०६ हनुमान चालीसा

श्रीहनुमते नम:
श्री हनुमान चालीसा

दोहा

श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मन मुकुर सुधारि। बरनऊँ रघुबर बिमल जस जो दायक फल चारि॥ बुद्धि हीन तनु जानिकै सुमिरौं पवन कुमार। बल बुधि बिद्दा देहु मोहि हरहु कलेश बिकार॥

चौपाई

जय हनुमान ज्ञान गुर सागर। जय कपीश तिहुँ लोक उजागर॥ राम दूत अतुलित बल धामा। अंजनिपुत्र पवनसुत नामा॥ महाबीर बिक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी॥ कंचन बरन बिराज सुबेषा। कानन कुंडल कुंचित केशा॥ हाथ बज्र और ध्वजा बिराजै। काँधे मूँज जनेऊ छाजै॥ शङ्कर सुवन केशरीनंदन। तेज प्रताप महा जग बंदन॥ विद्दावान गुनी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर॥ प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया। राम लखन-सीता मन बसिया॥ सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा। बिकट रूप धरि लंक जरावा॥ भीम रूप धरि असुर सँहारे। रामचन्द्र के काज सँवारे॥ लाय संजीवनि लखन जियाये। श्री रघुबीर हरषि उर लाये॥ रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई। तुम मम प्रिय भरतहिं सम भाई॥ सहस बदन तुम्हरो जस गावैं। अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं॥ सनकादिक ब्रह्मादि मुनिशा। नारद शारद सहित अहीशा॥ जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते। कबि कोबिद कहि सकै कहाँ ते॥ तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा। राम मिलाय राज पद दीन्हा॥ तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना। लंकेश्वर भए सब जग जाना॥ जुग सहस्त्र जोजन पर भानू। लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥ प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं। जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं॥

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दुर्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥ राम दुआरे तुम रखवारे। होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥ सब सुख लहैं तुम्हारी शरना। तुम रक्षक काहू को डर ना॥ आपन तेज सम्हारो आपै। तीनौं लोक हाँक ते काँपे॥ भूत पिशाच निकट नहिं आवै। महाबीर जब नाम सुनावै॥ नासै रोग हरै सब पीरा। जपत निरंतन हनुमत बीरा॥ संकट ते हनुमान छुड़ावै। मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥ सब पर राम राय सिरताजा। तिन के काज सकल तुम साजा॥ और मनोरथ जो कोउ लावै। तासु अमित जीवन फल पावै॥ चारों युग परताप तुम्हारा। है परसिद्ध जगत उजियारा॥ साधु संत के तुम रखवारे। असुर निकंदन राम दुलारे॥ अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता। अस बर दीन्ह जानकी माता॥ राम रसायन तुम्हरे पासा। सदा रहउ रघुपति के दासा॥ तुम्हरे भजन राम को पावै। जनम जनम के दुख बिसरावै॥ अंत काल रघुबर पुर जाई। जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई॥ और देवता चित्त न धरई। हनुमत सेइ सर्ब सुख करई॥ संकट कटै मिटै सब पीरा। जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥ जय जय जय हनुमान गोसाई। कृपा करहु गुरु देव की नाई॥ यह शत बार पाठ कर जोई। छूटै बंदि महा सुख सोई॥ जो यह प़ढै हनुमान चालीसा। होय सिद्धि साखी गौरीसा॥ तुलसीदास सदा हरि चेरा। कीजै नाथ हृदय महँ डेरा॥

दोहा

पवन तनय संकट हरन मंगल मूरति रूप। राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप॥

**सियाबर रामचन्द्र की जय, पवनसुत हनुमानजी की जय, गोस्वामी तुलसीदास की जय **★ ★ ★ ★ ★

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