१६ श्रीरामजीकी प्रलापलीला, हनुमान् जी का लौटना, लक्ष्मणजीका उठ बैठना

मूल (चौपाई)

उहाँ राम लछिमनहि निहारी।
बोले बचन मनुज अनुसारी॥
अर्ध राति गइ कपि नहिं आयउ।
राम उठाइ अनुज उर लायउ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वहाँ लक्ष्मणजीको देखकर श्रीरामजी साधारण मनुष्योंके अनुसार (समान) वचन बोले—आधी रात बीत चुकी, हनुमान् नहीं आये। यह कहकर श्रीरामजीने छोटे भाई लक्ष्मणजीको उठाकर हृदयसे लगा लिया॥ १॥

मूल (चौपाई)

सकहु न दुखित देखि मोहि काऊ।
बंधु सदा तव मृदुल सुभाऊ॥
मम हित लागि तजेहु पितु माता।
सहेहु बिपिन हिम आतप बाता॥

अनुवाद (हिन्दी)

(और बोले—) हे भाई! तुम मुझे कभी दुःखी नहीं देख सकते थे। तुम्हारा स्वभाव सदासे ही कोमल था। मेरे हितके लिये तुमने माता-पिताको भी छोड़ दिया और वनमें जाड़ा, गरमी और हवा सब सहन किया॥ २॥

मूल (चौपाई)

सो अनुराग कहाँ अब भाई।
उठहु न सुनि मम बच बिकलाई॥
जौं जनतेउँ बन बंधु बिछोहू।
पिता बचन मनतेउँ नहिं ओहू॥

अनुवाद (हिन्दी)

हे भाई! वह प्रेम अब कहाँ है? मेरे व्याकुलतापूर्ण वचन सुनकर उठते क्यों नहीं? यदि मैं जानता कि वनमें भाईका विछोह होगा तो मैं पिताका वचन (जिसका मानना मेरे लिये परम कर्तव्य था) उसे भी न मानता॥ ३॥

मूल (चौपाई)

सुत बित नारि भवन परिवारा।
होहिं जाहिं जग बारहिं बारा॥
अस बिचारि जियँ जागहु ताता।
मिलइ न जगत सहोदर भ्राता॥

अनुवाद (हिन्दी)

पुत्र, धन, स्त्री, घर और परिवार—ये जगत् में बार-बार होते और जाते हैं, परन्तु जगत् में सहोदर भाई बार-बार नहीं मिलता। हृदयमें ऐसा विचारकर हे तात! जागो॥ ४॥

मूल (चौपाई)

जथा पंख बिनु खग अति दीना।
मनि बिनु फनि करिबर कर हीना॥
अस मम जिवन बंधु बिनु तोही।
जौं जड़ दैव जिआवै मोही॥

अनुवाद (हिन्दी)

जैसे पंख बिना पक्षी, मणि बिना सर्प और सूँड़ बिना श्रेष्ठ हाथी अत्यन्त दीन हो जाते हैं, हे भाई! यदि कहीं जड़ दैव मुझे जीवित रखे तो तुम्हारे बिना मेरा जीवन भी ऐसा ही होगा॥ ५॥

मूल (चौपाई)

जैहउँ अवध कवन मुहु लाई।
नारि हेतु प्रिय भाइ गँवाई॥
बरु अपजस सहतेउँ जग माहीं।
नारि हानि बिसेष छति नाहीं॥

अनुवाद (हिन्दी)

स्त्रीके लिये प्यारे भाईको खोकर, मैं कौन-सा मुँह लेकर अवध जाऊँगा? मैं जगत् में बदनामी भले ही सह लेता (कि राममें कुछ भी वीरता नहीं है जो स्त्रीको खो बैठे)। स्त्रीकी हानिसे (इस हानिको देखते) कोई विशेष क्षति नहीं थी॥ ६॥

मूल (चौपाई)

अब अपलोकु सोकु सुत तोरा।
सहिहि निठुर कठोर उर मोरा॥
निज जननी के एक कुमारा।
तात तासु तुम्ह प्रान अधारा॥

अनुवाद (हिन्दी)

अब तो हे पुत्र! मेरा निष्ठुर और कठोर हृदय यह अपयश और तुम्हारा शोक दोनों ही सहन करेगा। हे तात! तुम अपनी माताके एक ही पुत्र और उसके प्राणाधार हो॥ ७॥

मूल (चौपाई)

सौंपेसि मोहि तुम्हहि गहि पानी।
सब बिधि सुखद परम हित जानी॥
उतरु काह दैहउँ तेहि जाई।
उठि किन मोहि सिखावहु भाई॥

अनुवाद (हिन्दी)

सब प्रकारसे सुख देनेवाला और परम हितकारी जानकर उन्होंने तुम्हें हाथ पकड़कर मुझे सौंपा था। मैं अब जाकर उन्हें क्या उत्तर दूँगा? हे भाई! तुम उठकर मुझे सिखाते (समझाते) क्यों नहीं?॥ ८॥

मूल (चौपाई)

बहु बिधि सोचत सोच बिमोचन।
स्रवत सलिल राजिव दल लोचन॥
उमा एक अखंड रघुराई।
नर गति भगत कृपाल देखाई॥

अनुवाद (हिन्दी)

सोचसे छुड़ानेवाले श्रीरामजी बहुत प्रकारसे सोच कर रहे हैं। उनके कमलकी पँखुड़ीके समान नेत्रोंसे (विषादके आँसुओंका) जल बह रहा है। (शिवजी कहते हैं—) हे उमा! श्रीरघुनाथजी एक (अद्वितीय) और अखण्ड (वियोगरहित) हैं। भक्तोंपर कृपा करनेवाले भगवान् ने (लीला करके) मनुष्यकी दशा दिखलायी है॥ ९॥

सोरठा

मूल (दोहा)

प्रभु प्रलाप सुनि कान बिकल भए बानर निकर।
आइ गयउ हनुमान जिमि करुना महँ बीर रस॥ ६१॥

अनुवाद (हिन्दी)

प्रभुके (लीलाके लिये किये गये) प्रलापको कानोंसे सुनकर वानरोंके समूह व्याकुल हो गये। (इतनेमें ही) हनुमान् जी आ गये, जैसे करुणरस (के प्रसङ्ग) में वीररस (का प्रसङ्ग) आ गया हो॥ ६१॥

मूल (चौपाई)

हरषि राम भेटेउ हनुमाना।
अति कृतग्य प्रभु परम सुजाना॥
तुरत बैद तब कीन्हि उपाई।
उठि बैठे लछिमन हरषाई॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीरामजी हर्षित होकर हनुमान् जीसे गले लगकर मिले। प्रभु परम सुजान (चतुर) और अत्यन्त ही कृतज्ञ हैं। तब वैद्य (सुषेण) ने तुरंत उपाय किया, (जिससे) लक्ष्मणजी हर्षित होकर उठ बैठे॥ १॥

मूल (चौपाई)

हृदयँ लाइ प्रभु भेंटेउ भ्राता।
हरषे सकल भालु कपि ब्राता॥
कपि पुनि बैद तहाँ पहुँचावा।
जेहि बिधि तबहिं ताहि लइ आवा॥

अनुवाद (हिन्दी)

प्रभु भाईको हृदयसे लगाकर मिले। भालू और वानरोंके समूह सब हर्षित हो गये। फिर हनुमान् जीने वैद्यको उसी प्रकार वहाँ पहुँचा दिया जिस प्रकार वे उस बार (पहले) उसे ले आये थे॥ २॥

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