१० लङ्का-दहन

दोहा

मूल (दोहा)

कपि कें ममता पूँछ पर सबहि कहउँ समुझाइ।
तेल बोरि पट बाँधि पुनि पावक देहु लगाइ॥ २४॥

अनुवाद (हिन्दी)

मैं सबको समझाकर कहता हूँ कि बंदरकी ममता पूँछपर होती है। अतः तेलमें कपड़ा डुबोकर उसे इसकी पूँछमें बाँधकर फिर आग लगा दो॥ २४॥

मूल (चौपाई)

पूँछहीन बानर तहँ जाइहि।
तब सठ निज नाथहि लइ आइहि॥
जिन्ह कै कीन्हिसि बहुत बड़ाई।
देखउँ मैं तिन्ह कै प्रभुताई॥

अनुवाद (हिन्दी)

जब बिना पूँछका यह बंदर वहाँ (अपने स्वामीके पास) जायगा, तब यह मूर्ख अपने मालिकको साथ ले आयेगा। जिनकी इसने बहुत बड़ाई की है, मैं जरा उनकी प्रभुता (सामर्थ्य) तो देखूँ!॥ १॥

मूल (चौपाई)

बचन सुनत कपि मन मुसुकाना।
भइ सहाय सारद मैं जाना॥
जातुधान सुनि रावन बचना।
लागे रचैं मूढ़ सोइ रचना॥

अनुवाद (हिन्दी)

यह वचन सुनते ही हनुमान् जी मनमें मुसकराये [और मन-ही-मन बोले कि] मैं जान गया, सरस्वतीजी [इसे ऐसी बुद्धि देनेमें] सहायक हुई हैं। रावणके वचन सुनकर मूर्ख राक्षस वही (पूँछमें आग लगानेकी) तैयारी करने लगे॥ २॥

मूल (चौपाई)

रहा न नगर बसन घृत तेला।
बाढ़ी पूँछ कीन्ह कपि खेला॥
कौतुक कहँ आए पुरबासी।
मारहिं चरन करहिं बहु हाँसी॥

अनुवाद (हिन्दी)

[पूँछके लपेटनेमें इतना कपड़ा और घी-तेल लगा कि] नगरमें कपड़ा, घी और तेल नहीं रह गया। हनुमान् जी ने ऐसा खेल किया कि पूँछ बढ़ गयी (लंबी हो गयी)। नगरवासीलोग तमाशा देखने आये। वे हनुमान् जी को पैरसे ठोकर मारते हैं और उनकी बहुत हँसी करते हैं॥ ३॥

मूल (चौपाई)

बाजहिं ढोल देहिं सब तारी।
नगर फेरि पुनि पूँछ प्रजारी॥
पावक जरत देखि हनुमंता।
भयउ परम लघुरूप तुरंता॥

अनुवाद (हिन्दी)

ढोल बजते हैं, सब लोग तालियाँ पीटते हैं। हनुमान् जीको नगरमें फिराकर, फिर पूँछमें आग लगा दी। अग्निको जलते हुए देखकर हनुमान् जी तुरंत ही बहुत छोटे रूपमें हो गये॥ ४॥

मूल (चौपाई)

निबुकि चढ़ेउ कपि कनक अटारीं।
भईं सभीत निसाचर नारीं॥

अनुवाद (हिन्दी)

बन्धनसे निकलकर वे सोनेकी अटारियोंपर जा चढ़े। उनको देखकर राक्षसोंकी स्त्रियाँ भयभीत हो गयीं॥ ५॥

दोहा

मूल (दोहा)

हरि प्रेरित तेहि अवसर चले मरुत उनचास।
अट्टहास करि गर्जा कपि बढ़ि लाग अकास॥ २५॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस समय भगवान् की प्रेरणासे उनचासों पवन चलने लगे। हनुमान् जी अट्टहास करके गर्जे और बढ़कर आकाशसे जा लगे॥ २५॥

मूल (चौपाई)

देह बिसाल परम हरुआई।
मंदिर तें मंदिर चढ़ धाई॥
जरइ नगर भा लोग बिहाला।
झपट लपट बहु कोटि कराला॥

अनुवाद (हिन्दी)

देह बड़ी विशाल, परन्तु बहुत ही हलकी (फुर्तीली) है। वे दौड़कर एक महलसे दूसरे महलपर चढ़ जाते हैं। नगर जल रहा है, लोग बेहाल हो गये हैं। आगकी करोड़ों भयंकर लपटें झपट रही हैं॥ १॥

मूल (चौपाई)

तात मातु हा सुनिअ पुकारा।
एहिं अवसर को हमहि उबारा॥
हम जो कहा यह कपि नहिं होई।
बानर रूप धरें सुर कोई॥

अनुवाद (हिन्दी)

हाय बप्पा! हाय मैया! इस अवसरपर हमें कौन बचावेगा? [चारों ओर] यही पुकार सुनायी पड़ रही है। हमने तो पहले ही कहा था कि यह वानर नहीं है, वानरका रूप धरे कोई देवता है!॥ २॥

मूल (चौपाई)

साधु अवग्या कर फलु ऐसा।
जरइ नगर अनाथ कर जैसा॥
जारा नगरु निमिष एक माहीं।
एक बिभीषन कर गृह नाहीं॥

अनुवाद (हिन्दी)

साधुके अपमानका यह फल है कि नगर अनाथके नगरकी तरह जल रहा है। हनुमान् जीने एक ही क्षणमें सारा नगर जला डाला। एक विभीषणका घर नहीं जलाया॥ ३॥

मूल (चौपाई)

ता कर दूत अनल जेहिं सिरिजा।
जरा न सो तेहि कारन गिरिजा॥
उलटि पलटि लंका सब जारी।
कूदि परा पुनि सिंधु मझारी॥

अनुवाद (हिन्दी)

[शिवजी कहते हैं—] हे पार्वती! जिन्होंने अग्निको बनाया, हनुमान् जी उन्हींके दूत हैं। इसी कारण वे अग्निसे नहीं जले। हनुमान् जीने उलट-पलटकर (एक ओरसे दूसरी ओरतक) सारी लङ्का जला दी। फिर वे समुद्रमें कूद पड़े॥ ४॥

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