यों तो यौगिक साधना में चौरासी लाख आसन माने गये हैम् । इन सबका वर्णन एवं व्याख्या यहाम् अभीष्ट नहीम् । हमारे लिए इनमें से चार आसन ही उचित हैं, जिनका अभ्यास प्रत्येक साधक को करना चाहिए-
(१) स्वस्तिकासन
जानुनोरन्तरे सम्यक् कृत्वा पादतले उभे ।
समकायः सुखासीनः स्वस्तिकं स्वस्तिः का अर्थ है ‘शुभ’ कल्याणयुक्त।
तत् प्रचक्षते ॥
इसमें जानु और जङ्घा के मध्य में
दोनों पादतलों को भली प्रकार स्थापित किया जाता है, इस आसन में बांया पैर नीचे, और दाहिना पैर ऊपर रहता है, एड़ी को जानु और जङ्घा के बीच में रखनी चाहिए, साथ ही गर्दन, सीना और मेरूदण्ड पूरी तरह से सीधा करके बैठना चाहिए ।
स्वस्तिकासन
यह आसन सुखदायक, आसान और देर तक सुविधा से बैठने के लिए उचित है । धारणा, ध्यान, समाधि आदि के लिए यह आसन शुभ है, इसमें चित्त एकाग्र होता है, तथा तनाव की स्थिति कम होती है ।
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(२) समासन
कुछ योगी इसे गुप्तासन या समानासन भी कहते हैं, इसमें बायें पैर का पञ्जा अण्डकोषों के नीचे रखे । यह ध्यान रहे कि टखना भूमि को स्पर्श करता हो, फिर बायें पैर के ऊपर दायें पैर का टखना रख दिया जाए। इसमेम् और स्वस्तिकासन
समासन
परन्तु इसमें
में भेद यह है कि स्वस्तिकासन मेम् एड़ियां बराबरी पर नहीं रखी जातीं, दोनों पैरों की एड़ियां बराबरी में जननेन्द्रिय के ऊपर रखी जाती हैं। हाथ सीधे हों, नेत्र सामने होम् ।’
गुप्त
(३) सिद्धासन
रोगों के निवारण में यह आसन अत्यधिक उपयोगी है ।
इस आसन को अन्तश्चेतना जागृत करने के लिए सर्वश्रेष्ठ माना गया है । दायें पैर की एड़ी को गुदा के मध्य भाग में दृढ़ता के साथ लगावें, फिर बांये पैर की एड़ी मूत्रेन्द्रिय पर सावधानी के साथ रक्खें, जिससे कि मूत्रेन्द्रिय और वृक्क को बाधा न पहुञ्चे। दोनों घुटने भूमि को स्पर्श करते रहेङ्गे । मूत्रेन्द्रिय और अण्डकोष दोनोम् एड़ियों के बीच में रहेङ्गे। रीढ़ की हड्डी सीधी हो, तथा तर्जनी को मोड़कर अङ्गूठे के साथ लगा लेम् ।
सिद्धासन
सिद्धासन
इस आसन के अभ्यास से भूलबन्ध स्वतः ही खुल जाता है, तथा प्राण ऊर्ध्व:
गमन करने लगते हैं, धीरे-धीरे सुषुम्ना का मार्ग खुलने लगता है ।
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(४) पद्मासन
पद्मासन को योगीजन सर्वश्रेष्ठ आसन मानते हैं, इसे करने से सभी मनोरथ स्वतः ही सिद्ध होते हैम् ।
पद्मासन
बांये पैर को दाहिनी जाङ्घ पर तथा दाहिने पैर को बांयी जाङ्घ पर इस प्रकार लगावें, कि नाभि के नीचे दोनोम् एड़ियां जुड़ जाएं। फिर मेरु, गर्दन, सिर को सीधा रखकर श्वास प्रश्वास की क्रिया शिथिल करेम् और दृष्टि को नाक के अग्रभाग पर स्थिर कर सीधा बैठ जाए ।
यह आसन अनेक व्याधियों को मिटाने में सहायक और श्वसन क्रिया को नियमित करने में समर्थ है ।
यह आसन सर्वाधिक अनुकूल, सुखदायक एवं सफलतादायक होता है, अन्तश्चे- तना जाग्रत एवम् उत्थित करने के लिए इसी आसन का प्रयोग करना चाहिए । अभ्यास के बाद तो साधक बारह-बारह घण्टे इस आसन पर बैठ जाते हैम् ।
पद्मासन अभ्यास के बाद साधक को आधार की जानकारी एवम् अभ्यास भी करना चाहिए-
पद्मासन
उत्थित पद्मासन
उर्ध्वं पद्मासन
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बद्ध पद्मासन
चक्रासन
शीर्षासन