०४ कैकेयीका कोपभवनमें जाना

दोहा

मूल (दोहा)

बड़ कुघातु करि पातकिनि कहेसि कोपगृहँ जाहु।
काजु सँवारेहु सजग सबु सहसा जनि पतिआहु॥ २२॥

अनुवाद (हिन्दी)

पापिनी मन्थराने बड़ी बुरी घात लगाकर कहा—कोपभवनमें जाओ। सब काम बड़ी सावधानीसे बनाना, राजापर सहसा विश्वास न कर लेना (उनकी बातोंमें न आ जाना)॥ २२॥

मूल (चौपाई)

कुबरिहि रानि प्रानप्रिय जानी।
बार बार बड़ि बुद्धि बखानी॥
तोहि सम हित न मोर संसारा।
बहे जात कइ भइसि अधारा॥

अनुवाद (हिन्दी)

कुबरीको रानीने प्राणोंके समान प्रिय समझकर बार-बार उसकी बड़ी बुद्धिका बखान किया और बोली—संसारमें मेरा तेरे समान हितकारी और कोई नहीं है। तू मुझ बही जाती हुईके लिये सहारा हुई है॥ १॥

मूल (चौपाई)

जौं बिधि पुरब मनोरथु काली।
करौं तोहि चख पूतरि आली॥
बहुबिधि चेरिहि आदरु देई।
कोपभवन गवनी कैकेई॥

अनुवाद (हिन्दी)

यदि विधाता कल मेरा मनोरथ पूरा कर दें तो हे सखी! मैं तुझे आँखोंकी पुतली बना लूँ। इस प्रकार दासीको बहुत तरहसे आदर देकर कैकेयी कोपभवनमें चली गयी॥ २॥

मूल (चौपाई)

बिपति बीजु बरषा रितु चेरी।
भुइँ भइ कुमति कैकई केरी॥
पाइ कपट जलु अंकुर जामा।
बर दोउ दल दुख फल परिनामा॥

अनुवाद (हिन्दी)

विपत्ति (कलह) बीज है, दासी वर्षा-ऋतु है, कैकेयीकी कुुबुद्धि [उस बीजके बोनेके लिये] जमीन हो गयी। उसमें कपटरूपी जल पाकर अङ्कुर फूट निकला। दोनों वरदान उस अङ्कुरके दो पत्ते हैं और अन्तमें इसके दुःखरूपी फल होगा॥ ३॥

मूल (चौपाई)

कोप समाजु साजि सबु सोई।
राजु करत निज कुमति बिगोई॥
राउर नगर कोलाहलु होई।
यह कुचालि कछु जान न कोई॥

अनुवाद (हिन्दी)

कैकेयी कोपका सब साज सजकर [कोपभवनमें] जा सोयी। राज्य करती हुई वह अपनी दुष्ट बुद्धिसे नष्ट हो गयी। राजमहल और नगरमें धूम-धाम मच रही है। इस कुचालको कोई कुछ नहीं जानता॥ ४॥

दोहा

मूल (दोहा)

प्रमुदित पुर नर नारि सब सजहिं सुमंगलचार।
एक प्रबिसहिं एक निर्गमहिं भीर भूप दरबार॥ २३॥

अनुवाद (हिन्दी)

बड़े ही आनन्दित होकर नगरके सब स्त्री-पुरुष शुभ मङ्गलाचारके साज सज रहे हैं। कोई भीतर जाता है, कोई बाहर निकलता है; राजद्वारमें बड़ी भीड़ हो रही है॥ २३॥

मूल (चौपाई)

बाल सखा सुनि हियँ हरषाहीं।
मिलि दस पाँच राम पहिं जाहीं॥
प्रभु आदरहिं प्रेमु पहिचानी।
पूँछहिं कुसल खेम मृदु बानी॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीरामचन्द्रजीके बालसखा राजतिलकका समाचार सुनकर हृदयमें हर्षित होते हैं। वे दस-पाँच मिलकर श्रीरामचन्द्रजीके पास जाते हैं। प्रेम पहचानकर प्रभु श्रीरामचन्द्रजी उनका आदर करते हैं और कोमल वाणीसे कुशल-क्षेम पूछते हैं॥ १॥

मूल (चौपाई)

फिरहिं भवन प्रिय आयसु पाई।
करत परसपर राम बड़ाई॥
को रघुबीर सरिस संसारा।
सीलु सनेहु निबाहनिहारा॥

अनुवाद (हिन्दी)

अपने प्रिय सखा श्रीरामचन्द्रजीकी आज्ञा पाकर वे आपसमें एक-दूसरेसे श्रीरामचन्द्रजीकी बड़ाई करते हुए घर लौटते हैं और कहते हैं—संसारमें श्रीरघुनाथजीके समान शील और स्नेहको निबाहनेवाला कौन है?॥ २॥

मूल (चौपाई)

जेहिं जेहिं जोनि करम बस भ्रमहीं।
तहँ तहँ ईसु देउ यह हमहीं॥
सेवक हम स्वामी सियनाहू।
होउ नात यह ओर निबाहू॥

अनुवाद (हिन्दी)

भगवान् हमें यही दें कि हम अपने कर्मवश भ्रमते हुए जिस-जिस योनिमें जन्में, वहाँ-वहाँ (उस-उस योनिमें) हम तो सेवक हों और सीतापति श्रीरामचन्द्रजी हमारे स्वामी हों और यह नाता अन्ततक निभ जाय॥ ३॥

मूल (चौपाई)

अस अभिलाषु नगर सब काहू।
कैकयसुता हृदयँ अति दाहू॥
को न कुसंगति पाइ नसाई।
रहइ न नीच मतें चतुराई॥

अनुवाद (हिन्दी)

नगरमें सबकी ऐसी ही अभिलाषा है। परन्तु कैकेयीके हृदयमें बड़ी जलन हो रही है। कुसंगति पाकर कौन नष्ट नहीं होता। नीचके मतके अनुसार चलनेसे चतुराई नहीं रह जाती॥ ४॥

दोहा

मूल (दोहा)

साँझ समय सानंद नृपु गयउ कैकई गेहँ।
गवनु निठुरता निकट किय जनु धरि देह सनेहँ॥ २४॥

अनुवाद (हिन्दी)

सन्ध्याके समय राजा दशरथ आनन्दके साथ कैकेयीके महलमें गये। मानो साक्षात् स्नेह ही शरीर धारण कर निष्ठुरताके पास गया हो!॥ २४॥

मूल (चौपाई)

कोपभवन सुनि सकुचेउ राऊ।
भय बस अगहुड़ परइ न पाऊ॥
सुरपति बसइ बाहँबल जाकें।
नरपति सकल रहहिं रुख ताकें॥

अनुवाद (हिन्दी)

कोपभवनका नाम सुनकर राजा सहम गये। डरके मारे उनका पाँव आगेको नहीं पड़ता। स्वयं देवराज इन्द्र जिनकी भुजाओंके बलपर [राक्षसोंसे निर्भय होकर] बसता है और सम्पूर्ण राजालोग जिनका रुख देखते रहते हैं,॥ १॥

मूल (चौपाई)

सो सुनि तिय रिस गयउ सुखाई।
देखहु काम प्रताप बड़ाई॥
सूल कुलिस असि अँगवनिहारे।
ते रतिनाथ सुमन सर मारे॥

अनुवाद (हिन्दी)

वही राजा दशरथ स्त्रीका क्रोध सुनकर सूख गये। कामदेवका प्रताप और महिमा तो देखिये। जो त्रिशूल, वज्र और तलवार आदिकी चोट अपने अङ्गोंपर सहनेवाले हैं, वे रतिनाथ कामदेवके पुष्पबाणसे मारे गये॥ २॥

मूल (चौपाई)

सभय नरेसु प्रिया पहिं गयऊ।
देखि दसा दुखु दारुन भयऊ॥
भूमि सयन पटु मोट पुराना।
दिए डारि तन भूषन नाना॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजा डरते-डरते अपनी प्यारी कैकेयीके पास गये। उसकी दशा देखकर उन्हें बड़ा ही दुःख हुआ। कैकेयी जमीनपर पड़ी है। पुराना मोटा कपड़ा पहने हुए है। शरीरके नाना आभूषणोंको उतारकर फेंक दिया है॥ ३॥

मूल (चौपाई)

कुमतिहि कसि कुबेषता फाबी।
अनअहिवातु सूच जनु भाबी॥
जाइ निकट नृपु कह मृदु बानी।
प्रानप्रिया केहि हेतु रिसानी॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस दुर्बुद्धि कैकेयीको यह कुवेषता (बुरा वेष) कैसी फब रही है, मानो भावी विधवापनकी सूचना दे रही हो। राजा उसके पास जाकर कोमल वाणीसे बोले—हे प्राणप्रिये! किसलिये रिसाई (रूठी) हो?॥ ४॥

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