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किञ्च, (भा० १०२६०१११) -
(२७७) “स्मरतः पादकमलमात्मानमपि यच्छति ।
कि न्वर्थकामान् भजतो नात्यभीष्टान् जगद्गुरुः ॥ ८५१ ॥
स्मरतः स्मरते, साक्षात् प्रादुर्भुय आत्मानं स्मर्तु वंशीकरोतीत्यर्थः । अर्थका मानि’त तस्मादेव बहुवचनं मोक्षमप्यन्तर्भावयति लिङ्गसमवाय- न्यायेन । यस्मादेवं तन्माहात्म्यम्, गारुड़ ऽपीदमुक्तम् -
“एकस्मिन्नप्यतिक्रान्ते मुहूर्त्ते ध्यानव जिते । दस्युभिर्मुषितेनैव युक्तमाक्रन्दितं भृशम् ॥ " ८५२ ॥ इति । श्रीदामविप्र भार्य्या तम् ॥
सम्प्रति रूप स्मरण का वर्णन करते हैं-भा० १२।१२।५५ में उक्त है-
(२७६) “अविस्मृतिः कृष्णपदारविन्दयोः क्षिणोत्यभद्राणि च शं तनोति ।
सत्त्वस्य शुद्धि परमात्मभक्त, ज्ञानञ्च विज्ञान- बिरागयुक्तम् । "
टीका- ततः किमतआह-अविस्मृतिरिति क्षिणोति - नाशयति ।
श्रीसूत - शौनक प्रभृति को कहे थे- श्रीकृष्ण पदारविन्द की स्मृति अर्थात् स्मरण – निखिल अमङ्गल को विनष्ट करता है । मङ्गल विस्तार करता है, चित्त शुद्ध करता है, एवं भगवच्चरणों में भक्ति प्रदान करता है । एवं विज्ञान विराग युक्त ज्ञान प्रदान करता है । यहाँ पर ज्ञातव्य यह है कि - प्रेम लक्षणा भक्ति लाभ ही भगवच्चरणारविन्द सेवा का मुख्य फल है-अपर–अमङ्गल नाश चित्त शुद्धि प्रभृति
श्रीसूत कहे थे ॥२७६॥ आनुषङ्गिक फल हैं।
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भा० १० ८०।११ में और भी लिखित है-
(२७७) “स्मरतः पादकमलमात्मानमपि यच्छति ।
किन्वर्थकामान् भजतो नात्यभीष्टान् जगद्गुरुः ॥ ८५१॥
श्रीदाम पत्नी श्रीदाम विप्र को कही थी- जगद् गुरु श्रीकृष्ण, निम चरण स्मरण कारी व्यक्ति के निकट आविर्भूत होकर आत्मदान करते हैं, अर्थात् वशीभूत होते हैं। आत्मदान शब्द से स्फूत्ति प्राप्त होते हैं, इस प्रकार अर्थ जानना होगा। मूल श्लोक में अर्थ कामान्- बहु वचन का प्रयोग है उससे जानना होगा । कि- अर्थ एवं काम्य वस्तु दान तो करते ही हैं, मुक्ति प्रदान भी करते हैं। इस प्रकार अर्थ लिङ्ग समवाय न्यायानुसरण से होता है। समान लिङ्ग द्वारा जहाँ अनुक्त समानलिङ्ग गृहीत होता है, वहाँ लिङ्ग समवाय न्याय का प्रयोग होता है । यहाँ अर्थ एवं काम शब्द— पुंलिङ्ग है । एवं मोक्ष शब्द भी पुंलिङ्ग है, अतः अर्थ एवं काम शब्द से मोक्ष भी गृहीत हुआ ।
नाम स्मरण का माहात्म्य इस प्रकार होने के कारण ही गरुड़ पुराण में कथित है-
“एकस्मिन्नप्यतिक्रान्ते मुहूर्त्ते ध्यानवजिते ।
दस्युभिर्मुषितेनेव युक्तमाक्रन्दितु ं भृशम् ॥’ ८५२॥
श्रीहरि ध्यान शून्य होकर एक मुहूर्त्तकाल भी गत होने से दस्यु गण कर्तृक महाधन हृत होने से लोक जिस प्रकार आर्त्तस्वर से कांदते हैं उस प्रकार ही कांदना चाहिये ।
श्रीदामविप्र की भार्या श्रीदाम विप्र को कही थी । २७७॥श्रीभक्तिसन्दभः
२७८ २७८ । अथ पूर्ववत् क्रमसोपान-रीत्या सुखलभ्यं गुण- परिकर - सेवा-लीला स्मरणश्चानु- [ ५५६ सन्धेयम् । तदिदं स्मरणं पञ्चविधम्, -य किञ्चिदनुसन्धानं स्मरणम्, सर्वतश्चित्तमाकृष्य सामान्याकारेण मनोधारणं धारणा, विशेषतो रूपादिचिन्तनं ध्यानम्, अमृतधारावदनवच्छिन्नं तद्धवानुस्मृतिः, ध्येय मात्र स्फुरणं समाधिरिति । तत्र स्मरणम्-
“येन केनाप्युपायेन स्मृती नारायणोऽव्ययः ।
अपि पातकयुक्तस्य प्रपन्नः स्यान्न संशयः ॥ ८५३॥” इति बृहन्नारदीयादी,
धारणा (भा० ११।१४।२७) -
“विषयात् ध्यायतश्चित्तं विषयेषु विषज्जते ।
मामनुस्मरतश्चित्तं मय्येव प्रविलीयते ॥“८५४॥ इत्यादौ,
“भगवच्चर द्वन्द्व-ध्यानं निर्द्वन्द्व मीरितम् । पापिनोऽपि प्रसङ्ग ेन विहितं सुहितं परम् ॥ " ८५५॥
ध्यानम्-
।