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श्रीकापिलयोग में भी श्रीभगवान् कपिलदेव, निज जननी देवदूति को जो कहे थे—उस में भी श्रीभगवद् भक्ति का ही श्रेष्ठत्व प्रदर्शित हुआ है । (भा० ३।२५।१६)

(४६) " न युज्यमानया भक्तचा भगवत्यखिल त्मनि ।

सदृशोऽस्ति शिवः पन्था योगिनां ब्रह्मसिद्धये ॥" ६६॥

टीका - मनः शुद्धौ च भक्तिरेवान्तरङ्गसाधनमित्याह-नेति ।

हे जननि ! मनः शुद्धि विषय में भक्ति ही अन्तरङ्ग साधन है। अखिलात्मा भगवान् में प्रयोज्यमाना

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