१८ सिद्ध सम्पुट मन्त्र

मन्त्र शास्त्र के जानने वाले पाठकों के लिए कुछ विशिष्ट मन्त्रों का सामान्य प्रयोग दे रहा हूं; यद्यपि ग्रन्थ में मन्त्र, मन्त्रोद्धार तथा मन्त्र प्रयोग आदि की विधि स्पष्ट कर चुका हूम् ।

तन्त्र और मन्त्र को भली प्रकार से समझने के लिए कुछ विशिष्ट ज्ञान आवश्यक है । तन्त्र में काली वर्णन का सर्वाधिक महत्व है । काली पूजन तथा काली से सम्बन्धित जानकारी अपने आप में महत्त्वपूर्ण है ।

तान्त्रिक ग्रन्थों में नवविध कालियों के नाम स्पष्ट किए हैं जो कि निम्न प्रकार हैं-

१. दक्षिणकाली २. भद्रकाली ३. श्मशानकाली ४. कालकाली ५. गुह्यकाली ६. कामकलाकाली ७. धनकाली ८. सिद्धिकाली ६. चण्डकाली ।

इनमें कामकलाकाली का महत्त्व सर्वाधिक प्रमुख है और उसकी उपासना और साधना अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण और गोपनीय मानी गई है।

कामकलाकाली के ग्यारह उपासक हैं जो कि तान्त्रिक ग्रन्थों के अनुसार निम्नलिखित हैं-

१. इन्द्र २. वरुण ३. कुबेर ४. ब्रह्मा ५. महाकाल ६. बाण ७. रावण ८. यम ९. चन्द्र १०. विष्णु तथा ११. महर्षिगण ।

कामकला की उपासना अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण मानी गई है । तान्त्रिक ग्रन्थों के अनुसार भाग्योदय होने पर ही इस विद्या की प्राप्ति होती है। यदि प्राणदान देकर भी यह विद्या प्राप्त होती हो तो भी ज्यादा मंहगी नहीम् । सर्वस्व दान करने पर गुरु की प्राप्ति होती है और गुरु की प्राप्ति होने पर ही इस विद्या की उपलब्धि हो सकती है ।

इस उपासना से विद्या लक्ष्मी, मोक्ष लक्ष्मी तथा राज्य लक्ष्मी की प्राप्ति होती है । साथ ही साथ इससे धन लाभ, यश लाभ, पत्नी लाभ, अष्ट सिद्धि, वशीकरण, स्तम्भन, आकर्षण, ग्रहों की गतियों का स्तम्भन, आग तथा वायु का स्तम्भन, धारा और नदी का स्तम्भन, शत्रुओं की आदि की प्राप्ति सम्भव है ।

सेनाओं का स्तम्भन तथा वाक् स्तम्भन

281

पूर्ण मन्त्र

त्लट्ल्ह क्षथ्ल्ह, क्षव्ल्ह, क्षक्षर हम्लव्यई ॐ।

इस मन्त्र का ऋषि महाकाल है, छन्द बृहती है, बीजआद्य बीज है, शक्ति क्रोधवर्ण है तथा विनियोग सर्वसिद्धि है ।

इस मन्त्र को त्रैलोक्याकर्षण मन्त्र भी कहते हैम् ।

काली मन्त्र

किसी भी प्रकार की सिद्धि और सफलता के लिए काली मन्त्र सर्वाधिक उपयुक्त और सफल है ।

इसमें पहले शुद्धि होनी चाहिए –

भूत शुद्धि

शिरसि

भैरवाय ऋषये

नमः ।

मुखे

उष्णिक्छन्दसे नमः ॥

हृदये ॐ

दक्षिणकालिकायै

नमः ।

गुह्ये

क्रीं बीजाय

नमः ॥

पादयोः हुं शक्तये

नमः ।

सर्वाङ्ग

कीलकाय नमः ॥

काली ध्यान

शवारूढाम्महाभीमां घोरदंष्ट्रां हसन्मुखीम् ।

चतुर्भुजाचण्डमुण्डवराभयकरां शिवाम् ॥१॥

मुण्डमालाधरान्देवीं ललज्जिह्वादिगम्बराम् ।

एवं सन्चिन्तयेत्कालीं

काली यन्त्र

श्मशानालयवासिनीम् ॥२॥

आदौ त्रिकोणमालिख्य त्रिकोणन्तद्बहिलखेत् । ततो वं विलिखेन्मन्त्रं त्रिकोणत्रयमुत्तमम् ॥१॥

ततस्त्रिवृत्तमालिख्य

लिखेदष्टदलं ततः ।

वृत्तं विलिख्य

विधिवल्लिखेद्भूपुरमेककम् ॥२॥

कालीमन्त्रोद्धार – पहले तीन बार काली बीज उच्चारण करे । फिर दो बार

लज्जा बीज उच्चारण करे । फिर दो बार हुङ्कार शब्द का उच्चारण कर मन्त्र का स्मरण करे । फिर तीन बार काली बीज, दो बार लज्जा बीज तथा दो बार हुङ्कार शब्द का उच्चारण करने से काली मन्त्र उद्धार होता है !

282

तारा मन्त्र

काली यन्त्र

काली मन्त्र

क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं हूं हूं दक्षिणे कालिके क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं हूं हूं स्वाहा ।

शत्रुओं का नाश करने और जीवन में पूर्ण सफलता प्राप्त करने के लिए तारा साधना का विधान शास्त्रों में वर्णित है ।

तारा ध्यान

प्रत्यालीढपदाप्पिताङ्घ्रिशव हृद्द्द्घोराट्टहासापरा खड्गेन्दीवर कत्रिखरभुजा

हुङ्कारबीजोद्भवा ॥

aa नील विशाल पगलजटाजूटैकनागैर्युता ।

जाड्यन्न्यस्य कपालतू जगतां हन्त्युग्रतारा स्वयम् ॥

1

फट्

4

त्रीं

ह्रीं

283

तारायन्त्र

तारा यन्त्रोद्वार - चन्दन की लेखनी से यन्त्र लिखना चाहिए । फिर दो बार बीज मन्त्र का उच्चारण करके ‘फट्’ का उच्चारण करना चाहिए। इस प्रकार करने से तारा मन्त्र और तारा यन्त्र का उद्धार हो जाता है ।

तारा मन्त्रोद्धार- सर्वप्रथम वाग्बीज का उच्चारण करके ॐ शब्द का उच्चारण करना चाहिए। फिर लज्जा बीज और तारा बीज का उच्चारण कर ‘हूम्फट् ’ का उच्चारण होना चाहिए ।

इस प्रकार करने से तारा मन्त्रोद्धार होता है ।

तारा मन्त्र

ऐम् ओं ह्रीं क्रीं हूं फट् ॥

284

षोडशी मन्त्र

जीवन में पूर्ण सफलता प्राप्त करने के लिए और आर्थिक दृष्टि से उच्चकोटि की सफलता के लिए षोडशी मन्त्र का विधान तान्त्रिक ग्रन्थों में बताया है :

षोडशी ध्यान

बालार्कमण्डलाभासां चतुर्बाहुन्त्रिलोचनाम् । पाशाङ्कुशशरांश्चापन्धारयन्तीं शिवाम्भजे ॥

षोडशी यन्त्र

षोडशी यन्त्रोद्धार- इसमें षोडशी यन्त्र बनाकर उसकी षोडशोषचार

करने से यन्त्र उद्धार हो जाता है ।

पूजा

षोडशी मन्त्रोद्धार- सर्वप्रथम लज्जा बीज का उच्चारण कर ‘कएईल’ का उच्चारण करना चाहिए। फिर लज्जा बीज बोलकर ‘हसकहल’ शब्द का उच्चारण

285

करना चाहिए । फिर लज्जा सम्पुट देकर सोलह अक्षरों का षोडशी मन्त्र का उच्चारण करना चाहिए ।

इस प्रकार करने से षोडशी मन्त्र उद्धार हो जाता है ।

भुवनेश्वरी मन्त्र

षोडशी मन्त्र

ह्रीं कए ई ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं स क ल ह्रीम् ॥

वशीकरण, सम्मोहन आदि कार्यों में यह मन्त्र तथा इससे सम्बन्धित तन्त्र सबसे अधिक अनुकूल तथा सहायक माना गया है ।

भुवनेश्वरी ध्यान

भुवनेश्वरी यन्त्र

उद्यद्दिनद्युतिमिन्दुकिरीटान्तुङ्गकुचान्नयनत्रययुक्ताम् । स्मेरमुखीं वरदाङ्कुशपाशाम्भीतिकराम्प्रभजे भुवनेशीम् ॥

286

भुवनेश्वरी यन्त्रोद्धार - सर्वप्रथम भुवनेश्वरी यन्त्र बनाकर उसकी षोडशो- पचार पूजा करने से ही यन्त्रोद्धार हो जाता है ।

भुवनेश्वरी मन्त्रोद्धार — इसके लिए मूल मन्त्र का १०८ बार उच्चारण करने से ही मन्त्रोद्धार हो जाता है ।

भुवनेश्वरी मन्त्र

‘ह्रीं’

भुवनेश्वरी मन्त्र फल

य पठेच्छृणुयाद्वापि

एकचित्तेन

सर्व्वदा ।

स दीर्घायुः सुखी वाग्मी वाणी तस्य न संशयः ॥ १ ॥ गुरुपादरतो भूत्वा कामिनीनाम्भवे त्प्रियः । धनवान् गुणवान् श्रीमान् धीमान्निव गुरु प्रिये ॥२॥ सर्व्वेषान्तु प्रियो भूत्वा पूजयेत्सर्व्वदा स्तवम् । मन्त्र सिद्धि करस्थंव तस्य देवि न संशयः ॥३॥ कुबेरत्वम्भवेत्तस्य तस्याधीना हि सिद्धयः । मृतपुत्रा च या नारी दौर्भाग्यपरिपीड़िता ॥४॥ बन्ध्या वा काकवन्ध्या वा मृतवत्सा च याऽङ्गना । धनधान्यविहीना च रोगशोकाकुला च या ॥ ५॥ ताभिरेतन्महादेवि भूर्जपत्रे

सव्ये भुजे च बध्नीयात्सर्व्व सौख्यवती

छिन्नमस्ता मन्त्र

विलेखयेत् ।

भवेत् ॥६॥

विद्या प्राप्ति, धन प्राप्ति, शत्रु-नाश, मुकदमों में विजय, शत्रु पर विजय तथा अन्य सभी सिद्धियों के लिए छिन्नमस्ता साधना अत्यन्त ही प्रामाणिक और फलप्रद मानी गई है ।

छिन्नमस्ता ध्यान

प्रत्यालीढपदां सर्वव दधतीन्छिन्नं शिरः कर्त. का- न्दिग्वस्त्रां स्वकबन्धशोणितसुधाधारापिबन्तीन्मुदा ॥

नागाबद्धशिरोमणिन्त्रिनयनां

हृद्युत्पलालङ्कृताम् ।

रत्यासक्तमनोभवोपरि दृढान्ध्यायेन्जवासन्निभाम्

दक्ष

चातिसिताविमुक्तचिकुराकत्रन्तिथा खप्परं-

हस्ताभ्यान्दधती रजोगुणभवा नाम्नापि सा वणिनी ॥

देव्यारिछन्नकबन्धत पतद्सुग्धाराम्पिबन्ती मुदा । नागाबद्धशिरोमणिर्मनुविदा ध्येया सदा सा सुरैः ॥

प्रत्यालीढपदा

कबन्धविगलद्रक्तम्पिबन्ती

287

मुदा ।

संषा या प्रलये समस्तभुवनं भोक्तुं क्षमा तामसी ॥ शक्तिः सापि परात्परा भगवती नाम्ना परा डाकिनी । ध्येया ध्यानपरैः सदा सविनयं भक्तेष्टभूतिप्रदा ॥ छिन्नमस्ता यन्त्रोद्धार — छिन्नमस्ता यन्त्र बनाकर उसकी षोडशोपचार पूजा करने से ही यन्त्रोद्धार हो जाता है ।

हूं फट्

हूं फट्

•ho

फट्

Choo

हिन्नमस्ता यन्त्र

छिन्नमस्ता मन्त्रोद्धार — सर्वप्रथम लक्ष्मी बीज, फिर लज्जा बीज का उच्चा- रण करना चाहिए। इस प्रकार तीन बार करने से छिन्नमस्ता मन्त्रोद्धार हो जाता है

छिन्नमस्ता मन्त्र

श्रीं ह्रीं क्लीम् ऐं व का वे रो च नी ये हूं हुं फट् स्वाहा ।

288

छिन्नमस्ता मन्त्र फल-आधी रात को नित्य इस मन्त्र का जप करने से सरस्वती सिद्धि हो जाती है और साथ ही साथ इसकी वाक् सिद्धि भी हो जाती है । इस मन्त्र का सवा लाख जप करने से स्तम्भन सिद्धि हो जाती है जिससे कि वह समूह स्तम्भन कर सकता है । यदि केवल मात्र इस मन्त्र का नित्य जाप ही किया जाय तो उससे सभी पाप समाप्त हो जाते हैम् ।

वस्तुतः यह मन्त्र अत्यन्त ही गोपनीय है और योग्य पात्र देखकर ही इस मन्त्र का विधान बताना चाहिए ।

त्रिपुरभैरवी मन्त्र

आर्थिक उन्नति-रोग शान्ति, ऐश्वर्य-प्राप्ति तथा त्रैलोक्य-विजय के लिए त्रिपुर- भैरवी साधना की जाती है। वास्तव में ही यह मन्त्र अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण माना गया है ।

त्रिपुर भैरवी यन्त्रत्रिपुरभैरवी ध्यान

289

उद्यद्भानु सहस्रकान्तिमरुणक्षौमां शिरोमालिकाम् । रक्तालिप्तपयोधराञ्जपपटीं व्विद्यामभीति व्वराम् ॥ हस्ताब्जम् ईधतीन्त्रिनेत्रविलसद्वक्त्रारविन्दश्रियम् । देवीम्बद्ध हिमांशु रत्नमुकुटां वन्दे समन्दस्मिताम् ॥

त्रिपुर भैरवी यन्त्रोद्धार - इस यन्त्र को बनाकर इसकी षोडशोपचार पूजा करने से ही इस यन्त्र का उद्धार माना गया है ।

त्रिपुर भैरवी मन्त्रोद्धार — सर्वप्रथम ॐ शब्द बोलकर ‘हसकरी’ का उच्चा- रण करके मूल मन्त्र का उच्चारण करने से मन्त्रोद्धार हो जाता है ।

त्रिपुरभैरवी मन्त्र फल

त्रिपुरभैरवी मन्त्र

हसें ह स क ह सेम् ।

वारमेकं पठेन्मत्यों मुच्यते सर्व्वसङ्कटात् ।

धूमावती मन्त्र

किमन्यद् बहुना देवि सर्व्वाभीष्टफलं लभेत् ॥ अपुत्रो लभते पुत्रिन्निर्द्धनो धनवान्भवेत् । दीर्घरोगात्प्रमुच्येत पञ्चमे कविराज् भवेत् ॥

पुत्र लाभ, धन रक्षा और शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए इस मन्त्र का उपयोग किया जाता है। यह मन्त्र तुरन्त फलदायक और सुगम है ।

धूमावती ध्यान

विवर्णा चञ्चला दुष्टा दीर्घा च मलिनाम्बरा ।

विमुक्तकुन्तला रुक्षा विधवा विरलद्विजा ॥

काकध्वजरथारूढ़ा

शूर्प हस्तातिरुक्षाक्षा

विलम्बितपयोधरा ।

धूपहस्ता वरान्विता ॥

कुटिलेक्षणा ।

प्रवृद्धघोणा तु भृशङ्कुटिला

क्षुत्पिपासाद्दिता नित्यम्भयदा कलहास्पदा ॥

धूमावती यन्त्रोद्धार - लेखनी से या चन्दन की कलम से आलक्तक से यह

यन्त्र उत्कीर्ण करने पर यन्त्रोद्धार हो जाता है ।

धूमावती मन्त्रोद्धार - धूमावती मन्त्र का आठ बार उच्चारण करने से मन्त्रो-

द्धार हो जाता है ।

धूमावती मन्त्र

धूं धूं धूमा व ती ठः ठः ।

290

धूमावती यन्त्र

धूमावती मन्त्र फल

धनहुष्टा धनपुष्टा

धनरक्षा धनप्राणा

शत्रुग्रीवाच्छिवाछाया

शत्रुप्राणहराहाय्र्या

धनानन्दकरी सदा ॥

दानाध्ययनकारिणी ।

शत्रुपद्धतिखण्डिनी ।

शत्रून्मूलनकारिणी ॥

मदिरामोदयुक्तो वं

देवीध्यानपरायणः ।

तस्य शत्रु क्षयं याति यदि शक्रसमो पि वै ॥

291

बगलामुखी मन्त्र

बगलामुखी प्रयोग और बगलामुखी अनुष्ठान विश्वविख्यात हैम् । परन्तु यह प्रयोग अत्यन्त सावधानी चाहता है क्योङ्कि थोड़ी-सी गलती होते ही इसका विपरीत प्रभाव हो जाता है ।

बगलामुखी ध्यान

मध्ये

सुधाब्धिमणिमण्डपरत्नवेदी

सिंहासनोपरिगताम्परिपीतवर्णाम् ।

पीताम्बराभरणमाल्यविभूषिताङ्गी ॥

देवीन्नमामिघृतमुद्गरवंरिजिह्वाम् ॥

बगलामुखी यन्त्र

292

जिह्वाग्रमादाय करेण देवीं

शत्रून्परिपीडयन्तीम् ।

पीताम्बराढयाद्विभुजान्नमामि ।

व्वामेन

गदाभिघातेन च दक्षिणेन

बगलामुखी यन्त्रोद्धार - बगलामुखी यन्त्र को उत्कीर्ण करना ही यन्त्रोद्धार

कहा जाता है ।

बगलामुखी मन्त्रोद्धार

प्रणवं स्थिरमायाञ्च ततश्च बगलामुखि । तदन्ते सर्व्वदुष्टानान्ततो वाचम्मुखम्पदम् ॥ स्तम्भयेति ततो जिह्वाङ्कीलयेति पदद्वयम् । बुद्धिन्नाशय पश्चात्तु स्थिरमायां समालिखेट् ॥ लिखेच्च पुनरोङ्कारं स्वाहेति पवमन्ततः । षट्त्रंशदक्षरी विद्या सर्व्वसम्पत्करी मता ॥

बगलामुखी मन्त्र

ॐ ह्रीं बगलामुखि सर्व्वदुष्टानां व्वाचम्मुखम् । स्तम्भय जिह्वाङ्कीलय कीलय बुद्धिन्निाशय ह्रीं ॐ स्वाहा ।

बगलामुखी मन्त्र फल – बगलामुखी मन्त्र अत्यन्त ही गोपनीय और महत्त्वपूर्ण माना गया है । तान्त्रिक ग्रन्थों में कहा गया है कि जो एकचित्त होकर मात्र एक बार मन्त्र पढ़ता है तो उसके समस्त पाप क्षय हो जाते हैम् । दो बार पढ़ने से सभी प्रकार के विघ्न शान्त हो जाते हैम् और तीन बार पढ़ने से तो सभी प्रकार के कार्य सहज ही होने लगते हैम् ।

इस मन्त्र का जप होने से शत्रुओं पर निश्चित ही विजय प्राप्त की जा सकती है और मुकदमों में पूर्ण रूप से सफलता प्राप्त होती है ।

इसके साथ ही साथ विद्या प्राप्ति के लिए, स्मरण शक्ति बढ़ाने के लिए और आर्थिक उन्नति के लिए भी इस मन्त्र का प्रयोग किया जा सकता है ।

मातङ्गी मन्त्र

सुन्दरता बढ़ाने के लिए, शीघ्र विवाह तथा गृहस्थ जीवन को पूर्णतः सुखमय बनाने के लिए इस मन्त्र का अनुष्ठान करने का विधान है ।

मातङ्गी ध्यान

श्यामाङ्गीं शशिशेखरान्त्रिनयनां रत्नसिंहासनस्थिताम् । वेदे बहुदण्डे र सि - खेटक—पाशाङ्कुशधराम्

11

293

मातङ्गी यन्त्रोद्धार - मातङ्गी यन्त्र बनाकर जवा पुष्पों से पूर्ण विधि-विधान के साथ पूजा करने से मातङ्गी यन्त्रोद्धार होता है ।

मातङ्गी यन्त्र

,

मातङ्गी मन्त्रोद्वार — सर्वप्रथम प्रणव, फिर माया बीज और काम बीज लगा- कर मातङ्गी मन्त्र पढ़ने से मन्त्रोद्धार हो जाता है ।

मातङ्गी मन्त्र

ॐ ह्रीं क्लीं हूं मातङ्ग्यै फट् स्वाहा ॥

मातङ्गी मन्त्र फल – जीवन में पूर्ण गृहस्थ सुख और पत्नी सुख के लिए इस मन्त्र का विधान बताया गया है। साथ ही साथ यदि किसी कन्या का विवाह नहीं हो रहा हो या विवाह में बाधाएम् आ रही होम् अथवा मनोवाञ्छित स्थान पर विवाह न हो रहा हो तो इस मन्त्र का प्रयोग करने से पूर्ण सफलता प्राप्त हो जाती है ।

294

इसके साथ ही साथ पुत्र लाभ के लिए भी इस मन्त्र का प्रयोग बताया गया है। जीवन में सभी प्रकार के भौतिक सुखों की उपलब्धि के लिए यह मन्त्र अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण माना गया है ।

कमला मन्त्र

इसे कुछ विद्वान् कमला और कुछ कमलात्मिका कहते हैम् । यह लक्ष्मी का ही रूप है तथा जीवन में श्रेष्ठतम धन प्राप्ति के लिए इसका अनुष्ठान बताया गया है ।

वास्तव में ही यह अनुष्ठान व्यापार-वृद्धि के लिए, आर्थिक उन्नति के लिए, भौतिक सुखों की प्राप्ति के लिए तथा जीवन में समस्त प्रकार के सुखोपभोग के लिए महत्त्वपूर्ण माना गया है ।

कमला यन्त्र

295

कमलात्मिका ध्यान

कान्त्या काञ्चनसन्निभां हिमगिरिप्रख्यैश्चतुर्भिर्गजः । हस्तोत्क्षिप्त हिरण्मयामृतघटेरासिच्यमानां श्रियम् ॥ बिभ्राणां व्वरमब्जयुग्ममभयं हस्ते किरीटोज्ज्वलाम् । क्षौमाबद्धनितम्बबिम्बलसितां वन्देऽरविन्कस्थिताम् ॥१॥

कमलात्मिका यन्त्रोद्धार – यन्त्र को उत्कीर्ण कर षोड

ही यन्त्रोद्धार माना गया है ।

चार से पूजा करना

कमलात्मिका मन्त्रोद्धार - सर्वप्रथम मन्त्र को लिखकर वाग्बीज, लज्जाबीज, श्री बीज, लिखकर ॐ शब्द लिखना चाहिए और फिर मूल मन्त्र लिखकर फिर श्री बीज, लज्जाबीज, तथा वाग्बीज, लिखने से मन्त्रोद्धार हो जाता है ।

कमलात्मिका मन्त्र

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं ह् सौः ज ग त्प्र सू त्यै नमः ॥

कमलात्मिका मन्त्र फल — शास्त्रों मेम् उल्लेख है कि इस मन्त्र से ऊञ्चा कोई मन्त्र आर्थिक समृद्धि के लिए नहीं है । इस मन्त्र और इसके अनुष्ठान से मनुष्य जीवन मेम् आर्थिक भौतिक क्षेत्र मेम् उच्चतम शिखर पर पहुञ्चने में समर्थ हो सकता है। दरिद्रता निवारण, व्यापार-उन्नति, तथा आर्थिक उन्नति के लिए इस मन्त्र का प्रयोग सर्वश्रेष्ठ माना गया है ।

वास्तव में ही यह मन्त्र लक्ष्मी मन्त्र और कनकधारा मन्त्र से भी बढ़कर फल- दायक सिद्ध हुआ है । आवश्यकता इस बात की है कि यह अनुष्ठान पूर्ण विधि- विधान के साथ किया जाय जिससे कि श्रेष्ठ फल प्राप्त किया जा सके ।

दुर्गा मन्त्र

जीवन में मोक्ष-प्राप्ति के लिए और सभी क्षेत्रों में समान रूप से पूर्ण सफलता के लिए इस मन्त्र का प्रयोग किया जाना अनुकूल माना जाता है ।

दुर्गा ध्यान

दुर्गा यन्त्र

सिंहस्कन्धसमारूढान्नानालङ्कार भूषिताम् ।

चतुर्भुजाम्महादेवीन्नागयज्ञोपवीतिनीम् ॥ रक्तवस्त्रपरीधानाम्बालार्कसदृशीतनुम् । नारदाद्यैर्मुनिगणैः सेविताम्भवगेहिनीम् ॥

त्रिवलीवलयोपेतनाभिनालसुवेशिनीम् रत्नद्वीपे महाद्वीपे सिंहासनसमन्विते ॥ प्रफुल्ल कमलारूढान्ध्यायेताम्भवगेहिनीम् ॥

मन्त्रोद्धार हो जाता है ।

  • दुर्गा यन्त्र का उत्कीर्ण करके उसका पूजन करने से दुर्गा

296

दुर्गा मन्त्रोद्धार - दुर्गा मन्त्र का १०८ बार उच्चारण करने से हो दुर्गा

मन्त्रोद्धार हो जाता है ।

दुर्गा मन्त्र

ॐ ह्रीं दुन्दुर्गायै नमः ॥

दुर्गा मन्त्र फल - सभी प्रकार की सिद्धियों के लिए इस मन्त्र का प्रयोग किया जाता है, साथ ही साथ शक्तिमान, भूमिवान बनने के लिए इस साधना का प्रयोग अनुकूल माना गया है ।

शिव मन्त्र

दुर्गा यन्त्र

मोक्ष प्राप्ति के लिए तथा मृत्यु भय को समाप्त करने के लिए इससे बढ़कर कोई मन्त्र नहीं है । शास्त्रों में कहा गया है कि जो इस मन्त्र का जप या अनुष्ठान

297

करता है उसकी इच्छा-मृत्यु होती है और जीवन मेम् उसे रोग, शोक, भय, व्याधि, व्याप्त नहीं होती ।

शिव ध्यान

ध्यायेन्नित्यम्महेशं रजत गिरिनिभन्चारुचन्द्रावतंसम् । रत्नाकन्पोज्ज्वलाङ्गम्परशुमृगवर भीतिहस्तम्प्रसन्नम् ॥

पद्मासीनं समन्तात्स्तुतममरगणैव्वर्याघ्रकृ तिव्वसानम् । विश्वाद्यं विश्वबीजन्निखिल भयहरवक्त्रत्रिनेत्रम् ॥

शिव यन्त्र

शिव यन्त्रोद्धार - शिव यन्त्र बनाकर उसकी पञ्चोपचार पूजा करने से ही शिव यन्त्रोद्धार हो जाता है ।

शिव मन्त्रोद्वार- प्रारम्भ में प्रणव लगाकर मन्त्र उच्चारण करना चाहिए और इस प्रकार पाञ्च बार उच्चारण करने से मन्न्त्रोद्धार हो जाता है ।

298

शिव मन्त्र

ॐ नम श्शि वा य ।

शिव मन्त्र फल - यह छः अक्षरों का मन्त्र अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण और सिद्धि- दायक माना गया है । इसके जप करने से जीवन में किसी प्रकार का दुःख, बन्धन, या कष्ट नहीं रहता । मृत्यु भय समाप्त करने, रोग निवारण करने, तथा जीवन में मोक्ष प्राप्ति के लिए इस मन्त्र का सतत जप होना चाहिए। शास्त्रों में कहा गया है कि चौबीस लाख मन्त्र जपने पर साधक स्वयं शङ्करवत् हो जाता है ।

गणेश मन्त्र

किसी भी माङ्गलिक कार्य में सबसे पहले गणपति का ध्यान और पूजा की जाती है क्योङ्कि गणपति विघ्नों को नाश करने वाले तथा मङ्गलमय वातावरण बनाने वाले माने गये हैम् ।

गणेश यन्त्र

हारी299

अभाव नहीं रहता

करने में समर्थ हो

गणेश मन्त्र जप करने से जीवन में किसी भी प्रकार का और वह जीवन में पूर्ण भौतिक और आध्यात्मिक सफलता प्राप्त जाता है । क्योङ्कि यही एक ऐसे देवता हैं जो भौतिक और आध्यात्मिक दोनों ही प्रकार की सफलताओं को एक साथ देने में समर्थ हैम् ।

गणेश ध्यान

हस्तीन्द्राननमिन्दुचूडमरुणच्छाय त्रिनेत्रं रसा । श्लिष्टम्प्रियया सपद्मकरया स्वाङ्कस्थया सन्ततम् । बीजापूरगदाधनुस्त्रिशिखियुक्च क्राब्जपाशोत्पल

कञ्जाभैः स्वविषाणरत्नकलशौ हस्तेर्व्वहन्तम्भजे ॥

गणेश यन्त्रोद्धार - गणेश यन्त्र बनाकर उसका पूजन करने से ही गणेश यन्त्रो- द्धार हो जाता है ।

जाता है ।

गणेश मन्त्रोद्धार - इस मन्त्र को २८ बार स्मरण करने से ही मन्त्रोद्धार हो

गणेश मन्त्र

ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं गङ्गणपतये वरवरद

सर्व्वजनम्मे वशमानय ठः ठः ।

गणेश मन्त्र फल-सभी प्रकार के विघ्नों के नाश हेतु, सभी सिद्धियों की प्राप्ति हेतु तथा समस्त प्रकार के पापों का नाश करने के लिए इस प्रकार के अनुष्ठान का विधान शास्त्रों में बताया गया है ।

ग्रह पीड़ा, ज्वर, रोग आदि तो मन्त्र उच्चारण करते ही समाप्त हो जाते हैम् । धन-धान्य की वृद्धि के लिए तथा समस्त प्रकार के सुखों के लिए इस मन्त्र का जप अत्यन्त महत्त्वपूर्ण माना गया है ।

सूर्य मन्त्र

आङ्खों की रोशनी बढ़ाने के लिए, चेहरे पर तेजस्विता लाने के लिए तथा जीवन में दीर्घायु प्राप्त करने के लिए इस अनुष्ठान का विधान शास्त्रों में प्रामाणिक माना गया है ।

सूर्य ध्यान

भास्वद्रत्नाढ्यमौलिः स्फुरदधररुचारञ्जितश्चारुकेशी । भास्वान्योदिव्यतेजा करकमलयुतः स्वर्णवर्ण प्रभाभिः । विश्वाकाशावकाशो ग्रहगणसहितो भाति यश्चोदयाद्रौ सर्व्वानन्दप्रदाता हरिहरनमित पातु मां व्विश्वचक्षुः ॥

सूर्य यन्त्रोद्धार - सर्वप्रथम सूर्य यन्त्र बनाकर प्रणव, माया बीज आदि से पूजन करना ही यन्त्रोद्धार माना गया है ।

ओंऐम्

ओम् ऐं

KIKIS

300

ओम् ऐं

विद्युता तपन

मार्तण्ड

ओंऐं

दीप्ता आदित्य

श्रीः

ओम् ऐम्

ओ ऐं

सूक्ष्मा भास्कर

सूर्य यन्त्र

सूर्य मन्त्रोद्धार - इस आठ अक्षरों वाले मन्त्र का आठ बार उच्चारण करने से ही मन्त्रोद्धार हो जाता है ।

सूर्य मन्त्र

ॐ घृणिः सूर्य आदित्यः ।

सूर्य मन्त्र फल - शास्त्रों में बताया गया है कि इस मन्त्र का जप करने से जीवन-भर उसके चेहरे की कान्ति बनी रहती है और ज्यों-ज्योम् आयु बढ़ती है त्यों- त्योम् उसकी आँखों की चमक भी बढ़ती रहती है ।

भूत, प्रेत, पिशाच, आदि इस मन्त्र के उच्चारण करते ही भाग जाते हैम् । यदि कोई इस मन्त्र को भोजपत्र पर अष्ट गन्ध से अकिन्त कर दाहिनी भुजा पर बान्धे तो वह निश्चय ही त्रैलोक्य विजय में सफलता प्राप्त करता है ।

301

सभी प्रकार के मङ्गल कार्य उसके घर में होते रहते हैं तथा ऐसा व्यक्ति धन- वान, पुत्रवान, कीर्तिमान और विद्यावान होता है ।

स्मरण शक्ति बढ़ाने के लिए और जीवन मेम् अपने व्यक्तित्व को विश्वव्यापी बनाने के लिए यह अनुष्ठान अत्यन्त ही सहायक माना गया है ।

वस्तुतः इस मन्त्र को मन्त्रराज कहा जाता है अतः दीर्घायु, स्वास्थ्य, भौतिक सुख, कीर्ति-लाभ, आदि के लिए इस मन्त्र का जप सतत करते रहना चाहिए ।

वास्तव में ही इस कलियुग में यह मन्त्र अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण और तुरन्त फल- दायक माना गया है ।

विष्णु मन्त्र

जीवन मेम् आर्थिक, भौतिक उन्नति के लिए तथा सभी प्रकार से जीवन में पूर्णता प्राप्ति के लिए यह अनुष्ठान सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण माना गया है ।

विष्णु ध्यान

विश्वाधारं गगनसदृशम्मेघवर्णं

शान्ताकारम्भुजगशयनम्पद्मनाभं

सुरेशम् ।

शुभाङ्गम् ।

लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम् ।

वन्दे विष्णुम्भवभयहरं सर्व्वलोकैकनाथम् ॥

विष्णु यन्त्रोद्धार’ - विष्णु यन्त्र बनाकर उसकी षोडशोपचार पूजा करने से विष्णु यन्त्रोद्धार हो जाता है ।

विष्णु मन्त्रोद्वार - विष्णु मन्त्र का १०८ बार उच्चारण करने से मन्त्रोद्धार हो जाता है ।

विष्णु मन्त्र

ॐ नमो नारायणाय ।

विष्णु मन्त्र फल - कुटुम्ब में प्रसन्नता, घर मेम् एकता, भौतिक उन्नति, साधु- सन्तों का समागम, अक्षय कीर्ति तथा समस्त प्रकार की सिद्धियों के लिए यह मन्त्र और अनुष्ठान अत्यन्त ही सफल और प्रामाणिक माना गया है ।

षडक्षर वक्रतुण्ड मन्त्र

यह मन्त्र ऋद्धि सिद्धि देने वाला तथा आर्थिक दृष्टि से पूर्ण सफलता देने वाला माना गया है ।

१. शिव यन्त्र और विष्णु यन्त्र मेम् अन्तर नहीं है । अतः पृष्ठ २६७ पर बने शिव यन्त्र

को ही विष्णु यन्त्र ही समझेम् ।

302

विनियोग

ॐ अस्य श्री गणेश मन्त्रस्य भार्गवऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, विघ्नेशो देवता, वं बीजम्:, यं शक्तिः, ममाभीष्ट सिद्धये जपे विनियोगः ।

ध्यान

उद्यद्दिनेश्वररुचि निजहस्तपद्मः,

पाशाङ्कुशाभयवरान्दधतं

गजास्यम् ।

रक्तांवरं सकलदुःखहरं गणेशं,

ध्यायेत्प्रसन्नमखिलाभरणाभिरामम् ॥

वक्रतुण्ड गणेश यन्त्र - इस यन्त्र को बनाकर इसकी षोडशोपचार पूजा करने से यह यन्त्र सिद्ध हो जाता है। इस यन्त्र को भोजपत्र पर अङ्कित कर यदि दाहिनी भुजा पर बान्धे तो उसके जीवन में किसी भी प्रकार से आर्थिक अभाव नहीं रहता ।

षडक्षर वक्रतुण्ड मन्त्र

वक्रतुण्डाय हुं

मन्त्रफल : यह मन्त्र गणेश जी का प्रिय मन्त्र है और सवा लाख मन्त्र जप करने से यह सिद्ध हो जाता है। इसमेम् इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि अनुष्ठान में पूर्णतः ब्रह्मचर्य व्रत पालन करे और सवा लाख मन्त्र जप करने के बाद दशांश जप करे और आहुति दे । ऐसा करने से यह मन्त्र सिद्ध हो जाता है ।

एकत्रिंशदक्षर वक्रतुण्ड मन्त्र

यह ३१ अक्षरों वाला गणेश मन्त्र है और अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण तथा गोप- नीय माना गया है ।

विनियोग

ॐ अस्य श्री वक्रतुण्ड गणेश मन्त्रस्य, भार्गव ऋषिः, श्रनष्टुप् छन्दः, विघ्नेशो देवता, यं बीजम्, यं शक्ति । ममाभीष्टसिद्धये जपे विनियोगः ।

ध्यान — इसका ध्यान भी ऊपर षडक्षर वक्रतुण्ड मन्त्र का ध्यान जो दिया है वही है । तथा इसका यन्त्र भी वही है तथा उसको सिद्ध करने की विधि भी उसी प्रकार से है जिस प्रकार से षडक्षर वक्रतुण्ड मन्त्र की है ।

एकत्रिंशदक्षर वक्रतुण्ड मन्त्र

रायस्पोषस्य दविता निधिदो रत्न घातुमान, रक्षोहणोवलगहनोवक्रतुण्डाय हुम् ।

उच्छिष्टगणपतिनवार्ण मन्त्र

यह मन्त्र विशेष रूप से तान्त्रिक गणपति साधना करने के लिए सफल माना गया है और इसकी विधि, पूजा-विधान सभी कुछ तान्त्रिक तरीके से ही है।

303

विनियोग

ॐ अस्य श्री उच्छिष्ट गणेश नवार्ण मन्त्रस्य, कङ्कोल ऋषिः, विराट् छन्द, उच्छिष्टगणपतिर्देवता, श्रखिलाप्तये जपे विनियोगः ।

ध्यान

चतुर्भुजं रक्ततनुं त्रिनेत्रं

पाशाङ्कुशो मोदकपात्रदन्तौ ।

कर्रर्दधानं सरसीरुहस्य

मुन्मत्त मुच्छिष्ट गणेश मीडे ।

उच्छिष्टगणपतिनवार्ण मन्त्र

हस्तिपिशाचिलिखे स्वाहा ॥

फल – यह मन्त्र अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण माना गया है और इसके माध्यम से आर्थिक अनुकूलता एवं भौतिक समृद्धि तुरन्त प्राप्त होती है ।

चाहिए ।

जिसको तान्त्रिक साधना में रुचि हो उसे इस मन्त्र को अवश्य ही सिद्ध करना

शक्ति विनायक मन्त्र

यह मन्त्र आर्थिक उन्नति के साथ-साथ धन, धान्य, पृथ्वी, भवन, कीर्ति, यश, सम्मान. वाहन आदि भौतिक सुखों में भी शीघ्र सफलतादायक है ।

यह मन्त्र पाञ्च लाख जपने से सिद्ध होता है। इसमें साधना काल मेम् एक बार आहार लेना चाहिए और इसके अलावा पूरे दिन में किसी भी प्रकार का व्यसन या अन्य पदार्थ का उपयोग नहीं करना चाहिए ।

विनियोग

ॐ अस्य शक्तिगणाधिपमन्त्रस्य भार्गव ऋषिः, विराट् छन्द, शक्तिगणाधिपो देवता, श्री बीजम्, ह्रीं शक्तिः, ममाभीष्टसिद्धये जपे विनियोगः ।

ध्यान

विषाणां कुशावक्षसूत्रं च पाशम् ।. दानं करें मोन्दकं पुष्करेण ॥

स्वपत्न्यायुतं हेमभूषामराठ्यम् ।

समुद्याद्दिनेशाभमीडे ॥

गणेशं

शक्ति विनायक मन्त्र

ॐ ह्रीं ग्रीं ह्रीम् ।

304

फल - यह मन्त्र तुरन्त और अचूक फल देने में समर्थ है। अतः जिनको जल्दी भौतिक सुख प्राप्त करना हो उन्हेम् इस मन्त्र को सिद्धि करनी चाहिए ।

लक्ष्मी विनायक मन्त्र

यह लक्ष्मी और गणपति का सयुक्त मन्त्र है तथा इसे विशेष फलदायक मन्त्र माना गया है । इसे साधना में सफल करने के लिए साधक को पूर्ण ब्रह्मचर्य व्रत पालन करने के साथ-साथ सात्विक आहार का सेवन करना चाहिए ।

विनियोग

श्रस्य लक्ष्मी विनायक मन्त्रस्य अन्तर्यामी ऋषि, गायत्री छन्द, लक्ष्मीविनायको देवता, श्रीं बीजं, स्वाहा शक्तिः, ममाभीष्ट सिद्ध यर्थे जपे विनियोगः ।

ध्यान

दन्तामये चक्रवरौ दधानं कराग्रगं स्वर्णघटं त्रिनेत्रम् । घृताब्ज यालि गितमब्धिपुत्र्या लक्ष्मी गणेशं कनकाममीडे ।

लक्ष्मी विनायक मन्त्र

ॐ श्रीं गं सौम्याय

गणपतये ।

वरवरद सर्वजनम्मे वशमानय स्वाहा ॥

फल-पाञ्च लाख मन्त्र जपने से यह मन्त्र सिद्ध होता है । इसमें ज्यादा से ज्यादा चौबीस दिन लगने चाहिए। तथा इस मन्त्र को रात्रि में ही जपना चाहिए ।

त्रैलोक्यमोहन कर गणेश मन्त्र

यह मन्त्र सम्मोहन कार्यों में विशेष रूप से उपयोगी है। और जो साधक इस मन्त्र को सिद्ध कर लेता है उसके चेहरे में स्वतः ही ओजस्विता आ जाती है । फल- स्वरूप उसके प्रभाव से बात करने वाला व्यक्ति स्वयं ही सम्मोहित हो जाता है ।

विनियोग

अस्य श्री त्रैलोक्यमोहन कर गणेश मन्त्रस्य गणक ऋषि, गायत्री छन्दः, त्रैलोक्य मोहन करो गणेशो देवता, ममाभीष्ट सिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः ।

ध्यान

गदाबीजपूरे धनुः शूलचक्रे, सरोजोत्पले पाशधान्याग्रदन्तान् । करैः सन्दधानं स्वशुण्डाग्रराजन्मणी कुम्भमङ्गाधिरूढं स्वपत्न्या ॥

सरोजन्मना भूषणानां भरेणोज्ज्वलद्धस्ततन्वया समालिगिताङ्गम् । करीन्द्राननं चन्द्रचूडं त्रिनेत्रं जगन्मोहनं रक्तकान्तिं भजेत्तम् ॥

त्रैलोक्य मोहन कर गणेश मन्त्र

305

वक्र तुण्डेकदंष्ट्राय क्लीं ह्रीं श्रीं गं गणपते बरवरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा ।

फल-पाञ्च लाख मन्त्र करने से यह मन्त्र सिद्ध होता है। इसमें गणपति की मूर्ति सामने होनी चाहिए और उस पर त्राटक करते हुए मन्त्र जपना चाहिए ।

साधना काल मेम् एक समय भोजन करना चाहिए तथा ब्रह्मचर्य व्रत का दृढ़ता से पालन करना चाहिए ।

ऋणहर्ता गणेश मन्त्र

यह ऋण दूर करने तथा दरिद्रता नाश करने के लिए सर्वोत्तम मन्त्र है । प्रत्येक गृहस्थ को इस मन्त्र का जप नित्य करना चाहिए।

विनियोग

ॐ अस्य श्री ऋणहरण कृर्तुं गणपति स्तोत्र मन्त्रस्य सदाशिव ऋषिः, अनुष्टुप छन्दः, श्री ऋण हर्तुं गणपतिर्देवता, ग्लौं बीजम्, गः शक्तिः, गौं कीलकम् । मम सकलॠणनाशने जपे विनियोगः ।

ध्यान

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ॐ सिन्दूर वर्णं द्विभुजं गणेशं लम्बोदरं पद्मदले निविष्टम् । ब्रह्मादिदेवैः परिसेव्यमानं सिद्धेर्युतं तं प्रणमामि देवम् ॥

सृष्टचादी ब्रह्मणा सम्यक् पूजितः फलसिद्धये । सदैव पार्वतीपुत्रः ऋणनाशं

त्रिपुरस्य

करोतु मे ॥

शम्भुना सम्यगतिः

सदैव पार्वतीपुत्रः ऋणनाशं करोतु मे ॥ हिरण्यकश्यप्वादीनां बधायें विष्णुनाचितः । सदैव पार्वतीपुत्रः ऋणनाशं करोतु मे ॥ महिषस्य वधे देव्या गणनाथः प्रपूजितः । सदैव पार्वतीपुत्रः ऋणनाशं करोतु मे ॥

ऋणहर्ता गणेश मन्त्र

ॐ गणेश ऋणं छिधि वरेण्यं हुं नमः फट् ॥

फल - यह दरिद्र नाश के लिए सर्वोत्तम विधान है और यहां तक कहा गया

है कि जिसके घर मेम् एक बार भी इस मन्त्र का उच्चारण हो जाता है उसके घर में कभी भी ऋण या दरिद्रता नहीम् आ सकती ।

-306

हरिद्रा गणेश मन्त्र

यह मन्त्र गृहस्थ जीवन सुखी बनाने के लिए तथा पौरुष, वीरता, वीर्य-स्तम्भन तथा पूर्ण सम्भोग सुख एवं नपुंसकता समाप्त करने के लिए सर्वश्रेष्ठ माना गया है । विनियोग

अस्य हरिद्रा गणनायक मन्त्रस्य मदन ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, हरिद्रागणनायको देवता, ममाभीष्टसिद्धयर्थे जपे विनियोगः ।

ध्यान

पाशाङ्कुशौ मोदकमेकदन्तं करैर्दधानं कनकासनस्थम् । हारिद्रखण्डप्रतिमं त्रिनेत्रं पीतांशुकं रात्रि गणेश मीडे ॥

हरिद्रागणेश मन्त्र

ॐ हुं गं ग्लौं हरिद्वा गणपतये वरवरद सर्वजन हृदयं स्तम्भय स्तम्भय स्वाहा । फल —यह साधना सरल होने के साथ-साथ विशेष सावधानी की अपेक्षा रखती है । साधक को साधना करते समय पीले रङ्ग के वस्त्र ही धारण करने चाहिए तथा इसमें हल्दी के टुकड़ों से निर्मित माला का प्रयोग किया जाना चाहिए ।

रात्रि को बिछौना पीले रङ्ग का होना चाहिए तथा भोजन करते समय उसमेम् एक वस्तु बेसन की अवश्य होनी चाहिए तथा एक बार भोजन करने के साथ ही साथ पूर्णतः ब्रह्मचर्य पालन अत्यन्त आवश्यक है ।

सिद्धि विनायक मन्त्र

प्रत्येक प्रकार की साधना से पूर्व साधक लोग इस मन्त्र को सिद्ध कर लेते हैं जिससे कि साधना में सफलता मिल सके और साधना-काल में किसी प्रकार की बाधा उपस्थित न हो ।

विनियोग

ध्यान

ॐ ह्रीं क्लीं वीरवर गणपतये वः वः इदं विश्वं मम वशमानय ॐ ह्रीं फट् ।

ॐ गं गणपतये सर्वविघ्न हराय सर्वाय सर्व गुरवे लम्बोदराय ह्रीं गं नमः ।

सिद्धि विनायक मन्त्र

ॐ नमो सिद्धिविनायकाय सर्वकार्यकत्रे सर्वविघ्न प्रशमनाय सर्वराज्य वश्य- करणाय सर्वजन सर्वस्त्री पुरुषाकर्षणाय श्रीं ॐ स्वाहा ।

फल—यह मन्त्र अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण और श्रेष्ठ माना गया है। इसके बारे में कहा गया है कि प्रत्येक गृहस्थ को १०८ बार इस मन्त्र का उच्चारण प्रतिदिन

307

अवश्य ही करना चाहिए जिससे कि दिनभर उसे प्रत्येक कार्य में सफलता मिलती रहे । यदि यात्रा काल मेम् इस मन्त्र को जपा जाय तो मार्ग भय नहीं रहता और उसकी यात्रा सफल होती है ।

मन्त्र सिद्ध हो

साधना में लाल वस्त्र पहनना चाहिए और रक्त चन्दन का त्रिपुण्ड लगाकर सवा लाख मन्त्र जप चौबीस दिन में पूरे करने चाहिए जिससे कि यह सके। इसके बाद मन्त्र का दशम भाग यज्ञ मेम् आहुति देनी चाहिए। जप काल में भूमि पर सोना चाहिए। यदि कुम्हार के यहां से मृत्तिका लाकर गणेश की प्रतिमा बनाकर नित्य उसके सामने एक हजार जप करे तो भी सात दिनों में यह मन्त्र सिद्ध हो जाता है ।

इस मन्त्र के जप करने से स्मरण शक्ति बढ़ती है। अविवाहित शीघ्र विवाह कर लेते हैम् और आर्थिक अभाव वाले व्यक्ति सम्पन्न हो जाते हैम् ।

यदि नित्य सायङ्काल एक हजार जप एक आसन पर किया जाय तो सौ दिन में वाक् सिद्धि हो जाती है और वह जो भी कहता है वह पूर्ण हो जाता है ।

यदि नित्य दोपहर मेम् एक आसन पर एक हजार मन्त्र जप करे और इस प्रकार एक महीने तक जप करे तो वह पूर्ण धनवान बनकर पूर्ण भौतिक सुख प्राप्त करने में सफल हो पाता है ।

यदि आक की जड़ के गणपति बनाकर उसके सामने नित्य पाञ्च हजार जप करे और इस प्रकार चाबीस दिन मन्त्र जप हो तो उसे श्रेष्ठतम धन लाभ होता है और वह कुबेर के समान धनपति हो जाता है ।

शिव पञ्चाक्षरी मन्त्र

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यह मन्त्र सामान्य और सरल होते हुए भी अत्यन्त प्रभावपूर्ण है और शास्त्रोम् अनुसार इसका प्रभाव तुरन्त एव अचूक होता है ।

प्रत्येक गृहस्थ को चाहिए कि वह इस प्रकार के मन्त्र का उपयोग अपने दैनिक जीवन में करे ।

विनियोग

श्रस्य श्री शिवपञ्चाक्षरी मन्त्रस्य वामदेव ऋषिः, पङ्क्तिश्छन्दः, ईशानो देवता, ॐ बीजम् नमः शक्तिः, शिवायेति कीलकम्, जतुर्विध पुरुषार्थ सिद्धयर्थं न्यासे विनियोगः ।

ध्यान

ध्यायेन्नित्यं महेशं रजतगिरिनिभं चारुचन्द्रावतंसम् । रत्नाकल्पोज्ज्वलाङ्गं परशुमृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नम् ॥ पद्मासीनं समन्तात्स्तुतममरगणं व्याघ्र कृतिवसानम् । विश्वाद्यं विश्वबीजं निखिलभयहरं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रम् ॥

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308

शिव पञ्चाक्षरी मन्त्र

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ॐ नमः शिवाय ।

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फल -यह मन्त्र उन साधकों के लिए अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण है जो गृहस्थ हैम् और ज्यादा विधि-विधान नहीं कर पाते। क्योङ्कि यह मन्त्र चलते-फिरते हर समय जपा जा सकता है। दस लाख मन्त्र जपने पर यह सिद्ध हो जाता है ।

अष्टाक्षरी शिव मन्त्र

FIFE

यह मन्त्र आर्थिक समृद्धि तथा जीवन में सभी दृष्टियों से ऊञ्चा उठने के लिए अनुकूल तथा सहायक है ।

विनियोग

FIVE PRITE FT 6

ॐ अस्य श्री शिवाष्टाक्षर मन्त्रस्य वामदेव ऋषिः, पङ्क्तिश्छन्दः, उमापतिर्देवता सर्वेष्ट सिद्धये विनियोगः ।

ध्यान

बन्धूकसन्निभ

वेवं त्रिनेत्रं चन्द्रशेखरम् ।

त्रिशूलधारिणं वन्दे चारुहासं सुनिर्मलम् ॥

की

कपालधारिणं देव वरदाभय हस्तकम् ।

उमया सहितं शम्भुं ध्यायेत्सोमेश्वरं सदा ॥

अष्टाक्षरी शिव मन्त्र

ह्रीं ॐ नमः शिवाय ह्रीम् ।

कृ

फल — इस मन्त्र का जप एक लाख किया जाता है और फिर इसका दशांश मधु एवं घृत की आहुतियां देकर यज्ञ किया जाता है तब यह मन्त्र सिद्ध हो पाता है ।

यह मन्त्र सौभाग्य, सम्पदा, मोक्ष एवं सर्वतोमुखी उन्नति के लिए अत्यन्त ही

अनुकूल है ।

त्र्यक्षर मृत्युञ्जय मन्त्र

रोग, शान्ति तथा मृत्यु भय को दूर करने के लिए यह मन्त्र सर्वाधिक उप- योगी माना गया 1

विनियोग

अस्य त्र्यक्षरात्मक मृत्युजय मन्त्रस्य, कहोल ऋषिः, गायत्री छन्दः, मृत्युञ्जयो महादेवो देवता, जू’ बीजम्, सः शक्तिः, सर्वेष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोगः ।309

ध्यान

कार क

चन्द्रार्कान विलोचनं स्मितमुखं पद्मद्वयान्तः स्थितम् । मुद्रापाश, मुङ्गाक्ष सूत्र विलसत्पाणिं हिमांशुप्रभम् । कोटीरेन्दु गलत्सुषाप्लुततनु हारादि भूषोज्ज्वलम् । कान्या विश्वविमोहनं पशुपतिं मृत्युञ्जयं भावयेत् ॥

त्र्यक्षर मृत्युञ्जय मन्त्र

ॐ हौं जूं सः ।

फल — इस मन्त्र का तीन लाख जप करने से यह सिद्ध होता है । पुरश्चचरण के लिए दशांश दुग्ध, जल, तिल, घी, और शक्कर लेकर यज्ञ करना चाहिए। ऐसा करने से ही मन्त्र सिद्ध होता है ।

यह मन्त्र सिद्ध होने से वाक् सिद्धि, आयु, आरोग्य, सम्पत्ति, यश, पुत्र आदि मेम् अनुकूल सुख प्राप्त होता है। इससे असाध्य रोग दूर होता है तथा जीवन में किसी भी प्रकार की लम्बी बीमारी या कष्ट नहीम् आ पाता ।

त्र्यम्बक मन्त्र

यह मन्त्र कालभक्षी माना गया है। जिसकी आयु कम हो उसे इस मन्त्र का विधान अवश्य ही करना चाहिए ।

विनियोग

अस्य त्र्यम्बक मन्त्रस्य वसिष्ठ ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, त्र्यम्बक पार्वती पतिर्देवता, त्र्यं बीजम्, बं शक्तिः, कं कीलकम्, सर्वेष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोगः ।

ध्यान

चि

प्रका

ि

हस्ताभ्यां कलशद्वयामृतरसंराप्लावयन्तं शिरो । द्वाभ्यां तौ दधतं मृगाक्षवलये द्वाभ्यां वहतं परम् ॥ श्रङ्कन्यस्त. करद्वयामृतघटं कैलासकान्तं शिवम् । स्वच्छाम्भोजगतं नवेन्दु मुकुटं देवं त्रिनेत्रं भजे ॥

त्र्यम्बक मन्त्र

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ।

उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥ उर्वारुकमिव

फल – इस मन्त्र का एक लाख जप करने से व्यक्ति समस्त इन्द्रियों को जीत

लेता है । इस मन्त्र को सिद्ध करने के लिए शिव पर बिल्व, पलाश आदि चढ़ाने. चाहिए । मन्त्र सिद्ध होने पर वह शत्रुओं पर पूर्ण विजय प्राप्त करता है और उसकी इच्छा मृत्यु होती है ।

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310

महामृत्युञ्जय मन्त्र

यह सर्वश्रेष्ठ मन्त्र कहा गया है और रोग-शान्ति, तथा मृत्यु पर विजय प्राप्त करने के लिए इससे बढ़कर और कोई मन्त्र नहीं है ।

शास्त्रों में कहा गया है कि जिसके घर मेम् इस मन्त्र की एक माला नित्य फेरी जाती है उसे किसी भी प्रकार का रोग, अकाल मृत्यु, मृत्यु भय आदि नहीं व्याप्त होता । विनियोग

ॐ अस्य श्री महामृत्युञ्जय मन्त्रस्य वामदेव कहोल वसिष्ठा ऋषयः, पङ्क्ति गायत्र्यनुष्टुभश्छन्दांसि, सदाशिव महामृत्युञ्जय रुद्रा देवताः, श्री बीजम्, ह्रीं शक्तिः, महामृत्युञ्जय प्रीतये जपे विनियोगः ।

ध्यान

हस्ताम्भोज युगस्थ कुम्भ युगला दुद्धृत्य तोयं शिरः । सिचन्तं करयोर्युगेन दधतं स्वाङ्के सकुम्भौ करौ ॥ प्रक्षस्रड् मृगहस्तमम्बुजगतं मूर्द्धस्थ चन्द्रस्रवत् । पीयूषोन्नतनुं भजे सगिरिजं मत्युञ्जयं त्र्यम्बकम् ॥

महामृत्युञ्जय मन्त्र

ॐ हौं ॐ जूं सः भूर्भुवः स्वः त्र्यम्बकं यजामहे

सुगन्धि पुष्टिवर्धनम् ।

उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्

भूर्भुवः स्वरों जूं सः हौं ॐ ।

फल - यह मन्त्र

प्रत्येक साधक को स्मरण है और इसे शङ्कर का सर्वाधिक प्रिय मन्त्र माना गया है । मृत्यु भय को टालने के लिए तथा अकाल मृत्यु को समाप्त करने के लिए इससे बढ़कर न तो कोई मन्त्र है और न कोई अनुष्ठान ही ।

इस मन्त्र में रोग निवारण की अद्भुत शक्ति है। सवा लाख मन्त्र जप करने से यह मन्त्र सिद्ध होता है । मन्त्र जप का दशांश बिल्व फल तथा तिल लेकर हवन किया जाता है ।

जिसको यह मन्त्र सिद्ध होता है वह सौ वर्ष से ज्यादा आयु प्राप्त करता है तथा अन्तिम क्षण तक उसका शरीर सुगठित, सुन्दर, एवं स्वस्थ बना रहता है । जीवन में वह पुत्रवान, पौत्रवान, श्रीमान तथा अक्षय कीर्ति का अधिकारी होता है ।

कुटुम्ब रक्षा, अकाल मृत्यु तथा बलाघात जैसे अशुभ योगों के लिए यह मन्त्र सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है ।

311

रुद्र मन्त्र

यह मन्त्र शिव को प्रसन्न करने वाला है तथा इस मन्त्र को सिद्ध करने पर शङ्कर स्वयं साक्षात् दर्शन देते हैम् ।

विनियोग

अस्य श्री रुद्र मन्त्रस्य बौधायन ऋषिः, पङ्क्तिश्छन्दः, रुद्रो देवता, ममाभीष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोगः ॥

ध्यान

कैलासाचल सन्निभं त्रिनयनं पञ्चास्यमम्बायुतम् ।

नीलग्रीव महीश भूषण घरं व्याघ्रत्वचा प्रावृतम् ॥ अक्षलग्वर कुण्डिका भयकरं चान्द्री कलां बिभ्रतम् । गङ्गाम्भो विलसज्जटं दशभुजं वन्दे महेशं परम् ॥

रुद्र मन्त्र

ॐ नमो भगवते रुद्राय ।

फल - एक लाख मन्त्र जप करने से यह मन्त्र सिद्ध होता है । यह मन्त्र गृहस्थ जीवन की समस्त इच्छाओं की पूर्ति करने में सहायक होता है तथा जीवन में वह धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष सभी का पूरा लाभ प्राप्त करने में समर्थ हो पाता है ।

त्वरित रुद्र मन्त्र

यह मन्त्र शिव को प्रसन्न करने के लिए है । इससे साधक को शिव स्वयं साक्षात् दर्शन देते हैं तथा उसकी इच्छा को स्वयं पूर्ण करते हैम् ।

विनियोग

अस्य त्वरित रुद्र मन्त्रस्य अथर्वण ऋषिः, अनुष्टुपछन्दः, त्वरित रुद्र सञ्ज्ञिका देवता, नमः इति बीजम्, अस्तु इति शक्तिः, त्वरित रुद्र प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः ।

ध्यान

रुद्रं चतुर्भुजं देवं त्रिनेत्रं वरदाभयम् । दधानमूर्ध्व हस्ताभ्यां शूलं डमरुमेव च ॥ अङ्कसंस्थामुमां पद्मे दधानं च करद्वये ।

प्राद्ये करद्वये कुम्भं मातुलुङ्गं च बिभ्रतम् ॥

त्वरित रुद्र मन्त्र

ॐ यो रुद्रोऽग्नौ यो प्लुय ओषधीऽषुयो रुद्रो विश्वा भुवना वित्रेश तस्मै रुद्राय नमोऽस्तु ।

312

फल- यह मन्त्र शिव को अत्यन्त प्रिय है। सवा लाख मन्त्र जप करने से यह मन्त्र सिद्ध होता है । इसकी साधना में पूर्ण ब्रह्मचर्य पालन करना चाहिए। इस मन्त्र के सिद्ध होने से सभी कार्यों में सिद्धि प्राप्त होती है और जिसके घर में पुत्र नहीं है इस मन्त्र के अनुष्ठान से निश्चय ही पुत्र लाभ होता है ।

विष्णु मन्त्र

यह मन्त्र उन साधकों के लिए अत्यन्त अनुकूल है जिनके इष्ट कृष्ण या विष्णु हैं। यह मन्त्र सरल होने के कारण प्रत्येक गृहस्थ के लिए उपयोगी है।

प्रत्येक गृहस्थ को दिनभर कार्य करते हुए भी इस मन्त्र का मन ही मन जप करते रहना चाहिए ।

विनियोग

अस्य मन्त्रस्य साध्य नारायण ऋषिः, देवी गायत्री छन्दः, विष्णु देवता, सर्वेष्ट सिद्धये जपे विनियोगः ।

ध्यान

उच्चत्कोटि दिवाकराभमनिशं शङ्खं गवां पङ्कजम्म् । चक्रं बिभ्रतमिन्दिरा वसुमती संशोभि पार्श्वद्वयम् । कोटीराङ्गद हार कुण्डलधरं पीताम्बरं कौस्तुभो । दीप्तं विश्ववरं स्ववक्षसि लसढ़ीबत्स चिह्न ं भजे ॥

विष्णु मन्त्र

ॐ नमो नारायणाय ।

कि

फल – यह मन्त्र सरल होने के साथ-साथ प्रत्येक गृहस्थ के लिए उपयोगी है और पाञ्च लाख मन्त्र जपने से यह सिद्ध होता है ।

द्वादशाक्षर विष्णु मन्त्र

यह मन्त्र गृहस्थ व्यक्तियों के लिए उपयोगी है और सभी प्रकार की समृद्धि देने में यह सहायक है । विशेष रूप से स्त्रियों के लिए यह मन्त्र विशेष उपयोगी माना गया है ।

विनियोग

अस्य मन्त्रस्य प्रजापति ऋषिः, गायत्री छन्दः, वासुदेव परमात्मा देवता, सर्वेष्ट सिद्धये जपे विनियोगः ।

ध्यान

विष्णुं शारद चन्द्र कोटि सदृशं शङ्खं रथाङ्गं गदा मम्मोजं दधतं सिताब्ज निलयं कान्त्या जगन्मोहनम् ।

313

श्राबद्धा गदहार कुण्डल महा मौलि स्फुरत्कङ्कणम् । श्रीवत्साङ्कमुवार कौस्तुभधरं बन्दे मुनीन्द्रः स्तुतम् ॥

द्वादशाक्षर विष्णु मन्त्र

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ।

W

फल – यह मन्त्र बारह लाख जपने से सिद्ध होता है। इससे गृहस्थ जीवन पूर्णतः सुखमय रहता है तथा मृत्यु के बाद वह निश्चय ही विष्णुलोक को जाता है।

राम मन्त्र

यह मन्त्र राम इष्ट रखने वाले साधकों के लिए तथा गृहस्थ व्यक्तियों के लिए उपयोगी माना गया है।

विनियोग

अस्य राम मन्त्रस्थ, ब्रह्मा ऋषिः, गायत्री छन्दः, श्री रामो देवता, रां बीजम्, नमः शक्तिः, चतुविध पुरुषार्थ सिद्धये जपे विनियोगः ।

ध्यान

नीलाम्भोधरकान्तिकान्तमनिशं

मुद्रां ज्ञानमयीं दधानमपरं हस्ताम्बुजं

वीरासनाध्यासिनम् । जानुनि ।

FI

राघवम् ।

सीतां पार्श्वगतां सरोरुहकरां विधुन्निभां

पश्यन्तीं मुकुटां गदा दिवि विधा कल्पोज्ज्वलाङ्गं भजे ॥

राम मन्त्र

रां रामाय नमः ।

फल-छः लाख मन्त्र जप करने से यह मन्त्र सिद्ध होता है और इससे साधक की राम में भक्ति दृढ़ होती है।

बशाक्षर राम मन्त्र

यह मन्त्र भी साधकोम् एवं गृहस्थ व्यक्तियों के लिए समान रूप से उपयोगी है। विनियोग

अस्य मन्त्रस्य वसिष्ठ ऋषिः, बिराट् छन्दः, सीतावाणि परिग्रहे श्री रामो देवता, हुं बीजम्, स्वाहा शक्तिः चतुविध पुरुषार्थ सिद्धये जपे विनियोगः ।

ध्यान

अयोध्यानगरे रम्ये रत्न सौन्दर्य मण्डपे । मन्दार पुष्पैराबद्ध वितान तोरणाङ्किते ।। सिंहासन सभा पुष्पकोपरि राघवम् । रक्षोभिर्हरिभिर्देवं विव्ययान गर्तः शुभे ॥

314

संस्तूयमानं मुनिभिः सर्वतः परिसेवितम् । सीतालङ्कृत वामाङ्गं लक्ष्मणेनोपशोभितम् ।

दशाक्षर राम मन्त्र

हुं जानकी वल्लभाय स्वाहा ।

फल – यह मन्त्र दस लाख जपने से सिद्ध होता है और यह सभी प्रकार की सफलता एवं मोक्ष देने में सहायक है ।

कृष्ण मन्त्र

जिनके इष्ट कृष्ण हैम् उनके लिए तथा गृहस्थ व्यक्तियों के लिए यह मन्त्र उपयोगी एवं लाभदायक है ।

विनियोग

श्रस्य मन्त्रस्य नारद ऋषिः, गायत्री छन्दः, श्रीकृष्णो देवता, क्लीं बीजम्, स्वाहा शक्तिः, चतुविध पुरुषार्थ सिद्धयर्थे जपे विनियोगः ।

ध्यान

स्मरेद् वृक्ष वने रम्ये मोहयन्तमनारतम् । गोविन्दं पुण्डरीकाक्षं गोपकन्याः सहस्रशः ॥ श्रात्मनो वदनां भोज प्रेणिताक्षिमधुव्रताः । पीडिताः कामबाणेना विरामा इलेषणोत्सुकाः ।

कृष्ण मन्त्र

क्लीं कृष्णाय गोविन्दाय गोपीजन वल्लभाय स्वाहा ।

फल – यह मन्त्र ग्यारह लाख जपने से सिद्ध होता है तथा जीवन में पूर्ण सुख भोग प्राप्त कर अन्त में कृष्ण के चरणों में लीन हो जाता है ।

लक्ष्मीनारायण मन्त्र

यह मन्त्र आर्थिक उन्नति तथा भौतिक सुख-समृद्धि देने में पूर्णतः सहायक है ।

विनियोग

अस्य मन्त्रस्य प्रजापति ऋषिः, गायत्री छन्दः, वासुदेवो देवता, धर्मार्थ काम मोक्षार्थे जपे विनियोगः ।

ध्यान

विद्युच्चन्द्रनिभं वपुः कमलजा वैकुण्ठयोरेकताम् । प्राप्तं स्नेहवशेन रत्न विलसद्भूषाम्भरालङ्कृतय् ॥

315

विद्या पङ्कज दर्पणान्मणिमयं कुम्भं सरोजं गम् । शङ्खं चक्र ममूनि विभ्रदमितां विश्याच्छ्रियं वः सदा ।

लक्ष्मीनारायण मन्त्र

ॐ ह्रीं ह्रीं श्रीं श्रीं लक्ष्मीवासुदेवाय नमः ।

फल – दस लाख मन्त्र जपने से यह मन्त्र सिद्ध होता है। इस मन्त्र को चान्दी के पत्र पर अङ्कित कर नित्य उसकी पूजा करने से जीवन में सभी प्रकार का सुख एवं वैभव प्राप्त होता है ।

नृसिंह मन्त्र

यह मन्त्र शत्रुओं को समाप्त करने और जीवन में सभी प्रकार के भय, उपद्रव, रोग, शोक, भूत, प्रेत, पिशाच, बाधा दूर करने के लिए सहायक है ।

विनियोग

श्रस्य नृसिंह मन्त्रस्य, ब्रह्मा ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, सुरासुर नमस्कृत नासहो देवता, सर्वेष्ट सिद्धये जपे विनियोगः ।

ध्यान

माणिक्याद्रि समप्रभं निजरुचा सन्त्रस्त रक्षो गणम् । जानुग्यस्त कराम्बुजं त्रिनयनं रत्नोल्लसद्भूषणम् ॥ बाहुम्यां धृतशङ्ख चक्र मनिशं दंष्ट्राग्र वक्रोल्लसत् । ज्वाला जिह्वमुदग्र केश निचयं वन्दे नृसिंहं विभुम् ॥

नृसिंह मन्त्र

ॐ उग्रवीरं महा विष्णुं ज्वलन्तं सर्वतो मुखम् । नृसिंह भीषणं भद्र

ं मृत्यु मृत्युं नमाम्यहम् ॥

फल – यह मन्त्र श्लोक रूप है तथा शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए यह सर्वश्रेष्ठ मन्त्र माना गया है ।

वाराह मन्त्र

यह मन्त्र जीवन में मृत्यु भय समाप्त करने के लिए तथा लड़ाई में सफलता प्राप्त करने के लिए सहायक है ।

विनियोग

अस्य मन्त्रस्य भार्गव ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, श्रावि वाराह देवता, सर्वेष्ट सिद्धये जपे विनियोगः ।

316

ध्यान

के

प्रापादं जानुदेशावर कनकनिभं नाभिवेशावधस्तात् । मुक्ताभं कण्ठदेशात्तरुण रविनिभं मस्तकान्नीलभासम् । ईडे हस्तं वर्षानं रथचरणवरंः खड्ग लेटी गबाख्याम् । शक्तिं दानाभये च क्षितिधरण लस दंष्ट्रमाद्यं वराहम् ॥

बाराह मन्त्र

कफ ए. ॐ नमो भगवते बाराह रूपाय भुर्भुवः स्वः स्यात्पते भूपतित्वं बेह्यते ददापय स्वाहा ।

फल-सबा लाख मन्त्र जप करने से यह सिद्ध होता है तथा शत्रु चोर, भूत, प्रेत, आदि बाधा जीवन में स्वतः ही समाप्त हो जाती है। सूर्य मन्त्र

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यह मन्त्र सूर्य को प्रसन्न करने के लिए तथा जीवन मेम् अक्षय कीर्ति और समस्त कार्यों में पूर्ण सफलता प्राप्त करने के लिए अत्यन्त अनुकूल है । विनियोग

अस्य सूर्य मन्त्रस्य भृगु ऋषिः, गायत्री छन्दः, दिवाकरो देवता, ह्रीं बीजम्, श्रीं शक्तिः, दृष्टादृष्ट फल सिद्धये जपे विनियोगः ।

ध्यान

। रक्ताब्ज युग्मा भय दान हस्तम् ।

केयूर हाराङ्गद कुण्डलाढ्यम् ।

माणिक्य मौलि दिननाथ मोडे ।

बन्धूक कान्ति विलसत्त्रिनेत्रम् ॥

ि

सूर्य मन्त्र

ॐ ह्रीं घृणिः सूर्य्य आदित्य श्रीम् ।

फल —— इस मन्त्र का दस हजार जप करने से यह मन्त्र सिद्ध हो जाता है । इस मन्त्र में पुत्र सन्तान देने की अद्भुत क्षमता है। साथ ही साथ यह नेत्रों की ज्योति बढ़ाने शरीर को कान्तिमय बनाये रखने तथा बासिद्धि के लिए अपूर्व है ।

धन धान्य, पशु, क्षेत्र, पुत्र, मित्र, पत्नी, तेज, बीर्य, यश, कान्ति, विद्या, वैभव, भाग्य आदि बढ़ाने में भी यह मन्त्र पूर्णतः सहायक माना गया है ।

प्रत्येक गृहस्थ को इस मन्त्र की एक माला नित्य फेरनी चाहिए और साथ ही साथ प्रातःकाल सूर्य को अर्घ्य देने से वह दिन सभी दृष्टियों से अनुकूल एवं लाभदायक रहता है।

317

हनुमान मन्त्र

FRIED SOK FIRES

816

जिनके इष्ट हनुमान हैं या जो जीवन में शारीरिक बल और शक्ति में विश्वास करते हैम् उन्हेम् इस मन्त्र की साधना अवश्य ही करनी चाहिए ।

विनियोग

अस्य हनुमत् मन्त्रस्य रामचन्द्र ऋषिः, जगती छन्दः, हनुमान् देवता, ह, सौं बीजम्, हस्फ्रें शक्तिः, सर्वेष्ट सिद्धये जपे विनियोगः ।

ध्यान

FR FIRE TRIBETE

FR P

कृ

बालार्कायुत तेजसं त्रिभुवन प्रक्षोभकं सुन्दरम् । सुग्रीवादि समस्त वानर गणैः

संसेव्य पादाम्बुजम् ।

नावेनंव समस्त राक्षसगणान्

सन्त्रासयन्तं प्रभुम् ।

T

श्रीमद्राम पदाम्बुज स्मृति रतं ध्यायामि वातात्मजम् ॥

STP

हनुमान मन्त्र

ही की

हौं ह, स्कें रूकें ह, से ह, स्वकं ह सों हनुमते नमः ।

फल - यह मन्त्र बारह हजार जपने से सिद्ध हो जाता है। इस मन्त्र के सिद्ध होने से व्यक्ति मेम् अत्यधिक आत्मबल आ जाता है और वह जीवन में समस्त कार्यों में सफलता प्राप्त कर लेता है।

अनुष्ठान में पूर्णतः ब्रह्मचर्य पालन अत्यन्त आवश्यक है। जिसके घर मेम् इस मन्त्र का जप होता है उसके घर में भूत, प्रेत, पिशाच बाधा नहीम् आती और उसे जीवन में न तो शस्त्र भय होता है तथा न अकाल मृत्यु ही होती है ।

वास्तव में ही यह मन्त्र घर में सभी कार्यों के लिए तथा उपद्रव शान्ति के

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लिए पूर्णतः सहायक है ।

हनुमान अष्टादशाक्षर मन्त्र

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यह मन्त्र घर में सुख-शान्ति के लिए तथा सभी प्रकार के उपद्रव की शान्ति के लिए सहायक है ।

विनियोग

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प्रस्य मन्त्रस्य ईश्वर ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, हनुमान् देवता, हुं बीजम्, स्वाहा शक्तिः, सर्वेष्ट सिद्धये जपे विनियोगः ।

ध्यान

इसी कि

ॐ दहनतप्त सुवर्णं समप्रभं भयहरं हृदये विहिताञ्जलिम् । श्रवण कुण्डल शोभि मुखाम्बुजं नमत वानरराज मिहाद्भुतम् ॥

318

हनुमान अष्टदशाक्षर मन्त्र

ॐ नमो भगवते आञ्जनेयाय महाबलाय स्वाहा ।

फल -यह इक्कीस हजार मन्त्र जपने से सिद्ध होता है। इस मन्त्र के जपने से रोग स्वयं ही समाप्त हो जाते हैं। भूत, प्रेत, पिशाच बाधा नहीं रहती और किसी प्रकार का उपद्रव उसके जीवन में व्याप्त नहीं होता ।

द्वादशाक्षर हनुमान मन्त्र

यह मन्त्र अत्यन्त गोपनीय माना गया है। यह मन्त्र शीघ्र ही सिद्धि देने में सहायक है तथा इस मन्त्र को सिद्ध करने से व्यक्ति तीनों लोकों में विजय प्राप्त करने में समर्थ हो पाता है ।

ध्यान

116

महाशैलं समुत्पाट्य धावन्तं रावणं प्रति । तिष्ठ तिष्ठ रणे दुष्ट घोरारावं समुच्चरन् ॥ लाक्षा रसारुणं गात्रं कालान्तक यमोपमम् । ज्वलदग्नि लसन्नेत्रम्

अङ्गदाद्यैर्महावीर

सूर्य्यकोटि समप्रभम् ॥

वेष्टितं रुद्ररूपिणम् ।

एवं रूपं हनूमन्तं ध्यात्वा पूजां समारभेत् ॥

द्वादशाक्षर हनुमान मन्त्र

हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट् ।

फल - - इस मन्त्र के बारे में शास्त्रों में लिखा है कि इस मन्त्र को शिव ने ही कृष्ण को बताया था और कृष्ण ने अर्जुन को यह मन्त्र सिद्ध कराया था जिससे उसने चर-अचर जगत् को जीतकर ख्याति प्राप्त की थी।

नदी के किनारे, मन्दिर में, निर्जन वन में, पहाड़ की गुफा में या घर के एकान्त मेम् एक लाख मन्त्र जप करने चाहिए जिससे कि यह मन्त्र सिद्ध हो जाता है ।

एक लाख मन्त्र जपने से हनुमान उस साधक पर प्रसन्न हो जाते हैं। वास्तव में ही शास्त्रों मेम् इस मन्त्र की बहुत ही अधिक प्रशंसा की हुई है और बताया हुआ है कि इस मन्त्र को ब्रह्मचर्य व्रत रखकर सिद्ध करना चाहिए और इस प्रकार जो साधक इस मन्त्र को सिद्ध कर लेता है उसे जीवन में किसी भी प्रकार की कमी नहीं रहती । इस मन्त्र के सिद्ध करते समय सामने तेल का दीपक तथा हनुमान की मूर्ति या चित्र होना आवश्यक है ।319

द्वादशाक्षर वीर साधन मन्त्र

यह अनुमान जी का अत्यन्त गुप्त वीर साधन प्रयोग है। प्रत्येक गुरु को चाहिए कि वह पूरी तरह से परीक्षा कर लेने के बाद ही निकटतम शिष्य को ही इस मन्त्र का ज्ञान दे ।

ध्यान

ध्यायेद्रणे हनुमन्तं कपि

कोटिसमन्वितम् ।

धावन्तं रावणं जेतुं दृष्टा

वरमुत्थितम् ॥ लक्ष्मणं च महावीरं पतितं रणभूतले । गुरं च क्रोधमुत्पाद्य गृहीत्वा गुरुपर्वतम् । हाहाकार: सदर्पश्च कम्पयन्तं जगत्रयम् । ब्रह्माण्डं स समावाप्य कृत्वा भीमं कलेवरम् ॥

द्वादशाक्षर वीर साधन मन्त्र

हं पवननन्दनाय स्वाहा ।

फल-साधक को चाहिए कि वह प्रातःकाल ब्राह्म मुहूर्त मेम् उठकर सन्ध्या आदि करके प्रथम आठ बार मूल मन्त्र का जप करे । फिर बारह बार हाथ में जल लेकर मन्त्र पढ़कर उस जल को अपने शरीर पर छिड़के। फिर मात्र दो वस्त्र पहनकर नदी के तीर पर या पहाड़ पर बैठकर रेचक, कुम्भक करे । फिर ध्यान करके छः हजार मूल मन्त्र का जप करना चाहिए ।

इस प्रकार नित्य छः दिन तक जप करके सातवें दिन, दिन-रात लगातार जप करना चाहिए। इस प्रकार जप करने पर रात्रि के चौथे प्रहर में महाभय प्रदर्शन पूर्वक हनुमान जी साधक के समीप आकर वर प्रदान करते हैम् । यह अनुष्ठान सत्य है ।

चतुर्दशाक्षर हनुमान मन्त्र

यह अत्यन्त गोपनीय है और एक अत्यन्त उच्च कोटि के महात्मा ने यह त्रमं

बताया था ।

चतुर्दशाक्षर हनुमान मन्त्र

ॐ नमो हरि मर्कट मर्कटाय स्वाहा ।

फल - यह अनुभवसिद्ध और गोपनीय मन्त्र है । इसका विधान इस प्रकार है कि साधक को प्रात काल ब्राह्म मुहूर्त्त मेम् उठकर आम के पत्ते पर गुलाल छिड़ककर अनार की कलम से एक लाख मन्त्र लिखे तो उसका कार्य निश्चय ही सिद्ध होता है ।

ॐ नमो हरिमर्कट मर्कटाय अमुकं हरिमर्कट मर्कटाय स्वाहा ।

इसमेम् अमुक शब्द के स्थान पर शत्रु का नाम लिखना चाहिए। इस प्रकार

320

भोजपत्र या कागज पर सिन्दूर से उपरोक्त मन्त्र शत्रु सहित लिखकर हनुमान की वीर मूर्ति या चित्र पर चिपका देना चाहिए ।

फिर हनुमान की पञ्चोपचार पूजा कर सरसों के तेल की हनुमान जी के मस्तक पर इस मन्त्र के द्वारा एक लाख धारा दे, तो शत्रु का निश्चय ही नाश होता है । उसका धन नष्ट हो जाता है और वह अत्यन्त दुःखी होकर पैरों मेम् आकर गिर पड़ने के लिए विवश हो जाता है ।

वास्तव में ही यह मन्त्र कई बार प्रयोग किया है और प्रत्येक बार यह मन्त्र पूर्णत सफलतादायक रहा है ।

आपत्ति उद्धारक बटुक मन्त्र

यह मन्त्र बटुक भैरव का मन्त्र है तथा जीवन में पूर्णता, सफलता तथां शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए पूर्णतः सहायक है ।

प्रारम्भ मेम् इसका सङ्कल्प लेना चाहिए कि मैं यह मन्त्र जप निम्न कार्य के लिए

कर रहा हू ।

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आपत्ति उद्धारक बटुक मन्त्र

ॐ ह्रीं बटुकाय श्रापदुद्धरणाय कुरु कुरु बटुकाय ह्रीम्म् । PR

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फल- यह अनुष्ठान किसी भी महीने के शुक्ल पक्ष की द्वितीया से प्रारम्भ करना चाहिए और नित्य दस हजार मन्त्र जप करने चाहिए। कुल सवा लाख मन्त्र जप करने से यह मन्त्र सिद्ध होता है ।

यह मन्त्र विद्या, बुद्धि, धन-धान्य, पुत्र, पौत्र, देने में सहायक है तथा सभी कार्यों के लिए अनुकूल है ।

अनुष्ठान मेम् एक समय भोजन करना चाहिए और पूर्णतः ब्रह्मचर्य व्रत पालन करना चाहिए । स्वर्णाकर्षण भैरव मन्त्र

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फलदायक है

मारण, मोहन, उच्चाटन, बशीकरण, आदि कार्यों में यह मन्त्र तथा इस मन्त्र के सिद्ध करने पर घर में स्वर्ण वर्षा सी होती रहती है । अर्थात् उसके जीवन में किसी भी प्रकार का अभाव नहीं रहता और आर्थिक दृष्टि से अत्यन्त ही सम्पन्न होता है ।

विनियोग

ॐ अस्य श्री स्वर्णाकर्षण भैरव मन्त्रस्य, श्री ब्रह्मा ऋषिः, पङ्क्तिश्छन्दः । हरि हर ब्रह्मात्मक स्वर्णाकर्षण भैरबो देवता, ह्रीं बीजन, ह्रीं शक्तिः, ॐ कीलकम्, स्वर्णा- कर्षण भैरव प्रसाद सिद्धयर्थं स्वर्ण राशि प्राप्तये स्वर्णाकर्षण भैरव मन्त्र जपे विनियोगः ।

ध्यान

पीतवर्ण चतुर्बाहु त्रिनेत्रं पीतवाससम् । अक्षय स्वर्ण माणिक्यं तडित्पूरित पात्रकम् ॥

अभिलषितं महाशूलं

सर्वाभरणं सम्पन्नं

तोमरं चामर द्वयम् ।

मुक्ताहारोपशोभितम् ॥

मदोन्मत्तं सुखासीनं

भक्तानां

च वरप्रदम् ।

सन्ततं

चितयेदृश्यं भैरवं

सर्व सिद्धिदम् ॥

पारिजात द्रुम

कान्तारस्थिते

मणि मण्डपे ।

स्वर्ण दायकम् ॥

321

सिंहासन गतं ध्यायेद्भैरवं

गाङ्गेयपात्रं डमरुं त्रिशूलं वरं करैः सन्दधतं त्रिनेत्रम् । देव्यायुतं तप्त सुवर्ण वर्ण स्वर्णाकृति भैरवमाश्रयामि ॥

स्वर्णाकर्षण भैरव मन्त्र

ऐं ह्रीं श्रीम् ऐं श्रीं श्रापदुद्धारणाय ह्रां ह्रीं ह्र । अजामल बद्धाय लोकेश्वराय स्वर्णाकर्षण भैरवाय ।

मम दारिद्रय विद्वेषणाय महाभैरवाय नमः श्रीं ह्रीम् ऐम् ।

फल - यह मन्त्र अत्यन्त ही फलदायक है और इससे घर मेम् अटूट लक्ष्मी प्राप्त होती है । व्यापार में कई गुना ज्यादा लाभ होने लग जाता है तथा व्यापार का विस्तार हो जाता है ।

चाहिए ।

यह मन्त्र सवा लाख जपने से सिद्ध होता है और इसका दशांश तर्पण करना

यह मन्त्र एक अत्यन्त उच्च कोटि के महात्मा ने गोपनीय रूप से बताया था । क्षेत्रपाल मन्त्र

यह मन्त्र सभी प्रकार की सिद्धियों के लिए अनुकूल माना गया है और शास्त्र में कहा गया है कि किसी प्रकार की सिद्धि प्राप्त करने से पूर्व इस मन्त्र को सिद्ध करने से साधना काल में किसी प्रकार की बाधा या असफलता नहीं मिलती । विनियोग

अस्य क्षेत्रपाल मन्त्रस्य, ब्रह्मा ऋषिः, गायत्री छन्दः, क्षेत्रपालो देवता, क्ष बीजम्, लः शक्ति, सर्वेष्ट सिद्धये जपे विनियोगः ।

ध्यान

नीलाञ्जनादि निभ मूर्द्ध पिशङ्ग केशं

वृत्तोग्र लोचन मुदात्त गदा कपालम् ।

आशाम्बरं भुजग भूषणमुग्रदंष्ट्रं

क्षेत्रेशमद्भुततनुं प्रणमामि देवम् ॥

322

ॐ क्षं क्षेत्रपालाय नमः ।

क्षेत्रपाल मन्त्र

फल — ताम्रपत्र पर क्षेत्रपाल की मूर्ति बनाकर उस पर जलधारा और दुग्धधारा करते हुए मन्त्र जप करना चाहिए ।

यह मन्त्र एक लाख जप करने से सिद्ध होता है और इससे क्षेत्रपाल प्रसन्न होते हैम् ।

कामदेव बीज मन्त्र

शरीर को आकर्षक, सुन्दर, सम्मोहक तथा वीर्य स्तम्भन और नारी रमण में पूर्णता प्राप्त करने के लिए इस मन्त्र की साधना का विधान शास्त्रों में बताया है । विनियोग

ॐ काम बीज मन्त्रस्य सम्मोहन ऋषिः, गायत्री छन्दः, सर्व सम्मोहन मकर - देवता, सर्व सम्मोहने विनियोगः ।

ध्यान

जापरुणं रक्तविभूषणाढ्यं मीनध्वजं चारुकृत्ताङ्गरागम् । कराम्बुजैरङ्कुशभिक्षु चाप पुष्पास्त्र पाशौ दधतं भजामि ॥

कामदेव बीज मन्त्र

क्लीं कामदेवाय नमः ।

फल - तीन लाख मन्त्र जप करने से यह मन्त्र सिद्ध होता है । जो व्यक्ति यह मन्त्र सिद्ध कर लेता है वह स्वयं कामदेव के समान सुन्दर होकर प्रत्येक प्रकार की रमणी को आकर्षित एवं सन्तुष्ट कर सकता है ।

शास्त्रों में काम गायत्री मन्त्र भी बताया है ।

ॐ कःम देवाय विद्महे पुष्पवाणाय धीमहिः तत्नो अनङ्ग प्रचोदयात् ।

जो व्यक्ति ऊपर का मन्त्र सिद्ध नहीं कर सकते उन्हें चाहिए कि वे काम गायत्री मन्त्र की एक माला नित्य फेरें, इससे भी उन्हेम् अपने उद्देश्य में सफलता प्राप्त हो सकती है ।

वरुण मन्त्र

यह मन्त्र वर्षा कराने में सहायक है तथा इस मन्त्र के सिद्ध करने पर व्यक्ति कहीं पर भी किसी भी प्रकार से वर्षा करा सकता है ।

विनियोग

अस्य वरुण मन्त्रस्य, वसिष्ठ ऋषिः त्रिष्टुप्छन्दः, वरुणो देवता, सर्वेष्ट सिद्धये जपे विनियोगः ।

ध्यान

323

चन्द्रप्रभं पङ्कज सन्निषण्णं पाशाङ्कुशा भीतिवरं दधानम् । मुक्ता विभूषाञ्चित सर्वगात्रं ध्यायेत्प्रसन्नं वरुणं विभूत्यै ॥

वरुण मन्त्र

ॐ ध्रुवासु त्वासु क्षितिषु क्षियन्तोव्य अस्मत्पाशं वरुणो मुमोचत्, श्रवो वन्वाना अदिते रुपस्था द्यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः स्वः ।

फल – यह मन्त्र एक लाख जपने से सिद्ध होता है और यह मन्त्र वर्षा करने में, ऋण मुक्ति में, और घर में सुख-शान्ति प्राप्त करने मेम् अत्यन्त सहायक है । कुबेर मन्त्र

यह आर्थिक दृष्टि से श्रेष्ठतम मन्त्र है। इस मन्त्र को सिद्ध करने वाला व्यक्ति कुबेर का प्रिय तथा स्वयं कुबेरपति हो जाता है ।

विनियोग

अस्य कुबेर मन्त्रस्य, विश्रवा ऋषिः, वृहती छन्दः, शिवमित्र धनेश्वरो देवता, ममाभीष्टसिद्धयर्थे जपे विनियोगः ।

ध्यान

मनुजबाह्य विमान वरस्थितं गरुडरत्ननिभं निधिनायकम् । शिवसखं मुकुटादि विभूषितं वरगदे दधतं भज तुन्दिलम् ।।

कुबेर मन्त्र

ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्यादिपतये धनधान्य समृद्धि मे देहि दापय स्वाहा ।

फल —— एक लाख मन्त्र जपने से यह सिद्ध होता है तथा सिद्ध होने पर दशांश तिल की आहुति देनी चाहिए। यह मन्त्र सिद्ध होने पर जीवन मेम् आर्थिक दृष्टि से किसी प्रकार का कोई अभाव नहीं रहता ।

षोडशाक्षर कुबेर मन्त्र

अन्य सभी विधियां विनियोग व ध्यान ऊपर की तरह ही है, मन्त्र निम्न प्रकार से है :

षोडशाक्षर कुबेर मन्त्र

ॐ श्रीं ॐ ह्रीं श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय नमः ।

चन्द्र मन्त्र

यह चन्द्रमा से सम्बन्धित मन्त्र है तथा बलाघात योग आदि विपरीत योग इससे सही हो जाते हैम् ।

324

विनियोग

अस्य सोम मन्त्रस्य, भृगु ऋषिः, पङ्क्तिश्छन्दः, सोमो देवता, सौं बीजम्, नमः शक्तिः, मम सर्वेष्ट सिद्धये जपे विनियोगः ।

ध्यान

कर्पूर स्फटिकावदातमनिशं पूर्णेन्दु बिबाननम् । मुक्तादाम विभूषितेन वपुषा निर्मूल यन्तं तमः ॥ हस्ताभ्यां कुमुदं वरं च दधतं नीलालकोद्भासितम् । स्वस्याङ्कस्थ भृगूदिताश्रयगुणं सोमं सुधाब्धि भजे ॥

चन्द्र मन्त्र

सौं सोमाय नमः ।

फल – एक लाख मन्त्र जपने से यह मन्त्र सिद्ध होता है । जो व्यक्ति इस मन्त्र को सिद्ध कर लेता है उसे राज्य में विशेष सम्मान मिलता है और रोग आदि से मुक्ति पाकर सौ वर्ष तक जीवित रहता है।

मङ्गल मन्त्र

यह मन्त्र धन, पुत्र आदि देने में समर्थ है ।

विनियोग

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अस्य मङ्गल मन्त्रस्य विरूपाक्ष ऋषिः, गायत्री छन्दः, धरात्मजो भौमो देवता, हां बीजम्, हंसः शक्तिः, सर्वेष्ट सिद्धये जपे विनियोगः ।

ध्यान

जपाभं शिवस्वेदजं हस्तपद्यैर्गदाशूल शक्ति करे धारयन्तम् । अवन्ती समुत्थं सुभेषासनस्थं धरानं दनं रक्तवस्त्रं समीडे ॥

मङ्गल मन्त्र

ॐ हां हंसः खं खः ।

फल - इस मन्त्र को वैशाख में या मार्गशीर्ष महीने के शुक्ल पक्ष में प्रथम मङ्गलवार से प्रारम्भ करना चाहिए । नित्य दस हजार मन्त्र जपकर कुल एक लाख मन्त्र जप करने चाहिए। साधना काल में लाल वस्त्र धारण करने चाहिए और रक्त चन्दन का तिलक लगाना चाहिए। सामने तेल का दीपक जलता रहना चाहिए।

गुरु मन्त्र

यह मन्त्र गुरु ग्रह को प्रसन्न करने के लिए तथा जीवन में पूण सन्तान सुख प्राप्त करने के लिए सिद्ध किया जाता है ।

विनियोग

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अस्य बृहस्पति मन्त्रस्य, ब्रह्मा ऋषिः अनुष्टुप् छन्दः सुराचार्यो देवता, वृ बीजम्, नमः शक्तिः, ममाभीष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोगः ।

ध्यान

रत्नाष्टा पद वस्त्र राशिममलं दक्षात्किरतं करा- दासीनं विपणौ करं निदधतं रत्नादिराशौ परम् ॥ पीता लेपन पुष्प वस्त्र मखिलालङ्कार सम्भूषितम् । विद्या सागरपारगं सुरगुरुं वन्दे सुवर्णप्रभम् ॥

गुरु मन्त्र

ॐ बृं बृहस्पतये नमः ।

फल – यह मन्त्र सन्तान पक्ष के लिए और सन्तान सुख के लिए अत्यन्त अनु- कूल माना गया है । एक लाख मन्त्र जपने से यह सिद्ध होता है ।

शुक्र मन्त्र

यह शुक्र का मन्त्र है और जीवन में भौतिक सुख प्राप्त करने के लिए अनु-

कूल है । विनियोग

(

अस्य मन्त्रस्य ब्रह्मा ऋषिः, विराट् छन्दः, दैत्यपूज्यः शुक्रो देवता, ॐ बीजम्, स्वाहा शक्तिः, ममाभीष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोगः ।

ध्यान

श्वेताम्भोज निषण्णमापणतटे श्वेताम्बरा लेपनम् । नित्यं भक्तजनाय सम्प्रददतं वासो मणीन् हाटकम् ॥ वामेनैव करेण दक्षिण करे व्याख्यान मुद्राङ्कितम् । शुक्रं वैत्य वराचितं स्मितमुखं वन्दे सिताङ्गं प्रभुम् ॥

शुक्र मन्त्र

ॐ वस्त्रं मे देहि शुक्राय स्वाहा ।

फल – यह मन्त्र जीवन में सभी प्रकार के भौतिक सुख देने में समर्थ है । एक लाख मन्त्र जपने से यह सिद्ध होता है ।

धर्मराज मन्त्र

यह मन्त्र मृत्यु भय को समाप्त करता है तथा इच्छा मृत्यु होती है ।

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धर्मराज मन्त्र

ॐ क्रीं ह्रीं श्री वें वैवस्वताय धर्मराजाय भक्तानुग्रह कृते नमः ।

फल - एक लाख मन्त्र जपने से यह सिद्ध होता है तथा जो साधक इस मन्त्र को सिद्ध कर लेता है मृत्यु के बाद उसे नरक में नहीं जाना पड़ता ।

चित्रगुप्त मन्त्र

इस मन्त्र का फल व विधि ऊपर लिखे अनुसार ही है ।

चित्रगुप्त मन्त्र

ॐ नमो विचित्राय धर्मलेखकाय यम बाहिकाधिकारिणे स्व्यं जन्म सम्पत्प्रलयं कथय कथय स्वाहा ।

घटाकर्ण मन्त्र

यह मन्त्र आर्थिक उन्नति, शत्रुनाश व मुकदमों में विजय के लिए पूर्णतः सहायक है ।

घण्टाकर्ण मन्त्र

ॐ घण्टाकर्णो महावीरो (अमुक) सर्वोपद्रव नाशनं कुरु कुरु स्वाहा ।

फल — एक लाख मन्त्र जपने से यह सिद्ध हो जाता है। इसमेम् अमुक शब्द के स्थान पर शत्रु का नाम उच्चारण करना चाहिए और स्वयं की उन्नति के लिए उस स्थान पर स्वयं का नाम उच्चारण करना चाहिए ।

कार्तवीर्यार्जुन मन्त्र

यह मन्त्रराज कहा गया है और इसका फल एवं प्रभाव तुरन्त एवम् अचूक होता है ।

विनियोग

अस्य कार्तवीर्यार्जुन मन्त्रस्य, दत्तात्रेय ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, कार्तवीर्यार्जुनो देवता, ॐ बीजम्, नमः शक्तिः, ममाभीष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोगः ।

ध्यान

उद्यत्सूर्य्य सहस्त्रकान्तिर खिलक्षौणीधवैवन्न्दितो

हस्तानां शतपञ्चकेन च दधच्चा पानिषंस्तावतः ॥ कण्ठे पाटक मालया परिवृत इचक्रावतारो हरेः । पायात्स्यन्दन गोरुणाभवसनः श्री कार्तवीर्यो नृपः ॥

327

कार्तवीर्यार्जुन मन्त्र

ॐफों त्रीं क्लीं भ्रम् आं ह्रीं क्रीं श्रीं हुं फट् कार्तवीर्यार्जुनाय नमः ।

फल - यह एक लाख मन्त्र जपने से सिद्ध होता है । इस मन्त्र को सिद्ध करने के बाद भोजपत्र पर अष्ट गन्ध से लिखकर घड़े में रख देना चाहिए। इससे उसे जीवन में वाक् सिद्धि, अष्ट लक्ष्मी और समस्त सुख प्राप्त बने रहते हैम् ।

हरिवाहन गरुड़ मन्त्र

यह मन्त्र रोग शान्ति एवं जीवन में पूर्ण उन्नति के लिए अनुकूल है ।

विनियोग

अस्य मन्त्रस्य अनन्त ऋषिः, पङ्क्तिश्छन्दः पक्षीन्द्रो देवता, ॐ बीजम, स्वाहा शक्तिः, ममाभीष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोगः ।

ध्यान

तप्त स्वर्ण निभं फणीन्द्र निकरैः क्लृप्ताङ्ग भूषम्प्रभुम् । स्मर्तृणां शमयन्तमुग्रमखिलं

नृणां विषं तत्क्षणात् ॥

प्रचलद्भुजङ्गमभयं पाय्वोर्वरं

पाय्वोर्वरं विभ्रतम् ।

चञ्च्वग्र

पक्षोच्चारितसामगीतममलं श्री

पक्षिराजं

हरिवाहन गरुड़ मन्त्र

क्षिप ॐ स्वाहा ।

भजे ॥

फल - यह मन्त्र पाञ्च लाख जपने से सिद्ध होता है तथा इससे श शान्त करने जीवन में पूर्ण विजय प्राप्त करने के लिए सहायता मिलती है ।

गरुड़माला मन्त्र

इस मन्त्र का विनियोग, ध्यान, फल व बिधि ऊपर लिखे अनुसार ही है ।

गरुड़माला मन्त्र

ॐ नमो भगवते गरुडाय कालाग्नि वर्णाय एह्येहि कालानल लोन ज्जिह्वाय पातय पातय मोहय मोहय विद्रावय विद्रावय भ्रम भ्रम भ्रामय भ्रामय हन हन दह दह पत पत हूं फट् स्वाहा ।

चरणायुध मन्त्र

यह मन्त्र जीवन में पूर्ण शक्ति प्राप्त करने के लिए तथा जीवन के सभी कार्यों में सफलता प्राप्त करने के लिए अत्यन्त ही उपयोगी एवम् अनुकूल है :

विनियोग

अस्य चरणायुध मन्त्रस्य महारुद्र ऋषिः, अतिजगती छन्दः, ह्रीं बीजम, कों शक्तिः, चरणायुधो देवता, ममाभीष्ट सिद्धयर्थं जपे विनियोगः ।

328

ध्यान

सर्वालङ्कृति

दीप्त कण्ठ चरणो हेमाभदेहद्युतिः ।

पक्ष द्वन्द्व विधूननेति कुशलः सर्वामरायचतः ॥ गौरी हस्त सरोज गोरुण शिखः सर्वार्थ सिद्धिप्रदो । रक्तं चञ्चुपुटं दधच्चलपदः पायान्निजान्कुक्कुटान् ॥

चरणायुध मन्त्र

श्री यू कोलि यू कोलि वां ह्रीं यू कोलि चुवाक्रौम् ।

फल-पाञ्च लाख मन्त्र जपने से यह मन्त्र सिद्ध होता है । जो व्यक्ति इस मन्त्र को सिद्ध कर लेता है वह पूरे संसार को सम्मोहित कर विजय प्राप्त कर सकता है ।

सन्तान गोपाल मन्त्र

यह मन्त्र शास्त्रों में प्रसिद्ध है और प्रत्येक साधक यह जानता है कि सन्तान- प्राप्ति के लिए इससे बड़ा और सफल मन्त्र अन्य कोई नहीं है ।

विनियोग

अस्य गोपाल मन्त्रस्य, नारद ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, कृष्णो देवता, मम पुत्र कामनार्थ जपे विनियोगः ।

ध्यान

विजयेन युतो रथस्थितः प्रसभानीय समुद्र मध्यतः । प्रददत्त नयान् द्विजन्मने स्मरणीयो वसुदेव नन्दनः ॥

सन्तान गोपाल मन्त्र

ॐ देवकी सुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते ।

देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ॥

फल - यह एक लाख मन्त्र जपने से सिद्ध होता है और मन्त्र सिद्ध करने पर निश्चय ही उसे पुत्र प्राप्ति होती है। यदि किसी व्यक्ति के लिए यह अनुष्ठान किया जाय तो उसे भी निश्चय ही इस अनुष्ठान से पुत्र लाभ होता है ।

पुत्र-प्राप्ति मन्त्र

यह मन्त्र एक उच्च कोटि के महात्मा ने बताया था और गोपनीय होने के साथ ही साथ यह मन्त्र निश्चय ही सफलतादायक माना जाता है ।

पुत्र-प्राप्ति मन्त्र

ॐ ह्रां ह्रीं हूं पुत्रं कुरु कुरु स्वाहा ।329

फल — एकाग्र मन से इस मन्त्र को आम के वृक्ष पर बैठकर यदि एक लाख जप करे तो निश्चय ही उसे पुत्र लाभ होता है ।

आगे मैं गायत्री से सम्बन्धित मन्त्र मेद स्पष्ट कर रहा हम् । सर्वप्रथम हस गायत्री मन्त्र लिख रहा हूम् ।

हंस गायत्री मन्त्र

ॐ परमहंसाय विद्महे महातत्त्वाय धीमहि तन्नो हंसः प्रचोदयात् ।

ब्रह्म गायत्री मन्त्र

ॐ वेदात्मने च विद्महे हिरण्य गर्भाय धीमहि, तन्नो ब्रह्मा प्रचोदयात् ।

सरस्वती गायत्री मन्त्र

ॐ ऐं वाग्देव्यै च विद्महे कामराजाय धीमहि, तन्नो देवी प्रचोदयात् ।

ॐ श्री विष्णवे च विद्महे वासुदेवाय धीमहि, तन्नो विष्णुः प्रचोदयात् ।

विष्णु गायत्री मन्त्र

त्रैलोक्य मोहन गायत्री मन्त्र

लक्ष्मी गायत्री मन्त्र

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198 TEDIT THEY

ॐ त्रैलोक्य मोहनाय विद्महे आत्मारामाय धीमहि, तन्नो विष्णुः प्रचोदयात् ।

ॐ महादेव्यै च विद्महे विष्णु पत्न्यै च धीमहि, तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् ।

नारायण गायत्री मन्त्र

ॐ नारायणः विद्महे वासुदेवाय धीमहि, तन्नो नारायणः प्रचोदयात् ।

राम गायत्री मन्त्र

ॐ दाशरथये विद्महे सीतावल्लभाय धीमहि, तन्नो रामः प्रचोदयात् ।

जानकी गायत्री मन्त्र

ॐ जनकजायै विद्महे राम प्रियायै धीमहि, तन्नो सीता प्रचोदयात् ।

330

लक्ष्मण गायत्री मन्त्र

ॐ दासरथये विद्महे अलबेलाय धीमहि, तन्नो लक्ष्मण प्रचोदयात् ।

हनुमान गायत्री मन्त्र

ॐ अञ्जनीजाय विद्महे वायु पुत्राय धीमहि, तन्नो हनुमान् प्रचोदयात् ।

गरुड़ गायत्री मन्त्र

ॐ तत्पुरुषाय विद्महे सुवर्ण वरणाय धीमहि, तन्नो गरुड़ः प्रचोदयात् ।

कृष्ण गायत्री मन्त्र

ॐ देवकी नन्दनाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि, तन्नो कृष्णः प्रचोदयात् ।

गोपाल गायत्री मन्त्र

ॐ गोपालाय विद्महे गोपीजन वल्लभाय धीमहि, तन्नो गोपालः प्रचोदयात् ।

राधिका गायत्री मन्त्र

ॐ वृषभानुजायै विद्महे कृष्णप्रियायै धीमहि, तन्नो राधिका प्रचोदयात् ।

परशुराम गायत्री मन्त्र

ॐ जामदग्न्याय विद्महे महावीराय धीमहि, तन्नो परशुरामः प्रचोदयात् ।

मृसिंह गायत्री मन्त्र

ॐ उग्र नृसिंहाय विद्महे वज्रनखाय धीमहि, तन्नो नृसिंहः प्रचोदयात् ।

शिव गायत्री मन्त्र

रुद्र गायत्री मन्त्र

ॐ महादेवाय विद्महे रुद्र मूर्तये धीमहि, तन्नो शिवः प्रचोदयात् ।

ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि, तन्नो रुदः प्रचोदयात् ।

गौरी गायत्री मन्त्र

ॐ सुभगाये च विद्महे काम मालायै धीमहि, तन्नो गौरी प्रचोदयात् ।

गणेश गायत्री मन्त्र

3

तत्पुरुषाय विद्महे वक्र तुण्डाय धीमहि, तन्नो दन्ति प्रचोदयात् ।

षण्मुख गायत्री मन्त्र

ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महासेनाय धीमहि, तन्नो षण्मुखः प्रचोदयात् ।

नन्दी गायत्री मन्त्र

सूर्य गायत्री मन्त्र

ॐ तत्पुरुषाय विद्महे वक्र तुण्डाय धीमहि, तन्नो नन्दीः प्रचोदयात् ।

ॐ भास्कराय विद्महे महातेजाय धीमहि, तन्नो सूर्यः प्रचोदयात् ।

चन्द्र गायत्री मन्त्र

ॐ क्षीर पुत्राय विद्महे अमृत तत्वाय धीमहि, सन्नो चन्द्रः प्रचोदयात् ।

भौम गायत्री मन्त्र

ॐ अङ्गारकाय विद्महे शक्तिः हस्तात धीमहि, तन्नो भौमः प्रचोदयात् ।

पृथ्वी गायत्री मन्त्र

ॐ पृथ्वी देव्यं च विद्महे सहस्र मूत्यै च धीमहि, तन्नो मही प्रचोदयात् ।

अग्नि गायत्री मन्त्र

जल गायत्री मन्त्र

ॐ महाज्वालाय विद्महे अग्नि मध्याय धीमहि, तन्नो अग्नि प्रचोदयात् ।

ॐ जलबिबाय विद्महे नील पुरुषाय धीमहि, तन्नो श्रम्बुः प्रचोदयात् ।

331

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332

आकाश गायत्री मन्त्र

ॐ आकाशाय च विद्महे नभो देवाय धीमहि, तन्नो गगनं प्रचोदयात् ।

fem fef

वायु गायत्री मन्त्र

from

ॐ पवन पुरुषाय विद्महे सहस्र मूर्त्यै च धीमहि, तन्नो वायुः प्रचोदयात् ।

इन्द्र गायत्री मन्त्र

ॐ तत्पुरुषाय विद्महे सहस्राक्षाय धीमहि, तन्नो इन्द्रः प्रचोदयात् ।

काम गायत्री मन्त्र

गुरु गायत्री मन्त्र

ॐ मन्मथेशाय विद्महे काम देवाय धीमहि, तन्नो अनङ्ग प्रचोदयात् ।

ॐ गुरु देवाय विद्महे पर ब्रह्माय धीमहि, तन्नो गुरुः प्रचोदयात् ।

तुलसी गायत्री मन्त्र

ॐ त्रिपुराय विद्महे तुलसीपत्राय धीमहि,

तन्नो तुलसी प्रचोदयात् ।

देवी गायत्री मन्त्र

लिए

ॐ देव्यं ब्रह्माण्यै विद्महे महाशक्त्यै च धीमहि,

तन्नो देवी प्रचोदयात् ।

शक्ति गायत्री मन्त्र

ि

ॐ सर्व सम्मोहिन्यै विद्महे विश्वजनन्यै धीमहि, तन्नो शक्ति प्रचोदयात् ।

अन्नपूर्णा गायत्री मन्त्र

ॐ भगवत्यं च विद्महे माहेश्वर्यै च धीमहि, तन्नो अन्नपूर्णा प्रचोदयात् ।

काली गायत्री मन्त्र

ॐ कालिकाये च विद्महे श्मशान वासिन्यै धीमहि, तन्नो अघोरा प्रचोदयात् ।

333

तारा गायत्री मन्त्र

ॐ तारायै च विद्महे महोग्रायै च धीमहि, तन्नो देवी प्रचोदयात् ।

त्रिपुर सुन्दरी गायत्री मन्त्र

ॐ त्रिपुरा देव्यै विद्महे क्लीं कामेश्वर्यै धीमहि, सौस्तन्नः क्लिन्नं प्रचोदयात् ।

भुवनेश्वरी गायत्री मन्त्र

ॐ नारायण्यै च विद्महे भुवनेश्वर्यै धीमहि, तन्नो देवी प्रचोदयात् ।

भैरवी गायत्री मन्त्र

ॐ त्रिपुरायै च विद्महे भैरव्यै च धीमहि, तन्नो देवी प्रचोदयात् ।

छिन्नमस्ता गायत्री मन्त्र

ॐ वैरोचन्यं च विद्महे छिन्नमस्तायं धीमहि, तन्नो देवी प्रचोदयात् ।

घूमावती गायत्री मन्त्र

ॐ धूमावत्यं च विद्महे संहारिण्यै च धीमहि, तन्नो धूमा प्रचोदयात् ।

बगला मुखी गायत्री मन्त्र

ॐ बगला मुख्य च विद्महे स्तम्भिन्यं च धीमहि, तन्नो देवी प्रचोदयात् ।

मातङ्गी गायत्री मन्त्र

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ॐ मातङ्ग्यं च विद्महे उच्छिष्टचाण्डाल्यै च धीमहि, तन्नो देवी प्रचोदयात् ।

महिष मद्दिनी गायत्री मन्त्र

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ॐ महिषर्माद्दयै च विद्महे दुर्गायै च धीमहि, तन्नो देवी प्रचोदयात् ।

त्वरिता गायत्री मन्त्र

ॐ त्वरिता देव्यं च विद्महे महानित्यायै धीमहि, तन्नो देवी प्रचोदयात् ।

दुर्गाष्टाक्षर मन्त्र

यह मन्त्र अत्यन्त गोपनीय और सिद्धिदायक माना गया है । शास्त्रों मेम् इसके बारे में कहा है :

334

विनियोग

साक्षात्सिद्धिप्रदो मन्त्री दुर्गायाः कलिनाशनः ।

अष्टाक्षरो अष्ट सिद्धिशो गोपनीयो दिगम्बरः ॥

ॐ अस्य श्री दुर्गाष्टाक्षर मन्त्रस्य महेश्वर ऋषिः, श्री दुर्गाष्टाक्षरात्मिका देवता, दुं बीजम्, ह्रीं शक्तिः, ॐ कीलकाय नमः इति दिग्बन्धः, धमार्थ काम मोक्षार्थे जपे विनियोगः ।

कार

ध्यान

दूर्वानिभां त्रिनयनां विलसत्किरीटां

शङ्खाब्जङ्खग शर खेटक शूल चापान् ।

सन्तर्जनी च दघतीं महिषासनस्थां

दुर्गा नवारकुल पीठगतां भजेऽहम् ॥

दुर्गाष्टाक्षर मन्त्र

ॐ ह्रीं दुं दुर्गायै नमः ।

फल- - एक लाख मन्त्र जपने से यह मन्त्र सिद्ध होता है तथा इस मन्त्र मेम् अद्भुत शक्ति है । वाक् सिद्धि, पुत्र-प्राप्ति, शत्रुओं पर विजय, रोग मुक्ति और जीवन में पूर्ण सुख प्राप्त करने के लिए यह मन्त्र अचूक एवं सिद्धिदायक है ।

नवार्ण मन्त्र

यह

देवी का प्रसिद्ध मन्त्र है और बिना इस मन्त्र के देवी पाठ या देवी से सम्बन्धित कोई भी अनुष्ठान सफल एवं सिद्ध नहीं हो पाता ।

विनियोग

ॐ अस्य श्री नवार्ण मन्त्रस्य ब्रह्मा विष्णु महेश्वरा ऋषयः, गायत्र्युष्णिगनुष्टु भइछन्दांसि महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वत्यः देवताः, नन्दजा शाकुम्भरी भीमाः शक्तयः, रक्तदन्तिका दुर्गा भ्रामयो बीजानि, ह्रौं कीलकम्, श्रग्निवायु सूर्यास्तत्वानि, कार्य निर्देश जपे विनियोगः ।

नवार्ण भेद मन्त्र

नवार्ण मन्त्र

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायं विच्चे ।

नवार्ण मन्त्र अपने आप मेम् अत्यन्त महत्त्वपूर्ण और प्रभाव युक्त मन्त्र माना गया है । इसे मन्त्र और तन्त्र में समान रूप से प्रयोग किया जाता है। इसके तान्त्रिक प्रयोग नीचे दे रहा हूं :

करे ।

335

साधक को चाहिए कि वह सावधानी के साथ इस प्रकार के मन्त्रों का प्रयोग

नवार्ण मारण मन्त्र

इसमें दस लाख मन्त्र जप करने का विधान है। कार्य प्रारम्भ करने से पहले आठ कुओं का जल ताम्रक्लश में ले लेना चाहिए और उसमें वट के पत्र डाल देने चाहिए । नित्य इस प्रकार के पानी से ही स्नान करना चाहिए। यह प्रयोग बीस दिन में समाप्त हो जाना चाहिए ।

ललाट पर रक्त चन्दन तथा आसन काले कम्बल का होना चाहिए । साधक को दक्षिण दिशा की तरफ मुंह करके जप करना चाहिए ।

मारण कार्यों में पूर्णतः ब्रह्मचर्य पालन करना चाहिए। इसमें वीर आसन लगा कर साधक को बैठना चाहिए ।

नवार्ण मारण मन्त्र

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे (अमुकं) रं रं खे खे मारय मारय रं रं शीघ्र भस्मी कुरु कुरु स्वाहा ।

नवार्ण मोहन मन्त्र

इसमें सात कुओं या नदियों का जल ताम्रकलश में लेकर उसमेम् आम के पत्ते डालकर नित्य उसी पानी से स्नान करना चाहिए। ललाट पर पीले चन्दन का तिलक करना चाहिए और शरीर पर पीले वस्त्र ही धारण करने चाहिए। साधक को पश्चिम की तरफ मुंह करके बैठना चाहिए ।

बारह लाख मन्त्र जपने से यह कार्य सिद्ध होता है । इसमें पीले वस्त्र का आसन होना चाहिए और सुखासन में बैठकर साधक को मन्त्र जप करना चाहिए ।

नवार्ण मोहन मन्त्र

ॐ क्लीं क्लीं ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे (श्रमुकं) क्लीं क्लीं मोहनम् कुरु कुरु क्लीं क्लीं स्वाहा ।

नवार्ण उच्चाटन मन्त्र

यह मन्त्र चौबीस लाख जपने से सिद्ध होता है । इसमें पूर्व की तरफ मुंह करके जप करना चाहिए और लाल वस्त्र का आसन बिछाना चाहिए। साधक को भी लाल वस्त्र ही धारण करने चाहिए ।

यह बीस दिनों का प्रयोग है । इसमें तीन कुओं का जल ताम्रकलश में लेकर रखना चाहिए और उसीसे नित्य स्नान करना चाहिए ।

336

नवार्ण उच्चाटन मन्त्र

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ( श्रमुकं ) फट् उच्चाटनं कुरु कुरु स्वाहा । नवार्ण वशीकरण मन्त्र

यह बीस दिनों का प्रयोग है ओर नदी या तालाब अथवा कुएं के जल से स्नान करके साधक को दक्षिण की तरफ मुंह करके बैठना चाहिए तथा सफेद आसन का प्रयोग करना चाहिए और स्वयं भी सफेद वस्त्र ही धारण करे ।

बीस लाख मन्त्र जपने से कार्य में सिद्धि प्राप्त होती है ।

नवार्ण वशीकरण मन्त्र

वषट् ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे (ग्रमुकं ) वषट् मे वश्यं कुरु कुरु स्वाहा । नवार्ण स्तम्भन मन्त्र

यह सोलह लाख मन्त्र जपने से कार्य सिद्धि होती है । इसमें पूर्व की तरफ मुंह करके साधक को बैठना चाहिए तथा भूरे रङ्ग का आसन प्रयोग में लेना चाहिए । साधक को कमलासन में बैठना चाहिए।

नवार्ण स्तम्भन मन्त्र

ॐ ठं ठम् ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे (अमुक) ह्रीं वाचं मुखं पदं स्तम्भय ह्रीं जिह्वां कीलय ह्रीं बुद्धि विनाशय विनाशय ह्रीं ॐ ठं ठं स्वाहा । नवार्ण विद्वेषण मन्त्र

इसमें तेरह लाख मन्त्र जपने से कार्य में सफलता मिलती है। साधक को उत्तर

मुख

बैठना चाहिए और काले रङ्ग का आसन बिछाना चाहिए। इसमें पृष्ठ पादक आसन पर बैठना चाहिए। यह बीस दिन का प्रयोग है और जल में तिल डालकर स्नान करना चाहिए ।

नवार्ण विद्वेषण मन्त्र

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै (अमुक) विद्वेषणं कुरु कुरु स्वाहा ।

नवार्ण महामन्त्र

यह सम्पूर्ण एवं नवार्ण महामन्त्र है । इसका उच्चारण ही देवी को प्रसन्न करने के लिए पर्याप्त है ।

नर्वार्ण महामन्त्र

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महादुर्गे नवाक्षरी नवदुर्गे नवात्मिके नवचण्डी महामाये महा- मोहे महायोग निद्र े जये मधुकैटभ विद्राविणि महिषासुर मद्दनि धूम्र लोचन संहन्त्री चण्डमुण्ड विनाशिनी रक्त बीजान्तके निशुम्भ व्वंसिनि शुन्ध पनि देवि अष्टा बाहुके

337

कपाल खट्वाङ्ग शूल खड्ग खेटक धारिणि छिन्न मस्तक धारिणि रुधिर मांस भोजिनि समस्त भूत प्रेतादि योग ध्वंसिनि ब्रह्मेन्द्रादि प्तुते देवि मां रक्ष रक्ष मम शत्रुन् नाशय ह्रीं फट् ह्व. फट् ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुडणारं विच्चे ।

दुर्गेस्मृता मन्त्र

यह मन्त्र साधकों को प्रिय है और देवी के साक्षात् दर्शन करने के लिए यह मन्त्र सर्वश्रेष्ठ है । इसके साथ ही साथ अखण्ड लक्ष्मी प्राप्ति के लिए भी

यह सर्व- श्रेष्ठ मन्त्र कहा गया है ।

विनियोग

दुर्गेस्मृता इति मन्त्रस्य हिरण्यगर्भ ऋषिः, उष्णिक् छन्दः, श्री महामाया देवता, शाकुम्भरी शक्तिः, दुर्गा बीजम्, श्री वायुस्तत्वम्, मम चतुविध पुरुषार्थ सिद्धये जपे विनियोगः ।

दुर्गे स्मृता मन्त्र

कि शिक

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॐ ह्रीं श्रीं कांसोस्मितां हिरण्य प्राकारा मार्द्राज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीं, पद्मेस्थितां पद्मवर्णा तामिहोपह्वये श्रियम्, ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं दुर्गेस्मृता हरसि भीतिमशेष जन्तोः स्वस्थैः स्मृतामति मतीव शुभां ददासि यदन्ति यच्च दूरके भयं विदति मामिह पवमान वितज्जहि, दारिद्र्य दुःख भयहारिणि का त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता, ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं कांसोस्मितां हिरण्य प्राकारा मार्द्राज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीं, पद्मेस्थितां पद्मवर्णा तामिहोपह्वये श्रियम्, ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं चामुण्डायं विच्चे ।

फल - एक लाख जपने से यह मन्त्र सिद्ध होता है । फिर दशांश क्षीर होम करना चाहिए। इस मन्त्र के सिद्ध होने से जीवन में सभी कार्यों में पूर्ण सिद्धि प्राप्त होती है और वह व्यक्ति समस्त देश में पूजा जाता है ।

नव दुर्गा नामानि

१. जया, २. विजया, ३. भद्रा, ४. भद्रकाली, ५. सुमुखी, ६. दुर्मुखी ७. व्याघ्रमुखी, ८. सिंहमुखी, ६. दुगोम् ।

दस महाविद्या नाम

१. काली, २. तारा, ३. महाविद्या, ४. षोडशी, ५. भुवनेश्वरी, ६. भैरवी, ७. छिन्नमस्ता, ८. धूमावती, ६. बगलामुखी, १०. मातङ्गी ।

दक्षिण काली मन्त्र

यह मन्त्र शत्रुओं का संहार करने के लिए प्रयोग किया जाता है । मूल रूप से यह तान्त्रिक मन्त्र है ।

338

विनियोग

ॐ अस्य श्री दक्षिण कालां मन्त्रस्य, भैरव ऋषिः, उष्णिक् छन्दः, दक्षिण कालिका देवता, क्रीं बीजम्, ह्वं शक्तिः, क्रीं कीलकम्, ममाभीष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोगः । ध्यान

मन्त्र

ॐ शवारूढां महाभीमां घोरदंष्ट्रां हसन्मुखीम् । चतुर्भुजां खड्ग मुण्ड वरा भयकरां शिवाम् ॥ मुण्डमालाधरां देवीं ललज्जिह्वां दिगम्बराम् । एवं सञ्चितयेत्कालीं श्मशानालय वासिनीम् ॥

ॐ क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं हूं हूं दक्षिण कालिके क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं हूं हूं स्वाहा । फल - यह तान्त्रित मन्त्र है अतः साधक को पूरी सावधानी के साथ काम करना चाहिए और ज्यादा अच्छा यह होगा कि वह किसी योग्य गुरु के साथ बैठकर इस कार्य को सम्पन्न करे ।

भद्रकाली मन्त्र

ॐ ह्रौं कालि महाकालि किलि किले फट् स्वाहा ।

फल – यह मन्त्र एक लाख जपने से सिद्ध होता है और इस प्रयोग से शत्रु संहार में साधक को पूर्ण सफलता मिलती है ।

श्मशान काली मन्त्र

ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं कालिके ऐं ह्रीं श्रीं क्लीम् ।

फल - एक लाख जपने से यह मन्त्र सिद्ध होता है और यह मन्त्र शत्रु संहार तथा संसार में पूर्ण विजय देने में समर्थ है ।

पञ्चाक्षर मन्त्र

ॐ ह्रीं त्रीं हुं फट् ।

फल —यह तारा मन्त्र है और एक लाख जपने से सिद्ध होता है । जब बालक छः महीने का हो तब अष्टगन्ध से यह मन्त्र बालक की जीभ पर लिखने से वह सरस्वती के समान हो जाता है और शिक्षा के क्षेत्र में वह अद्वितीय होता है । इस मन्त्र के सिद्ध करने से वाक् सिद्धि तथा धाराप्रवाह भाषण सिद्धि प्राप्त होती है ।

नील सरस्वती मन्त्र

विनियोग

ॐ श्रस्य महाविद्या मन्त्रस्य ब्रह्मा ऋषिः, अनुष्टुप छन्दः, सरस्वती देवता, ममाभीष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोगः ।339

नील सरस्वती मन्त्र

ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं सौं क्लीं ह्रीम् ऐं ब्लूं स्त्रीं नीलतारे सरस्वती द्रां द्रीं क्लीं ब्लूं सः ।

ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं सौंः सौः ह्रीं स्वाहा ।

फल — शास्त्रों मेम् इसको सरस्वती का अत्यन्त प्रिय मन्त्र बताया है और कहा गया है कि जो इस मन्त्र को सिद्ध कर लेता है वह किसी भी विषय पर धाराप्रवाह बोल सकता है और किसी भी विषय पर शास्त्रार्थं में पूर्ण सफलता प्राप्त कर सकता है ।

बालक जब जन्म ले तब स्नान कराकर दूर्वा से इस मन्त्र को उसकी जीभ पर लिखने से उसे समस्त शास्त्र कण्ठस्थ हो जाते हैम् और समस्त संसार मेम् उसे विजय प्राप्त होती है। एक प्रकार से देखा जाय तो वह विद्या के क्षेत्र में पूर्ण सिद्धि प्राप्त करता है ।

सरस्वती मन्त्र

विनियोग

ॐ अस्य सरस्वती मन्त्रस्य कण्व ऋषिः, विराट् छन्दः, वाग्वादिनी देवता, मम सर्वेष्ट सिद्धये जपे विनियोगः ।

ध्यान

तरुण शकल मिन्दो बिस्रती शुभ्र कान्ति,

कुचभरनमिताङ्गी सन्निषण्णा सिताब्जे ।

निजकर कमलोद्यल्लेखनी पुस्तक श्रीः,

सकल विभव सिद्ध्यं पातु वाग्देवता नः ॥

सरस्वती मन्त्र

वद वद वाग्वादिनि स्वाहा ।

फल – यह मन्त्र दस लाख जपने से सिद्ध होता है । ब्रह्मचर्य व्रत पालन करके इसको सिद्ध करना चाहिए। इस मन्त्र के सिद्ध होने से वह व्यक्ति ज्ञान के क्षेत्र में पूरे देश में विख्यात होता है ।

वाग्देवी मन्त्र

ॐ ह्रीम् ऐं ह्रीं ॐ सरस्वत्यै नमः ।

विद्या मन्त्र

ॐ ह्रीं श्रीम् ऐं वाग्वादिनि भगवति श्रर्हन्मुख निवासिनि सरस्वति ममास्ये प्रकाशं कुरु कुरु स्वाहा ऐं नमः ।

फल—यह मन्त्र दीपावली की रात्रि को बारह हजार जपने से सिद्ध होता

340

है । साधक को पूर्व मुख बैठकर सफेद वस्त्र धारण कर कमलासन से यह मन्त्र सिद्ध करना चाहिए । इस मन्त्र के सिद्ध होने पर सरस्वती प्रसन्न होती है और अविद्या का नाश होकर उसे विद्या के क्षेत्र में पूर्ण सफलता प्राप्त होती है ।

एकाक्षरी सरस्वती मन्त्र

यह मन्त्र एक सिद्ध योगी ने बताया था । यह पूर्णतः गोपनीय मन्त्र माना गया है पर अपने आप मेम् आश्चर्यजनक फल देने में समर्थ है ।

एकाक्षरी सरस्वती मन्त्र ‘ऐं’।

फल - यह मन्त्र सरस्वती का बीज मन्त्र है । सूर्य ग्रहण के समय कुश की डण्डी को शहद में भिगोकर इस शब्द को जीभ पर लिखकर साधक तब तक इसका मन्त्र जप करता रहे जब तक कि सूर्य ग्रहण समाप्त न हो जाय ।

फिर दूसरे दिन से लगाकर लगातार ११ दिन तक इस मन्त्र का नित्य इक्कीस हज़ार जप करे ।

यह जप दिन को सफेद आसन पर सफेद वस्त्र धारण कर शुद्ध घी का दीपक जलाकर करे ।

ऐसा करने से साक्षात् सरस्वती प्रकट होती है और अविद्या का नाश कर सम्पूर्ण विद्याओं में पूर्ण श्रेष्ठता प्राप्त होने का वरदान देती है ।

षोडशी मन्त्र

विनियोग

ॐ अस्य श्री त्रिपुर सुन्दरी मन्त्रस्य दक्षिणा मूर्ति ऋषिः, पङ्क्तिछन्दः श्री त्रिपुर सुदंरी देवता, ऐं बीजम् सौः शक्तिः, क्लीं कीलकम्, ममाभीष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोगः ।

·

श्रीं ह्रीं क्लीं

षोडशी मन्त्र

सौः ॐ ह्रीं क ऐम् ई ल ह्रीम् ।

हसकहल ह्रीं सकलह्रीं सौः ऐं क्लीं ह्रीं श्रीम् ।

फल – यह मन्त्र स्वयं को सुन्दर और मोहक आकर्षक बनाने के लिए समर्थ है । एक लाख मन्त्र जपने से यह सिद्ध होता है। सिद्धि होने पर उस साधक को देखते ही अन्य वशीभूत हो जाते हैम् ।

बाला त्रिपुरा मन्त्र

यह मन्त्र दस महाविद्याओं में से एक महाविद्या का प्रिय मन्त्र है और मूल रूप से यह तान्त्रिक मन्त्र कहा गया है ।

विनियोग

341

ॐ अस्य श्रीबाला मन्त्रस्य दक्षिणा मूर्ति ऋषिः, पङ्क्तिश्छन्दः, त्रिपुरा बाला देवता, सौः बीजं, क्लीं शक्तिः, ममाभीष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोगः ।

ध्यान

रक्तांवरां चन्द्रकलावतंसां समुद्यदावित्यनिभां त्रिनेत्राम् । विद्याक्ष मालाभय दान हस्तां ध्यायामि बालामरुणाम्बुजस्थाम् ॥

बाला त्रिपुरा मन्त्र

ऐं क्लीं सौः ।

फल – यह मन्त्र तीन लाख जपने से सिद्ध होता है । इससे जीवन में पूर्ण समृद्धि, सफलता, और अक्षय कीर्ति प्राप्त होती है ।

भुवनेश्वरी मन्त्र

यह मन्त्र भुवनेश्वरी देवी को प्रसन्न करने के लिए है जो कि समस्त सिद्धियोम् और अक्षय धन लाभ देने में समर्थ है ।

विनियोग

ॐ अस्य श्री भुवनेश्वरी मन्त्रस्थ, शक्ति ऋषिः, गायत्री छन्दः, हकारो बीजम्, ईकारः शक्तिः, रेफः कीलकम, श्री भुवनेश्वरी देवता, चतुर्वर्गं सिद्धयर्थे जपे विनियोगः ।

ध्यान

उद्यद्दिन छुतिमिन्दु किरीटाम् ।

तुङ्गकुञ्चां नयन त्रय युक्ताम् ।

स्मेर मुखीं वरदां कुशपाशा,

भीतिकरां प्रभजे भुवनेशीम् ॥

भुवनेश्वरी मन्त्र

‘ह्रीं’ ।

फल - यह मन्त्र बत्तीस लाख जपने से सिद्ध होता है । इसका साधक अपने

जीवन में सभी दृष्टियों से पूर्ण सफलता प्राप्त करता है ।

यक्षरात्मक भुवनेश्वरी मन्त्र

ह्रीं श्रीम् ।

ध्यान, विनियोग, फल व विधि ऊपर लिखे अनुसार ही है ।

342

त्रिपुर भैरवी मन्त्र

यह मन्त्र मूल रूप से तान्त्रिक मन्त्र है और सम्मोहन कार्यों के लिए पूर्णत: अनुकूल है ।

विनियोग

ॐ अस्य श्री त्रिपुर भैरवी मन्त्रस्य दक्षिणा मूर्ति ऋषिः, पङ्क्तिश्छन्दः, त्रिपुर भैरवी देवता, ऐं बीजम्, ह्रीं शक्तिः, क्लीं कीलकम्, ममाभीष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोगः ।

ध्यान

उद्यद्भानु सहस्र कान्ति मरुणक्षौमां शिरो मालिकाम् । रक्ता लिप्त पयोधरां जपवटीं विद्यामभीति वराम् ॥

हस्ताब्द्दधतीं

त्रिनेत्रविलसद्वक्त्रारविन्दश्रियम् ।

देवी बद्ध हिमांशु रत्नमुकुटां वन्दे सुमन्दस्मिताम् ॥

त्रिपुर भैरवी मन्त्र

हसे हसकरों हसेम् ।

फल – यह मन्त्र चौबीस लाख जपने से सिद्ध होता है । इससे साधक पूर्ण जितेन्द्रिय तथा अक्षय कीर्ति सम्पन्न हो जाता है ।

छिन्नमस्ता मन्त्र

यह मन्त्र छिन्नमस्ता महाविद्या साधना के लिए उपयुक्त है ।

विनियोग

ॐ अस्य श्री शिरश्छिन्ना मन्त्रस्य, भैरव ऋषिः, सम्राट् छन्दः, छिन्नमस्ता देवता, ह्रीङ्कार द्वयं बीजम्, स्वाहा शक्तिः, अभीष्ट सिद्धये जपे विनियोगः ।

ध्यान

भास्वन्मण्डल मध्यगां निजशिरश्छिन्नं विकीर्णालकम् । स्फारास्यं प्रपिबद्गलात्स्वरुधिरं वामे करे बिभ्रतीम् ॥ यामासक्त रतिस्मरो परिगतां सख्यौ निजे डाकिनी । वणिन्यौ परिदृश्य मोदकलितां श्री छिन्नमस्तां भजे ॥

छिन्नमस्ता मन्त्र

ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं क्लीम् ऐं वज्रवैरोचनीये ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा ।

343

फल – यह चार लाख मन्त्र जपने से सिद्ध होता है और मन्त्र सिद्ध होने पर वाक् सिद्धि, लक्ष्मी प्राप्ति तथा जीवन में पूर्ण सुख प्राप्त होता है। शत्रु नाश में तथा मुकदमों में विजय प्राप्ति के लिए यह साधना सर्वोत्कृष्ट मानी गई है ।

धूमावती मन्त्र

यह मन्त्र धूमावती महाविद्या को प्रसन्न करने के लिए श्रेष्ठ है । विनियोग

ॐ अस्य श्री धूमावती मन्त्रस्य, पिप्पलाद ऋषिः, निवृच्छन्दः, ज्येष्ठा देवता, घूं बीजम्, स्वाहा शक्तिः, धूमावती कीलकम्, ममाभीष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोगः ।

ध्यान

अत्युच्चा

मलिनाम्बराखिलजनोद्वेगावहा

दुर्मना ।

रुक्षाक्षित्रितया विशालवशना सूय्योदरी चञ्चला ॥ प्रस्वेदाम्बु चिता क्षुषाकुलतनुः कृष्णातिरूक्षाप्रभा । ध्येया मुक्तकचा सदाप्रिय कलिर्धूमावती मन्त्रिणा ॥

धूमावती मन्त्र

धूं धूं धूमावति स्वाहा ।

फल – यह मन्त्र एक लाख जपने से सिद्ध होता है । इस मन्त्र को श्मशान में जपना चाहिए और रात्रि को श्मशान में ही सोना चाहिए ।

बगलामुखी मन्त्र

मह मन्त्र शत्रुनाश एवं शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए श्रेष्ठतम तान्त्रिक मन्त्र माना गया है ।

विनियोग

ॐ अस्य श्री बगलामुखी मन्त्रस्य, नारद ऋषिः, बृहती छन्दः, बगलामुखी देवता, ह्रीं बीजम्, स्वाहा शक्तिः, ममाखिलावाप्तये जपे विनियोगः ।

ध्यान

सौवर्णासन संस्थितां त्रिनयनां पीतांशुकोल्लासिनीम् । हेमाभाङ्गच शशाङ्क मुकुटां सच्चम्पक लग्युताम् । हस्तं मुद्गरपाशवा रशनाः संविभ्रतीं भूषणैः । व्याप्ताङ्गों बगलामुखीं त्रिजगतां संस्तम्भिनीं चितयेत् ॥

344

बगलामुखी मन्त्र

ॐ ह्रीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलय बुद्धि विनाशय ह्रीं ॐ स्वाहा ।

फल – एक लाख मन्त्र जपने से यह सिद्ध होता है । शत्रुओं पर विजय तथा जीवन में शत्रुओं पर अक्षय सफलता प्राप्त करने के लिए यह साधना सर्वोत्कृष्ट है ।

मातङ्गी मन्त्र

यह मन्त्र मातङ्गी साधना के लिए श्रेष्ठ माना गया है ।

विनियोग

ॐ अस्य श्री मातङ्गी मन्त्रस्य मतङ्ग ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, मातङ्गी देवता, ममाभीष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोगः ।

ध्यान

घनश्यामलाङ्गों स्थितां रत्नपीठेशुकस्योदितं शृण्वतीं रक्तवस्त्राम् । सुरापानमत्तां सरोजस्थितां श्रीं भजे वल्लकीं वादयन्तीं मतङ्गीम् ॥

मातङ्गी मन्त्र

ॐ ह्रीम् ऐं श्रीं नमो भगवति उच्छिष्ट चाण्डालि श्री मातङ्गेश्वरि सर्वजन वशङ्करि स्वाहा ।

फल – एक लाख मन्त्र जपने से यह सिद्ध होता है। इससे जीवन में राज्य- सुख और वाहन सुख प्राप्त होता है ।

लक्ष्मी बीज मन्त्र

यह मन्त्र लक्ष्मी प्राप्ति के लिए विशेष अनुकूल तथा प्रभावपूर्ण है ।

विनियोग

ॐ अस्य श्री लक्ष्मीबीज मन्त्रस्य भृगु ऋषिः, निवृच्छन्दः, श्री लक्ष्मी देवता, मम धनाप्तये जपे विनियोगः ।

ध्यान

ॐ कान्त्या काञ्चन सन्निभां हिमगिरि प्रख्यैश्चतुभिर्गजैः । हस्तोत्क्षिप्त हिरण्मयामृतघटैरासिच्यमानाश्रियम् ॥ बिभ्राणां वरमब्ज युग्ममभयं हस्तैः किरीटोज्ज्वलाम् । क्षौमा बद्ध नितम्बबिम्ब लमितां वन्देऽरविन्दस्थिताम् ।

345

लक्ष्मी बीज मन्त्र

‘श्रीं’।

फल — इस मन्त्र का निरन्तर मानस जप चलता रहना चाहिए। इससे जीवन में पूर्ण आर्थिक उन्नति बनी रहती है ।

चतुरक्षर लक्ष्मी बीज मन्त्र

यह बारह लाख जपने से सिद्ध होता है । अन्य सारी विधियाम् ऊपर लिखे अनुसार ही हैम् ।

ध्यान

माणिक्य प्रतिमप्रभां हिमनिभैस्तुं गैश्चतुभिर्गजै, हस्ताग्राहितरत्नकुम्भसलिलैरासिच्यमानां मुदा । हस्ताब्जर्वरदानमम्बुज युगा भीतिर्दधानां हरेः, कान्तां काङ्क्षितपारिजातलतिकां वन्दे सरोजासनाम् ॥

दशाक्षर लक्ष्मी मन्त्र

ध्यान

चतुरक्षर लक्ष्मी बीज मन्त्र

ऐं श्रीं ह्रीं क्लीम् ।

अन्य सारी विधियां व विनियोग ऊपर लिखे अनुसार ही हैम् ।

आसीना सरसीरुहे स्मितमुखी हस्ताम्बुजैबिभ्रती, दानं पद्मयुगाभये च वपुषा सौदामिनी सन्निभा । मुक्ताहार विराजमान पृथु लोत्तुङ्गस्तनोद्भासिनी, पायाद्वः कमला कटाक्ष विभवे रानन्दयन्ती हरिम् ॥

महालक्ष्मी मन्त्र

दशाक्षर लक्ष्मी मन्त्र

ॐ नमः कमलवासिन्यै स्वाहा ।

यह मन्त्र लक्ष्मी का सर्वश्रेष्ठ मन्त्र माना गया है।

विनियोग

ॐ अस्य श्री महालक्ष्मी मन्त्रस्य ब्रह्मा ऋषिः, गायत्री छन्दः, श्री महालक्ष्मी देवता, श्रीं बीजम् नमः शक्तिः, सर्वेष्ट सिद्धये जपे विनियोगः ।

346

ध्यान

ॐ सिन्दूरारुणकान्तिमब्जवर्सात सौन्दर्यवारान्निधिम् । कोटीराङ्गद हार कुण्डल कटी सूत्रादिभिर्भूषिताम् ॥ हस्ताब्जैर्वसुपत्रमब्जयुगला दशौ वहन्तीं परा । मावीतां परिचारिकाभिरनिशं ध्यायेत्प्रियां शाङ्गिणः ॥

अष्टलक्ष्मी यन्त्र

महालक्ष्मी मन्त्र

(१)

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद

प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः ॥

(२)

ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं लक्ष्मीरागच्छागच्छ मममन्दिरे तिष्ठ तिष्ठ स्वाहा ।

द्वादशाक्षर महालक्ष्मी मन्त्र

अन्य विधान, विनियोग व ध्यान ऊपर लिखे अनुसार ही हैम् ।

347

द्वादशाक्षर महालक्ष्मी मन्त्र

ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं सौं जगत्प्रसूत्यै नमः ।

सिद्ध लक्ष्मी मन्त्र

यह लक्ष्मी का सर्वश्रेष्ठ एवं सिद्धिदायक मन्त्र माना गया है ।

विनियोग

ॐ अस्य श्री सिद्ध लक्ष्मी मन्त्रस्य हिरण्यगर्भ ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, श्री महा- काली महालक्ष्मी सरस्वत्यो देवताः, श्रीं बीजम्, ह्रीं शक्तिः, क्लीं कीलकम्, ममसर्व क्लेश पीडा परिहारार्थं सर्वदुःख दारिद्र्यनाशनार्थं सर्वकार्यसिद्ध्यर्थं च श्री सिद्धलक्ष्मी मन्त्रजपे विनियोगः ।

ध्यान

ब्राह्मों च वैष्णवीं भद्रां षड्भुजां च चतुर्मुखीम् । त्रिनेत्रां खड्गशूलामी पद्म चक्र गदा धराम् ॥ पीताम्बरधरां देवीं नानालङ्कारभूषिताम् । तेजः पुञ्जधरां श्रेष्ठान्ध्यायेद्बाल कुमारिकाम् ।।

सिद्ध लक्ष्मी मन्त्र

ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं सिद्धलक्ष्म्यै नमः ।

फल – एक लाख जपने से मन्त्र सिद्ध होता है । साधना काल में गाय के घी का दीपक निरन्तर जलते रहना चाहिए और साधक को पूर्व की तरफ मुंह करके कमलासन पर बैठकर मन्त्र जप करना चाहिए ।

यदि स्फटिक माला का प्रयोग किया जाए तो ज्यादा उचित रहता है । इस साधना को इक्कीस दिन में पूरा करना चाहिए ।

ज्येष्ठा लक्ष्मी मन्त्र

लक्ष्मी प्रयोग के लिए तथा अष्ट लक्ष्मी प्राप्ति के लिए यह मन्त्र सर्वश्रेष्ठ माना गया है ।

विनियोग

ॐ अस्य श्री ज्येष्ठा लक्ष्मी मन्त्रस्य, ब्रह्मा ऋषिः, श्रष्टि छन्दः, ज्येष्ठा लक्ष्मी देवता, ह्रीं बीजम्, श्रीं शक्तिः, ममाभीष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोगः ।

348

ध्यान

उद्यद्भास्कर सन्निभास्मितमुखी रक्ताम्बरा लेपना सत्कुम्भम् धन भाजनम् सृणिमथोपाशं कबिभ्रती ॥ पद्मस्था कमलेक्षणा वृढ़कुचा सौन्दर्य्यवारान्निधिः । ध्यातव्या सकलाभिलाषफलदा श्रीज्येष्ठा लक्ष्मीरियम् ॥

ज्येष्ठा लक्ष्मी मन्त्र

ऐं ह्रीं श्रीं ज्येष्ठालक्ष्मि स्वयम्भुवे ह्रीं ज्येष्ठायै नमः ।

फल – एक लाख जपने से यह मन्त्र सिद्ध होता है । इस मन्त्र से सभी प्रकार की सिद्धि प्राप्त होती है ।

वसुधा लक्ष्मी मन्त्र

यह मन्त्र धन-धान्य, कीर्ति, भवन, सुख आदि के लिए सर्वश्रेष्ठ माना गया है। विनियोग

ॐ अस्य श्री वसुधा सञ्ज्ञक ज्येष्ठा लक्ष्मी मन्त्रस्य, ब्रह्मा ऋषिः, निचृद्गायत्री- छन्दः, वसुधा श्री देवता, ग्लौं बीजम्, श्रीं शक्तिः, ममाभीष्ट प्राप्त्यं जपे विनियोगः ।

ध्यान

कल्पद्र ुमाधो मणिवेदिकायां समास्थिते वस्त्रविभूषणाढ्ये । भूमिश्रियो वाञ्छितवामदक्ष सञ्चितयेद्देव मुनीन्द्र वन्द्ये ॥

वसुधा लक्ष्मी मन्त्र

ॐ ग्लौं श्रीम् अन्नं मह्यन्नं मे बेह्यन्नाधिपतये ममान्नम् प्रदापय स्वाहा श्रीं ग्लौं ॐ ।

फल – एक लाख जपने से यह मन्त्र सिद्ध होता है । यह मन्त्र सिद्ध होने पर पूरे परिवार में सुख-शान्ति बनी रहती है और वह जीवन में पूर्ण सुख एवम् अक्षय कीर्ति प्राप्त करने में सफल हो पाता है ।

वार्ताली मन्त्र

तान्त्रिक क्षेत्र मेम् इस मन्त्र का बहुत अधिक महत्त्व है, क्योङ्कि इस मन्त्र को सिद्ध करने पर देवी वार्ताली स्वयम् आकर साधक को कान में सारे तथ्य बता देती है ।विनियोग

349

ॐ अस्य श्री वार्ताली मन्त्रस्य, शिव ऋषिः, जगती छन्दः, वार्ताली देवता, ग्लौं बीजम्, स्वाहा शक्तिः, ममाखिलावाप्तये जपे विनियोगः ।

ध्यान

रक्ताम्भोरुह कणको परिगते शावासने संस्थिताम् । मुण्डलक् परिराजमानहृदयां नीलाश्म सद्रोचिषम् ॥ हस्ताब्जैर्मुशलं हला भयवरान् सम्बिभ्रतीं सत्कुचाम् । वार्तालीमरुणाम्बरां त्रिनयनां वन्दे वराहाननाम् ॥

वार्ताली मन्त्र

ॐ ऐं ग्लौम् ऐं नमो भगवति वार्तालि वाराहि वाराहमुखि ऐं ग्लौम् ऐ श्रधे अधिनि नमो सङ्घ सन्धिनि नमो जम्भे जम्भिनि नमो मोहे मोहिनि नमः स्तम्भ स्तम्भिनि नमः ऐं ग्लौम् ऐं सर्वदुष्टप्रदुष्टानां सर्वेषां सर्ववाक्पदचित्त चक्षुर्मुखगति जिल्ह्वा स्तम्भं कुरु कुरु शीघ्र वशं कुरु कुरु ऐं ग्लौम् ऐं ठः ठः ठः ठः हुं फट् स्वाहा ।

फल – यह मन्त्र सत्तरह हजार जपने से सिद्ध होता है और जो

साधक यह

वह जो भी

कान में कह

मन्त्र सिद्ध कर लेता है उसे जीवन में शत्रु भय व्याप्त नहीं होता और सोचता है या आने वाली घटनाओं को देवी वार्ताली पहले ही उसके देती है ।

महिषर्माद्दनी मन्त्र

यह मन्त्र शत्रुओं का संहार करने के लिए सर्वश्रेष्ठ माना गया है।

विनियोग

ॐ अस्य श्री महिषर्माद्दनी मन्त्रस्य नारद ऋषिः, गायत्री छन्दः, महिषर्माद्दनी देवता, सर्वेष्टसिद्धये जपे विनियोगः ।

ध्यान

गारुडोपलसन्निभां मणिमौलि कुण्डलमण्डिताम् । नौमिभाल विलोचनां महिषोत्तमाङ्गं निषेदुषीम् ॥ चक्र शङ्ख कृपाण खेटक वाण कार्मुकशूलकाम् । तर्जनी मपिबिभ्रतीं निजबाहुभिः शशि शेखराम् ॥

महिषार्माद्दनी मन्त्र महिषर्माद्दनि स्वाहा ।

350

फल – यह मन्त्र आठ लाख जपने से सिद्ध होता है। रोग-मुक्ति एवं लोगों को वश में करने के लिए यह मन्त्र सर्वश्रेष्ठ माना गया है ।

रेणुका शबरी मन्त्र

साबर मन्त्रों के लिए तथा इस प्रकार के मन्त्रों को सिद्ध करने के लिए यदि पहले इस मन्त्र को सिद्ध कर लिया जाय तो निश्चय ही उसे साधना में सफलता मिलती है ।

विनियोग

ॐ अस्य श्री रेणुका शबरी मन्त्रस्य, भैरव ऋषिः, पङ्क्तिश्छन्दः रेणुका शबरी देवता, ममाभीष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोगः ।

ध्यान

गुञ्जा फला कल्पित हार रम्याम्

श्रुत्यो: शिखण्ड शिखिनो वहन्तीम् ।

कोदण्ड बाणौ दधतीं कराभ्याम्

फल – यह मन्त्र पाञ्च

साधक को अन्य सभी मन्त्रों मेम्

अन्नपूर्णा मन्त्र

कटिस्थ वल्कां शबरीं स्मरामि ।

रेणुका शबरी मन्त्र

ॐ श्रीं ह्रीं क्रीम् ऐम् ।

लाख जपने से सिद्ध होता है । इस मन्त्र के जपने से तथा साधनाओं में पूर्ण सफलता प्राप्त होती है ।

. जिस साधक को यह मन्त्र सिद्ध होता है उसे जीवन में भौतिक पदार्थों की कभी कोई कमी नहीं रहती ।

विनियोग

ॐ अस्य श्री अन्नापूर्णा मन्त्रस्य द्र हिण ऋषिः, कृतिश्छन्दः अन्नपूर्णेशी देवता, ममाखिल सिद्धयर्थं जपे विनियोगः ।

ध्यान

तप्त

स्वर्णनिभा शशाङ्कमुकुटा रत्नप्रभा भासुरा । नाना वस्त्र विराजिता त्रिनयना भूमीरमाभ्याम् युता ॥ वर्वोहाटक भाजनं च दधती रम्योच्चपीनस्तनी । नित्यं तं शिवमाकलय्य मुदिताध्येयान्न पूर्णेश्वरी ॥

351

अन्नपूर्णा मन्त्र

ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं नमो भगवति माहेश्वरि अन्नपूर्णाय स्वाहा ।

फल - एक लाख जपने से यह मन्न्त्र सिद्ध होता है और ऐसा व्यक्ति कुबेर के समान धनी होता है ।

इससे सम्बन्धित अन्य मन्त्र नीचे दिये जा रहे हैं। विधान, विनियोग व ध्यान पूर्ववत् ही है ।

१. ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं नमो भगवति माहेश्वरि

ममाभिमतमन्नं देहि देह्यन्नपूर्णे स्वाहा ।

२. ॐ श्रीं ह्रीं नमो भगवति प्रसन्न पारिजातेश्वर्यन्नपूर्णे स्वाहा । ३. ॐ ह्रीं ह्रीं नमो भगवति माहेश्वरि प्रसन्नवरदे अन्नपूर्णे स्वाहा ।

पृथ्वी मन्त्र

भूमि, वाहन, आदि सुख प्राप्ति के लिए इस मन्त्र की साधना की जाती है । ।

विनियोग

ॐ अस्य श्री पृथ्वी मन्त्रस्य वाराह ऋषिः, निवृच्छन्दः वसुधा देवता, सर्वेष्ट सिद्धये जपे विनियोगः

पृथ्वी मन्त्र

ॐ नमो भगवत्यं धरण्यं धरणिधरे धरे स्वाहा ।

फल – यह मन्त्र एक लाख जपने से सिद्ध होता है। सिद्ध होने पर जीवन में सभी भौतिक सुख प्राप्त होते हैम् ।

मणिकाणिका मन्त्र

यह मन्त्र समस्त सुख व सन्तान प्राप्ति के लिए सिद्ध किया जाता है । विनियोग

ॐ अस्य श्री मणिकर्णिका मन्त्रस्य वेदव्यास ऋषिः, शकरी छन्दः, श्री मणि- कणिका देवता, ममाभीष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोगः ।

मणिकर्णिका मन्त्र

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं ॐ मणिकणिके नमः ॐ ।

352

फल – एक लाख जपने से यह मन्त्र सिद्ध होता है । इससे व्यक्ति को निश्चय ही मोक्ष-प्राप्ति होती है ।

शीतला मन्त्र

जिस बालक को शीतला हो या शीतला -शान्ति करनी हो उसे इस मन्त्र का विधान करना चाहिए ।

विनियोग

ॐ अस्य श्री शीतला मन्त्रस्य उपमन्युऋषिः, बृहती छन्दः, शीतला देवता, ममाभीष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोगः ।

शीतला मन्त्र

ॐ ह्रीं श्रीं शीतलायै नमः ।

ज्वालामुखी मन्त्र

यह मूल रूप से वशीकरण मन्त्र है ।

ज्वालामुखी मन्त्र

ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं सिद्धेश्वरि ज्वालामुखि जूं भिणि स्तम्भिनि मोहिनि वशीकरणि परधनमोहिनि सर्वारिष्टनिवारिणि शत्रु गण संहारिणि सुबुद्धिदायिनि श्रों ग्रां क्रीं ह्रीं त्राहि त्राहि क्षोभय क्षोभय (श्रमुकं) मे वशं कुरु कुरु स्वाहा ।

फल - इस मन्त्र को दिवाली की रात से प्रतिदिन ग्यारह सौ जपे, चमेली के पुष्प चढ़ावे, बर्फी का भोग लगावे तो इक्कीस दिनों में मनोवाञ्छित कार्य सिद्ध होता है । स्वप्न-सिद्धि मन्त्र

इस मन्त्र को सिद्ध करने से व्यक्ति को स्वप्न में ही प्रश्न का उत्तर मिल जाता है । •

विनियोग

ॐ अस्य श्री स्वप्न वाराहि मन्त्रस्य, ईश्वर ऋषिः, जगती छन्दः, स्वप्नवाराही देवता, ॐ बीजम्, ह्रीं शक्तिः, ठः ठः कीलकम्, ममाभीष्ट स्वप्नकथनार्थे जपे विनियोगः ।

स्वप्न-सिद्धि मन्त्र

ॐ ह्रीं नमो वाराहि अघोरे स्वप्नं दर्शय ठः ठः स्वाहा ।

फल — इस मन्त्र का खाट पर सोते-सोते ही नित्य ग्यारह सौ मन्त्र जप करने से ग्यारह दिन के भीतर ही प्रश्न का उत्तर स्वप्न में निश्चित रूप से मिल जाता है ।

353

स्वप्नेश्वरी मन्त्र

यह स्वप्नेश्वरी देवी को सिद्ध करने का मन्त्र है । यह सिद्ध होने पर साधक को प्रत्येक प्रश्न का उत्तर स्वप्न में प्राप्त हो जाता है ।

विनियोग

ॐ अस्य श्री स्वप्नेश्वरी मन्त्रस्य, उपमन्युऋषिः, बृहती छन्दः, स्वप्नेश्वरी देवता, ममाभीष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोगः .

ध्यान

वराभये पद्मयुगं दधानां करैश्चतुभिः कनकासनस्थाम् । सिन्ताबरां शारदचन्द्रकान्ति स्वप्नेश्वरि नौमि विभूषणाढ्याम् ॥

स्वप्नेश्वरी मन्त्र

ॐ श्रीं स्वप्नेश्वरि कार्य मे वद स्वाहा ।

फल - एक लाख जपने से मन्त्र सिद्ध होता है। इस मन्त्र को रात्रि को जपना चाहिए और साधना काल में ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए ।

स्वप्न देवी मन्त्र

अन्य विधि विनियोग व ध्यान ऊपर लिखे अनुसार ही है ।

स्वप्नदेवी मन्त्र

ॐ ह्रीं मानसे स्वप्नेश्वरि विवाय विद्ये वद वद स्वाहा ।

स्वप्न चक्रेश्वरी मन्त्र

यह मन्त्र एक महात्मा का दिया हुआ गोपनीय है और निश्चय ही सफलता- दायक है ।

स्वप्न चक्रेश्वरी मन्त्र

ॐ नमः स्वप्न चक्रेश्वरि स्वप्ने अवतर अवतर गतं वर्तमानं कथय कथय

स्वाहा ।

फल - आङ्गन में लीपकर दीपक जला लेम् और शक्कर के बताशे रख लें। फिर यह मन्त्र वहीं पर बैठकर इक्कीस हजार जपेम् और मन्त्र जपने के बाद वे बताशे कुमारी कन्या को बाण्ट दें तो यह देवी सिद्ध हो जाती है और सारे प्रश्नों के उत्तर स्वप्न में दे देती है ।

यदि यह जप एक लाख लगातार कर लिया जाय तो स्वप्नेश्वरी देवी प्रत्यक्ष स्त्री रूप मेम् आकर दर्शन देती है और वरदान प्रदान करती है ।

354

हनुमान मन्त्र

यह मन्त्र एक सिद्ध योगी का बताया हुआ है अतः इसे प्रत्यक्ष करने पर शीघ्र ही सिद्धि प्रदान करता है ।

हनुमान मन्त्र

ॐ नमो हनुमन्ताय श्रावेशय आवेशय स्वाहा ।

फल-रात्रि को हनुमान की रक्त चन्दन की प्रतिमा बनाकर उसकी प्राण प्रतिष्ठा करे व सिन्दूर लगाकर गुड़ का भोग लगावे तथा स्वयं स्नान कर लाल वस्त्र पहन लाल आसन पर दक्षिण की तरफ मुंह करके बैठ जाए। उस भोग को चौबीस घण्टे हनुमान जी के सामने रहने दे और नित्य ग्यारह सौ मन्त्र जपे ।

चौबीस घण्टे बाद जब दूसरा भोग लगावे तब पहला नैवेद्य उठाकर अलग पात्र मेम् इकट्ठा करता रहे। जब अनुष्ठान पूरा हो जाय तब वह नैवेद्य गरीब ब्राह्मण को दे दे ।

यह अनुष्ठान निर्जन स्थान में करे तथा घी का दीपक जलावे । दिनभर किसी से बोले नहीम् । रात्रि को अनुष्ठान समाप्त होने पर वहीं पर सो जाय । ऐसा ग्यारह दिन बराबर करे तो हनुमान जी प्रसन्न हो जाते हैम् और भविष्य मेम् उसके प्रत्येक प्रश्न का उत्तर देते रहते हैम् ।

चन्द्र योगिनी मन्त्र

ॐ ह्रीं श्रीं सः नमः श्मशानवासिनि चण्डयोगिनि स्वाहा ।

फल-रात्रि को ग्यारह हजार मन्त्र जपे व वहीं पर सो जाय तो स्वप्न में

चण्ड योगिनी उसके प्रश्न का उत्तरं दे देती है ।

स्वप्न मातङ्गी मन्त्र

ॐ नमः स्वप्न मातङ्गिनि सत्यभाषिणि स्वप्नं

फल-साधक को दिन में बिना जल पिये व

दर्शय दर्शय स्वाहा ।

बिना अन्न खाये रहना चाहिए

और रात्रि को मात्र एक सौ आठ बार इस मन्त्र को जपकर वहीं पर सो जाय तो उसी

रात्रि को स्वप्न में प्रश्न का उत्तर मिल जाता है ।

घण्टाकर्ण मन्त्र

ॐ यक्षिणि श्राकर्षाणि घण्टाकर्णे घण्टाकर्णे विशाले मम स्वप्नं दर्शय दर्शय स्वाहा ।

रात्रि को ग्यारह सौ मन्त्र जपे तो ग्यारहवें दिन उसके प्रश्न का

उत्तर स्वप्न में मिल जाता है ।

355

कर्ण पिशाचिनी मन्त्र

ॐ नमः कर्ण पिशाचिनि मत्तकारिणि प्रवेशे श्रतीतानागत वर्तमानानि सत्यं कथय मे स्वाहा ।

फल-आम के फट्टे पर गुलाल बिछाकर अनार की कलम से रात के समय १०८ बार मन्त्र उच्चारण कर लिखता व मिटाता रहे अन्त वाले मन्त्र का पूजन कर फिर ग्यारह सौ मन्त्र जप करे और फिर उस फट्टे को सिरहाने देकर सो जाय ।

ऐसा करने से इक्कीस दिन के भीतर-भीतर साधक को स्वप्न मेम् उसके प्रश्न का उत्तर मिल जाता है ।

यदि यह मन्त्र होली, दिवाली या ग्रहण की रात्रि को मात्र पाञ्च सौ बार उच्चारण कर सो जाय तो स्वप्न मेम् उसके प्रश्न का उत्तर निश्चय ही मिल जाता है। कर्ण पिशाचिनी अन्य मन्त्र

विधि-विधान ऊपर के समान ही है । इससे सम्बन्धित कुछ अन्य मन्त्र इस प्रकार हैं :

१. ॐ क्रीं सनाम शक्ति भगवति कर्णपिशाचिनि चण्डरोपिणि वद वद स्वाहा । २. ॐ ह्रीं सः नमो भगवति कर्णपिशाचिनि चण्डवेगिनि वद वद स्वाहा । ३. ॐ हंसोहंसः नमो भगवति कर्णपिशचिनि चण्डवेगिनि स्वाहा ।

४. ॐ भगवति चण्डकर्णपिशाचनि स्वाहा ।

५. ॐ ह्रीं चीं चिचिनि पिशाचिनि स्वाहा ।

६. ॐ ह्रीम् आगच्छागच्छ चामुण्डे श्रीं स्वाहा । ७. ॐ नमो भगवते रुद्राय कर्णपिशाचायै स्वाहा ।

स्वप्न मुसलमानी मन्त्र

बिस्मिल्लाहुर्रमाहतुर्रहीम अल्लाहो रवी महम्मदरसूल ख्वाजे

की तवीर कुला श्रालम हजूर भेजेङ्गे मवक्कल ल्यावेङ्गे जरूर ।

फल-रात्रि को नित्य ग्यारह सौ जपे । इस प्रकार सवा लाख मन्त्र जपने से यह मन्त्र सिद्ध होता है । सिद्ध होने के बाद किसी भी रात्रि को ग्यारह सौ मन्त्र जपकर सो जाय तो रात्रि को उसके प्रश्न का उत्तर स्वप्न में मिल जाता है ।

यह ध्यान रहे कि मुसलमानी मन्त्रों में माला उल्टे ढङ्ग से फेरनी पड़ती है ।

बागीश्वरी मन्त्र

ॐ नमः पद्मासने शब्द रूपे ऐं ह्रीं क्लीं वद वद वाग्वादिनि स्वाहा ।

356

चित्रेश्वरी मन्त्र

कुलजा मन्त्र

क्लीं वद वद चित्रेश्वरी ऐं स्वाहा ।

सें कुलजे ऐं सरस्वति स्वाहा ।

कीर्तीश्वरी मन्त्र

ऐं ह्रीं श्रीं वद वद कीर्तीश्वरि स्वाहा ।

ऐं ह्रीम् अन्तरिक्ष सरस्वति स्वाहा ।

अतरिक्ष सरस्वती मन्त्र

नीला मन्त्र

घट सरस्वती मन्त्र

ब्लू वें वद वद त्रीं हं फट् ।

हसकें हसौः ष्फ्रीम् ऐं ह्रीं श्रीं द्रां ह्रीं क्लीं ब्लूं सः घटसरस्वति घटे वद वद तर तर रुद्राज्ञया ममाभिलाषं कुरु कुरु स्वाहा ।

यक्षिणी साधन मन्त्र विचित्रा

ॐ विचित्र रूपे सिद्धि कुरु कुरु स्वाहा ।

फल – एक लाख मन्त्र जप वट वृक्ष के नीचे बैठकर जपने से विचित्रा यक्षिणी सिद्ध होती है ।

विभ्रमा यक्षिणी मन्त्र

होती है ।

ॐ ह्रीं दिभ्रम रूपे विभ्रमं कुरु कुरु एह्येहि भगवति स्वाहा । फल - श्मशान में रात्रि को तीन लाख मन्त्र जपने से यह यक्षिणी सिद्ध

हंसी यक्षिणी मन्त्र

हंसी हंस हां नें हीं स्वाहा ।

फल - नग्न होकर भूमि पर बैठकर एक लाख मन्त्र जपने से यह यक्षिणी

सिद्ध होती है ।

भिक्षिणी यक्षिणी मन्त्र

ॐ ऐं महानादे भिक्षिणि हां ह्रीं स्वाहा ।

फल-जहां तीन रास्ते मिलते हों वहां पर रात्रि को बैठकर कुल एक लाख मन्त्र जपने से यह यक्षिणी सिद्धि होती है ।

357

जनरञ्जिनी यक्षिणी मन्त्र

ॐ क्लें जनरञ्जिनि स्वाहा ।

फल - तीन लाख मन्त्र जपने से यह यक्षिणी सिद्ध होती है ।

विशाला यक्षिणी मन्त्र

ॐ ऐं विशाले ह्रां ह्रीं क्लीं स्वाहा ।

फल - एक लाख मन्त्र जपने से यह यक्षिणी सिद्ध होती है ।

मदना यक्षिणी मन्त्र

ॐ मदने मदने देवि मामालिङ्गय सङ्गं देहि देहि श्रीः स्वाहा ।

फल – यह मन्त्र एक लाख जपने से प्रत्यक्ष आकर साधक को एक गुटिका प्रदान करती है जिसे साधक मुख में रखकर अदृश्य हो सकता है ।

घण्टा यक्षिणी मन्त्र

ॐ ऐ पुरं क्षोभय भगवति गम्भीर स्वरे क्लें स्वाहा ।

फल - एक लाख मन्त्र जपने से यह सिद्ध होता है और प्रत्यक्ष दर्शन होता है ।

कालकर्णी यक्षिणी मन्त्र

ॐ ल्वें कालकणिके टः टः स्वाहा ।

फल – यह मन्त्र एक लाख जपने से सिद्ध होता है ।

महामाया यक्षिणी मन्त्र

ॐ ह्रीं महाभये हुं फट् स्वाहा ।

फल — श्मशान मेम् एक लाख मन्त्र जपने से यह सिद्ध होती है । इसके लिए हड्डियों की माला का प्रयोग किया जाना चाहिए।

माहेन्द्री यक्षिणी मन्त्र

ॐ ऐं क्लीम् ऐन्द्रि माहेन्द्र कुल कुलु चुलु चुलु हंसः स्वाहा ।

फल – एक लाख मन्त्र जपने से यह सिद्ध होती है ।

शङ्खिनी यक्षिणी मन्त्र

ॐ शङ्ख धारिणी शङ्खाभरणे ह्रां ह्रीं क्लीं क्लीं श्रीः स्वाहा ।

चन्द्रिका यक्षिणी मन्त्र

ॐ ह्रीं चन्द्रिके हंसः क्लीं स्वाहा ।

श्मशानी यक्षिणी मन्त्र

ॐ हं ह्रीं स्फूं श्मशानवासिनि श्मशाने स्वाहा ।

358

वट यक्षिणी मन्त्र

एह्येहि यक्षि यक्षि महायक्षि वटवृक्ष निवासिनि शीघ्र मे सर्व सौख्यं कुरु कुरु स्वाहा ।

ॐ क्रों मदनमेखले नमः स्वाहा ।

मेखला यक्षिणी मन्त्र

विकला यक्षिणी मन्त्र

ॐ विकले ऐं ह्रीं श्रीं क्लें

स्वाहा ।

लक्ष्मी दक्षिणी मन्त्र

ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं महालक्ष्म्यै नमः ।

मानिनी यक्षिणी मन्त्र

ॐ ऐं मानिनी ह्रीम् एह्येहि सुन्दरि हसहस मिह सङ्गमहः

स्वाहा ।

शतपतिका यक्षिणी मन्त्र

ॐ ह्रां शतपत्रिके ह्रां ह्रीं श्रीं स्वाहा ।

सुलोचना यक्षिणी मन्त्र

ॐ क्लौं सुलोचनादि देवि स्वाहा ।

सुशोभना यक्षिणी मन्त्र

ॐ अशोक पल्लवा कारकर तले शोभने देवि श्रीं क्षः स्वाहा ।

कपालिनी यक्षिणी मन्त्र

ॐ ऐं कपालिनि हां ह्रीं क्लीं क्लें क्लौं हससकल ह्रीं फट् स्वाहा ।

विलासिनी यक्षिणी मन्त्र

ॐ विरूपाक्ष विलासिनि आगच्छागच्छ ह्रीं प्रिया मे भव प्रिया मे भव क्लें स्वाहा ।

नटी यक्षिणी मन्त्र

ॐ ह्रीं नटिनि स्वाहा ।

कामेश्वरी यक्षिणी मन्त्र

ॐ आगच्छ कामेश्वरि स्वाहा ।स्वर्ण रेखा यक्षिणी मन्त्र

ॐ वर्कशल्मिले सुवर्ण रेखे स्वाहा ।

सुरसुन्दरी यक्षिणी मन्त्र

ॐ आगच्छ सुरसुन्दरि स्वाहा ।

मनोहरा यक्षिणी मन्त्र

ॐ ह्रीं श्रागच्छ मनोहरे स्वाहा ।

प्रमदा यक्षिणी मन्त्र

ॐ ह्रीं प्रमदे स्वाहा ।

अनुरागिणी यक्षिणी मन्त्र

ॐ ह्रीं श्रागच्छानुरागिणि मैथुनप्रिये स्वाहा ।

नखकेशिका यक्षिणी मन्त्र

ॐ ह्रीं नखकेशिके कनकावति स्वाहा ।

नेमिनि यक्षिणी मन्त्र

ॐ ह्रीं महायक्षिणी भामिनि प्रिये स्वाहा ।

पद्मिनी यक्षिणी मन्त्र

ॐ ह्रीं श्रागच्छ पद्मिमनि वल्लभे स्वाहा ।

स्वर्णावती ( कनकावती) यक्षिणी मन्त्र

ॐ कनकावति मैथुनप्रिये स्वाहा ।

रतिप्रिया यक्षिणी मन्त्र

ॐ ह्रीम् आगच्छ रतिसुन्दरि स्वाहा ।

कुबेर यक्षिणी मन्त्र

TUTE

ॐ यक्षाय कुबेराय धनधान्याधिपतये धनधान्यसमृद्धि मे देहि दापय स्वाहा ।

विल्व यक्षिणी मन्त्र

ॐ क्लीं ह्रीम् ऐं श्रीं श्रीं महायक्षिण्यं सर्वेश्वर्य प्रदात्र्यं ॐ नमः श्रीं क्लीम् ऐं ॐ स्वाहा ।

चन्द्रद्रवा वट यक्षिणी मन्त्र

ॐ ह्रीं नमश्चन्द्रद्रवे कर्णाकर्ण कारणे स्वाहा ।

359

360

धनदा पिप्पल यक्षिणी मन्त्र

ॐ ऐं क्लीं धनं कुरु कुरु स्वाहा ।

पुत्रदा आन यक्षिणी मन्त्र

ॐ ह्रीं ह्रीं ह्र ं पुत्रं कुरु कुरु स्वाहा ।

अशुभ क्षयकरी धात्री यक्षिणी मन्त्र

ॐ ऐं क्लीं नमः ।

विद्या दात्र्युदुम्बर यक्षिणी मन्त्र

ॐ ह्रीं श्रीं शारदायै नमः ।

विद्या वात्री निर्गुडी यक्षिणी मन्त्र

ॐ सरस्वत्यै नमः ।

जयार्क यक्षिणी मन्त्र

ॐ ऐं महायक्षिण्यं सर्वकार्य साधनं कुरु कुरु स्वाहा ।

सन्तोषा श्वेत गुञ्जा यक्षिणी मन्त्र

ॐ जगन्मात्रे नमः ।

राज्यदा तुलसी यक्षिणी मन्त्र

ॐ क्लीं क्लीं नमः ।

राज्यदा कोल यक्षिणी मन्त्र

ॐ ह्रीं नमः ।

कुश यक्षिणी मन्त्र

ॐ वाङ्मयायै नमः |

अपामार्ग यक्षिणी मन्त्र

ॐ ह्रीं भारत्यै नमः ।

क्षीरार्णवा यक्षिणी मन्त्र

ॐ नमो ज्वाला माणिक्य भूषणायै नमः ।

उच्छिष्ट यक्षिणी मन्त्र

ॐ जगत्रय मातृके पद्मनिभे स्वाहा ।

चन्द्रामृत यक्षिणी मन्त्र

ॐ गुलुगुलु चन्द्रामत मयि श्रवजालितं हुल हुलु चन्द्रनीरे स्वाहा ।

361

स्वामीश्वरी यक्षिणी मन्त्र

ॐ ह्रीम् आगच्छ स्वामीश्वरि स्वाहा ।

महामाया भोग यक्षिणी मन्त्र

ॐ नमो महामाया महाभोगदायिनि हुं स्वाहा ।

त्यागा साधन यक्षिणी मन्त्र

अहो त्यागी महात्यागी प्रथं देहि मे वित्तं वीरसेवितं ह्रीं स्वाहा ।

सर्वाग सुलोचना यक्षिणी मन्त्र

ॐ कुवलये हिलि हिलि कुरु कुरु सिद्धि सिद्धेश्वरि ह्रीं स्वाहा ।

भूतलोचना यक्षिणी मन्त्र

ॐ भूते सुलोचने त्वम् ।

जलपाणि यक्षिणी मन्त्र

मातगेश्वरी यक्षिणी मन्त्र

ॐ ह्रीं जलपाणिनि ज्वल ज्वल हुं ल्बुं स्वाहा ।

ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं मातङ्गेश्वर्यै नमो नमः ।

विद्या यक्षिणी मन्त्र

ॐ ह्रीं वेदमातृभ्यः स्वाहा ।

हटेले कुमारी यक्षिणी मन्त्र

ॐ नमो हटेले कुमारि स्वाहा ।

बन्दी साधन मन्त्र

ॐ हिलि हिलि बन्दी देव्यै स्वाहा ।

अष्ट अप्सरा आवाहन मन्त्र

शशि अप्सरा मन्त्र

ॐ श्रीं शशि देव्यागच्छागच्छ स्वाहा ।

तत्क्षणात्सर्वाप्सरस आगच्छागच्छ हुं यः यः ।

तिलोत्तमा अप्सरा मन्त्र

ॐ श्रीं तिलोत्तमे आगच्छागच्छ स्वाहा ।

362

काञ्चनमाला अप्सरा मन्त्र

ॐ श्रीं काञ्चनमाले आगच्छागच्छ स्वाहा ।

कुण्डला हारिण्य अप्सरा मन्त्र

ॐ श्रीं ह्रीं कुण्डलाहारिणि श्रागच्छागच्छ स्वाहा ।

रत्नमाला अप्सरा मन्त्र

ॐ हं रत्नमाले आगच्छागच्छ स्वाहा ।

रम्भा अप्सरा मन्त्र

mwing sise

ॐ सः रम्भे आगच्छागच्छ स्वाहा ।

उर्वशी अप्सरा मन्त्र

ॐ श्रीम् उवंशि श्रागच्छागच्छ स्वाहा ।

WIPED

भूषणा अप्सरा मन्त्र

अष्ट किन्नरी मन्त्र

ॐ वाः श्रीं वाः श्रीं भूषणि आगच्छागच्छ स्वाहा ।

ॐ ह्रीं श्राकट्ट कट्ट हूं यः फट् ।

मञ्जुघोषा किन्नरी मन्त्र

ॐ मञ्जुघोषे श्रागच्छागच्छ स्वाहा ।

शिशु

मनोहारी किन्नरी मन्त्र

ॐ मनोहायं स्वाहा ।

सुभगा किन्नरी मन्त्र

ॐ सुभगे स्वाहा ।

विशाल नेत्रा किन्नरी मन्त्र

ॐ विशालनेत्रे स्वाहा ।

सुरतिप्रिया किन्नरी मन्त्र

ॐ सुरतिप्रिये स्वाहा ।

अश्वमुखी किन्नरी मन्त्र

ॐ अश्वमुखि स्वाहा ।

FOR PEPIR TYP

गण

363

दिवाकीर किन्नरी मन्त्र

ॐ दिवाकीर मुखि स्वाहा ।

सुभग कात्यायनी मन्त्र

ॐ सुरतिप्रिये दिव्य लोचने कामेश्वरि जगन्मोहने सुभगे काञ्चनमाला विभूषण नूपुर शब्देनाविशादिश पूरय साधक प्रियं स्वाहा ।

कुण्डल कात्यायनी मन्त्र

ॐ यामिनि कृतिनि अकाल मृत्यु निवारिणि खङ्ग त्रिशूल हस्ते शीघ्र सिद्धि ददाति हि तां साधक श्राज्ञापयति ह्रीं स्वाहा ।

चण्ड कात्यायनी मन्त्र

ॐ ऐं क्रं रुद्र भयङ्करि अट्टाट्टहासिनि “साधक प्रिये महाविचित्र रूपे रत्नाकरि सुवर्ण हस्ते यमनिकृतनि सर्वदुःख प्रशमनि जंउंउण्ड हुहुहं शीघ्र सिद्धि प्रयच्छ हों जः स्वाहा ।

रुद्र कात्यायनी मन्त्र

ॐ ह्रीं ह्रीं हूं हं हे हे फट स्वाहा ।

महाकात्यायनी मन्त्र

सुर कात्यायनी मन्त्र

भू हू लहणं फट् ।

ॐ भू हूं फट् ।

कर्ण पिशाचिनी मन्त्र

ध्यान

यह मन्त्र अत्यन्त गोपनीय और कलियुग में शीघ्र सिद्धि देने वाला है ।

कृष्णां रक्तविलोचनां त्रिनयनां खर्वा च लम्बोदरी । बन्धू कारुण जिह्विकां वरवरा भीतीकराम्मुन्मुखाम् ॥ ध्र म्राचिर्जटिलां कपाल विलसत्पाणि द्वयां चञ्चलाम् । सर्वज्ञां शवहृत्कृताधिवसतिं पैशाचिकों तां नमः ॥

कर्ण पिशाचिनी मन्त्र

ॐ कर्ण पिशाचिनि वदातीतानागतं ह्रीं स्वाहा ।

364

फल - आधी रात को अपने हृदय में देवी का ध्यान करके देवी की पूजा करनी चाहिए और जली हुई मछली की बलि देनी चाहिए। दिनभर भूखा रहे तथा रात्रि को मन्त्र का जप करे ।

‘ॐ

एक लाख जपने से यह मन्त्र सिद्ध होता है । इसमें पूजा करते समय ‘ॐ अमृतं कुरु कुरु स्वाहा’ कहकर पूजा करनी चाहिए तथा बलि चढ़ाते समय कर्णपिशाचि दग्धमीन बलि गृहाण गृहाण मम सिद्धिं कुरु कुरु स्वाहा’ कहकर बलि देनी चाहिए ।

शाम को एक बार आहार करे और आहार में से एक पिण्ड सन्ध्या को घर की छत पर फेङ्क दे ।

ऐसा करने से यह देवी सिद्ध हो जाती है और उसके कान में प्रत्येक बात का उत्तर कह देती है ।

कर्ण पिशाचिनी मन्त्र

इसमेम् अन्य विधि-विधान पहले के समान ही है । तर्पण करते समय ‘ॐ कर्ण- पिशाचि तर्पयामि स्वाहा’ कहकर तर्पण करे ।

कर्ण पिशाचिनी मन्त्र

कह कह कालिके गृह्ण गृह्ण पिण्डं पिशाचिके स्वाहा ।

अष्टादशाक्षर कर्ण पिशाचिनी मन्त्र

अन्य विधि-विधान ध्यान, व तर्पण ऊपर लिखे अनुसार ही है ।

अष्टादशाक्षर कर्ण पिशाचनी मन्त्र

ॐ ह्रीं चः चः कम्बलिके गृह्ण पिण्डं पिशाचिके स्वाहा ।

कर्ण पिशाचिनी मन्त्र

ॐ ह्रीं कर्णपिशाचि मे कर्णे कथय हुं फट् स्वाहा ।

फल-रात्रि को दीपक का तेल पैरों में मलकर एक लाख मन्त्र जपना चाहिए तब यह मन्त्र सिद्ध होता है । इसमें पूजा ध्यान आदि नहीं करना चाहिए।

सिद्ध कर्ण पिशाचिनी मन्त्र

यह मन्त्र पूर्ण सिद्धिदायक है और एक श्रेष्ठ तान्त्रिक ने गोपनीय रूप से इसे

बताया था ।

365

विनियोग

ॐ अस्य श्री कर्ण पिशाचिनि मन्त्रस्य पिप्पलाद ऋषिः, नीवृच्छन्दः, कर्ण पिशाचिनी देवता ममाभीष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोगः ।

ध्यान

ॐ चित्तासनस्थां नरमुण्डमाला विभूषितामस्थिमणीन् कराब्जैः । प्रेतान्नरान्त्रदधतीं कुवस्त्रां भजामहे कर्ण पिशाचिनीं ताम् ।

सिद्ध कर्ण पिशाचिनी मन्त्र

ॐ ऐं ह्रीम् एं क्लीं क्लीं ग्लौं ॐ नमः कर्णाग्नौ कर्णपिशाचिकादेवि प्रतीतानागत वर्तमान वार्तां कथय मम कर्णे कथय कथय तथ्यं मुद्रावातां कथय कथय श्रागच्छागच्छ सत्यं सत्यं वद वद वाग्देवि स्वाहा ।

फल- श्मशान में जाकर या मरे हुए मुर्दे के सीने पर बैठकर यह मन्त्र एक लाख जपना चाहिए। ऐसा करने से मन्त्र सिद्ध होता है । पर जब तक एक लाख मन्त्र जम्प पूर्ण न हो तब तक साधक न तो स्नान करे और न दान्त साफ करे। ऐसा करने पर कर्ण पिशाचिनि देवी प्रसन्न होती है और दूसरे के मन की बात साधक के कान में कह देती है ।

मतान्तरे कर्ण पिशाचिनी मन्त्र

ॐ नमः कर्ण पिशाचिनि मत्तकण प्रविश अतीतानागत वर्तमानं सत्यं सत्यं कथय मे स्वाहा ।

फल - यह मन्त्र एक लाख जपने से सिद्ध होता है। फिर आम की लकड़ी पर एक सौ आठ बार यह मन्त्र लिखना चाहिए । तब स्वप्न मेम् उसे प्रश्न का उत्तर मिल जाता है ।

कर्ण पिशाचिनी मन्त्र

ॐ कर्ण पिशाचिनि पिङ्गल लोचने स्वाहा ।

फल — एक लाख जपने से यह मन्त्र सिद्ध होता है और सिद्ध होने पर देवी प्रसन्न होकर उसे भूत, भविष्य, वर्तमान बता देती है ।

कर्ण पिशाचिनी मन्त्र

ॐ विश्वरूपे पिशाचि वद वद ह्रीं स्वाहा ।

फल - एक लाख जपने से यह मन्त्र सिद्ध होता है। फिर प्रतिदिन तीन हजार

366

मन्त्र जपता हुआ इक्कीस दिन तक प्रयोग करे तो देवी प्रसन्न होती है और सामने वाले व्यक्ति के हृदय की बात उसके कान में कह देती है ।

कर्ण पिशाचिनी मन्त्र

ॐ नमः कर्णपिशाचिन्य मोधसत्यवादिनि मम कर्णे अवतरावरातीता नागत- वर्तमानानि दर्शय मम भविष्यं कथय कथय ह्रीं कर्णपिशाचि स्वाहा ।

फल-दिन को घी का तथा रात्रि को घी का व तेल का दीपक जलाकर त्रिशूल की पूजा करे तथा मन्त्र का सवा लाख जप करे । ऐसा करने पर मन्त्र सिद्ध हो जाता है और उसके कान मेम् आवाज आने लगती है ।

वार्ताली मन्त्र

ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं नू ठं ठं नमो देवपुत्रि स्वर्गनिवासिनि सर्व नरनारी मुख वार्ताल वार्तां कथय सप्त समुद्रान्दर्शय दर्शय ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं नीं ठं ठं हुं फट् स्वाहा । फल- -दो जङ्गली काण्टे तथा एक सूअर का दान्त लेकर उसके ऊपर एक लाख बत्तीस हजार मन्त्र जप करे तो मन्त्र सिद्ध हो। फिर नित्य सिन्दूर का तिलक करके एक सौ आठ बार मन्त्र जपे तो वार्ताली देवी प्रसन्न होती है और उसे कान में भूत. भविष्य वर्तमान बता देती है ।

इसमें दिन को हर समय सिन्दूर का तिलक लगाये रहना चाहिए । वृहद कर्ण पिशाचिनी मन्त्र

ऐं ह्रीं श्रीं दुं हुं फट् कनकवज्र वैदूर्य मुक्तालङ्कृत भूषणे एहि एहि श्रागच्छ आगच्छ मम कर्णे प्रविश्यं भूत भविष्य वर्तमान काल ज्ञान दूर दृष्टि दूर श्रवणं बूहि ब्रूहि अग्निस्तम्भनं शत्रुस्तम्भनं शत्रुमुखस्तम्भनं शत्रुगति स्तम्भनं शत्रुमतिस्तम्भनं परेषां गति मति सर्वशत्रूणां वाग्ज भण स्तम्भनं कुरु कुरु शत्रुकार्य हानि करि मम कार्य सिद्धि करि शत्रूणामुद्योग विध्वंसकरि वीरचामुण्डिनि हाटक धारिणि नगरी पुरी पट्टणस्थान- सम्मोहिनि असाध्य साधिनि ॐ श्रीं ह्रीम् ऐं ॐ देवि हन हन हुं फट् स्वाहा ।

फल – यह मन्त्र एक लाख जपने से सिद्ध होता है और इससे शत्रु नाश तथा पूर्ण कार्य सिद्धि होती है ।

विप्रचाण्डालिनि मन्त्र

ॐ नमश्चामुण्डे प्रचण्डे इन्द्राय ॐ नमो विप्रचाण्डालिनि शोभिनि प्रकर्षाणि श्राक र्षय द्रव्यमानय प्रबल मानय हुं फट् स्वाहा ।

फल - प्रथम दिन भूखा रहे. धरती पर सोवे, मीठा भोजन करे और आधा भोजन करके आधा भोजन उसी थाली में झूठा छोड़ दे और भूखे मुंह से ही अपवित्र स्थान पर बैठकर यह मन्त्र जपे तो एक लाख मन्त्र जपने पर सिद्ध होता है । इसे २१ दिन में पूरा करना चाहिए ।

367

२१ दिनों में यदि रात्रि को भय दिखाई दे तो चिन्ता न करे और अनुष्ठान बराबर करता रहे तो उसे सिद्धि प्राप्त होती है और देवी स्वयं प्रसन्न होकर उसे मनोवाञ्छित वरदान देती है ।

क्षोभिणी मन्त्र

ॐ नमः उच्छिष्ट चाण्डालिनि क्षोभिणि वह वह द्रव द्रव श्रनपूरी श्री भास्करि नमः स्वाहा ।

फल- २२ हजार १२३ मन्त्र जपने पर यह सिद्ध होता है और उसे पूर्ण सिद्धि प्राप्त होती है ।

प्रेत साधन मन्त्र

के

ॐ श्री वं वं भुं भूतेश्वरि मम वश्यं कुरु कुरु स्वाहा ।

फल- नित्य शौच के बाद बचा हुआ जल मूल नक्षत्र से प्रारम्भ करके बबूल वृक्ष में डाले और फिर उस वृक्ष के नीचे बैठकर १०८ मन्त्र जप प्रतिदिन करे । इस प्रकार ६ महीने तक मन्त्र जप करे, पीछे एक दिन पानी न डाले और मन्त्र जप करे तो प्रेत सामने आकर पानी माङ्गे तब उससे तीन वचन ले कि नित्य याद करने पर हाजिर होगा, बताया हुआ काम करेगा, और सेवा करेगा। ऐसा करने पर प्रेत वश में हो जाता है ।

वट यक्षिणी चेटक मन्त्र

ॐ सुमुखे विद्युज्जिह्वे ॐ हूं चेटक जय जय स्वाहा ।

नित्य इस मन्त्र का १०८ जप करे और भोजन करते समय आधा भोजन छत पर फेङ्क दे। ऐसा छः महीने करने पर यक्षिणी स्वयम् आकर अपने हाथ से भोजन ग्रहण करती है और जो भी माङ्गो वर प्रदान करती है ।

लिङ्ग चेटक मन्त्र

ॐ नमो लिङ्गोद्भव रुद्र देहि मे वाचां सिद्धिं वित्तानां पार्वतीपते ह्रीं ह्रीं हूं हैं ह्रौं ह्रः ।

स्वयं के लिङ्ग को दाहिने हाथ में लेकर बायें हाथ से मन्त्र जपे । इस प्रकार एक लाख मन्त्र जपने पर वाक् सिद्धि हो जाती है ।

नाना सिद्धि चेटक मन्त्र

ॐ नमो भूतनाथाय नमः मम सर्वसिद्धीर्वेहि देहि श्रीं क्लीं स्वाहा ।

पाञ्च लाख मन्त्र जपने पर यह सिद्ध होता है और सिद्ध होने पर उसे जीवन

में सम्पूर्ण सुख भोग प्राप्त होते हैम् ।

368

सागर चेटक मन्त्र

ॐ नमो भगवते समुद्राय देहि रत्नानि जलराशे त्रीणि नमो स्तुते स्वाहा । समुद्र या नदी के किनारे नित्य रात्रि को यह मन्त्र जपे । एक लाख जपने पर यह सिद्ध होता है और उसके बाद नित्य उसे प्रातः उठते समय तकिये के नीचे तीन रत्न प्राप्त होते हैम् ।

काली चेटक मन्त्र

ॐ कङ्काली महाकाली केलिकलाभ्यां स्वाहा ।

यह मन्त्र अत्यन्त दुर्लभ और गोपनीय है । इसके जानने वाले को सर्व सिद्धि प्राप्त होती है । इस मन्त्र से एक हजार चमेली के फूलों का रस मिलाकर एक हजार होम करे तो काली प्रसन्न होती है और नित्य प्रातः उठते समय साधक को सिरहाने एक तोला स्वर्ण प्राप्त होता है ।

फत्कारिणी चेटक मन्त्र

स्वाहा ।

ॐ नमो अश्म कर्णेश्वरि दुर्बले आर्द्रकेशी जटाकलापे ढक्कण फेत्कारिणि

अजमोद की जड़ को घोड़ी के दूध में हरताल के साथ घिसकर मुख में रख ले तथा फिर इस मन्त्र का एक हजार जप करे। ऐसा करने पर मन्त्र सिद्ध होता है । फिर एक बार मन्त्र पढकर जिस किसीसे भी जो भी वस्तु माङ्गेगा वह तुरन्त दे देगा ।

रतिराज चेटक मन्त्र

ॐ ह्रां ह्रीं ह्रविटपाय स्वाहा ।

यह मन्त्र पाञ्च लाख जप करने पर सिद्ध होता है। फिर जिस समय स्त्री के साथ रमण करना हो तब एक बार मन्त्र पढ़कर रमण करे तो स्त्री को पूर्ण सन्तुष्ट करे । पूर्ण कामोद्दीपन हो तथा स्त्री जीवनभर वश में रहे ।

शतयोजन दृष्टि चेटक मन्त्र

ॐ ह्रीं फूं स्वाहा ।

कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को गिद्ध का सिर लाकर उसे जमीन में गाड़ दे और

उसमें लहसन के बीज बो दे। जब पुष्य नक्षत्र आवे तब उस लहसन

के फूल को जल

के साथ पीस कर घृत मिलाकर आङ्ख में लगावे और मन्त्र पढ़े तो सौ योजन तक दिखाई दे तथा नेत्र ज्योति अत्यन्त तीव्र हो ।तस्कर ग्रहण चेटक मन्त्र

369

उद्दमुद्द जल्ल जलाल, पकड़ चोटी घर पछाड़,

मेज कुद्दा लाव मुद्दा, याकहु हारो या कहु हारो ।

नदी के किनारे या कुएं के पास १२१ बार यह मन्त्र पढ़कर सो जाय तो तुरन्त उसे चोरी की हुई सामग्री, सामग्री छुपाने का स्थान तथा चोर के बारे में पूरा- पूरा ज्ञान हो जायगा ।

चौर्य चेटक मन्त्र

ॐ नमो नारसिंह वीर ज्यू ज्यू तू चाले, पवन चाले, पानो चालै: चोर का चित्त चाल, चोर के मुख में लोही चाले, काया थाम्भै, माया परै कर जो चोर के मुख में लोही न चलावे तो गोरखनाथ की आज्ञा मैटै, नौ नाथ चौरासी सिद्ध की आज्ञा मेटै ।

सवा पाव चावल लेकर तीन दफे पानी से धोकर फिर गौ मूत्र में भिगोवे और उसे सुखा दे । सूखने पर उस पर १०८ बार मन्त्र पढ़े। फिर वह चावल थोड़ा- थोड़ा सब को दे । जो चोर होगा उसके मुंह से रक्त निकलेगा ।

गुप्त वार्ता लक्ष्य चेटक मन्त्र

रविदिन जहां जु घुग्घु पावे,

ताको काढ़ कलेजो लावे ।

ताको धूप दीप दे राख,

स्वर्ण सिद्धि मन्त्र

सोवत नर के हिरदे नाखे । गुप्त बात मन में जो होई, ज्यों की त्यों सबही कह देई ।

ॐ ऐं क्लीं क्लीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं सः वम् आपदुद्धरणाय श्रजामल बद्धाय लोके- श्वराय स्वर्णाकर्षण भैरवाय मम दारिद्रय विद्वेषणाय श्री महाभैरवाय नमः ।

पारा तीन हिस्सा, जस्ता नौ हिस्सा लेकर मिट्टी के बर्तन में रख करके साग पत्र रस दे तो भस्म होय । फिर मन्त्र द्वारा इस भस्म को चान्दी के पत्र पर लेप करे तो वह पत्र सुवर्ण हो ।

अदृश्य विधान मन्त्र

ॐ ह्रीं क्लीम् ऐं श्रासुरी रक्त वाससे अघोर अघोर कर्म कारिके अदृश्य कुरु कुरु ह्रीम् ऐं ॐ ।

370

इस मन्त्र को रविवार के दिन आरम्भ करके एक सप्ताह तक नित्य एक लाख जपे और बिल्कुल निराहार रहे तथा वस्त्र भी धारण न करे तो अगले रविवार को स्वयं यक्ष आकर गुटिका प्रदान करता है जिसे हाथ में लेते ही साधक अदृश्य हो जाता है । वह स्वयं तो दूसरों को देख सकता है परन्तु दूसरे लोग उसको नहीं देख पायेङ्गे ।

प्रत्यङ्गिरा मन्त्र

ॐ ह्रीं यां कल्पयति नो रयः करां कृत्यां वधूमिव,

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हां ब्रह्मणा श्रपनिर्णुद्मः प्रत्यक्कर्तारि मृच्छतु ह्रीं ॐ ।

यह मन्त्र एक लाख जपने से सिद्ध होता है और सिद्ध होने पर साधक को जीवन में किसी प्रकार का रोग नहीं होता ।

बोरी न हो— मन्त्र

जले रक्षतु वाराहः स्थले रक्षतु वामनः । श्रटव्यां नारसिंहश्च सर्वतः पातु केशवः ॥ जले

रक्षतु नन्दीशः स्थले रक्षतु भैरवः । अटव्यां वीरभद्रश्च सर्वतः पातु शङ्करः ॥

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अर्जुनः फाल्गुनो जिष्णुः किरीटी श्वेत वाहनः बीभत्सुविजयः कृष्णः सव्यसाची धनञ्जय ॥ तिस्रो भार्याः कफल्लस्य दाहिनी मोहिनी सती । तासां स्मरण मात्रेण चोरो गच्छति निष्फलः ॥

कफल्लकः कफल्लकः कफल्लकः

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विधान-रात को सोते समय केवल एक बार इस मन्त्र का उच्चारण कर सोने से घर में चोरी नहीं होती ।

भूत उपद्रव नाश मन्त्र

ॐ नमो भगवते नारसिंहाय घोर रौद्र महिषासुर रूपाय त्रैलोक्याडम्बराय रौद्र क्षेत्रपालाय ह्रौं ह्रौं क्रीं क्रीं क्रीमिति ताडप ताडय मोहय मोहय द्वम्भि भि क्षोभय क्षोभय आभि श्राभि साधय साधय ह्रीं हृदये आं शक्तये प्रीति ललाटे बन्धय बन्धय हृदये स्तम्भय स्तम्भय किलि किलि ई ह्रीं डाकिनि प्रच्छादय प्रच्छादय शाकिनीं प्रच्छादय प्रच्छादय भूतं प्रच्छादय प्रच्छादय प्रभूतं प्रच्छादय प्रच्छादय स्वाहा राक्षसं प्रच्छादय प्रच्छादय ब्रह्मराक्षसं प्रच्छादय प्रच्छादय सिंहिनी पुत्रं प्रच्छादय प्रच्छादय डाकिनी ग्रहं साधय साध्य शाकिनी ग्रहं साधय साधय श्रनेन मन्त्रेण डाकिनी शाकिनी प्रेत पिशाचाद्यै काहि कदया हिक व्याहि कचातुर्थिक पञ्चवार्तिक पैत्तिक श्लैष्मिक

भूत

371

सन्निपात केसरि डाकिनी ग्रहादीन्मुञ्च मुञ्च स्वाहा। गुरु की शक्ति, मेरी भक्ति, फुरो मन्त्र ईश्वरी वाचा ।

लोहे की सलाख से या झाडू से २१ बार यह मन्त्र पढ़कर झाड़ दे तो

बाधा आदि दूर हो ।

नजर झाड़ने का मन्त्र

भूत

ॐ नमो सत्य नाम आदेश गुरु को ॐ नमो नजर जहां परपीर न जानी बोले छलसोम् अमृतबानी, कहो नजर कहां ते श्राई, यहां कौ ठौर तोहि कौन बताई, कौन जात तेरो कहा ठाम, किसकी बेटी कहा तेरो नाम, कहां से उड़ी कहां को जाया श्रब ही बसकर ले तेरी माया, मेरी जात सुना चितलाय जैसी होय सुनाऊं प्राय, तेलन तमोलन चूहड़ी चमारी कायथनी खतरानी कुम्हारी महतरानी राजा की रानी जाको दोष ताहि के सिर पड़े जाहर पीर नजर से रक्षा करे मेरी भक्ति गुरु की शक्ति, फुरो मन्त्र ईश्वरी वाचा ।

मोर पङ्ख से एक बार यह मन्त्र पढ़कर झाड़ दे तो नजर उतर जाय । ज्वर दूर करने का मन्त्र

ॐ ह्रां ह्रीं श्रीं सुग्रीवाय महाबल पराक्रमाय सूर्य पुत्राय अमित तेजसे ऐका हिकं द्वयाहिकं त्र्याहिकं चातुर्थिकं दृष्टि ज्वरं सान्निपातिकं सन्ततज्वरं तत्क्षणं षाण्मासिकं सांवत्सरिकं सर्वान् छिधि छिधि भिधि भिधि किरि किरि सर्वान् ज्वरान् ग्रास ग्रस पिब पिब ब्रह्मज्वरं भीषय भीषय विष्णु ज्वरं त्रासय त्रासय माहेश्वरज्वरं निघातय भूतज्वर प्रेतज्वर अपस्मरादि महाव्याधीन्नाशय नाशय सर्वान् दोषान् घातय घातय महावीर वानर ज्वरान् बन्ध बन्ध ॐ ह्रां ह्रीं हुं हुं फट् स्वाहा ।

इस मन्त्र से २१ बार झाड़ दे तो किसी भी प्रकार का ज्वर तुरन्त दूर हो जाता है ।

सुख प्रसव मन्त्र

ॐ मुक्ताः पाशा विमुक्ताशा मुक्ताः सूर्येण रश्मयः ।

मुक्ताः सर्वभयाद्गभम् एहि माचिर माचिर स्वाहा ।

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इस मन्त्र से आठ वार पढ़कर जल को अभिमन्त्रित करके जल गर्भिणी स्त्री को पिलावे तो तुरन्त सुख से प्रसव हो जाय । ।

बिच्छू झाड़ने का मन्त्र

ॐ नमो आदेश गुरू को कालो बिच्छु काङ्करवालो उत्तर बिच्छु न कर टालो उतरे तो उतारूं, चढ़े तो मारूं, गरुड मोर पङ्ख हकालू शब्द साचा पिण्ड काचा फुरो मन्त्र ईश्वरी वाचा ।

372

इस मन्त्र से छः बार झाड़ दे तो बिच्छू उतर जाय ।

सर्प झाड़ने का मन्त्र

खं खः ।

जो व्यक्ति सर्प काटने की खबर दे तो पानी को इस अभिमन्त्रित कर खबर देने वाले मनुष्य को यह जल देकर कहे कि इस पानी के पीने से सर्प का जहर उतर जाता है ।

शत्रु पीड़ाकारक मन्त्र

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वीर वीर महावीर सात समुद्र का सोखा नीर, अमुका के ऊपर चौकी चढ़े हियौ फोड़ चोटी चढ़े सांस नावे पड्यो रहे काया माहि जीव रहे । लाल लङ्गोट तेल सिन्दूरं, पूजा माङ्गो महावीर ।

मन्त्र से १०८ बार जाकर पिला दे ।

अन्तर कपड़ा पर तेल सिन्दूर हजरत वीर की चौकी रहे ।

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गुड़ का नैवैद्य रखे, पीछे दूसरे

मङ्गलवार के दिन आधी रात को तेल सिन्दूर लाल वस्त्र इस मन्त्र द्वारा हनुमान को चढ़ावे, चने की दाल का भोग लगावे, कपड़े में तेल सिन्दूर लगाकर (अमुक) के स्थान पर

शत्रु का नाम बोलकर सात

सूई उस कपड़े में चुभोवे और उस कपड़े को मिट्टी की हाण्डी में डालकर मुख बन्द

कर जमीन में गाड़ दे तो शत्रु तड़फता रहे। जब हाण्डी निकालकर उस कपड़े में से सुइयां निकाल दे

हो जायगा ।

शत्रु को पागल करने का मन्त्र

अच्छा करना हो तो जमीन में से

और कपड़ा धो दे तो शत्रु अच्छा

ॐ नमो भगवते शत्रुणां (अमुक) बुद्धिस्तम्भनं कुरु कुरु स्वाहा ।

ऊण्ट की लीद को छाया में सुखाकर फिर उसमें से एक रत्ती लेकर १०८ बार इस मन्त्र से अभिमन्त्रित करके उस लीद को पान में डालकर शत्रु को खिलावे तो शत्रु पागल हो जाता है ।

शत्रु गृहे कलह करण मन्त्र

ॐ ह्रीं हुं फट् ।

रविवार की दोपहर को गधा जहां लोटा हो उस स्थान की धूल लाकर उसके सामने गुग्गल धूप जलाकर एक सौ आठ बार मन्त्र पढ़कर उस धूल के सिर पर या उसके घर में डाल दे तो उसके घर में कलह बनी रहे ।

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शत्रु

373

विक्रय रोधन मन्त्र

भवर वीर तू चेला मेरा, बान्ध दुकान कहा कर मेरा ।

उठे न डण्डी बिके न माल, न भवरवीरसो खेकर जाय ।

इस मन्त्र से काले उड़दों को १०८ बार अभिमन्त्रित कर रविवार को शत्रु की दुकान में डाले तो तीन रविवार के अन्दर अन्दर शत्रु के दुकान की बिक्री बन्द हो जायगी

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शत्रु मारण मन्त्र

क्रीं नमो भगवति श्रार्द्र पटेश्वरि हरित नीलपटे कालि श्रार्द्र जिह्वे चाण्डालिनि रुद्राणि कपालिनि ज्वालामुखि सप्तजिह्वे सहस्र नयने एहि एहि (श्रमुकं) ते पशुं ददामि (अमुकस्य) जीवं निकृन्तय एहि तज्जीवितापहारिणि हुम् । फट् भुर्भुवः स्वः फट् रुधिरार्द्रा व साखादिनि मम शत्रुन् । छेदय छेदय शोणितं पिब पिब हूं फट् स्वाहा ।

यह रावण कृत मन्त्र है । केवल जप करने से ही एक महीने में शत्रु का मरण हो जाता है । इसे कृष्ण पक्ष की अष्टमी से प्रारम्भ करके चतुर्दशी तक एक लाख मन्त्र जप कर लेना चाहिए ।

मुख स्तम्भन मन्त्र

ॐ नमो भगवति दुर्वचने किलि किलि वाचो भञ्जिनि मख स्तम्भिनि स्वाहा । शत्रु का नाम लेकर इस मन्त्र का एक लाख जप करे तो केवल मात्र जप से ही शत्रु का मुंह बन्द हो जाता है ।

बुद्धि स्तम्भन मन्त्र

ॐ घू म् ।

उल्लू अथवा बन्दर की विष्ठा को पाञ्च बार इस मन्त्र से अभिमन्त्रित कर पान में रखकर शत्रु को खिलावे तो उसकी बुद्धि समाप्त हो जाती है ।

वशीकरण मन्त्र

ॐॐ हूम् ।

सफेद सरसोम् और त्रियङ्गू को साथ पीसकर ऊपर लिखे मन्त्र से अभिमन्त्रित करके जिसके मस्तक पर डाल दे तो वह उसी क्षण साथ-साथ चला आयेगा तथा जीवन भर दास के समान होकर रहेगा ।

374

विचित्र मन्त्र

एक

कड़वी तुम्बीं तेल ले, बीण्ट कबूतर लाय ।

हड्डी गधा मङ्गाय के सबको ले पिसवाय ॥

माथे पर याको तिलक, जो कोई लेय लगाय ।

रावण सो दीखन लगे, यामें संशय नाय ॥

वस्तुतः मन्त्रों की सङ्ख्या अपरिमित है और कई प्रकार के मन्त्र हैं जिनसे सफलता प्राप्त होती है ।

मैन्ने कुछ मन्त्र इस परिशिष्ट में दिये हैम् । यदि पूर्ण विधि-विधान के साथ इन मन्त्रों का प्रयोग किया जाय तो साधकों को निश्चिय ही सफलता प्राप्त होगी ।

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