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सम्प्रति केवल स्वरूप सिद्धा भक्ति का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं । उस के मध्य में उपासक के सङ्कल्प
के अनुसार सकामा एवं कैवल्य कामा के धर्म रूप में उपचार होता है । अर्थात् केवल स्वरूप सिद्ध भक्ति सकामा वा कैवल्य कामा नहीं है । किन्तु उपासक के हृदय में अन्य कामना विद्यमान होने पर उस उपासक के हृदय में कामना होने के कारण, भक्ति सकामा होती है, एवं मोक्ष कामना होने पर स्वरूप सिद्धा भक्ति भी कैवल्य कामा नाम से अभिहिता होती है । अतएव सकामा भक्ति- तामसी एवं राजसी भेद से द्विविध हैं । उस के मध्य में तामसी भक्ति का लक्षण भगवान् कपिल देवने भा० ३।२६८ में निज जननी को कहा है-
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(२३१) “अभिसन्धाय यो हिसां दम्भं मात्सर्यमेव वा।
संरम्भी भिन्नदृग्भावं मयि कुर्य्यात् स तामसः ॥ ”६७५॥
अभिसन्धाय सङ्कल्प्य, संरम्भी सक्रोधः, भिन्नदृक् स्वस्मिशिव सर्व्वत्र यत् सुखं दुःखं च
तत्तदवेत्ता निरनुकम्प इत्यर्थः ॥
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