पञ्चदश तरङ्ग
श्रीगौर ओ गौरपार्षदगणेर जय़गान
जय़ गौर, नित्यानन्दाद्वैत, गदाधर ॥
जय़ जय़ श्रीवास, मुरारि, वक्रेश्वर ॥१॥
जय़ श्रीमुकुन्द, गौरीदास, गदाधर ।
जय़ पुण्डरीक विद्यानिधि, शुक्लाम्बर ॥२॥
जय़ सूर्यदास, कृष्णदास, धनञ्जय़ ।
जय़ नरहरि, रघुनन्दन, विजय़ ॥३॥
जय़ वसु रामानन्दन गुणेर आलय़ ।
जय़ जगदीश, श्रीशङ्करानन्दमय़ ॥४॥
जय़ काशीमिश्र, काशीश्वर, कर्णपूर ।
जय़ जय़ चक्रवर्ती श्रीनाथ ठाकुर ॥५॥
जय़ श्रीसुन्दरानन्द, कुञ्ज भगवान् ।
जय़ मालिनीर प्राणनाथ अभिराम ॥६॥
जय़ रघुनाथ भट्ट, सनातन, रूप ।
जय़ श्रीभूगर्भ, लोकनाथ भक्तिभूप ॥७॥
जय़ श्रीगोपालभट्ट, दास रघुनाथ ।
जय़ जय़ श्रीजीव—ये जगते विख्यात ॥८॥
जय़ प्रेममय़ कविराज कृष्णदास ।
जय़ वृन्दावनदास गौरलीला-व्यास ॥९॥
नाम-प्रेमे मत्त सदा जय़ हरिदास ।
जाय़ कृपासिन्धु श्रीआचार्य श्रीनिवास ॥१०॥
जय़ जय़ नरोत्तम, जय़ रामचन्द्र ।
जय़ जय़ भक्तिरत्न-दाता श्यामानन्द ॥११॥
जय़ जय़ श्रोतागण गुणेर आलय़ ।
एबे ये कहिय़े शुन, हईय़ा सदय़ ॥१२॥
एकदिन श्रीआचार्य निजगण प्रति ।
श्यामानन्द चेष्टा कहे हैय़ा हर्ष अति ॥१३॥
हेनकाले श्रीश्यामानन्देर शिष्यद्वय़ ।
पत्री लैय़ा आइलेन आचार्य आलय़ ॥१४॥
श्रीश्रीश्यामानन्देर पत्री दिला आचार्येरे ।
पत्रीपाठे आचार्येर उल्लास अन्तरे ॥१५॥
श्रीश्यामानन्देर शिष्य अति स्नेह कैल ।
लिखिय़ा सꣳवादपत्री शीघ्र पाठाइल ॥१६॥
पत्रीपाठे श्यामानन्द आनन्दे विह्वल ।
श्यामानन्देर चारु चरित्र निर्मल ॥१७॥
पूर्वे श्यामानन्द-रीत सꣳक्षेपे कहिल ।
एबे किछु कहि यैछे जीव निस्तारिल ॥१८॥
श्रील श्यामानन्द प्रभुर चरित—श्रीरसिकानन्द मुरारिके कृपा—
पूर्वे व्रज हैते आसि श्रीगौड़मण्डले ।
अम्बिका हईय़ा शीघ्र चलिला उत्कले ॥१९॥
जन्मभूमि दण्डेश्वर-धारेन्दा-ग्रामेते ।
प्रकाशिय़ा प्रेमभक्ति चले रय़नीते ॥२०॥
मल्लभूमि-मध्येते रय़नी-नामे ग्राम ।
ग्राम पाशे नदी से सुवर्णरेखा नाम ॥२१॥
तथाय़ सुवर्णरेखा उत्तरवाहिनी ।
अखिल जीवेर महाकल्मषनाशिनी ॥२२॥
रय़नी-निकट वारय़ित-नामे ग्राम ।
निकट डोलङ्गनदी-तीर रम्य स्थान ॥२३॥
वाराय़िते राम दशरखेर नन्दन ।
रामेन्श्वर-नामे शिव करिल स्थापन ॥२४॥
रामचन्द्र जानकी लक्ष्मण-सह सुखे ।
किछुदिन छिला वनभ्रमण-कौतुके ॥२५॥
अच्युत-नामेते से देशेर अधिपति ।
प्रजापालनेते प्रीत, अति शुद्ध रीति ॥२६॥
रय़नीग्रामे पसिद्ध अच्युत-तनया ।
श्रीरसिकानन्द, श्रीमुरारि—नामद्वय़ ॥२७॥
‘रसिक-मुरारि’-नाम प्रसिद्ध लोकेते ।
सर्वशास्त्रे विचक्षण अल्पकाल हैते ॥२८॥
परमनिपुण मातापितार सेवाते ।
अति पातिव्रता माता भवानी-नामेते ॥२९॥
मुरारिर भार्या—इच्छादेइ गुणवती ।
घण्टाशिला-ग्रामे किछुदिन कैल स्थिति ॥३०॥
घण्टाशिला सुवर्णरेखार सन्निधाने ।
वनवासे पाण्डवेर विश्राम सेखाने ॥३१॥
एकदिन मुरारि निर्जने वसि तथा ।
चिन्तय़े अन्तरे—शिष्य हईबेन कोथा ॥३२॥
हईले आकाशवाणी—‘चिन्ता ना करिबे ।
एथाय़ श्रीश्यामानन्द-स्थाने शिष्य हबे’ ॥३३॥
इहा शुनि रसिक मुरारि हर्ष हैला ।
श्यामानन्द नाममन्त्र जपिते लागिला ॥३४॥
तिले तिले उत्कण्ठा बाढ़य़े अतिशय़ ।
प्रभु श्यामानन्द-नामे नेत्रे धारा वय़ ॥३५॥
मुरारि उद्वेगे प्राय़ रात्रि गोङाइल ।
निशान्त-समय़े किछु निद्रा आकर्षिल ॥३६॥
स्वप्ने श्यामानन्देवे देखय़े मुरारि ।
परम अद्भुत प्रति अङ्गेर माधुरी ॥३७॥
हासिÿआ श्रीश्यामानन्द कहे मुरारिरे ।
‘रजनी प्रभाते एथा पाइबा आमारे’ ॥३८॥
एत कहि अदर्शन हैला श्यामानन्द ।
रसिकानन्देर मने हैल महानन्द ॥३९॥
महाविज्ञ श्रीरसिक रजनी-विहाने ।
कारे किछु ना कहि चाहय़े पथपाने ॥४०॥
किछुदूरे श्यामानन्द आनन्दे आइसे ।
श्रीकिशोरदास आदि शिष्य चारिपाशे ॥४१॥
सूर्यसम तेज शोभामय़ कलेवर ।
सहास्य वदन, पीन वक्षः मनोहर ॥४२॥
श्रीकृष्णचैतन्य नित्यानन्द नाम लैय़ा ।
प्रेमाय़ विह्वल चले ढुलिय़ा ढुलिय़ा ॥४३॥
रसिक-मुरारि देखि प्रभु श्यामानन्दे ।
चरण-परशे भूमे पाड़ि महानन्दे ॥४४॥
श्यामानन्द मनेर आनन्दे करि कोले ।
रसिके करिला सिक्त निज-नेत्रजले ॥४५॥
श्रीरसिकानन्द धन्य मने आपनाय़ ।
नेत्र समर्पिल निज-प्रभुर शोभाय़ ॥४६॥
मुरारिरे श्यामानन्द अनुग्रह कैल ।
महानन्दे राधाकृष्ण-मन्त्रदीक्षा दिल ॥४७॥
श्रीरसिकानन्दे शिष्य करि हर्षमने ।
समर्पिल नित्यानन्द-चैतन्यचरणे ॥४८॥
रसिकमुरारि हैला प्रेमाय़ विह्वल ।
निरन्तर नय़ने झरय़े अश्रुजल ॥४९॥
रय़नी-ग्रामेते निज-प्रभु लैय़ा गेला ।
सꣳकीर्तनसुखेर समुद्रे मग्न हैला ॥५०॥
श्रीरसिकमुरारिरे यैछे गुरुभक्ति ।
एकमुखे ताहा कि कहिते मोर शक्ति ॥५१॥
मुरारिके परीक्षा करिला श्यामानन्द ।
देखि मुरारिर चेष्टा हैल महानन्द ॥५२॥
श्यामानन्द किछुदिन तथाय़ रहिय़ा ।
करिल अनेक शिष्य भक्ति प्रकाशिय़्̈आ ॥५३॥
रय़नी हईते श्यामानन्देर गमन ।
चतुर्दिके वेष्टित परम प्रिय़गण ॥५४॥
दामोदर-नामे एक योगाभ्यासी छिला ।
ताꣳरे कृपा करि भक्तिरसे डुबाइला ॥५५॥
श्रीश्यामानन्देर शिष्य हैय़ा दामोदर ।
‘निताइचैतन्य’ बलि काꣳदे निरन्तर ॥५६॥
से प्रेम-आवेश देखि केबा धैर्य धरे ? ।
‘सर्वश्रेष्ठ श्रीभक्ति’ बलिय़ा नृत्य करे ॥५७॥
श्यामानन्ददेव दामोदरे उद्धारिय़ा ।
सर्वत्र भ्रमय़े भकित्रत्न बिलाइय़ा ॥५८॥
बलरामपुरे श्यामानन्द दय़ामय़ ।
प्रकाशे ये प्रेमभक्ति—कहिल ना हय़ ॥५९॥
किशोर मुरारि दामोदरादि-सहिते ।
महामहोत्सव कैल धारेन्दा-ग्रामेते ॥६०॥
श्यामानन्दे देखि बहु ग्रामवासी लोक ।
आनन्दे विह्वल भुले महा-दुःख-शोक ॥६१॥
श्यामानन्द शिष्य करिलेन स्थाने स्थाने ।
केबा ना पवित्र हय़ ता सबार नामे ॥६२॥
राधानन्द, श्रीपुरुषोत्तम, मनोहर ।
चिन्तामणि, बलभद्र, श्रीजगदीश्वर ॥६३॥
उद्धव, अक्रूर, मधुवन, श्रीगोविन्द ।
जगन्नाथ, गदाधर, श्रीआनन्दानन्द ॥६४॥
श्रीराधामोहन आदि शिष्यगण-सङ्गे ।
सदा भासे सङ्कीर्तन सुखेर तरङ्गे ॥६५॥
श्रीश्यामानन्देर महा अद्भुत विलास ।
वर्णे कविगण याते सभार उल्लास ॥६६॥
गीते यथा—वेलाबली—
जय़ जय़ सुखमय़ श्यामानन्द ।
अविरत गौर-प्रेमरसे निमगण,
झलकत तनु नव पुलक-आनन्द ॥६७॥
श्यामर गौर-चरितचय़ विलपत
वदन सुमाधुरी हरय़े पराण ।
निरुपम पꣳहु-परिकर-गुण शुनईते
झर झर झरई सुकमलनय़ान ॥६८॥
उमड़ई हिय़ अनिवार चुय़त घन
स्वेदबिन्दु-सह तिलक उजोर ।
अपरूप नृत्य मधुरतर कीर्तने
तुलसीमाल उर चञ्चल थोर ॥६९॥
सुमधुर गीत धुनत अनुमोदने
भुज भङ्गिम कर तरल ललाम ।
पदतले ताल धरत कत भाꣳतिक
मरि मरि निछनि दास घनश्याम ॥७०॥
धारेन्दा-ग्रामेते श्यामानन्द गणसने ।
एकदिन महामत्त हैला सङ्कीर्तने ॥७१॥
बाजय़े मृदङ्ग करताल मनोहर ।
गाय़ गीति श्रीकिशोर—आदि परिकर ॥७२॥
प्रथमेइ गौर-नित्यानन्द-गुण-गाने ।
मातिल वैष्णवगण, धैर्य नाहि माने ॥७३॥
सकलेर नेत्रे अश्रुधारा निरन्तर ।
भूमेते लोटाय़ सबे धूलाय़ धूसर ॥७४॥
सङ्कीर्तने नाचय़े ठाकुर श्यामानन्द ।
से भङ्गि देखिते देवगणेर आनन्द ॥७५॥
पाषण्ड अन्नुरगण से नृत्य देखिय़ा ।
प्रेमाय़ विह्वल, काꣳदे भूमे लोटाइय़ा ॥७६॥
‘प्रभु श्यामानन्द उद्धारह एइबार’ ।
इहा बालि चरणे पड़य़े वार वार ॥७७॥
कृपादृष्ट्ये श्यामानन्द चाहि से सबारे ।
डुबाइला प्रेमभक्ति-रसेर साय़रे ॥७८॥
सहस्र सहस्र लोक करे धाओय़ा धाइ ।
सङ्कीर्तन सुखेर उपमा दिते नाइ ॥७९॥
श्यामानन्दगुणे केह धैरय ना धरे ।
ऐछे रङ्ग प्रकाशिला श्रीनृसिꣳहपुरे ।८०॥
श्रीरसिक मुरारि प्रभुर पाषण्डदलन-लीला—
श्रीगोपीब्वल्लभपुरे प्रेमवृष्टि कैला ।
श्रीगोविन्दसेवा श्रीरसिके समर्पिला ॥८१॥
रसिकानन्देर महाप्रभाव-प्रचार ।
कृपा करि कैल दस्यु पाषण्डी उद्धार ॥८२॥
भक्तिरत्न दिला कृपा करिय़ा यवने ।
ग्रामे ग्रामे भ्रमिलेन लैय़ा शिष्यगणे ॥८३॥
दुष्टेर प्रेरित हस्ती, तारे शिष्य कैल ।
तारे कृष्ण-वैष्णव-सेवाय़ निय़ोजिल ॥८४॥
से दुष्ट यवन-राजा प्रणत हईल ।
ना गणिला घर—कत जीव उद्धारिल ॥८५॥
श्रीरसिकानन्द सदा मत्त सङ्कीर्तने ।
केबा ना विह्वल हय़ ताꣳर गुणगाने ॥८६॥
गीते यथा—वेलाबली—
जय़ा जय़ रसिक सुरसिक मुरारि ।
करुणामय़ कलिकलुष-विभञ्जन
निरमल गुणगण जनमनोहारी ॥ ध्रु ॥८७॥
प्रवल प्रताप-पूज्य परमाद्भुत
भक्तिप्रकाशक सुखद सुधीर ।
डगमग प्रेम, हेमसम उज्ज्वल
झलकत अतिशय़ ललित शरीर ॥८८॥
श्यामानन्द-चरण चित-चिन्तन
अनुखन सङ्कीर्तनरस-पान ।
याकर सब रस गौरचन्द्र विनु
कि कहब—स्वपने ना जानय़े आन ॥८९॥
अपरूप कीर्ति लसत त्रिजगतमधि
कविवर काव्य विदित अनुपाम ।
निपट उदार चरित चारु, किछु
समुझि ना शकत पतित घनश्याम ॥९०॥
श्रीरसिकानन्देर चरित्र अन्त नाइ ।
प्रभु श्यामानन्द गुणे विह्वल सदाइ ॥९१॥
श्रीश्यामानन्देर गुणे केबा ना मोहित ।
विविध प्रकारे करि गाय़ से चरित ॥९२॥
श्रील श्यामानन्द प्रभुर चरित-गीति—
गीते यथा—कामोद—
ओ मोर पराणबन्धु ! श्यामानन्द सुखसिन्धु
सदाइ विह्वल गोरागुणे ।
गृह परिहरि दूरे आनन्दे अम्बिकापुरे
आइलेन प्रभुर भवने ॥९३॥
हृदय़चैतन्य देखि अझरे झरय़े आꣳखि
भूमिते पड़य़े लोटाइय़ा ।
शिरे धरि से चरण करि आत्मसमर्पण
एक भिते रहे दाꣳड़ाइय़ा ॥९४॥
देखि श्यामानन्द-रीति ठाकुर करिय़ा प्रीत
निकटे राखिय़ा शिष्य कैल ।
करि अनुग्रह अति शिखाइय़ा भक्तिरीति
निताइ-चैतन्ये समर्पिल ॥९५॥
कथोक दिवस परे पाठाइते व्रजपुरे
श्यामानन्द व्याकुल हईला ।
प्रभु निताइ चैतन्य श्यामानन्दे कैला धन्य
यात्राकाले आज्ञामाला दिला ॥९६॥
श्यामानन्द पथे चले भासय़े आꣳखेर जले
सोङरिय़ा प्रभु गुणगण ।
एककी कथोक दिने प्रावेशिला व्रजभूमे
बहु तीर्थ करिय़ा भ्रमण ॥९७॥
देखिय़ा श्रीवृन्दारण्य आपना मानय़े धन्य
आनन्दे धरिते नारे थेहा ।
सिक्त हैय़ा नेत्रजले लोटाय़ धरणीतले
विपुल पुलकमय़ देहा ॥९८॥
गिय़ा गिरि-गोवर्धने कैल ये आछिल मने
श्रीराधाकुण्डेर तटे आसि ।
प्रेमाय़ विह्वल हैला, देखि अनुग्रह कैला
श्रीदासगोꣳसाई-गुणराशि ॥९९॥
श्रीजीव-निकटे गेला, निज-परिचय़ दिला
तेꣳहो कृपा कैला वात्सल्येते ।
येबा मनोरथ छिल ताहा येन पूर्ण हैल
हृदय़चैतन्य-कृपा हैते ॥१००॥
भ्रमिला द्वादश वन, कैला ग्रन्थ-अध्यय़न
हैला अति निपुण सेवाय़ ।
श्रीगौड़्अ, अम्बिका हैय़ा रहिला उत्कले गिय़ा
श्रीगोस्वामिगणेर आज्ञाय़ ॥१०१॥
पाषण्डि-असुरगणे माताइल गोरागुणे,
कारे वा ना कैला भक्तिदास ?
अधम आनन्दे भासे श्यामानन्द कृपालेशे
केबा ना पाइले परित्राण ॥१०२॥
के जानिते ताꣳर तत्त्व सदा सङ्कीर्तने मत्त,
अवनीते विदित महिमा ।
निज-परिकर-सङ्गे विलसे परम-रङ्गे
उत्कले सुखेर नाइ सीमा ॥१०३॥
ये वारेक देखे तारे से धृति धरिते नारे,
किबा से मुरुति मनोहर ।
नरहरि कहे—कभु रसिकानन्देर प्रभु
हबे कि ए नय़नगोचर ॥१०४॥
पुनः—सुहई—
जय़ श्रीदुःखिनी कृष्णदास-गुण,
कहिते शकति कार ?
हृदय़चैतन्य-पदाम्बुजे सदा
चित-मधुकर याꣳर ॥१०५॥
वृन्दावने नव निकुञ्जे राइर
नूपुर पाइल ये ।
श्यामानन्द-नाम विदित तथाय़,
सुचरित बुझिब के ? ॥१०६॥
महामूढ़मति उत्कलेते यार
ना छिल भक्तिलेश ।
गौरप्रेमरसे भासाइल सब,
सफल करिल देश ॥१०७॥
परदुःखे दुःखी श्यामानन्द मोर
रसिकानन्देर प्रभु ।
कबि कब करुणा ?–येहो नरहरि
दीने ना छाड़य़े कभु ॥१०८॥
श्यामानन्द-चरित्र सङ्क्षेपे जानाइनु ।
ग्रन्थबाहुल्ये विस्तारि वर्णिते नारिनु ॥१०९॥
उत्कलादि-देश धन्य कैल श्यामानन्द ।
शुनि गौड़्अदेशे हैल सबार आनन्द ॥११०॥
गौड़े श्रीनिवास-नरोत्तम प्रिय़गण ।
भक्तिरत्न-प्रदाने परम विचक्षण ॥१११॥
सर्वत्र व्यापिल दुꣳहु शाखानूशाखाय़ ।
कहि किछु याह शुनि पराण जुड़ाय़ ॥११२॥
श्रीनिवास आचार्येर शिष्य प्रिय़तम ।
रामचन्द्र कविराज गुणे अनुपम ॥११३॥
श्रीनिवास-शाखाय़ श्रीहरिरामाचार्येर चरित—
श्रीरामचन्द्रेर शिष्य हरिरामाचार्य ।
सर्वत्र विदित आलौकिक सर्व कार्य ॥११४॥
श्रीकृष्णचैतन्य प्रेमभक्ति विलाइय़ा ।
जीवेर कल्मष नाशे उल्लसित हैय़ा ॥११५॥
सङ्कीर्तने परम विह्वल निरन्तर ।
गाय़ कविगण से चरित्र मनोहर ॥११६॥
गीते यथा—पौरवी—
जय़ जय़ श्रीईहरिराम आचार्यवर्य
आश्चर्यचरित चितहारी ।
गुणगण विशद विपद्-मद-मर्दन
मधुर मुरुति मूदवर्धनकारी ॥११७॥
पाꣳहुपद-विमुख असुर दुर्जन जय़—
कारक कीर्ति जगत परचार ।
परम सुधीर धीर-धृति-हारक
करुणामय़ मति, अति हि उदार ॥११८॥
अनुखन गौर-प्रेमभरे उनमत,
मत्त करीन्द्र निन्दि गति जोर ।
सङ्कीर्तन-रस-लम्पट पटु वैष्णव-सेवा
सुख को कहु ओर ॥११९॥
श्रीमद्भागवतादिक ग्रन्थ-कथन
अनुपम वरषत अमृतधार ।
श्रीश्रीकृष्णराय़ यज्जीवन,
भणव कि नरहरि-महिमा अपार ॥१२०॥
श्रील नरोत्तमशाखाय़ श्रीरामकृष्णाचार्येर चरित—
श्रीनरोत्तमेर शिष्य रामकृष्णाचार्य ।
परमपण्डित भक्तिपथे महा आर्य ॥१२१॥
दीन हीन अकिञ्चन जने अति प्रीत ।
नाशय़े पाषण्डमत—सर्वत्र विदित ॥१२२॥
सङ्कीर्तनरस आस्वादय़े निरन्तर ।
केबा ना गाय़ से चरित्र मनोहर ॥१२३॥
गीते यथा—गौरी—
जय़ जय़ रामकृष्ण आचार्य सुधीर
महाशय़ सुखद उदार ।
भावावेश निरन्तर कीर्तन लम्पट
अतिशय़ सुघर प्रचार ॥१२४॥
सुखमय़ रसिकजन मन-रञ्जन,
तापपुञ्जतम-भञ्जन-कारी ।
द्विजकुल-मण्डल गुणगणमण्डित
पण्डितवर दुर्मुख मदहारी ॥१२५॥
श्रीमन्मोहनराय़-सुविग्रह-सेवा
सतत नियुक्त प्रधान ।
अद्भुता रति, उल्लसित दिवानिशि
गौरचन्द्रचरितामृत-पान ॥१२६॥
परम दय़ाल नरोत्तमपदयुग
यछु सर्वस्व—न जानत अन्य ।
को समुझब उह रीत, रुचिर यश,
गाय़त नरहरि, मानत धन्य ॥१२७॥
श्रील नरोत्तमशाखाय़ श्रीगङ्गानाराय़ण प्रभुर चरित—
श्रीठाक्कुर नरोत्तम पतित पावन ।
ताꣳर शिष्य चक्रवर्ती गङ्गानाराय़ण ॥१२८॥
गङ्गानाराय़ण विद्यावन्ते अतिशय़ ।
खण्डिय़ा पाषण्डमत भक्ति प्रकाशय़ ॥१२९॥
सङ्कीर्तन-सुधा पाने मत्त दिवानिशि ।
गाय़ कविगण से चरित्र-सुखे भासि ॥१३०॥
गीते यथा—गौरी—
जय़ जय़ श्रीगङ्गानाराय़ण चक्रवर्ती अति धीर गभीर ।
धैरय-हरण वरणवर-माधुरी, निरुपम
मृदुतर रुचिर शरीर ॥१३१॥
अविरत सङ्कीर्तनरस-लम्पट
ललितनृत्यरत प्रेमविभोर ।
श्रील नरोत्तम-चरणसरोरुह-भजनपराय़ण
भुवन-उजोर ॥१३२॥
श्रीचैतन्यचन्द्रचरितामृतपाने मगन
मन, सतत उदार ।
श्रीगोविन्द-मनोहरविग्रह यज्जीवन
धन-प्राण-आधार ॥१३३॥
परम दय़ाल दीनजन-बान्धव प्रबल प्रताप तापतमहारी ।
वरणि ना शकति कीरिति अति अदभुत, विदित दास नरहरि-सुखकारी ॥१३४॥
ऐछे दोꣳहाकार शाखा-प्रशाखा सकल ।
कृपा करि नाशय़े जीवेर अमङ्गल ॥१३५॥
कहिते कि जानि गुण अतिरसाय़न ? ।
वर्णिबेन विस्तारिय़ा भाग्यवन्तगण ॥१३६॥
श्रीनिवास-आचार्य चरण चिन्ता करि ।
भक्तिरत्नाकर कहे दास नरहरि ॥१३७॥
इति श्रीश्रीभकिरत्नाकरे श्रीश्यामानन्दादि-चरित्रवर्णनꣳ नाम पञ्चदशतरङ्गः ॥१५॥
…
ग्रन्थानुवद
कथासार—इहाते ये ये तरङ्ग याहा याहा वर्णित हईय़ाछे, ताहर एकटि सꣳक्षिप्त तालिका प्रदओ हईय़ाछे । उप्सꣳहारे ग्रन्थकारेर सꣳक्षिप्त परिचय़ प्रदओ हईय़ाछे । ताꣳहार पिता श्रीजगन्नथ चक्रवर्ती श्रील-विश्वनाथ चक्रवर्ती-पादेर शिष्य । ग्रन्थकारेर दुइ नाम—श्रीघनश्यामदास ओ श्रीनरहरिदास ।
पञ्चदश तरङ्ग श्रीभक्तिरत्नाकरे ।
ये तरङ्गे ये विलास कहि अल्पाक्षरे ॥१॥
प्रथम तरङ्गे कैनु मङ्गलाचरण ।
श्रीजीवगोसाञीर पूर्वपुरुष-कथन ॥२॥
गोस्वामिगणेर यत ग्रन्थ नाम तार ।
श्रीनिवासाचार्येर जन्मादि-सूत्र आर ॥३॥
द्वितीय़ तरङ्गे—विप्र श्रीचैतन्यदास ।
नीलाचले गेला, पूर्ण हैल अभिलाष ॥४॥
श्रीनिवास जन्म, पिता-पुत्रे बहु कथा ।
वृन्दावने गोविन्द प्रकट हैल यथा ॥५॥
तृतीय़ तरङ्गे—क्षेत्रे आचार्य चलिला ।
श्रीचैतन्यसङ्गोपन शुनि दग्ध हैला ॥६॥
नीलाचले गेला, स्वप्ने प्रभुर आदेशे ।
प्रभुगण कृपा कैल, आइला गौड़देशे ॥७॥
चतुर्थ तरङ्गे गौड़े आचार्य भ्रमय़ ।
श्रिविष्णुप्रिय़ार कृपा हैल अतिशय़ ।८॥
प्रभु-परिकर महा अनुग्रह कैल ।
वृन्दावनगमनादि इहाते वर्णिल ॥९॥
पञ्चम तरङ्गे—श्रीनिवास-नरोत्तम ।
श्रीराघव-सङ्गे कैल व्रजेते गमन ॥१०॥
गौर-नित्यानन्द तिनेर विहार ।
मध्ये मध्ये हैल नाना प्रसङ्ग-प्रचार ॥११॥
षष्ठ तरङ्गे—श्रीश्यामानन्द व्रजे गेला ।
मदनगोपाल-गोविन्देर प्रिय़ा आइला ॥१२॥
श्रीनिवास लैय़ा गोस्वामीर ग्रन्थगण ।
विदाय़ हईय़ा गौड़े करिला गमन ॥१३॥
सप्तम तरङ्गे—ग्रन्थ चुरि विष्णुपुरे ।
श्रीआचार्यानुग्रह राजा वीरहाम्बीरे ॥१४॥
श्रीश्यामानन्देर हैल उत्कले गमन ।
विविध प्रसङ्ग इथे कर्ण-रसाय़न ॥१५॥
अष्टम तरङ्गे—श्रीठाकुर महाश्य़ ।
श्रीगौड़्अ भ्रमिय़ा क्षेत्रे करिला विजय़ ॥१६॥
क्षेत्र हईते आसिय़ा श्रीआचार्ये मिलल ।
श्रीआचार्य रामचन्द्रादिके शिष्य कैल ॥१७॥
नवम तरङ्गे—भक्तिग्रन्थ प्रचारिय़ा ।
श्रीआचार्य आइला पुनः वृन्दावन गिय़ा ॥१८॥
आर ये प्रसङ्ग एथा हईल प्रचार ।
से सब शुनिते धैर्य धरे शक्ति कार ? ॥१९॥
दशम तरङ्गे—ग्राम काञ्ह्चनगड़िय़ाय़ ।
हईल ये महोत्सव कहने ना याय़ ॥२०॥
श्रीखेतरी ग्रामे महामहोत्सव हैल ।
गणसह गौर—सङ्कीर्तने नृत्य कैल ॥२१॥
एकादश तरङ्गे—श्रीखेतरी-ग्रामेते ।
श्रीजाहवा ईस्वरी आइला व्रज हैते ॥२२॥
ईश्वरी गमन हैल एकचक्र दिय़ा ।
श्रीमूर्ति निर्मानिलेन खड़दहे गिय़ा ॥२३॥
द्वादश तरङ्गे—आचार्यादि तिन जन ।
श्रीईशान सङ्गे कैल नदीय़ा-भ्रमण ॥२४॥
हैल नाना प्रसङ्ग परमानन्द याते ।
प्रभु नित्यानन्देर विवाह-आदि इथे ॥२५॥
त्रय़ोदश तरङ्गे—श्रीआचार्य ठाकुर ।
द्वितीय़ विवाह कैल—कौतुक प्रचुर ॥२६॥
प्रभु वीरचन्द्र करि विवाह उल्लासे ।
गणसह व्रजे गिय़ा आइला गौड़्अदेशे ॥२७॥
चतुर्दश तरङ्गे श्रीआचार्य गणसने ।
कैला महामहोत्सव बोराकुलि-ग्रामे ॥२८॥
सङ्कीर्तने हईला निमग्न निरन्तर ।
इथे आर विविध प्रसङ्ग मनोहर ॥२९॥
पञ्चदश तरङ्गे—प्रकाश महानन्द ।
गणसह उत्कले विलसे श्यामानन्द ॥३०॥
महामहा पाषण्डीरे कैल भक्तिदान ।
ए-सब प्रसङ्ग आस्वादय़े भाग्यवान् ॥३१॥
भक्तिरत्नाकर-ग्रन्थ परम सुरस ।
आस्वादह निरन्तर, ना कर अलस ॥३२॥
मुइ मूर्ख—मोर कुन दोष ना लईबे ।
करिबे शोधन, सुखे ग्रन्थ अस्वादिबे ॥३३॥
कहिते कि जानि, मोरे जानि निजदास ।
करुणा करिय़ा पूर्ण कर अभिलाष ॥३४॥
गीते यथा—कामोद—
एइ अभिलाष मने गौराङ्ग-चाꣳदेर गुणे
मातिय़ा बेड़ाइ दिवानिशि ।
लक्ष्मी-विष्णुप्रिय़ा-सङ्ग नदीय़ा विहार-रꣳग
से सुखसाय़रे येन भासि ॥३५॥
लक्ष मुखे क्षणे क्षणे वसुधा-जाह्नवा-सने
निताइ चाꣳदेर गुण गाइ ।
सीता-सह सीतानाथे सतत बन्दिय़े माथे
ताꣳर यशे जगत् भासाइ ॥३६॥
गदाधर, नरहारि, स्वरूप फुत्कार करि
नाचि सादा काꣳकतालि दिय़ा ।
श्रीनिवास, वनमाली दास गदाधर बलि
आनन्दे उमड़े फेन हिय़ा ॥३७॥
हरिदास, वक्रेश्वर, रामानन्द, दामोदर,
गौरीदास, श्रीरघुनन्दन ।
मुरारि, मुकुन्द-राम लैय़ा ए सभार नाम
निरन्तर करिय़े क्रन्दन ॥३८॥
शची, मिश्र जगन्नाथ, प्रभुर जननी, तात,
पद्मावती, हाड़ाइ पण्डित ।
जगत्-विदित गुणे ए सभार श्रीचरणे
जनमे जनमे रहु चित ॥३९॥
श्रीमाधव, रत्नावती, मालिनी, माधवी अति
स्नेहवती दमय़न्ती देवी ।
श्रीअच्युताअनन्दकन्द, दय़ामय़ वीरचन्द्र,
ओ पदपङ्कज येन सेवि ॥४०॥
श्रीवल्लभ, सनातन, सदाशिव, सुदर्शन,
नन्दन, विजय़, काशीश्वर ।
विश्वरूप-बुलि बुलि फिरि येन फुलि फुलि
देखिय़ा पाषण्डी पाउक डर ॥४१॥
प्रिय़ सनातन, रूप, भट्टयुग रसकूप,
रघुनाथ, श्रीजीव गभीर ।
ए नाम लईते येन धूलाय़ धूसर येन
हय़ मोर ए पाप शरीर ॥४२॥
सुबुद्धि, राघव-साथ भूगर्भ, श्रीलोकनाथ
व्रजे याꣳरा फिरे प्रेमरꣳगे ।
ए नामे हüक रति, दूरे याक् दुष्ट मति
पुलक व्यापुक सब अङ्गे ॥४३॥
गोविन्द, माधव, हरि शुक्लाम्बर ब्रह्मचारी
वासुघोष—गौर याꣳर प्राण ।
ए सभार परसादे फिरि येन सिꣳहनादे
अभक्ते करिय़ा तृणज्ञान ॥४४॥
कीर्तनिय़ा षष्ठीधर, हरिदास द्विजवर,
खोलावेचा श्रीधरठाकुर ।
कꣳसारि वल्लभ आर धनञ्जय़—ए सभार
हई येन नाचेर कुकुर ॥४५॥
कविचन्द्र, विद्यानिधि श्रीमधुपण्डित आदिर
गौरप्रिय़ यत परिवार ।
दास नरहरि भणे ए नाम-रतनगणे
गलाय़ परिय़े करि हार ॥४६॥
निज-परिचय़ दिते लज्जा हय़ मने ।
पूर्ववास गङ्गातीरे—जाने सर्वजने ॥४७॥
विश्वनाथ चक्रवर्ती सर्वत्र विख्यात ।
ताꣳर शिष्य मोर पिता विप्र जगन्नाथ ॥४८॥
ना जानि—कि हेतु हैल मोर दुइ नाम ।
नरहरि दास, आर दास घनश्याम ॥४९॥
गृहाश्रम हईते हईनु उदासीन ।
महापाप-विषय़े मजिनु रात्रिदिन ॥५०॥
दय़ार समुद्र ओहे वैष्णवगोꣳसाइ ।
वेदे गाय़—तुय़ा कृपा विना गति नाइ ॥५१॥
नरहरि कहे—एइ कृपा कर मोरे ।
निरन्तर डुबि येन भकिरत्नाकरे ॥५२॥
इति-श्रीश्रीमद्भक्तिरत्नाकर ग्रन्थ सम्पूर्ण ।