२२ लक्ष्मण-रावण-युद्ध

दोहा

मूल (दोहा)

निज दल बिकल देखि कटि कसि निषंग धनु हाथ।
लछिमन चले क्रुद्ध होइ नाइ राम पद माथ॥ ८२॥

अनुवाद (हिन्दी)

अपनी सेनाको व्याकुल देखकर कमरमें तरकस कसकर और हाथमें धनुष लेकर श्रीरघुनाथजीके चरणोंपर मस्तक नवाकर लक्ष्मणजी क्रोधित होकर चले॥ ८२॥

मूल (चौपाई)

रे खल का मारसि कपि भालू।
मोहि बिलोकु तोर मैं कालू॥
खोजत रहेउँ तोहि सुतघाती।
आजु निपाति जुड़ावउँ छाती॥

अनुवाद (हिन्दी)

(लक्ष्मणजीने पास जाकर कहा—) अरे दुष्ट! वानर-भालुओंको क्या मार रहा है? मुझे देख, मैं तेरा काल हूँ? (रावणने कहा—) अरे मेरे पुत्रके घातक! मैं तुझीको ढूँढ़ रहा था। आज तुझे मारकर (अपनी) छाती ठंडी करूँगा॥ १॥

मूल (चौपाई)

अस कहि छाड़ेसि बान प्रचंडा।
लछिमन किए सकल सत खंडा॥
कोटिन्ह आयुध रावन डारे।
तिल प्रवान करि काटि निवारे॥

अनुवाद (हिन्दी)

ऐसा कहकर उसने प्रचण्ड बाण छोड़े। लक्ष्मणजीने सबके सैकड़ों टुकड़े कर डाले। रावणने करोड़ों अस्त्र-शस्त्र चलाये। लक्ष्मणजीने उनको तिलके बराबर करके काटकर हटा दिया॥ २॥

मूल (चौपाई)

पुनि निज बानन्ह कीन्ह प्रहारा।
स्यंदनु भंजि सारथी मारा॥
सत सत सर मारे दस भाला।
गिरि सृंगन्ह जनु प्रबिसहिं ब्याला॥

अनुवाद (हिन्दी)

फिर अपने बाणोंसे (उसपर) प्रहार किया और (उसके) रथको तोड़कर सारथिको मार डाला। (रावणके) दसों मस्तकोंमें सौ-सौ बाण मारे। वे सिरोंमें ऐसे पैठ गये मानो पहाड़के शिखरोंमें सर्प प्रवेश कर रहे हों॥ ३॥

मूल (चौपाई)

पुनि सत सर मारा उर माहीं।
परेउ धरनि तल सुधि कछु नाहीं॥
उठा प्रबल पुनि मुरुछा जागी।
छाड़िसि ब्रह्म दीन्हि जो साँगी॥

अनुवाद (हिन्दी)

फिर सौ बाण उसकी छातीमें मारे। वह पृथ्वीपर गिर पड़ा, उसे कुछ भी होश न रहा। फिर मूर्च्छा छूटनेपर वह प्रबल रावण उठा और उसने वह शक्ति चलायी जो ब्रह्माजीने उसे दी थी॥ ४॥

छंद

मूल (दोहा)

सो ब्रह्म दत्त प्रचंड सक्ति अनंत उर लागी सही।
परॺो बीर बिकल उठाव दसमुख अतुल बल महिमा रही॥
ब्रह्मांड भवन बिराज जाकें एक सिर जिमि रज कनी।
तेहि चह उठावन मूढ़ रावन जान नहिं त्रिभुअन धनी॥

अनुवाद (हिन्दी)

वह ब्रह्माकी दी हुई प्रचण्ड शक्ति लक्ष्मणजीकी ठीक छातीमें लगी। वीर लक्ष्मणजी व्याकुल होकर गिर पड़े। तब रावण उन्हें उठाने लगा, पर उसके अतुलित बलकी महिमा यों ही रह गयी (व्यर्थ हो गयी, वह उन्हें उठा न सका)। जिनके एक ही सिरपर ब्रह्माण्डरूपी भवन धूलके एक कणके समान विराजता है, उन्हें मूर्ख रावण उठाना चाहता है! वह तीनों भुवनोंके स्वामी लक्ष्मणजीको नहीं जानता।

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