०५ आरती

॥ श्रीमद्‌राघवो विजयते॥

धर्मचक्रवर्ती श्रीचित्रकूटतुलसीपीठाधीश्वर कविकुलरत्न जगद्‌गुरु

रामानन्दाचार्य स्वामी श्रीरामभद्राचार्यजी महाराज द्वारा विचरित श्रीरामचरितमानसजी की आरती।

आरती श्रीमन्मानस की, रामसिय कीर्ति सुधा रस की। जो शंकर हिय में प्रगटानी।

भुशुण्डी मन में हुलसानी।

लसी मुनि याज्ञवल्क्य बानी। श्रीतुलसीदास, कहें सहुलास, सुकवित विलास। नदी रघुनाथ विमल जय की। आरती——

बिरति बर भक्ति ज्ञान दाता। सुखद पर लोक लोक त्राता। प़ढत मन मधुकर हरषाता।

सप्त सोपान, भक्ति पन्थान, सुवेद पुरान।

शास्त्र इतिहास समंजस की। आरति—– सोरठा दोहा चौपाई। छन्द रचना अति मन भाई। विरचि वर तुलसिदास गाई।

गायें नरनार, होत भवपार, मिटे दुःख भार। हरे मन कटुता कर्कश की। आरती—– ललित यह राम कथा गंगा।

सुनत भव भीति होत भंगा। बसहु हिय हनुमत श्रीरंगा

राम को रूप, ग्रन्थ को भूप, हरै तम कूप। जिवन धर “गिरिधर” सर्बस की। आरति—-

॥ नमो राघवाय ॥

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