२ धर्मादि-निरूपणम्

अथ द्वितीयोऽध्यायः

विश्वास-प्रस्तुतिः

अथानुकूल्यमुख्यानि प्रपत्त्यङ्गानि विस्तरात्। धर्माणां तद्विरुद्धानां स्वरूपं च निबोधत॥१॥

टीका अपने आराध्य इष्ट देव की अनुकूलता के लिये मुख्यरूप या स्थिति धारण करने वाले प्रपत्ति के अङ्गों का उसकें धर्मों का तथा प्रपत्ति के विरुद्ध धर्मो का अब विस्तार से स्वरूप तथा विवरण बतलाता हूं जिसे ध्यान देकर सुनिये ॥ १॥

(इस द्वितीयाध्याय के आगे का विवरण देने वाला मूल भाग उपलब्ध नहीं हैं। ऐसा लगता है कि यह विच्छिन्न हो चुका है। )

मूलम्

अथानुकूल्यमुख्यानि प्रपत्त्यङ्गानि विस्तरात्। धर्माणां तद्विरुद्धानां स्वरूपं च निबोधत॥१॥

इति श्रीनारदपञ्चरात्रे भारद्वाजसंहितायां द्वितीयोऽध्यायः ||२|| (इति प्रपत्ति धर्मादिनिरूपणात्मकों द्वितीयोऽध्यायः ॥ २ ॥)