०६ श्रीरामजीके बाणसे रावणके मुकुट-छत्रादिका गिरना

मूल (दोहा)

पवन तनय के बचन सुनि बिहँसे रामु सुजान।
दच्छिन दिसि अवलोकि प्रभु बोले कृपा निधान॥ १२(ख)॥

अनुवाद (हिन्दी)

पवनपुत्र हनुमान् जी के वचन सुनकर सुजान श्रीरामजी हँसे। फिर दक्षिणकी ओर देखकर कृपानिधान प्रभु बोले—॥ १२(ख)॥

मूल (चौपाई)

देखु बिभीषन दच्छिन आसा।
घन घमंड दामिनी बिलासा॥
मधुर मधुर गरजइ घन घोरा।
होइ बृष्टि जनि उपल कठोरा॥

अनुवाद (हिन्दी)

हे विभीषण! दक्षिण दिशाकी ओर देखो, बादल कैसा घुमड़ रहा है और बिजली चमक रही है। भयानक बादल मीठे-मीठे (हलके-हलके) स्वरसे गरज रहा है। कहीं कठोर ओलोंकी वर्षा न हो!॥ १॥

मूल (चौपाई)

कहत बिभीषन सुनहु कृपाला।
होइ न तड़ित न बारिद माला॥
लंका सिखर उपर आगारा।
तहँ दसकंधर देख अखारा॥

अनुवाद (हिन्दी)

विभीषण बोले—हे कृपालु! सुनिये, यह न तो बिजली है, न बादलोंकी घटा। लंकाकी चोटीपर एक महल है। दशग्रीव रावण वहाँ (नाच-गानका) अखाड़ा देख रहा है॥ २॥

मूल (चौपाई)

छत्र मेघडंबर सिर धारी।
सोइ जनु जलद घटा अति कारी॥
मंदोदरी श्रवन ताटंका।
सोइ प्रभु जनु दामिनी दमंका॥

अनुवाद (हिन्दी)

रावणने सिरपर मेघडंबर (बादलोंके डंबर-जैसा विशाल और काला) छत्र धारण कर रखा है। वही मानो बादलोंकी अत्यन्त काली घटा है। मन्दोदरीके कानोंमें जो कर्णफूल हिल रहे हैं, हे प्रभो! वही मानो बिजली चमक रही है॥ ३॥

मूल (चौपाई)

बाजहिं ताल मृदंग अनूपा।
सोइ रव मधुर सुनहु सुरभूपा॥
प्रभु मुसुकान समुझि अभिमाना।
चाप चढ़ाइ बान संधाना॥

अनुवाद (हिन्दी)

हे देवताओंके सम्राट्! सुनिये, अनुपम ताल और मृदंग बज रहे हैं। वही मधुर (गर्जन) ध्वनि है। रावणका अभिमान समझकर प्रभु मुसकराये। उन्होंने धनुष चढ़ाकर उसपर बाणका सन्धान किया;॥ ४॥

दोहा

मूल (दोहा)

छत्र मुकुट ताटंक तब हते एकहीं बान।
सब कें देखत महि परे मरमु न कोऊ जान॥ १३(क)॥

अनुवाद (हिन्दी)

और एक ही बाणसे (रावणके) छत्र-मुकुट और (मन्दोदरीके) कर्णफूल काट गिराये। सबके देखते-देखते वे जमीनपर आ पड़े, पर इसका भेद (कारण) किसीने नहीं जाना॥ १३(क)॥

मूल (दोहा)

अस कौतुक करि राम सर प्रबिसेउ आइ निषंग।
रावन सभा ससंक सब देखि महा रसभंग॥ १३(ख)॥

अनुवाद (हिन्दी)

ऐसा चमत्कार करके श्रीरामजीका बाण (वापस) आकर (फिर) तरकसमें जा घुसा। यह महान् रस-भंग (रंगमें भंग) देखकर रावणकी सारी सभा भयभीत हो गयी॥ १३(ख)॥

मूल (चौपाई)

कंप न भूमि न मरुत बिसेषा।
अस्त्र सस्त्र कछु नयन न देखा॥
सोचहिं सब निज हृदय मझारी।
असगुन भयउ भयंकर भारी॥

अनुवाद (हिन्दी)

न भूकम्प हुआ, न बहुत जोरकी हवा (आँधी) चली। न कोई अस्त्र-शस्त्र ही नेत्रोंसे देखे। (फिर ये छत्र, मुकुट और कर्णफूल कैसे कटकर गिर पड़े?) सभी अपने-अपने हृदयमें सोच रहे हैं कि यह बड़ा भयङ्कर अपशकुन हुआ!॥ १॥

मूल (चौपाई)

दसमुख देख सभा भय पाई।
बिहसि बचन कह जुगुति बनाई॥
सिरउ गिरे संतत सुभ जाही।
मुकुट परे कस असगुन ताही॥

अनुवाद (हिन्दी)

सभाको भयभीत देखकर रावणने हँसकर युक्ति रचकर ये वचन कहे—सिरोंका गिरना भी जिसके लिये निरन्तर शुभ होता रहा है, उसके लिये मुकुटका गिरना अपशकुन कैसा?॥ २॥

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