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तत्र श्रवणगुरुसंसर्गेणैव शास्त्रीयज्ञानोत्पत्तिः स्यान्नान्यथेत्याह (भा० ११।१०।१२)

(२०८) “आचार्य्योऽरणिराद्यः स्यादन्तेवास्युत्तरारणिः ।

॥”६२२॥

तत्सन्धानं प्रवचनं विद्या सन्धिः सुखावहः ॥ ६२२ ॥

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आद्योऽधरः, तत्सन्धानं तयोर्मध्यमं मन्थनकाष्ठस्, प्रवचनमुपदेशः, विद्या शास्त्रोक्तं ज्ञानन्तु सन्धौ भवोऽग्निरिव तथा च श्रुतिः ( तै० १।३।५) - “आचार्यः पूर्वरूपम्” इत्यादि, अतएव (मु० १।२।१२ ) - " तद्विज्ञानार्थं स गुरुमेवाभिगच्छेत्” इति, ( छा० ६।१४।२) “आचार्य्यवान् पुरुषो वेद” इति, (कठ० १२६) “नंषा तर्केण मतिरापनेया प्रोक्तान्येनैव सुज्ञानाय प्रेष्ठ” इति ॥ श्रीभगवान् ॥

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‘बोधः कलुषितस्तेन दौरात्म्यं प्रकटीकृतम् ।

गुरुर्येन परित्यक्तस्तेन त्यक्तः पुरा हरिः ॥ ६२० ॥

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जिस ने दौरात्म्य प्रकाश किया है, उस का बोध कलुषित हो गया है । जिस ने गुरु को परित्याग किया है, उसको श्रीहरि ने पहले ही परित्याग किया है । इस प्रमाणसे दीक्षा गुरु त्याग करना निषिद्ध है । श्रीगुरुचरण आश्रय करने के पश्चात् असन्तोष के कारण यदि अन्य गुरु करण होता है तो, सुतरां पूर्व गुरु त्याग ही हो जाता है । अपवाद वचन के द्वारा नारद पञ्चरात्र में इस विषय को समझाया गया है।

“अवैष्णवोपदिष्ट ेन मन्त्र ेण निरयं व्रजेत्

पुनश्च विधिना सम्यग् ग्राह्ये द्वेष्णवाद्गुरोः ॥” ६२१ ॥

प्रथम अवैष्णव गुरु के समीप से दीक्षा ग्रहण करने पर अनिवार्य्यं नरक गमन होता है, अतएब विधि पूर्वक पुनर्वार वैष्णव गुरु के निकट दीक्षित होना आवश्यक है ।

श्रीमदाविर्होत्र निमिमहाराज को कहे थे ॥ २०७॥

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श्रवण गुरु, शिक्षा गुरु, एवं दोक्षा गुरु के मध्य में श्रवण गुरु के सन्निधान से ही शास्त्रीय ज्ञान लाभ होता है । अपर किसी प्रकार से शास्त्रीय ज्ञान अर्थात् शास्त्र विहित साध्य साधन प्रयोजन तत्त्व का ज्ञान लाभ नहीं होता है । भगवान् उद्धव को । भा० ११।१०।१२ में कहे हैं-

(२०८) “आचार्योऽरणिराद्यः स्यादन्तेवास्युत्तरारणिः ।

तत्सन्धानं प्रवचनं विद्या सन्धिः सुखावहः ॥ ६२२ ॥

आचार्य - श्रवण गुरु, आद्य - निम्नस्थ काष्ठ, अन्तेवासी, -शिष्य- ऊपर का काष्ठ श्रीगुरु देव का उपदेश - मध्यम काष्ठ–अर्थात् मन्थन काष्ठ । उस से–शास्त्रीय ज्ञान, किन्तु “सन्धिभव अग्निस्थानीय है । श्रुति भी कहती है । “आचार्य्यः पूर्व रूपम् " अर्थात् आचार्य पूर्व काष्ठ हैं। अतएव श्रुति और भी कहती है- “तद्विज्ञानार्थं स गुरुमेवाभिगच्छेत्” पारमार्थिक तत्त्व वस्तु को जानने के निमित्त जिज्ञासु शिष्य गुरु चरण

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