२९ अयोध्यावासियोंसहित श्रीभरत-शत्रुघ्न आदिका वनगमन

दोहा

मूल (दोहा)

जरउ सो संपति सदन सुखु सुहृद मातु पितु भाइ।
सनमुख होत जो राम पद करै न सहस सहाइ॥ १८५॥

अनुवाद (हिन्दी)

वह सम्पत्ति, घर, सुख, मित्र, माता, पिता, भाई जल जाय जो श्रीरामजीके चरणोंके सम्मुख होनेमें हँसते हुए (प्रसन्नतापूर्वक) सहायता न करे॥ १८५॥

मूल (चौपाई)

घर घर साजहिं बाहन नाना।
हरषु हृदयँ परभात पयाना॥
भरत जाइ घर कीन्ह बिचारू।
नगरु बाजि गज भवन भँडारू॥

अनुवाद (हिन्दी)

घर-घर लोग अनेकों प्रकारकी सवारियाँ सजा रहे हैं। हृदयमें [बड़ा] हर्ष है कि सबेरे चलना है। भरतजीने घर जाकर विचार किया कि नगर, घोड़े, हाथी, महल-खजाना आदि—॥ १॥

मूल (चौपाई)

संपति सब रघुपति कै आही।
जौं बिनु जतन चलौं तजि ताही॥
तौ परिनाम न मोरि भलाई।
पाप सिरोमनि साइँ दोहाई॥

अनुवाद (हिन्दी)

सारी सम्पत्ति श्रीरघुनाथजीकी है। यदि उसकी [रक्षाकी] व्यवस्था किये बिना उसे ऐसे ही छोड़कर चल दूँ, तो परिणाममें मेरी भलाई नहीं है। क्योंकि स्वामीका द्रोह सब पापोंमें शिरोमणि (श्रेष्ठ) है॥ २॥

मूल (चौपाई)

करइ स्वामि हित सेवकु सोई।
दूषन कोटि देइ किन कोई॥
अस बिचारि सुचि सेवक बोले।
जे सपनेहुँ निज धरम न डोले॥

अनुवाद (हिन्दी)

सेवक वही है जो स्वामीका हित करे, चाहे कोई करोड़ों दोष क्यों न दे। भरतजीने ऐसा विचारकर ऐसे विश्वासपात्र सेवकोंको बुलाया जो कभी स्वप्नमें भी अपने धर्मसे नहीं डिगे थे॥ ३॥

मूल (चौपाई)

कहि सबु मरमु धरमु भल भाषा।
जो जेहि लायक सो तेहिं राखा॥
करि सबु जतनु राखि रखवारे।
राम मातु पहिं भरतु सिधारे॥

अनुवाद (हिन्दी)

भरतजीने उनको सब भेद समझाकर फिर उत्तम धर्म बतलाया; और जो जिस योग्य था, उसे उसी कामपर नियुक्त कर दिया। सब व्यवस्था करके, रक्षकोंको रखकर भरतजी राममाता कौसल्याजीके पास गये॥ ४॥

दोहा

मूल (दोहा)

आरत जननी जानि सब भरत सनेह सुजान।
कहेउ बनावन पालकीं सजन सुखासन जान॥ १८६॥

अनुवाद (हिन्दी)

स्नेहके सुजान (प्रेमके तत्त्वको जाननेवाले) भरतजीने सब माताओंको आर्त (दुखी) जानकर उनके लिये पालकियाँ तैयार करने तथा सुखासन यान (सुखपाल) सजानेके लिये कहा॥ १८६॥

मूल (चौपाई)

चक्क चक्कि जिमि पुर नर नारी।
चहत प्रात उर आरत भारी॥
जागत सब निसि भयउ बिहाना।
भरत बोलाए सचिव सुजाना॥

अनुवाद (हिन्दी)

नगरके नर-नारी चकवे-चकवीकी भाँति हृदयमें अत्यन्त आर्त होकर प्रातःकालका होना चाहते हैं। सारी रात जागते-जागते सबेरा हो गया। तब भरतजीने चतुर मन्त्रियोंको बुलवाया—॥ १॥

मूल (चौपाई)

कहेउ लेहु सबु तिलक समाजू।
बनहिं देब मुनि रामहि राजू॥
बेगि चलहु सुनि सचिव जोहारे।
तुरत तुरग रथ नाग सँवारे॥

अनुवाद (हिन्दी)

और कहा—तिलकका सब सामान ले चलो। वनमें ही मुनि वसिष्ठजी श्रीरामचन्द्रजीको राज्य देंगे, जल्दी चलो। यह सुनकर मन्त्रियोंने वन्दना की और तुरंत घोड़े, रथ और हाथी सजवा दिये॥ २॥

मूल (चौपाई)

अरुंधती अरु अगिनि समाऊ।
रथ चढ़ि चले प्रथम मुनिराऊ॥
बिप्र बृंद चढ़ि बाहन नाना।
चले सकल तप तेज निधाना॥

अनुवाद (हिन्दी)

सबसे पहले मुनिराज वसिष्ठजी अरुन्धती और अग्निहोत्रकी सब सामग्रीसहित रथपर सवार होकर चले। फिर ब्राह्मणोंके समूह, जो सब-के-सब तपस्या और तेजके भण्डार थे, अनेकों सवारियोंपर चढ़कर चले॥ ३॥

मूल (चौपाई)

नगर लोग सब सजि सजि जाना।
चित्रकूट कहँ कीन्ह पयाना॥
सिबिका सुभग न जाहिं बखानी।
चढ़ि चढ़ि चलत भईं सब रानी॥

अनुवाद (हिन्दी)

नगरके सब लोग रथोंको सजा-सजाकर चित्रकूटको चल पड़े। जिनका वर्णन नहीं हो सकता, ऐसी सुन्दर पालकियोंपर चढ़-चढ़कर सब रानियाँ चलीं॥ ४॥

दोहा

मूल (दोहा)

सौंपि नगर सुचि सेवकनि सादर सकल चलाइ।
सुमिरि राम सिय चरन तब चले भरत दोउ भाइ॥ १८७॥

अनुवाद (हिन्दी)

विश्वासपात्र सेवकोंको नगर सौंपकर और सबको आदरपूर्वक रवाना करके, तब श्रीसीतारामजीके चरणोंको स्मरण करके भरत-शत्रुघ्न दोनों भाई चले॥ १८७॥

मूल (चौपाई)

राम दरस बस सब नर नारी।
जनु करि करिनि चले तकि बारी॥
बन सिय रामु समुझि मन माहीं।
सानुज भरत पयादेहिं जाहीं॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीरामचन्द्रजीके दर्शनके वशमें हुए (दर्शनकी अनन्य लालसासे) सब नर-नारी ऐसे चले मानो प्यासे हाथी-हथिनी जलको तककर [बड़ी तेजीसे बावले-से हुए] जा रहे हों। श्रीसीतारामजी [सब सुखोंको छोड़कर] वनमें हैं, मनमें ऐसा विचार करके छोटे भाई शत्रुघ्नजीसहित भरतजी पैदल ही चले जा रहे हैं॥ १॥

मूल (चौपाई)

देखि सनेहु लोग अनुरागे।
उतरि चले हय गय रथ त्यागे॥
जाइ समीप राखि निज डोली।
राम मातु मृदु बानी बोली॥

अनुवाद (हिन्दी)

उनका स्नेह देखकर लोग प्रेममें मग्न हो गये और सब घोड़े, हाथी, रथोंको छोड़कर उनसे उतरकर पैदल चलने लगे। तब श्रीरामचन्द्रजीकी माता कौसल्याजी भरतजीके पास जाकर और अपनी पालकी उनके समीप खड़ी करके कोमल वाणीसे बोलीं—॥ २॥

मूल (चौपाई)

तात चढ़हु रथ बलि महतारी।
होइहि प्रिय परिवारु दुखारी॥
तुम्हरें चलत चलिहि सबु लोगू।
सकल सोक कृस नहिं मग जोगू॥

अनुवाद (हिन्दी)

हे बेटा! माता बलैयाँ लेती है, तुम रथपर चढ़ जाओ, नहीं तो सारा प्यारा परिवार दुखी हो जायगा। तुम्हारे पैदल चलनेसे सभी लोग पैदल चलेंगे। शोकके मारे सब दुबले हो रहे हैं, पैदल रास्तेके (पैदल चलनेके) योग्य नहीं हैं॥ ३॥

मूल (चौपाई)

सिर धरि बचन चरन सिरु नाई।
रथ चढ़ि चलत भए दोउ भाई॥
तमसा प्रथम दिवस करि बासू।
दूसर गोमति तीर निवासू॥

अनुवाद (हिन्दी)

माताकी आज्ञाको सिर चढ़ाकर और उनके चरणोंमें सिर नवाकर दोनों भाई रथपर चढ़कर चलने लगे। पहले दिन तमसापर वास (मुकाम) करके दूसरा मुकाम गोमतीके तीरपर किया॥ ४॥

दोहा

मूल (दोहा)

पय अहार फल असन एक निसि भोजन एक लोग।
करत राम हित नेम ब्रत परिहरि भूषन भोग॥ १८८॥

अनुवाद (हिन्दी)

कोई दूध ही पीते, कोई फलाहार करते और कुछ लोग रातको एक ही बार भोजन करते हैं। भूषण और भोग-विलासको छोड़कर सब लोग श्रीरामचन्द्रजीके लिये नियम और व्रत करते हैं॥ १८८॥

Misc Detail