११ लङ्का जलानेके बाद हनुमान् जी का सीताजीसे विदा माँगना और चूड़ामणि पाना

दोहा

मूल (दोहा)

पूँछ बुझाइ खोइ श्रम धरि लघु रूप बहोरि।
जनकसुता कें आगें ठाढ़ भयउ कर जोरि॥ २६॥

अनुवाद (हिन्दी)

पूँछ बुझाकर, थकावट दूर करके और फिर छोटा-सा रूप धारण कर हनुमान् जी श्रीजानकीजीके सामने हाथ जोड़कर जा खडे़ हुए॥ २६॥

मूल (चौपाई)

मातु मोहि दीजे कछु चीन्हा।
जैसें रघुनायक मोहि दीन्हा॥
चूड़ामनि उतारि तब दयऊ।
हरष समेत पवनसुत लयऊ॥

अनुवाद (हिन्दी)

[हनुमान् जीने कहा—] हे माता! मुझे कोई चिह्न (पहचान) दीजिये, जैसे श्रीरघुनाथजीने मुझे दिया था। तब सीताजीने चूड़ामणि उतारकर दी। हनुमान् जीने उसको हर्षपूर्वक ले लिया॥ १॥

मूल (चौपाई)

कहेहु तात अस मोर प्रनामा।
सब प्रकार प्रभु पूरनकामा॥
दीन दयाल बिरिदु संभारी।
हरहु नाथ मम संकट भारी॥

अनुवाद (हिन्दी)

[जानकीजीने कहा—] हे तात! मेरा प्रणाम निवेदन करना और इस प्रकार कहना—हे प्रभु! यद्यपि आप सब प्रकारसे पूर्णकाम हैं (आपको किसी प्रकारकी कामना नहीं है), तथापि दीनों (दुखियों) पर दया करना आपका विरद है [और मैं दीन हूँ] अतःउस विरदको याद करके, हे नाथ! मेरे भारी संकटको दूर कीजिये॥ २॥

मूल (चौपाई)

तात सक्रसुत कथा सुनाएहु।
बान प्रताप प्रभुहि समुझाएहु॥
मास दिवस महुँ नाथु न आवा।
तौ पुनि मोहि जिअत नहिं पावा॥

अनुवाद (हिन्दी)

हे तात! इन्द्रपुत्र जयन्तकी कथा (घटना) सुनाना और प्रभुको उनके बाणका प्रताप समझाना [स्मरण कराना]। यदि महीनेभरमें नाथ न आये तो फिर मुझे जीती न पायेंगे॥ ३॥

मूल (चौपाई)

कहु कपि केहि बिधि राखौं प्राना।
तुम्हहू तात कहत अब जाना॥
तोहि देखि सीतलि भइ छाती।
पुनि मो कहुँ सोइ दिनु सो राती॥

अनुवाद (हिन्दी)

हे हनुमान्! कहो, मैं किस प्रकार प्राण रखूँ! हे तात! तुम भी अब जानेको कह रहे हो। तुमको देखकर छाती ठंडी हुई थी। फिर मुझे वही दिन और वही रात!॥ ४॥

दोहा

मूल (दोहा)

जनकसुतहि समुझाइ करि बहु बिधि धीरजु दीन्ह।
चरन कमल सिरु नाइ कपि गवनु राम पहिं कीन्ह॥ २७॥

अनुवाद (हिन्दी)

हनुमान् जीने जानकीजीको समझाकर बहुत प्रकारसे धीरज दिया और उनके चरणकमलोंमें सिर नवाकर श्रीरामजीके पास गमन किया॥ २७॥

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