अस्य श्री द्वादशाक्षर महामन्त्रस्य.
श्री वासुदेवो भगवान् ऋषिः .
देवि गायत्री छन्दः . परमात्मा वासु देवोदेवता.
अम्बीजम् ,क्रोम् शक्तिः , श्वेतो वर्णः , बुद्धिःतत्वम्
परमव्योमक्षेत्रम्,भगवत्समाराधनार्थे जपेविनियोगः
कर न्यासः
| ओम् ओम् ओम् | ओम् तेम् ओं |
| ओम् नम् ओम् | ओम् वाम् ओं |
| ओम् मोम् ओम् | ओम् सुम् ओं |
| ओम् पम् ओम् | ओम् तेम् ओं |
| ओम् कम् ओम् | ओम् वाम् ओं |
| ओम् वम् ओम् | ओम् यम् ओम् |
दक्षिण कर तल मारभ्य वाम कर तल मारभ्य
कनिष्टान्तम् पर्वसुन्यसेत्.कनिष्टान्तम्पर्वसु न्यसेत्
देह न्यासः
ओम् सुम् ओम् अङ्गुष्टकनिष्टिकाभ्याम् नाभौ। .
ओम् तेम् ओम् अङ्गुष्ट तर्जनीभ्याम् गुह्ये.
ओम् वाम् ओम् अङ्कुष्टम् विना जान्वोः.
ओम् यम् ओम् सर्वाङ्गुलीभिः चरणयोः.
ओम् ओम् ओम् अङ्गुष्टेन शिरसः पूर्व भागे
ओम् नम् ओम् तर्जन्या शिरसः दक्षिणे.
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ओम् मोम् ओम् अनामिकया पस्चिमे.
ओम् भम् ओम् कनिष्टिकया उत्तरे.
ओम् गम् ओम् मध्यमया मूर्ध्नि मध्ये.
ओम् वम् ओम् अङ्गुष्ट अनामिकाभ्यां मुखे.
ओम् तेम् ओम् तर्जनी मध्यमाभ्याम् नेत्रयोः.
ओम् वाम् ओम् अङ्गुष्ट तर्जनीभ्याम् हृदये.
ओम् ओम् ओम् ज्ञानाय हृदयाय नमः.
ओम् नम् ओम् ऐश्वर्याय शिरसे स्वाहा.
ओम् मोम् ओम् शक्त्यै शिखायै वषट्.
ओम् भम् ओम् बलाय कवचाय हुम्.
ओम् गम् ओम् तेजसे नेत्राभ्याम् वौषट्.
ओम् वम् ओम् वीर्याय अस्त्राय फट्.
ओम् तेम् ओम् उदराय नमः
ओम् वाम् ओम् पृष्टाभ्याम् नमः
ओम् सुम् ओम् बाहुभ्याम् नमः
ओम् तेम् ओम् ऊरुभ्यां नमः
ओम् वाम् ओम् जानुभ्याम् नमः
ओम् यम् ओम् पादाभ्याम् नमः
ओम् किरीट मुद्रायै नमः शिरसि
ओम् श्रीवत्स मुद्रायै नमः दक्षिणोरसि
ओम् कौस्तुभ मुद्रायै नमः वामोरसि
ओम् वनमाल मुद्रायै नमः कण्ठे
ओम् चक्र मुद्रायै नमः ओम् पद्ममुद्रायै नमः दक्षिण भागे।
ओम् शङ्ख मुद्रायै नमः ओम् गदा मुद्रायै नमः वाम भागे.
ओम् अनन्त मुद्रायै नमः ओम् गरुड मुद्रायै नमः
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विष्वक्सेन मुद्रायै नमः पादाग्रे।
ध्यानम्
चतुर्बाहु मुदाराङ्गं सर्व लक्षण लक्षितम्.
शुद्ध
स्पटिक वर्णाभम् अयुतेन्दु समप्रभम्.
चारु हासम् सुताम्रोष्टम् कर्णान्तायत लोचनम्.
निर्द्धूत पद्म राकाभम् दन्तश्च विसुशोभितम्.
महोरस्कम् महाबाहुम् प्रसन्नेन्दुनिभाननम्.
सुभ्रू ललाटम् सुमुखम् घनकुञ्चित मूर्धजम्.
तटिच्चत सहस्राभम् पीत निर्मल वाससम्.
पाणिपात तलाम्बोजम् पुण्डरीकायतेक्षणम्.
श्रीवत्साङ्गम् किरीटादि सर्वाभरण भूषितम्.
पद्म चक्र गदा शङ्ख धारिणम् कौस्तुभोरसम्.
दिव्यगन्ध विलिप्ताङ्कम् दिव्य माला विभूषितम्.
शेषाहिभोगे विपुले सुखासीनम् चतुर्मुख.
श्री भूमि सहितम् देवम् ललाटे श्वेत मृत्स्नया.
कृतोर्ध्व पुण्ड्र तिलकम् मण्डितम् चण्ड भानुभिः।
नियुतै रयुतैश्चन्द्रैस्च विद्युत्कालाग्निकोटिभिः।
समवेतैरिवैकत्र तेजःपुञ्जैः विसर्पिभिः।
ब्राजमानन्दुरालोकम् देह मण्डल निर्गतैः।
भासयन्तम् जगत्सर्वम् ध्यायेत् प्रक्षीण कल्मषः।
सितम् कृष्णञ्च धूम्राभम् श्यामम् तारानिभं तथा। .
स्पटिकाभञ्च शङ्खाभम् रक्तम् शुक्लञ्च लोहितम्.।
तमो रूपम् पीतवर्णम् ध्यात्वा मन्त्रद्वयाक्षरम्.
इति ध्यात्वा.
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