१२ माल्यवान् का रावणको समझाना

दोहा

मूल (दोहा)

कछु मारे कछु घायल कछु गढ़ चढ़े पराइ।
गर्जहिं भालु बलीमुख रिपु दल बल बिचलाइ॥ ४७॥

अनुवाद (हिन्दी)

कुछ मारे गये, कुछ घायल हुए, कुछ भागकर गढ़पर चढ़ गये। अपने बलसे शत्रुदलको विचलित करके रीछ और वानर (वीर) गरज रहे हैं॥ ४७॥

मूल (चौपाई)

निसा जानि कपि चारिउ अनी।
आए जहाँ कोसला धनी॥
राम कृपा करि चितवा सबही।
भए बिगतश्रम बानर तबही॥

अनुवाद (हिन्दी)

रात हुई जानकर वानरोंकी चारों सेनाएँ (टुकड़ियाँ) वहाँ आयीं जहाँ कोसलपति श्रीरामजी थे। श्रीरामजीने ज्यों ही सबको कृपा करके देखा त्यों ही ये वानर श्रमरहित हो गये॥ १॥

मूल (चौपाई)

उहाँ दसानन सचिव हँकारे।
सब सन कहेसि सुभट जे मारे॥
आधा कटकु कपिन्ह संघारा।
कहहु बेगि का करिअ बिचारा॥

अनुवाद (हिन्दी)

वहाँ (लङ्कामें) रावणने मन्त्रियोंको बुलाया और जो योद्धा मारे गये थे उन सबको सबसे बताया। (उसने कहा—) वानरोंने आधी सेनाका संहार कर दिया! अब शीघ्र बताओ, क्या विचार (उपाय) करना चाहिये?॥ २॥

मूल (चौपाई)

माल्यवंत अति जरठ निसाचर।
रावन मातु पिता मंत्री बर॥
बोला बचन नीति अति पावन।
सुनहु तात कछु मोर सिखावन॥

अनुवाद (हिन्दी)

माल्यवंत (नामका एक) अत्यन्त बूढ़ा राक्षस था। वह रावणकी माताका पिता (अर्थात् उसका नाना) और श्रेष्ठ मन्त्री था। वह अत्यन्त पवित्र नीतिके वचन बोला—हे तात! कुछ मेरी सीख भी सुनो—॥ ३॥

मूल (चौपाई)

जब ते तुम्ह सीता हरि आनी।
असगुन होहिं न जाहिं बखानी॥
बेद पुरान जासु जसु गायो।
राम बिमुख काहुँ न सुख पायो॥

अनुवाद (हिन्दी)

जबसे तुम सीताको हर लाये हो, तबसे इतने अपशकुन हो रहे हैं कि जो वर्णन नहीं किये जा सकते। वेद-पुराणोंने जिनका यश गाया है, उन श्रीरामसे विमुख होकर किसीने सुख नहीं पाया॥ ४॥

दोहा

मूल (दोहा)

हिरन्याच्छ भ्राता सहित मधु कैटभ बलवान।
जेहिं मारे सोइ अवतरेउ कृपासिंधु भगवान॥ ४८(क)॥

अनुवाद (हिन्दी)

भाई हिरण्यकशिपुसहित हिरण्याक्षको और बलवान् मधु-कैटभको जिन्होंने मारा था, वे ही कृपाके समुद्र भगवान् (रामरूपसे) अवतरित हुए हैं॥ ४८(क)॥

भागसूचना

मासपारायण, पचीसवाँ विश्राम

मूल (दोहा)

कालरूप खल बन दहन गुनागार घनबोध।
सिव बिरंचि जेहि सेवहिं तासों कवन बिरोध॥ ४८(ख)॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो कालस्वरूप हैं, दुष्टोंके समूहरूपी वनके भस्म करनेवाले (अग्नि) हैं, गुणोंके धाम और ज्ञानघन हैं, एवं शिवजी और ब्रह्माजी भी जिनकी सेवा करते हैं, उनसे वैर कैसा?॥ ४८(ख)॥

मूल (चौपाई)

परिहरि बयरु देहु बैदेही।
भजहु कृपानिधि परम सनेही॥
ताके बचन बान सम लागे।
करिआ मुह करि जाहि अभागे॥

अनुवाद (हिन्दी)

(अतः) वैर छोड़कर उन्हें जानकीजीको दे दो और कृपानिधान परम स्नेही श्रीरामजीका भजन करो। रावणको उसके वचन बाणके समान लगे। (वह बोला—) अरे अभागे! मुँह काला करके (यहाँसे) निकल जा॥ १॥

मूल (चौपाई)

बूढ़ भएसि न त मरतेउँ तोही।
अब जनि नयन देखावसि मोही॥
तेहिं अपने मन अस अनुमाना।
बध्यो चहत एहि कृपानिधाना॥

अनुवाद (हिन्दी)

तू बूढ़ा हो गया, नहीं तो तुझे मार ही डालता। अब मेरी आँखोंको अपना मुँह न दिखला। रावणके ये वचन सुनकर उसने (माल्यवान् ने) अपने मनमें ऐसा अनुमान किया कि इसे कृपानिधान श्रीरामजी अब मारना ही चाहते हैं॥ २॥

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