२० मेघनाद-यज्ञ-विध्वंस, युद्ध और मेघनाद-उद्धार

मूल (चौपाई)

मेघनाद कै मुरछा जागी।
पितहि बिलोकि लाज अति लागी॥
तुरत गयउ गिरिबर कंदरा।
करौं अजय मख अस मन धरा॥

अनुवाद (हिन्दी)

मेघनादकी मूर्च्छा छूटी, (तब) पिताको देखकर उसे बड़ी शर्म लगी। मैं अजय (अजेय होनेको) यज्ञ करूँ, ऐसा मनमें निश्चय करके वह तुरंत श्रेष्ठ पर्वतकी गुफामें चला गया॥ १॥

मूल (चौपाई)

इहाँ बिभीषन मंत्र बिचारा।
सुनहु नाथ बल अतुल उदारा॥
मेघनाद मख करइ अपावन।
खल मायावी देव सतावन॥

अनुवाद (हिन्दी)

यहाँ विभीषणने यह सलाह विचारी (और श्रीरामचन्द्रजीसे कहा—) हे अतुलनीय बलवान् उदार प्रभो! देवताओंको सतानेवाला दुष्ट, मायावी मेघनाद अपवित्र यज्ञ कर रहा है॥ २॥

मूल (चौपाई)

जौं प्रभु सिद्ध होइ सो पाइहि।
नाथ बेगि पुनि जीति न जाइहि॥
सुनि रघुपति अतिसय सुख माना।
बोले अंगदादि कपि नाना॥

अनुवाद (हिन्दी)

हे प्रभो! यदि वह यज्ञ सिद्ध हो पायेगा तो हे नाथ! फिर मेघनाद जल्दी जीता न जा सकेगा। यह सुनकर श्रीरघुनाथजीने बहुत सुख माना और अंगदादि बहुत-से वानरोंको बुलाया (और कहा—)॥ ३॥

मूल (चौपाई)

लछिमन संग जाहु सब भाई।
करहु बिधंस जग्य कर जाई॥
तुम्ह लछिमन मारेहु रन ओही।
देखि सभय सुर दुख अति मोही॥

अनुवाद (हिन्दी)

हे भाइयो! सब लोग लक्ष्मणके साथ जाओ और जाकर यज्ञको विध्वंस करो। हे लक्ष्मण! संग्राममें तुम उसे मारना। देवताओंको भयभीत देखकर मुझे बड़ा दुःख है॥ ४॥

मूल (चौपाई)

मारेहु तेहि बल बुद्धि उपाई।
जेहिं छीजै निसिचर सुनु भाई॥
जामवंत सुग्रीव बिभीषन।
सेन समेत रहेहु तीनिउ जन॥

अनुवाद (हिन्दी)

हे भाई! सुनो, उसको ऐसे बल और बुद्धिके उपायसे मारना, जिससे निशाचरका नाश हो। हे जाम्बवान्, सुग्रीव और विभीषण! तुम तीनों जने सेनासमेत (इनके) साथ रहना॥ ५॥

मूल (चौपाई)

जब रघुबीर दीन्हि अनुसासन।
कटि निषंग कसि साजि सरासन॥
प्रभु प्रताप उर धरि रनधीरा।
बोले घन इव गिरा गँभीरा॥

अनुवाद (हिन्दी)

(इस प्रकार) जब श्रीरघुवीरने आज्ञा दी, तब कमरमें तरकस कसकर और धनुष सजाकर (चढ़ाकर) रणधीर श्रीलक्ष्मणजी प्रभुके प्रतापको हृदयमें धारण करके मेघके समान गम्भीर वाणी बोले—॥ ६॥

मूल (चौपाई)

जौं तेहि आजु बधें बिनु आवौं।
तौ रघुपति सेवक न कहावौं॥
जौं सत संकर करहिं सहाई।
तदपि हतउँ रघुबीर दोहाई॥

अनुवाद (हिन्दी)

यदि मैं आज उसे बिना मारे आऊँ, तो श्रीरघुनाथजीका सेवक न कहलाऊँ। यदि सैकड़ों शङ्कर भी उसकी सहायता करें तो भी श्रीरघुवीरकी दुहाई है; आज मैं उसे मार ही डालूँगा॥ ७॥

दोहा

मूल (दोहा)

रघुपति चरन नाइ सिरु चलेउ तुरंत अनंत।
अंगद नील मयंद नल संग सुभट हनुमंत॥ ७५॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीरघुनाथजीके चरणोंमें सिर नवाकर शेषावतार श्रीलक्ष्मणजी तुरंत चले। उनके साथ अंगद, नील, मयंद, नल और हनुमान् आदि उत्तम योद्धा थे॥ ७५॥

मूल (चौपाई)

जाइ कपिन्ह सो देखा बैसा।
आहुति देत रुधिर अरु भैंसा॥
कीन्ह कपिन्ह सब जग्य बिधंसा।
जब न उठइ तब करहिं प्रसंसा॥

अनुवाद (हिन्दी)

वानरोंने जाकर देखा कि वह बैठा हुआ खून और भैंसेकी आहुति दे रहा है। वानरोंने सब यज्ञ विध्वंस कर दिया। फिर भी जब वह नहीं उठा, तब वे उसकी प्रशंसा करने लगे॥ १॥

मूल (चौपाई)

तदपि न उठइ धरेन्हि कच जाई।
लातन्हि हति हति चले पराई॥
लै त्रिसूल धावा कपि भागे।
आए जहँ रामानुज आगे॥

अनुवाद (हिन्दी)

इतनेपर भी वह न उठा, (तब) उन्होंने जाकर उसके बाल पकड़े और लातोंसे मार-मारकर वे भाग चले। वह त्रिशूल लेकर दौड़ा, तब वानर भागे और वहाँ आ गये जहाँ आगे लक्ष्मणजी खड़े थे॥ २॥

मूल (चौपाई)

आवा परम क्रोध कर मारा।
गर्ज घोर रव बारहिं बारा॥
कोपि मरुतसुत अंगद धाए।
हति त्रिसूल उर धरनि गिराए॥

अनुवाद (हिन्दी)

वह अत्यन्त क्रोधका मारा हुआ आया और बार-बार भयंकर शब्द करके गरजने लगा। मारुति (हनुमान्) और अंगद क्रोध करके दौड़े। उसने छातीमें त्रिशूल मारकर दोनोंको धरतीपर गिरा दिया॥ ३॥

मूल (चौपाई)

प्रभु कहँ छाँड़ेसि सूल प्रचंडा।
सर हति कृत अनंत जुग खंडा॥
उठि बहोरि मारुति जुबराजा।
हतहिं कोपि तेहि घाउ न बाजा॥

अनुवाद (हिन्दी)

फिर उसने प्रभु श्रीलक्ष्मणजीपर प्रचण्ड त्रिशूल छोड़ा। अनन्त (श्रीलक्ष्मणजी) ने बाण मारकर उसके दो टुकड़े कर दिये। हनुमान् जी और युवराज अंगद फिर उठकर क्रोध करके उसे मारने लगे, पर उसे चोट न लगी॥ ४॥

मूल (चौपाई)

फिरे बीर रिपु मरइ न मारा।
तब धावा करि घोर चिकारा॥
आवत देखि क्रुद्ध जनु काला।
लछिमन छाड़े बिसिख कराला॥

अनुवाद (हिन्दी)

शत्रु (मेघनाद) मारे नहीं मरता, यह देखकर जब वीर लौटे, तब वह घोर चिग्घाड़ करके दौड़ा। उसे क्रुद्ध कालकी तरह आता देखकर लक्ष्मणजीने भयानक बाण छोड़े॥ ५॥

मूल (चौपाई)

देखेसि आवत पबि सम बाना।
तुरत भयउ खल अंतरधाना॥
बिबिध बेष धरि करइ लराई।
कबहुँक प्रगट कबहुँ दुरि जाई॥

अनुवाद (हिन्दी)

वज्रके समान बाणोंको आते देखकर वह दुष्ट तुरंत अन्तर्धान हो गया और फिर भाँति-भाँतिके रूप धारण करके युद्ध करने लगा। वह कभी प्रकट होता था और कभी छिप जाता था॥ ६॥

मूल (चौपाई)

देखि अजय रिपु डरपे कीसा।
परम क्रुद्ध तब भयउ अहीसा॥
लछिमन मन अस मंत्र दृढ़ावा।
एहि पापिहि मैं बहुत खेलावा॥

अनुवाद (हिन्दी)

शत्रुको पराजित न होता देखकर वानर डरे। तब सर्पराज शेषजी (लक्ष्मणजी) बहुत ही क्रोधित हुए। लक्ष्मणजीने मनमें यह विचार दृढ़ किया कि इस पापीको मैं बहुत खेला चुका (अब और अधिक खेलाना अच्छा नहीं, अब तो इसे समाप्त ही कर देना चाहिये।)॥ ७॥

मूल (चौपाई)

सुमिरि कोसलाधीस प्रतापा।
सर संधान कीन्ह करि दापा॥
छाड़ा बान माझ उर लागा।
मरती बार कपटु सब त्यागा॥

अनुवाद (हिन्दी)

कोसलपति श्रीरामजीके प्रतापका स्मरण करके लक्ष्मणजीने वीरोचित दर्प करके बाणका सन्धान किया। बाण छोड़ते ही उसकी छातीके बीचमें लगा। मरते समय उसने सब कपट त्याग दिया॥ ८॥

दोहा

मूल (दोहा)

रामानुज कहँ रामु कहँ अस कहि छाँड़ेसि प्रान।
धन्य धन्य तव जननी कह अंगद हनुमान॥ ७६॥

अनुवाद (हिन्दी)

रामके छोटे भाई लक्ष्मण कहाँ हैं? राम कहाँ हैं? ऐसा कहकर उसने प्राण छोड़ दिये। अंगद और हनुमान् कहने लगे—तेरी माता धन्य है, धन्य है, (जो तू लक्ष्मणजीके हाथों मरा और मरते समय श्रीराम-लक्ष्मणको स्मरण करके तूने उनके नामोंका उच्चारण किया।)॥ ७६॥

मूल (चौपाई)

बिनु प्रयास हनुमान उठायो।
लंका द्वार राखि पुनि आयो॥
तासु मरन सुनि सुर गंधर्बा।
चढ़ि बिमान आए नभ सर्बा॥

अनुवाद (हिन्दी)

हनुमान् जीने उसको बिना ही परिश्रमके उठा लिया और लङ्काके दरवाजेपर रखकर वे लौट आये। उसका मरना सुनकर देवता और गन्धर्व आदि सब विमानोंपर चढ़कर आकाशमें आये॥ १॥

मूल (चौपाई)

बरषि सुमन दुंदुभीं बजावहिं।
श्रीरघुनाथ बिमल जसु गावहिं॥
जय अनंत जय जगदाधारा।
तुम्ह प्रभु सब देवन्हि निस्तारा॥

अनुवाद (हिन्दी)

वे फूल बरसाकर नगाड़े बजाते हैं और श्रीरघुनाथजीका निर्मल यश गाते हैं। हे अनन्त! आपकी जय हो, हे जगदाधार! आपकी जय हो। हे प्रभो! आपने सब देवताओंका (महान् विपत्तिसे) उद्धार किया॥ २॥

मूल (चौपाई)

अस्तुति करि सुर सिद्ध सिधाए।
लछिमन कृपासिंधु पहिं आए॥
सुत बध सुना दसानन जबहीं।
मुरुछित भयउ परेउ महि तबहीं॥

अनुवाद (हिन्दी)

देवता और सिद्ध स्तुति करके चले गये, तब लक्ष्मणजी कृपाके समुद्र श्रीरामजीके पास आये। रावणने ज्यों ही पुत्रवधका समाचार सुना, त्यों ही वह मूर्च्छित होकर पृथ्वीपर गिर पड़ा॥ ३॥

मूल (चौपाई)

मंदोदरी रुदन कर भारी।
उर ताड़न बहु भाँति पुकारी॥
नगर लोग सब ब्याकुल सोचा।
सकल कहहिं दसकंधर पोचा॥

अनुवाद (हिन्दी)

मन्दोदरी छाती पीट-पीटकर और बहुत प्रकारसे पुकार-पुकारकर बड़ा भारी विलाप करने लगी। नगरके सब लोग शोकसे व्याकुल हो गये। सभी रावणको नीच कहने लगे॥ ४॥

दोहा

मूल (दोहा)

तब दसकंठ बिबिधि बिधि समुझाईं सब नारि।
नस्वर रूप जगत सब देखहु हृदयँ बिचारि॥ ७७॥

अनुवाद (हिन्दी)

तब रावणने सब स्त्रियोंको अनेकों प्रकारसे समझाया कि समस्त जगत् का यह (दृश्य) रूप नाशवान् है, हृदयमें विचारकर देखो॥ ७७॥

मूल (चौपाई)

तिन्हहि ग्यान उपदेसा रावन।
आपुन मंद कथा सुभ पावन॥
पर उपदेस कुसल बहुतेरे।
जे आचरहिं ते नर न घनेरे॥

अनुवाद (हिन्दी)

रावणने उनको ज्ञानका उपदेश किया। वह स्वयं तो नीच है, पर उसकी कथा (बातें) शुभ और पवित्र है। दूसरोंको उपदेश देनेमें तो बहुत लोग निपुण होते हैं। पर ऐसे लोग अधिक नहीं हैं जो उपदेशके अनुसार आचरण भी करते हैं॥ १॥

मूल (चौपाई)

निसा सिरानि भयउ भिनुसारा।
लगे भालु कपि चारिहुँ द्वारा॥
सुभट बोलाइ दसानन बोला।
रन सन्मुख जा कर मन डोला॥

अनुवाद (हिन्दी)

रात बीत गयी, सबेरा हुआ। रीछ-वानर (फिर) चारों दरवाजोंपर जा डटे। योद्धाओंको बुलाकर दशमुख रावणने कहा—लड़ाईमें शत्रुके सम्मुख जिसका मन डाँवाडोल हो,॥ २॥

मूल (चौपाई)

सो अबहीं बरु जाउ पराई।
संजुग बिमुख भएँ न भलाई॥
निज भुज बल मैं बयरु बढ़ावा।
देहउँ उतरु जो रिपु चढ़ि आवा॥

अनुवाद (हिन्दी)

अच्छा है वह अभी भाग जाय। युद्धमें जाकर विमुख होने (भागने) में भलाई नहीं है। मैंने अपनी भुजाओंके बलपर वैर बढ़ाया है। जो शत्रु चढ़ आया है, उसको मैं (अपने ही) उत्तर दे लूँगा॥ ३॥

मूल (चौपाई)

अस कहि मरुत बेग रथ साजा।
बाजे सकल जुझाऊ बाजा॥
चले बीर सब अतुलित बली।
जनु कज्जल कै आँधी चली॥

अनुवाद (हिन्दी)

ऐसा कहकर उसने पवनके समान तेज चलनेवाला रथ सजाया। सारे जुझाऊ (लड़ाईके) बाजे बजने लगे। सब अतुलनीय बलवान् वीर ऐसे चले मानो काजलकी आँधी चली हो॥ ४॥

मूल (चौपाई)

असगुन अमित होहिं तेहि काला।
गनइ न भुज बल गर्ब बिसाला॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस समय असंख्य अशकुन होने लगे। पर अपनी भुजाओंके बलका बड़ा गर्व होनेसे रावण उन्हें गिनता नहीं है॥ ५॥

छंद

मूल (दोहा)

अति गर्ब गनइ न सगुन असगुन स्रवहिं आयुध हाथ ते।
भट गिरत रथ ते बाजि गज चिक्‍करत भाजहिं साथ ते॥
गोमाय गीध कराल खर रव स्वान बोलहिं अति घने।
जनु कालदूत उलूक बोलहिं बचन परम भयावने॥

अनुवाद (हिन्दी)

अत्यन्त गर्वके कारण वह शकुन-अशकुनका विचार नहीं करता। हथियार हाथोंसे गिर रहे हैं। योद्धा रथसे गिर पड़ते हैं। घोड़े, हाथी साथ छोड़कर चिग्घाड़ते हुए भाग जाते हैं। स्यार, गीध, कौए और गदहे शब्द कर रहे हैं। बहुत अधिक कुत्ते बोल रहे हैं। उल्लू ऐसे अत्यन्त भयानक शब्द कर रहे हैं, मानो कालके दूत हों (मृत्युका सँदेशा सुना रहे हों)।

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