०० स्वस्तिवाचन

ओम स्वस्ति नो

मिमीतामश्विना भगः स्वस्ति पूषा

स्वस्ति देव्यदितिरनर्वणः ।

असुरो दधातु नः स्वस्ति द्यावापृथिवी सुचेतुना स्वस्तये वायुमुप ब्रवामहै सोमं स्वस्ति भुवनस्य यस्पतिः । बृहस्पतिं सर्वगणं स्वस्तये स्वस्तय आदित्यासो भवन्तु

नः ।

विश्वे देवा नो अद्या स्वस्तये वैश्वानरो वसुरग्निः स्वस्तये । देवा अवन्त्वभवः स्वस्तये स्वस्ति नो रुद्रः पात्वंहसः । स्वस्ति मित्रावरुणा स्वस्ति पथ्ये रेवति । स्वस्ति न इन्द्रश्चाग्निश्च स्वस्ति नो अदिते कृषि स्वस्ति पन्थामनु चरेम सूर्याचन्द्रमसाविव । पुनर्ददताघ्नता जानता सङ्गमेमहि । ऋग्वेद : ५.५१.११.१२.१३.१४.१५ ओम द्यौः शान्तिरन्तरिक्ष ७ शान्तिः पृथिवी शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिः । वनस्पतयः शान्तिविश्वे देवाः शान्तिर्ब्रह्म शान्तिः सर्व ७ शान्तिः शान्तिरेव शान्तिः सा मा शान्तिरेधि ।

द्युलोक में जो सर्वत्र शान्ति है, जो शान्ति अन्तरिक्ष में है और जो शान्ति पृथ्वी पर है वही शान्ति जल, औषधि, व वनस्पतियों में भी है ।

समस्त देवताओं मेम् और उनकी भावनाओं में शान्ति है, ब्रह्म लोक में सर्वत्र शान्ति है और समस्त ब्रह्माण्ड में जो शान्ति है वही शान्ति मुझे प्राप्त हो ।

अग्ने नय सुपथा राये अस्मान्विश्वानि

देव वयुनानि विद्वान् । युयोध्यस्मज्जुहुराणमेनो भूयिष्ठां ते नम उक्तिं विधेम ।

हे ! ईश्वर, आप समस्त प्राणियों को अच्छे समस्त आनन्द को देने वाले हैम् । आपकी कृपा से ही

पथ पर चलाने वाले हैं तथा धार्मिक व्यक्ति मोक्ष प्राप्त कर

18

उत्तम मार्ग से उत्तम प्रज्ञा को प्राप्त करते हैं। वही प्रज्ञा हम भी प्राप्त करना चाहते हैम् अतः आप हमारे कुटिल पाप दूर करें, हम आपको प्रणामयुक्त वाणी कहकर श्रद्धा- युक्त अभिवादन करते हैम् ।

ओम् आब्रह्मन ब्राह्मणो ब्रह्मवर्चसी जायताम

आ राष्ट्रे राजन्यः शूर इषव्यो ऽतिव्याधी महारथो जायताम्

दोग्ध्री धनुर्वोदाsनडवानाशुः सप्तिः पुरन्धिर्योषा

जिष्णु रथेष्ठाः सभेयो युवास्य

यजमानस्य वीरो जायताम् निकामे निकामे नः पर्जन्यो वर्षतु फलवत्यो न ओषधयः पच्यन्ताम्

योगक्ष मो नः कल्पनाम् ।

यजुर्वेद अ० २२-२२

हे ब्रह्मन् ! मेरे राष्ट्र में ब्राह्मण ब्रह्म तेज को धारण करने वाले हों, क्षत्रिय वीर, रोग रहित तथा धनुविद्या में निपुण हों, गायेम् अधिक दूध देने वाली हों तथा बैल भारी-से-भारी बोझ ढोने में समर्थ हों, घोड़े गतिमान हों, नारियां पतिव्रता हों, यजमान युवक सभ्य, विजयी तथा रथवाहन युक्त हों, बादल समय पर पूर्ण वर्षा करें, औषधियां फल धारण करने वाली हों तथा सभी प्रकार से हमारा योग क्षेम हो ।

भद्र’ कर्णेभिः श्रणुयाम् देवा भद्रः पश्येमाक्षभिर्यजत्राः ।

स्थिर रङ्गैस्तुष्टुवा १७ सस्तनूभिर्व्यशेम ह देवहितं यदायुः ।

ऋग्वेद १-८६-८

हे देवो । हम नित्य अपने कानों से मङ्गलदायक वचन सुनते रहें, हे यज्ञों में चरु, पुरोडास आदि से सन्तुष्ट होने वाले देवो ! हम अपने नेत्रों से अच्छा देखें, हम अपने अङ्गों से राष्ट्र हित में कार्य करेम् और प्रजापति हमें पूर्ण आयु प्रदान करेम् ।

ओम् शतं जीव शरदो वर्द्धमानः शतं

हेमन्तान्छतम् वसन्तान् । शतभिन्द्राग्नी

सविता वृहस्पतिः शतायुषा हविषेमं पुनर्दुः ।

ऋग्वेद : १०.१६१-४

हे प्रभु ! हम सौ वर्ष तक जीवित रहें, हमारी सन्तान बलिष्ठ होकर शतायु हो, हम अपने परिवार बन्धु-बान्धव सहित दीर्घ आयु प्राप्त करें, हम शतायु होकर ईश्वर की आराधना में दत्तचित्त हों तथा राष्ट्र निर्माण में पूर्ण सहयोग देम् ।

हरा कि सिर