+राम-चरितावली

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॥ श्रीहरिः॥
श्रीसूरदासजीरचित
सूर-रामचरितावली
सरल भावार्थसहित
त्वमेव माता च पिता त्वमेव
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव
त्वमेव सर्वं मम देवदेव॥
अनुवादक—सुदर्शन सिंह
गीता सेवा ट्रस्ट

नम्र निवेदन

अनुवाद (हिन्दी)

जो भगवान् के कृपाप्राप्त जन हैं, उनमें न संकीर्णता सम्भव है, न भेददृष्टि। भक्तश्रेष्ठ सूरदासजीके आराध्य यद्यपि नन्दनन्दन श्रीकृष्णचन्द्र ही हैं; किंतु भगवान् श्रीराम और श्रीकृष्णमें सूरदासजीकी तो अभेद-बुद्धि है। सूरदासजीने पूरे श्रीमद्भागवतके चरितोंका अपने पदोंमें गान किया है। यह बात ठीक है, परंतु अत्यन्त संक्षिप्तरूपसे। कहीं-कहीं तो पूरे स्कन्धकी बात एक-दो पदोंमें ही कह दी है। श्रीमद्भागवतके नवम स्कन्धमें श्रीरामचरित केवल दो अध्यायोंमें है; किंतु सूरदासजीने अपने ढंगसे पूरे श्रीरामचरितका पदोंमें वर्णन किया है और उनका यह वर्णन कितना भावपूर्ण, मौलिक एवं रसमय है तथा कितनी सुन्दर रचना है, यह तो आप स्वयं इस पुस्तकको पढ़कर ही अनुभव कर सकेंगे। ‘सूर’ के इन पदोंमें कई स्थानोंपर तो अत्यन्त मार्मिक भावोंकी उद्भावना है।
सूरदासजीके रामचरित-सम्बन्धी जितने पद उपलब्ध हो सके हैं, वे सब इस संग्रहमें दिये गये हैं। अपनी जानमें कोई पद छोड़ा नहीं गया है। उपलब्ध सूरसागरकी प्रतियोंके अतिरिक्त ‘विद्या-मन्दिर’ काँकरोलीकी श्रीशोभारामजीकी हस्तलिखित प्रतिसे कुछ ऐसे पद मिले हैं जो उपलब्ध छपी प्रतियोंमें नहीं मिलते। विद्या-मन्दिरमें सूरसागरकी कई हस्तलिखित प्रतियाँ हैं, उनमें पण्डित शोभारामजीद्वारा लिखी प्रति सबसे प्राचीन है और उसीमें सबसे अधिक पद भी हैं। हमारी प्रार्थनापर ‘विद्या-मन्दिर’ के अध्यक्षजीने वह प्रति यहाँ भेज दी थी, इसके लिये हम उनके बहुत कृतज्ञ हैं। उस हस्तलिखित प्रतिमें कुछ पद ऐसे हैं जिनकी पंक्तियाँ पूरी नहीं हैं। उनमें स्थान-स्थानपर…….ऐसे चिह्न बने हैं। सम्भवतः उस प्रतिके लेखकने जिस प्रतिसे पद लिये हैं, उस मूल प्रतिमें वे अंश कीड़ोंके खाने या अन्य किसी कारणसे नष्ट हो गये थे। हमने वे अधूरे पद भी ज्यों-के-त्यों ले लिये हैं। अवश्य ही अनुवादमें उन लुप्त स्थानोंपर जिस भावके शब्द हो सकते थे, वह भाव () इस प्रकारके कोष्ठकमें दे दिया है, जिससे पदके अर्थकी शायद संगति मिल जाय।
सूरसागरके श्रीरामचरितके पद देकर अन्तमें सूर-सारावलीके श्रीरामचरितके पद भी दे दिये गये हैं। सूर-सारावलीमें कुछ पदोंमें ही पूरा श्रीरामचरित आ गया है। पुस्तकके अन्तमें पदोंमें आये हुए मुख्य कथा-प्रसंग भी दे दिये गये हैं।
आशा है, सूर-साहित्यके प्रेमियों तथा श्रीरामभक्तोंको सूरदासजीके श्रीरामचरितके पदोंका यह अनुवादयुक्त संग्रह प्रिय लगेगा और इसे पाकर वे प्रसन्न होंगे।