कहत हैं
२८६- हमारे हिरदैं कुलिसहु
३००- हम सरघा ब्रजनाथ
२६१- हर कौ तिलक हरि बिनु
२९७- हरि! कहँ इते दिन लाए
०६९- हरि की एकौ बात न जानी
०२६- हरि की प्रीति उर माहिं
३०३- हरि कौ मारग दिन प्रति
१८६- हरि जु हम सौं करी,
१४२- हरि-दरसन कौं तरसति
११७- हरि न मिले माइ, जनम
२८५- हरि! परदेस बहुत दिन
०४२- हरि बिछुरत प्रान निलज्ज
०४१- हरि बिछुरत फाट्यौ न हियौ
१६६- हरि-बिछुरन निसि नींद
२९२- हरि बिन कौन सौं कहिऐ
१७१- हरि बिन बैरिन नींद बढ़ी
२५६- हरि बिनु मुरली कौन
००९- हरि मोसौं गौन की कथा
१३३- हरि-से पीतम क्यौं बिसराहिं
११४- हरि हम तब काहे कौं
१८९- हेली, हिलग की पहिचानि
१५१- हौं तो ता दिन कजरा
०८४- हौं यहाँ गोकुल ही तैं आई
२७६- हौं कछु बोलति नाहीं
३१८- हौं कैसें कै दरसन पाऊँ
२८८- हौं जानौं, माधौ हित
०७६- हौं तौ माई, मथुरा ही पै