१० सुग्रीव-राम-संवाद और सीताजीकी खोजके लिये बंदरोंका प्रस्थान

दोहा

मूल (दोहा)

हरषि चले सुग्रीव तब अंगदादि कपि साथ।
रामानुज आगें करि आए जहँ रघुनाथ॥ २०॥

अनुवाद (हिन्दी)

तब अंगद आदि वानरोंको साथ लेकर और श्रीरामजीके छोटे भाई लक्ष्मणजीको आगे करके (अर्थात् उनके पीछे-पीछे) सुग्रीव हर्षित होकर चले और जहाँ रघुनाथजी थे वहाँ आये॥ २०॥

मूल (चौपाई)

नाइ चरन सिरु कह कर जोरी।
नाथ मोहि कछु नाहिन खोरी॥
अतिसय प्रबल देव तव माया।
छूटइ राम करहु जौं दाया॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीरघुनाथजीके चरणोंमें सिर नवाकर हाथ जोड़कर सुग्रीवने कहा—हे नाथ! मुझे कुछ भी दोष नहीं है। हे देव! आपकी माया अत्यन्त ही प्रबल है। आप जब दया करते हैं, हे राम! तभी यह छूटती है॥ १॥

मूल (चौपाई)

बिषय बस्य सुर नर मुनि स्वामी।
मैं पावँर पसु कपि अति कामी॥
नारि नयन सर जाहि न लागा।
घोर क्रोध तम निसि जो जागा॥

अनुवाद (हिन्दी)

हे स्वामी! देवता, मनुष्य और मुनि सभी विषयोंके वशमें हैं। फिर मैं तो पामर पशु और पशुओंमें भी अत्यन्त कामी बंदर हूँ। स्त्रीका नयन-बाण जिसको नहीं लगा, जो भयङ्कर क्रोधरूपी अँधेरी रातमें भी जागता रहता है (क्रोधान्ध नहीं होता)॥ २॥

मूल (चौपाई)

लोभ पाँस जेहिं गर न बँधाया।
सो नर तुम्ह समान रघुराया॥
यह गुन साधन तें नहिं होई।
तुम्हरी कृपाँ पाव कोइ कोई॥

अनुवाद (हिन्दी)

और लोभकी फाँसीसे जिसने अपना गला नहीं बँधाया, हे रघुनाथजी! वह मनुष्य आपहीके समान है। ये गुण साधनसे नहीं प्राप्त होते। आपकी कृपासे ही कोई-कोई इन्हें पाते हैं॥ ३॥

मूल (चौपाई)

तब रघुपति बोले मुसुकाई।
तुम्ह प्रिय मोहि भरत जिमि भाई॥
अब सोइ जतनु करहु मन लाई।
जेहि बिधि सीता कै सुधि पाई॥

अनुवाद (हिन्दी)

तब श्रीरघुनाथजी मुसकराकर बोले—हे भाई! तुम मुझे भरतके समान प्यारे हो। अब मन लगाकर वही उपाय करो जिस उपायसे सीताकी खबर मिले॥ ४॥

दोहा

मूल (दोहा)

एहि बिधि होत बतकही आए बानर जूथ।
नाना बरन सकल दिसि देखिअ कीस बरूथ॥ २१॥

अनुवाद (हिन्दी)

इस प्रकार बातचीत हो रही थी कि वानरोंके यूथ (झुंड) आ गये। अनेक रंगोंके वानरोंके दल सब दिशाओंमें दिखायी देने लगे॥ २१॥

मूल (चौपाई)

बानर कटक उमा मैं देखा।
सो मूरुख जो करन चह लेखा॥
आइ राम पद नावहिं माथा।
निरखि बदनु सब होहिं सनाथा॥

अनुवाद (हिन्दी)

(शिवजी कहते हैं—) हे उमा! वानरोंकी वह सेना मैंने देखी थी। उसकी जो गिनती करना चाहे वह महान् मूर्ख है। सब वानर आ-आकर श्रीरामजीके चरणोंमें मस्तक नवाते हैं और (सौन्दर्य-माधुर्यनिधि) श्रीमुखके दर्शन करके कृतार्थ होते हैं॥ १॥

मूल (चौपाई)

अस कपि एक न सेना माहीं।
राम कुसल जेहि पूछी नाहीं॥
यह कछु नहिं प्रभु कइ अधिकाई।
बिस्वरूप ब्यापक रघुराई॥

अनुवाद (हिन्दी)

सेनामें एक भी वानर ऐसा नहीं था जिससे श्रीरामजीने कुशल न पूछी हो। प्रभुके लिये यह कोई बड़ी बात नहीं है; क्योंकि श्रीरघुनाथजी विश्वरूप तथा सर्वव्यापक हैं (सारे रूपों और सब स्थानोंमें हैं)॥ २॥

मूल (चौपाई)

ठाढ़े जहँ तहँ आयसु पाई।
कह सुग्रीव सबहि समुझाई॥
राम काजु अरु मोर निहोरा।
बानर जूथ जाहु चहुँ ओरा॥

अनुवाद (हिन्दी)

आज्ञा पाकर सब जहाँ-तहाँ खड़े हो गये। तब सुग्रीवने सबको समझाकर कहा कि हे वानरोंके समूहो! यह श्रीरामचन्द्रजीका कार्य है और मेरा निहोरा (अनुरोध) है; तुम चारों ओर जाओ॥ ३॥

मूल (चौपाई)

जनकसुता कहुँ खोजहु जाई।
मास दिवस महँ आएहु भाई॥
अवधि मेटि जो बिनु सुधि पाएँ।
आवइ बनिहि सो मोहि मराएँ॥

अनुवाद (हिन्दी)

और जाकर जानकीजीको खोजो। हे भाई! महीनेभरमें वापस आ जाना। जो (महीनेभरकी) अवधि बिताकर बिना पता लगाये ही लौट आवेगा उसे मेरे द्वारा मरवाते ही बनेगा (अर्थात् मुझे उसका वध करवाना ही पड़ेगा)॥ ४॥

दोहा

मूल (दोहा)

बचन सुनत सब बानर जहँ तहँ चले तुरंत।
तब सुग्रीवँ बोलाए अंगद नल हनुमंत॥ २२॥

अनुवाद (हिन्दी)

सुग्रीवके वचन सुनते ही सब वानर तुरंत जहाँ-तहाँ (भिन्न-भिन्न दिशाओंमें) चल दिये। तब सुग्रीवने अंगद, नल, हनुमान् आदि प्रधान-प्रधान योद्धाओंको बुलाया (और कहा—)॥ २२॥

मूल (चौपाई)

सुनहु नील अंगद हनुमाना।
जामवंत मतिधीर सुजाना॥
सकल सुभट मिलि दच्छिन जाहू।
सीता सुधि पूँछेहु सब काहू॥

अनुवाद (हिन्दी)

हे धीरबुद्धि और चतुर नील, अंगद, जाम्बवान् और हनुमान्! तुम सब श्रेष्ठ योद्धा मिलकर दक्षिण दिशाको जाओ और सब किसीसे सीताजीका पता पूछना॥ १॥

मूल (चौपाई)

मन क्रम बचन सो जतन बिचारेहु।
रामचंद्र कर काजु सँवारेहु॥
भानु पीठि सेइअ उर आगी।
स्वामिहि सर्ब भाव छल त्यागी॥

अनुवाद (हिन्दी)

मन, वचन तथा कर्मसे उसीका (सीताजीका पता लगानेका) उपाय सोचना। श्रीरामचन्द्रजीका कार्य सम्पन्न (सफल) करना। सूर्यको पीठसे और अग्निको हृदयसे (सामनेसे) सेवन करना चाहिये। परन्तु स्वामीकी सेवा तो छल छोड़कर सर्वभावसे (मन, वचन, कर्मसे) करनी चाहिये॥ २॥

मूल (चौपाई)

तजि माया सेइअ परलोका।
मिटहिं सकल भवसंभव सोका॥
देह धरे कर यह फलु भाई।
भजिअ राम सब काम बिहाई॥

अनुवाद (हिन्दी)

माया (विषयोंकी ममता-आसक्ति) को छोड़कर परलोकका सेवन (भगवान् के दिव्य धामकी प्राप्तिके लिये भगवत्सेवारूप साधन) करना चाहिये, जिससे भव (जन्म-मरण) से उत्पन्न सारे शोक मिट जायँ। हे भाई! देह धारण करनेका यही फल है कि सब कामों (कामनाओं) को छोड़कर श्रीरामजीका भजन ही किया जाय॥ ३॥

मूल (चौपाई)

सोइ गुनग्य सोई बड़भागी।
जो रघुबीर चरन अनुरागी॥
आयसु मागि चरन सिरु नाई।
चले हरषि सुमिरत रघुराई॥

अनुवाद (हिन्दी)

सद्गुणोंको पहचाननेवाला (गुणवान्) तथा बड़भागी वही है जो श्रीरघुनाथजीके चरणोंका प्रेमी है। आज्ञा माँगकर और चरणोंमें फिर सिर नवाकर श्रीरघुनाथजीका स्मरण करते हुए सब हर्षित होकर चले॥ ४॥

मूल (चौपाई)

पाछें पवन तनय सिरु नावा।
जानि काज प्रभु निकट बोलावा॥
परसा सीस सरोरुह पानी।
करमुद्रिका दीन्हि जन जानी॥

अनुवाद (हिन्दी)

सबके पीछे पवनसुत श्रीहनुमान् जीने सिर नवाया। कार्यका विचार करके प्रभुने उन्हें अपने पास बुलाया। उन्होंने अपने कर-कमलसे उनके सिरका स्पर्श किया तथा अपना सेवक जानकर उन्हें अपने हाथकी अँगूठी उतारकर दी॥ ५॥

मूल (चौपाई)

बहु प्रकार सीतहि समुझाएहु।
कहि बल बिरह बेगि तुम्ह आएहु॥
हनुमत जन्म सुफल करि माना।
चलेउ हृदयँ धरि कृपानिधाना॥

अनुवाद (हिन्दी)

(और कहा—) बहुत प्रकारसे सीताको समझाना और मेरा बल तथा विरह (प्रेम) कहकर तुम शीघ्र लौट आना। हनुमान् जी ने अपना जन्म सफल समझा और कृपानिधान प्रभुको हृदयमें धारण करके वे चले॥ ६॥

मूल (चौपाई)

जद्यपि प्रभु जानत सब बाता।
राजनीति राखत सुरत्राता॥

अनुवाद (हिन्दी)

यद्यपि देवताओंकी रक्षा करनेवाले प्रभु सब बात जानते हैं, तो भी वे राजनीतिकी रक्षा कर रहे हैं। (नीतिकी मर्यादा रखनेके लिये सीताजीका पता लगानेको जहाँ-तहाँ वानरोंको भेज रहे हैं)॥ ७॥

दोहा

मूल (दोहा)

चले सकल बन खोजत सरिता सर गिरि खोह।
राम काज लयलीन मन बिसरा तन कर छोह॥ २३॥

अनुवाद (हिन्दी)

सब वानर वन, नदी, तालाब, पर्वत और पर्वतोंकी कन्दराओंमें खोजते हुए चले जा रहे हैं। मन श्रीरामजीके कार्यमें लवलीन है। शरीरतकका प्रेम (ममत्व) भूल गया है॥ २३॥

मूल (चौपाई)

कतहुँ होइ निसिचर सैं भेंटा।
प्रान लेहिं एक एक चपेटा॥
बहु प्रकार गिरि कानन हेरहिं।
कोउ मुनि मिलइ ताहि सब घेरहिं॥

अनुवाद (हिन्दी)

कहीं किसी राक्षससे भेंट हो जाती है, तो एक-एक चपतमें ही उसके प्राण ले लेते हैं। पर्वतों और वनोंको बहुत प्रकारसे खोज रहे हैं। कोई मुनि मिल जाता है तो पता पूछनेके लिये उसे सब घेर लेते हैं॥ १॥

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