११ नारदजीका आना और स्तुति करके ब्रह्मलोकको लौट जाना

दोहा

मूल (दोहा)

तेहिं अवसर मुनि नारद आए करतल बीन।
गावन लगे राम कल कीरति सदा नबीन॥ ५०॥

अनुवाद (हिन्दी)

उसी अवसरपर नारद मुनि हाथमें वीणा लिये हुए आये। वे श्रीरामजीकी सुन्दर और नित्य नवीन रहनेवाली कीर्ति गाने लगे॥ ५०॥

मूल (चौपाई)

मामवलोकय पंकज लोचन।
कृपा बिलोकनि सोच बिमोचन॥
नील तामरस स्याम काम अरि।
हृदय कंज मकरंद मधुप हरि॥

अनुवाद (हिन्दी)

कृपापूर्वक देख लेनेमात्रसे शोकके छुड़ानेवाले हे कमलनयन! मेरी ओर देखिये (मुझपर भी कृपादृष्टि कीजिये)। हे हरि! आप नील कमलके समान श्यामवर्ण और कामदेवके शत्रु महादेवजीके हृदयकमलके मकरन्द (प्रेम-रस) के पान करनेवाले भ्रमर हैं॥ १॥

मूल (चौपाई)

जातुधान बरूथ बल भंजन।
मुनि सज्जन रंजन अघ गंजन॥
भूसुर ससि नव बृंद बलाहक।
असरन सरन दीन जन गाहक॥

अनुवाद (हिन्दी)

आप राक्षसोंकी सेनाके बलको तोड़नेवाले हैं। मुनियों और संतजनोंको आनन्द देनेवाले और पापोंके नाश करनेवाले हैं। ब्राह्मणरूपी खेतीके लिये आप नये मेघसमूह हैं और शरणहीनोंको शरण देनेवाले तथा दीन जनोंको अपने आश्रयमें ग्रहण करनेवाले हैं॥ २॥

मूल (चौपाई)

भुज बल बिपुल भार महि खंडित।
खर दूषन बिराध बध पंडित॥
रावनारि सुखरूप भूपबर।
जय दसरथ कुल कुमुद सुधाकर॥

अनुवाद (हिन्दी)

अपने बाहुबलसे पृथ्वीके बड़े भारी बोझको नष्ट करनेवाले, खर-दूषण और विराधके वध करनेमें कुशल, रावणके शत्रु, आनन्दस्वरूप, राजाओंमें श्रेष्ठ और दशरथके कुलरूपी कुमुदिनीके चन्द्रमा श्रीरामजी! आपकी जय हो॥ ३॥

मूल (चौपाई)

सुजस पुरान बिदित निगमागम।
गावत सुर मुनि संत समागम॥
कारुनीक ब्यलीक मद खंडन।
सब बिधि कुसल कोसला मंडन॥

अनुवाद (हिन्दी)

आपका सुन्दर यश पुराणों, वेदोंमें और तन्त्रादि शास्त्रोंमें प्रकट है। देवता, मुनि और संतोंके समुदाय उसे गाते हैं। आप करुणा करनेवाले और झूठे मदका नाश करनेवाले, सब प्रकारसे कुशल (निपुण) श्रीअयोध्याजीके भूषण ही हैं॥ ४॥

मूल (चौपाई)

कलि मल मथन नाम ममताहन।
तुलसिदास प्रभु पाहि प्रनत जन॥

अनुवाद (हिन्दी)

आपका नाम कलियुगके पापोंको मथ डालनेवाला और ममताको मारनेवाला है। हे तुलसीदासके प्रभु! शरणागतकी रक्षा कीजिये॥ ५॥

दोहा

मूल (दोहा)

प्रेम सहित मुनि नारद बरनि राम गुन ग्राम।
सोभासिंधु हृदयँ धरि गए जहाँ बिधि धाम॥ ५१॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीरामचन्द्रजीके गुणसमूहोंका प्रेमपूर्वक वर्णन करके मुनि नारदजी शोभाके समुद्र प्रभुको हृदयमें धरकर जहाँ ब्रह्मलोक है वहाँ चले गये॥ ५१॥

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