३० मन्दोदरी-विलाप, रावणकी अन्त्येष्टि-क्रिया

मूल (चौपाई)

पति सिर देखत मंदोदरी।
मुरुछित बिकल धरनि खसि परी॥
जुबति बृंद रोवत उठि धाईं।
तेहि उठाइ रावन पहिं आईं॥

अनुवाद (हिन्दी)

पतिके सिर देखते ही मन्दोदरी व्याकुल और मूर्च्छित होकर धरतीपर गिर पड़ी। स्त्रियाँ रोती हुई उठ दौड़ीं और उस (मन्दोदरी) को उठाकर रावणके पास आयीं॥ १॥

मूल (चौपाई)

पति गति देखि ते करहिं पुकारा।
छूटे कच नहिं बपुष सँभारा॥
उर ताड़ना करहिं बिधि नाना।
रोवत करहिं प्रताप बखाना॥

अनुवाद (हिन्दी)

पतिकी दशा देखकर वे पुकार-पुकारकर रोने लगीं। उनके बाल खुल गये, देहकी सँभाल नहीं रही। वे अनेकों प्रकारसे छाती पीटती हैं और रोती हुई रावणके प्रतापका बखान करती हैं॥ २॥

मूल (चौपाई)

तव बल नाथ डोल नित धरनी।
तेज हीन पावक ससि तरनी॥
सेष कमठ सहि सकहिं न भारा।
सो तनु भूमि परेउ भरि छारा॥

अनुवाद (हिन्दी)

(वे कहती हैं—) हे नाथ! तुम्हारे बलसे पृथ्वी सदा काँपती रहती थी। अग्नि, चन्द्रमा और सूर्य तुम्हारे सामने तेजहीन थे। शेष और कच्छप भी जिसका भार नहीं सह सकते थे, वही तुम्हारा शरीर आज धूलमें भरा हुआ पृथ्वीपर पड़ा है!॥ ३॥

मूल (चौपाई)

बरुन कुबेर सुरेस समीरा।
रन सन्मुख धरि काहुँ न धीरा॥
भुजबल जितेहु काल जम साईं।
आजु परेहु अनाथ की नाईं॥

अनुवाद (हिन्दी)

वरुण, कुबेर, इन्द्र और वायु, इनमेंसे किसीने भी रणमें तुम्हारे सामने धैर्य धारण नहीं किया। हे स्वामी! तुमने अपने भुजबलसे काल और यमराजको भी जीत लिया था। वही तुम आज अनाथकी तरह पड़े हो॥ ४॥

मूल (चौपाई)

जगत बिदित तुम्हारि प्रभुताई।
सुत परिजन बल बरनि न जाई॥
राम बिमुख अस हाल तुम्हारा।
रहा न कोउ कुल रोवनिहारा॥

अनुवाद (हिन्दी)

तुम्हारी प्रभुता जगत् भरमें प्रसिद्ध है। तुम्हारे पुत्रों और कुटुम्बियोंके बलका हाय! वर्णन ही नहीं हो सकता। श्रीरामचन्द्रजीके विमुख होनेसे ही तुम्हारी ऐसी दुर्दशा हुई कि आज कुलमें कोई रोनेवाला भी न रह गया॥ ५॥

मूल (चौपाई)

तव बस बिधि प्रपंच सब नाथा।
सभय दिसिप नित नावहिं माथा॥
अब तव सिर भुज जंबुक खाहीं।
राम बिमुख यह अनुचित नाहीं॥

अनुवाद (हिन्दी)

हे नाथ! विधाताकी सारी सृष्टि तुम्हारे वशमें थी। लोकपाल सदा भयभीत होकर तुमको मस्तक नवाते थे। किन्तु हाय! अब तुम्हारे सिर और भुजाओंको गीदड़ खा रहे हैं। रामविमुखके लिये ऐसा होना अनुचित भी नहीं है (अर्थात् उचित ही है)॥ ६॥

मूल (चौपाई)

काल बिबस पति कहा न माना।
अग जग नाथु मनुज करि जाना॥

अनुवाद (हिन्दी)

हे पति! कालके पूर्ण वशमें होनेसे तुमने (किसीका) कहना नहीं माना और चराचरके नाथ परमात्माको मनुष्य करके जाना॥ ७॥

छंद

मूल (दोहा)

जान्यो मनुज करि दनुज कानन दहन पावक हरि स्वयं।
जेहि नमत सिव ब्रह्मादि सुर पिय भजेहु नहिं करुनामयं॥
आजन्म ते परद्रोह रत पापौघमय तव तनु अयं।
तुम्हहू दियो निज धाम राम नमामि ब्रह्म निरामयं॥

अनुवाद (हिन्दी)

दैत्यरूपी वनको जलानेके लिये अग्निस्वरूप साक्षात् श्रीहरिको तुमने मनुष्य करके जाना। शिव और ब्रह्मा आदि देवता जिनको नमस्कार करते हैं, उन करुणामय भगवान् को हे प्रियतम! तुमने नहीं भजा। तुम्हारा यह शरीर जन्मसे ही दूसरोंसे द्रोह करनेमें तत्पर तथा पापसमूहमय रहा! इतनेपर भी जिन निर्विकार ब्रह्म श्रीरामजीने तुमको अपना धाम दिया, उनको मैं नमस्कार करती हूँ।

दोहा

मूल (दोहा)

अहह नाथ रघुनाथ सम कृपासिंधु नहिं आन।
जोगि बृंद दुर्लभ गति तोहि दीन्हि भगवान॥ १०४॥

अनुवाद (हिन्दी)

अहह! नाथ! श्रीरघुनाथजीके समान कृपाका समुद्र दूसरा कोई नहीं है, जिन भगवान् ने तुमको वह गति दी जो योगिसमाजको भी दुर्लभ है॥ १०४॥

मूल (चौपाई)

मंदोदरी बचन सुनि काना।
सुर मुनि सिद्ध सबन्हि सुख माना॥
अज महेस नारद सनकादी।
जे मुनिबर परमारथबादी॥

अनुवाद (हिन्दी)

मन्दोदरीके वचन कानोंसे सुनकर देवता, मुनि और सिद्ध सभीने सुख माना। ब्रह्मा, महादेव, नारद और सनकादि तथा और भी जो परमार्थवादी (परमात्माके तत्त्वको जानने और कहनेवाले) श्रेष्ठ मुनि थे॥ १॥

मूल (चौपाई)

भरि लोचन रघुपतिहि निहारी।
प्रेम मगन सब भए सुखारी॥
रुदन करत देखीं सब नारी।
गयउ बिभीषनु मन दुख भारी॥

अनुवाद (हिन्दी)

वे सभी श्रीरघुनाथजीको नेत्र भरकर निरखकर प्रेममग्न हो गये और अत्यन्त सुखी हुए। अपने घरकी सब स्त्रियोंको रोती हुई देखकर विभीषणजीके मनमें बड़ा भारी दुःख हुआ और वे उनके पास गये॥ २॥

मूल (चौपाई)

बंधु दसा बिलोकि दुख कीन्हा।
तब प्रभु अनुजहि आयसु दीन्हा॥
लछिमन तेहि बहु बिधि समुझायाे।
बहुरि बिभीषन प्रभु पहिं आयो॥

अनुवाद (हिन्दी)

उन्होंने भाईकी दशा देखकर दुःख किया। तब प्रभु श्रीरामजीने छोटे भाईको आज्ञा दी (कि जाकर विभीषणको धैर्य बँधाओ)। लक्ष्मणजीने उन्हें बहुत प्रकारसे समझाया तब विभीषण प्रभुके पास लौट आये॥ ३॥

मूल (चौपाई)

कृपादृष्टि प्रभु ताहि बिलोका।
करहु क्रिया परिहरि सब सोका॥
कीन्हि क्रिया प्रभु आयसु मानी।
बिधिवत देस काल जियँ जानी॥

अनुवाद (हिन्दी)

प्रभुने उनको कृपापूर्ण दृष्टिसे देखा (और कहा—) सब शोक त्यागकर रावणकी अन्त्येष्टि क्रिया करो। प्रभुकी आज्ञा मानकर और हृदयमें देश और कालका विचार करके विभीषणजीने विधिपूर्वक सब क्रिया की॥ ४॥

दोहा

मूल (दोहा)

मंदोदरी आदि सब देइ तिलांजलि ताहि।
भवन गईं रघुपति गुन गन बरनत मन माहि॥ १०५॥

अनुवाद (हिन्दी)

मन्दोदरी आदि सब स्त्रियाँ उसे (रावणको) तिलाञ्जलि देकर मनमें श्रीरघुनाथजीके गुणसमूहोंका वर्णन करती हुई महलको गयीं॥ १०५॥

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