मानव अपने मुंह से जो भी शब्द या ध्वनि उच्चारित करता है वह मन्त्र रूप होती है । परन्तु जब इस ध्वनि या शब्द का गुम्फन हो जाता है तो उसमेम् एक विशेष लय की सृष्टि हो जाती है और यह सृष्टि ही मन्त्र रूप बन जाती है ।
हम भारतीय हैम् और भारत की मूल आत्मा मन्त्रमय है । हमारे जीवन में जन्म से लगाकर मृत्यु तक सोलह संस्कार करने का विधान है और प्रत्येक संस्कार के पीछे एक ठोस धरातल और एक निश्चित प्रक्रिया है । इन सारी प्रक्रियाओं के मूल में मन्त्र ही हैम् । इस प्रकार से हमारा पूरा जीवन मन्त्रों के आधार पर स्थित है । सृष्टि के प्रारम्भ में शिव ने जो नृत्य किया उस नृत्य से चौदह प्रकार की ध्वनियां प्रवाहित हुईम् और ये ध्वनियां ही मन्त्रों का मूल आधार माना जाता है।
प्रारम्भ में हमने मन्त्रों का विधिवत् अध्ययन, मनन, और संयोजन किया था जिसके आधार पर हमने पूर्ण प्रकृति को अपने नियन्त्रण में ले रखा था परन्तु धीरे- धीरे बाहरी वातावरण से मन्त्रों के प्रति हमारा अज्ञान बढ़ता गया और हम इन मन्त्रों से दूर हटते गये । इसके मूल में कई कारण उपस्थित हुए । विदेशी आक्रमणों से हमारे मूल ग्रन्थ समाप्त हो गये । कुछ विशिष्ट ग्रन्थों को विदेशी अपने साथ लेते गये । फल- स्वरूप भारतीयों ने यह परम्परा स्थापित की कि इन मन्त्रों को बताने का एक मात्र उपाय मौखिक परम्परा स्थापित करना है । फलस्वरूप विशिष्ट साधु योगी और विद्वद्जनों ने मन्त्रों को कण्ठस्थ रखना प्रारम्भ किया और शिष्यों को भी कण्ठस्थ करवा दिया । इस प्रकार ये मन्त्र जीवित रह सके और विदेशी आक्रमणों के आघात से भी अपने आप को सुरक्षित रख सके ।
परन्तु धीरे-धीरे इस स्थिति में परिवर्तन आया । व्यक्ति अन्य कई कार्यों में व्यस्त हो गया । फलस्वरूप उनका जो मूल ध्येय था उसके पीछे स्वार्थ ने घर कर लिया । गुरु मूल रूप से गुरु होते हुए भी तथ्य पर भी ध्यान देने लगा कि इन मन्त्रों का ज्ञान शिष्य को तभी दिया जाना चाहिए जब कि उससे सेवा प्राप्त हो सके। इस प्रकार मन्त्रों की जो परम्परा थी वह समाप्त होने लगी और एक प्रकार से यह मन्त्र- साधना व्यापार का साधन बन गई ।
समय बीतने पर कई विद्याएं गुरु के साथ ही समाप्त होती चली गईं। क्योङ्कि एक तो उन्हें पूर्ण समर्पित भाव शिष्य नहीं मिल सके जिन्हें कि वे अपने जान को
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सुचारु रूप में दे सकेम् और दूसरा कारण स्वार्थपरता भी रहा जिसकी वजह से भी मन्त्रों का आदान-प्रदान कुण्ठित हो गया । फलस्वरूप मन्त्रों की धारा मेम् ऐसी बाधा आ गई जिससे कि मन्त्र शक्ति अपने आप में कमजोर और निर्बल होने लगी ।
समय बीतने के साथ-साथ हमारे भारतवर्ष की अमूल्य विद्या उन साधुओं के साथ समाप्त होती चली गई जो कि समर्पित भाव से इस कार्य में लगे थे
हुए । जब समाज की तरफ से उन्हें पूरा सम्मान प्राप्त नहीं हुआ तो वे समाज से कट गये और अपना अधिकांश जीवन जङ्गलों मेम् और हिमालय की कन्दराओं में व्यतीत करने लगे । इससे समाज को बहुत बड़ा नुकसान हुआ क्योङ्कि वह उन सिद्धिदायकों, साधुओं, महात्माओम् और त्रिकाल दर्शियों के ज्ञान से वञ्चित रह गया । वह अमूल्य विद्या उन योगियों के साथ ही समाप्त होती चली गई और समाज इस तरफ से पूरी तरह से आङ्ख मून्दकर पड़ा रहा ।
परन्तु जब भारतीय समाज ने इस समस्या की ओर देखा तब तक समय बहुत अधिक बीत चुका था । उसने इधर-उधर हाथ पैर मारने शुरू किये परन्तु वे वास्तविक योगी प्राप्त नहीं हो सके जिन्हेम् इन विद्याओं का पूर्ण ज्ञान था। इसके स्थान पर समाज को ढोङ्गी, कपटी और स्वार्थ-लोलुप साधुओं से ही सामना कि इस ज्ञान के क्षेत्र में बिल्कुल कोरे थे परन्तु आडम्बर में पूर्णत: थे जिसकी वजह से वे समाज मेम् अपने आपको स्थापित करने में सफल हो सके परन्तु जिनका योगदान समाज को कुछ भी प्राप्त नहीं हो सका ।
करना पड़ा जो प्रवीण और चतुर
इससे सबसे बड़ी समस्या यह हो गई कि समाज को जो थोड़ा-बहुत विश्वास मन्त्र तन्त्र के क्षेत्र में था वह डिग गया क्योङ्कि जब भी समाज को इसकी आवश्यकता हुई तब समाज दौड़कर इन साधुओं के पास ही गया जो कि मूल रूप से ढोङ्गी थे और जो कुछ
भी देने में समर्थ नहीं थे । फलस्वरूप समाज के मन में यह धारणा घर कर गई कि मन्त्र-तन्त्र व्यर्थ की बात है, इससे किसी भी प्रकार से हित सम्पादन सम्भव नहीं है ।
परन्तु यह सङ्क्रमण काल बहुत समय तक नहीं रहा । समाज इस बात को मानने लगा कि मन्त्र तन्त्र व्यर्थ नहीं है अपितु इन धर्म के ठेकेदारों ने अपने स्वार्थ के कारण अपने आपको ऊञ्चा उठाने के लिए पाखण्ड की एक ऐसी दीवार खड़ी कर दी है जिसके उस पार स्थित सत्य को देखा जाना सम्भव नहीं रह गया है ।
इस बीच विदेशियों के मन में भारत के प्रति और विशेषकर भारत के इस ज्ञान के प्रति ललक पैदा हुई और उन्होन्ने इस सम्बन्ध में खोज प्रारम्भ की। कई विदेशी भारतवर्ष मेम् आए और दुर्गम स्थानों पर यात्रा कर उन साधुओं, सन्न्यासियोम् और विद्वानों से मिले जो वास्तव में ही इसके जानकार थे और जिनकी वाणी में स्पष्ट और शुद्ध उच्चारण था । उन्होन्ने इन घटनाओं को जब प्रकाशित किया तो भारतवासियों ने भी अनुभव किया कि यह ज्ञान तो मूल रूप से हमारी संस्कृति का
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ही हैम् । यह ज्ञान हमारा स्वयं का है, और हम स्वयम् इससे कट गये हैम् । फलस्वरूप उन्होन्ने इस सम्बन्ध में विशेष रुचि लेनी प्रारम्भ की और जो सत्य था उसे सबके सामने
रखने को तैयार हुए।
गया जो कि वास्तव में ही आडम्बर के तान्त्रिक सिद्ध कर बैठे थे। इससे एक प्रकार की बेचैनी देखने को मिली ।
इससे उन ढोङ्गियों का पर्दा फाश हो सहारे अपने आपको महान् मन्त्रशास्त्री और लाभ यह भी हुआ कि समाज मेम् एक विशेष समाज इस बात की खोज में लगा कि वास्तव में मन्त्र शक्ति क्या है, और क्या उस शक्ति का उपयोग जीवन-निर्माण में तथा जीवन के उत्थान में किया जा सकता है ।
आज समाज और विशेषकर भारतीय समाज इस बात को एक स्वर से मानने के लिए बाध्य है कि हम विश्व में सर्वोपरि इसलिए माने गए थे क्योङ्कि हमारे पास मन्त्र तन्त्र का अक्षय भण्डार था और इन सिद्धियों के माध्यम से हमने पूरी प्रकृति को अपने नियन्त्रण में ले रखा था। आज पुनः इन मन्त्रों-तन्त्रों का सही वैज्ञानिक तरीके से अध्ययन होने की आवश्यकता है, जिससे कि इस ज्ञान का सही रूप से उपयोग किया जा सके ।
ऐसी स्थिति में भारतवर्ष मेम् और भारतवर्ष से बाहर कई स्थानों पर मन्त्र- तन्त्र से सम्बन्धित अध्ययन कक्ष प्रारम्भ हुए जहां पर इसका ज्ञान कराने की व्यवस्था है ।
वास्तव मेम् अभी तक ऐसी कोई पुस्तक उपलब्ध नहीं थी जो कि मन्त्र का शुद्ध वैज्ञानिक रूप से अध्ययन प्रस्तुत कर सके । साथ ही साथ इस बात की भी आवश्यकता थी कि भारतवर्ष मेम् एक ऐसा केन्द्र स्थापित हो जो कि सही रूप मेम् इस ज्ञान को समाज के सामने रख सके और आने वाली पीढी को मार्गदर्शन दे सके ।
भारतीय ज्योतिष अध्ययन अनुसन्धान केन्द्र ने इस चुनौती को भली प्रकार से स्वीकार किया और इस केन्द्र में मन्त्र-तन्त्र से सम्बन्धित इस प्रकार का ज्ञान वैज्ञा- निक पद्धति से देने का निश्चय किया, जिससे कि वे सही रूप मेम् इससे लाभान्वित हो सकेम् और अपने कार्यों से समाज को और देश को एक नवीन दिशा प्रदान कर सकें।
मैन्ने देखा है कि आज की नयी पीढ़ी मेम् इस ज्ञान के प्रति एक ललक है, चेतना है, कुछ कर गुजरने की क्षमता है और वह इस ज्ञान के क्षेत्र में गहरे से गहरे पैठने की क्षमता रखता है । पिछले पाञ्च-छः वर्षों में कई शिष्य आये और उन्होन्ने मन्त्र-तन्त्र के क्षेत्र में कुछ सीखने की इच्छा प्रकट की । यद्यपि यह साधना अत्यन्त कठिन मानी जाती है क्योङ्कि इस क्षेत्र में तथा साधना में किसी भी प्रकार की शिथिलता और कम- जोरी एक प्रकार से आत्मघात के समान ही होती है, परन्तु इन युवकों ने यह दिखा करने के लिए तैयार हैम् और
दिया है कि वे प्रत्येक प्रकार की चुनौतियों का सामना
कठिन से कठिन परीक्षा में भी खरे उतरकर सफलता वरण करने के लिए उद्यत हैम् ।
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इसी तथ्य को ध्यान में रखकर केन्द्र मेम् एक शिक्षण संस्थान स्थापित किया है जिसके द्वारा उन युवकों का चयन किया जाता है जो पूर्ण समर्पित भाव से इस क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के इच्छुक होम् और फिर उन्हें वैज्ञानिक तरीके से मन्त्र-तन्त्र का ज्ञान कराया जाता है ।
वास्तव में मन्त्र अपने आप में बहुत गहरे अर्थ में ध्वन्यात्मक रूप है । अतः इस प्रकार का ज्ञान गुरुमुख से ही प्राप्त करना चाहिए क्योङ्कि गुरु ही उस मन्त्र की मूल आत्मा और उसका प्रयोग बता सकता है। साथ ही साथ गुरु ही उस मन्त्र की उच्चारण शैली को स्पष्ट कर सकता है ।
आज केन्द्र से कई युवक इस क्षेत्र में सीखकर समाज मेम् आगे बढ़े हैम् और अपने क्षेत्र में विशेष सफलता प्राप्त की है। यह धारणा गलत है कि गृहस्थ व्यक्ति साधना प्राप्त नहीं कर सकता या मन्त्र-तन्त्र के क्षेत्र में सिद्धि और सफलता स्वीकार नहीं कर सकता । इस क्षेत्र में योगी या साधु भी उतना ही सफल हो सकता है जितना कि गृहस्थ व्यक्ति । अपितु मैं तो यह कहूङ्गा कि गृहस्थ व्यक्ति इस क्षेत्र में विशेष सफलता प्राप्त कर सकता है ।
इन वर्षों में युवकों ने इस क्षेत्र में सीखकर यह सिद्ध कर दिया है कि वे तन्त्र- मन्त्र के क्षेत्र में विशेष सफलता प्राप्त कर सकते हैं। मैन्ने देखा है कि पुरुषों के बरा- बर महिलाओं ने भी इस क्षेत्र में रुचि ली है और कुछ महिलाएं विशेष रूप से मन्त्रों के क्षेत्र में सफल हुई हैम् ।
मेरे सामने एक स्वप्न था कि मैं भारतवर्ष की इस खोई हुई विद्या को पुनर्जी- वित करूं, धीरे-धीरे जो यह विद्या समाज से और देश से लोप हो रही है उसे
पुनः साकार रूप दे सकूम् । कुछ ऐसे शिष्य-शिष्याएं तैयार कर सकूं जो इस क्षेत्र में पूर्णता प्राप्त कर सकेम् और आने वाली पीढ़ी को यह ज्ञान उपहार के रूप में दे सकेम् ।
•
मुझे प्रसन्नता है कि इन वर्षों मेम् इन युवकों ने मेरे
में सफलता प्राप्त की है। मेरे इन शिष्यों में भारतीय और
स्वप्न को साकार बनाने विदेशी दोनों ही हैम् और
दोनों ने ही इस क्षेत्र में समान रूप से रुचि ली है । मैन्ने यह भी देखा है कि महिलाएं भी इस क्षेत्र में पूर्णता प्राप्त करना चाहती हैम् और पिछले वर्षों में कुछ शिष्याएम् इस क्षेत्र में विशेष सफलता प्राप्त कर समाज मेम् अपने आपको सम्माननीय स्थान पर स्थापित कर सकी हैम् ।
मुझे विश्वास है अब यह विद्या भारतवर्ष से समाप्त नहीं हो सकेगी। इन युवकों में जो चेतना मैन्ने जागृत की है वह मन्द नहीं होगी। जो आग मैन्ने जलाई है वह समाप्त नहीं होगी । और एक बार पुनः निकट भविष्य में ही यह देश इस क्षेत्र में पूरे विश्व को रास्ता दिखा सकेगा तथा अपने प्रकाश से पूरे विश्व को प्रकाशित कर सकेगा ।379
यह पुस्तक इसी कार्य की एक कड़ी है। युवकों के लिए और विशेषकर साधक, जिज्ञासुओं के लिए यह पुस्तक अत्यन्त उपयोगी है क्योङ्कि पहली बार इस पुस्तक के माध्यम से मन्त्र का सही रूप से विवेचन प्रस्तुत हो सका है और मन्त्र का सैद्धान्तिक पक्ष स्पष्ट हो सका है ।
केन्द्र ने जिस दिन से मन्त्र-तन्त्र प्रतिष्ठान स्थापित किया है, भारतीय व्यक्तियों के मन मेम् एक नई चेतना, एक नया जोश, एक नई उमङ्ग साकार हो सकी है। उन्हें यह विश्वास हुआ है कि वे अपने स्वप्नों को साकार कर सकेङ्गे ।
केन्द्र ने भी इस उत्तरदायित्व को भली प्रकार से अनुभव किया है और पूर्ण क्षमता के साथ अपनी जिम्मेदारी को समाज के सामने प्रस्तुत किया है । यद्यपि तन्त्र- मन्त्र-साधना के क्षेत्र में सीखने वाले विद्यार्थियों का चयन अत्यन्त कठिन होता है । पूरी तरह से ठोक-बजाकर देखा जाता है कि यह वास्तव में ही इस क्षेत्र में कुछ कर सकेगा, समाज को नया रास्ता बता सकेगा और अपने ज्ञान का दुरुपयोग न कर उसे देश के उत्थान में सक्रिय योगदान दे सकेगा । तभी उसे इस क्षेत्र में कार्य करने का प्रवेश प्राप्त होता है ।
पिछले वर्षों मेम् इस क्षेत्र में साधकों ने कई प्रकार का ज्ञान भली प्रकार से प्राप्त किया जिसमें ८० साल के
वृद्ध से लेकर २० साल के युवक तक हैम् और जो पूर्ण क्षमता के साथ साधना क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सके हैं। स्त्रियों ने भी इस क्षेत्र में विशेष रुचि प्रदर्शित की है और उन्होन्ने भी इस क्षेत्र मे पूर्ण सफलता प्राप्त कर यह सिद्ध कर दिया है कि वे किसी भी प्रकार से पुरुषों से पीछे नहीं हैम् ।
साधकों मेम् आयु का कोई बन्धन नहीं होता, आवश्यकता इस बात की होती है कि उनमें ज्ञान प्राप्त करने की विशेष रुचि हो, कष्ट सहन करने की पूर्ण क्षमता हो, गुरु के प्रति श्रद्धा और सम्मान हो तथा इस क्षेत्र में कुछ कर गुजरने की चमक उनकी आङ्खों में कौन्धती हो तो वे निश्चय ही सफलता के पथ पर अग्रसर हो सकते हैम् । और मुझे प्रसन्नता है कि इन साधकों ने मुझे निराश नहीं किया है ।
आने वाला समय इन साधकों का है। आने वाली पीढ़ी इस बात के लिए गौरवान्वित होगी कि वर्तमान समय में युग ने करवट ली है और भारतवर्ष की अमूल्य थाती पुनः प्रस्तुत हो सकी है तथा समाज जिसके पीछे लालायित था, जो ज्ञान एक प्रकार से जङ्गलोम् और गुफाओं में खो गया था, वह पुन: सबके सामने सुलभ हो सका है और इसके लिए केन्द्र ने जो भूमिका निभाई है वह आने वाले समय के लिए अवि- स्मरणीय रहेगी ।
भारतीय ज्योतिष अध्ययन अनुसन्धान केन्द्र, डा० श्रीमाली मार्ग, हाई कोर्ट कॉलोनी, जोधपुर, (राजस्थान) इस प्रकार के ज्ञान और साधना का एक पुञ्जीभूत रूप है, एक साकार स्वप्न है, जिसके माध्यम से आज का समाज भावी युग को देखने में
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सफल हो सका है। मुझे विश्वास है आने वाला समय इस केन्द्र के माध्यम से अपने स्वप्न को साकार करने में समर्थ हो सकेगा ।
यह ग्रन्थ अपने आप मेम् इसलिए अमूल्य है क्योङ्कि इसके माध्यम से साधक मन्त्र के
मूल आत्मा और उसके रहस्य को समझ सकेङ्गे तथा इसके माध्यम से अपने ज्ञान को भली प्रकार से आगे बढ़ा सकेङ्गे ।
मुझे भारतवर्ष और सम्पूर्ण विश्व के साधकों पर गर्व है चेतना व्याप्त है और वे इस चेतना को पूरे विश्व में फैलाने के आशीर्वाद इन सभी साधकों के साथ प्रति क्षण है ।
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