५८ श्रीरामचरित सुनने-गानेकी महिमा

दोहा

मूल (दोहा)

राम रूपु भूपति भगति ब्याहु उछाहु अनंदु।
जात सराहत मनहिं मन मुदित गाधिकुलचंदु॥ ३६०॥

अनुवाद (हिन्दी)

गाधिकुलके चन्द्रमा विश्वामित्रजी बड़े हर्षके साथ श्रीरामचन्द्रजीके रूप, राजा दशरथजीकी भक्ति, (चारों भाइयोंके) विवाह और (सबके) उत्साह और आनन्दको मन-ही-मन सराहते जाते हैं॥ ३६०॥

मूल (चौपाई)

बामदेव रघुकुल गुर ग्यानी।
बहुरि गाधिसुत कथा बखानी॥
सुनि मुनि सुजसु मनहिं मन राऊ।
बरनत आपन पुन्य प्रभाऊ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वामदेवजी और रघुकुलके गुरु ज्ञानी वसिष्ठजीने फिर विश्वामित्रजीकी कथा बखानकर कही। मुनिका सुन्दर यश सुनकर राजा मन-ही-मन अपने पुण्योंके प्रभावका बखान करने लगे॥ १॥

मूल (चौपाई)

बहुरे लोग रजायसु भयऊ।
सुतन्ह समेत नृपति गृहँ गयऊ॥
जहँ तहँ राम ब्याहु सबु गावा।
सुजसु पुनीत लोक तिहुँ छावा॥

अनुवाद (हिन्दी)

आज्ञा हुई तब सब लोग (अपने-अपने घरोंको) लौटे। राजा दशरथजी भी पुत्रोंसहित महलमें गये। जहाँ-तहाँ सब श्रीरामचन्द्रजीके विवाहकी गाथाएँ गा रहे हैं। श्रीरामचन्द्रजीका पवित्र सुयश तीनों लोकोंमें छा गया॥ २॥

मूल (चौपाई)

आए ब्याहि रामु घर जब तें।
बसइ अनंद अवध सब तब तें॥
प्रभु बिबाहँ जस भयउ उछाहू।
सकहिं न बरनि गिरा अहिनाहू॥

अनुवाद (हिन्दी)

जबसे श्रीरामचन्द्रजी विवाह करके घर आये, तबसे सब प्रकारका आनन्द अयोध्यामें आकर बसने लगा। प्रभुके विवाहमें जैसा आनन्द-उत्साह हुआ, उसे सरस्वती और सर्पोंके राजा शेषजी भी नहीं कह सकते॥ ३॥

मूल (चौपाई)

कबिकुल जीवनु पावन जानी।
राम सीय जसु मंगल खानी॥
तेहि ते मैं कछु कहा बखानी।
करन पुनीत हेतु निज बानी॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीसीतारामजीके यशको कविकुलके जीवनको पवित्र करनेवाला और मङ्गलोंकी खान जानकर, इससे मैंने अपनी वाणीको पवित्र करनेके लिये कुछ (थोड़ा-सा) बखानकर कहा है॥ ४॥

छंद

मूल (दोहा)

निज गिरा पावनि करन कारन राम जसु तुलसीं कह्यो।
रघुबीर चरित अपार बारिधि पारु कबि कौनें लह्यो॥
उपबीत ब्याह उछाह मंगल सुनि जे सादर गावहीं।
बैदेहि राम प्रसाद ते जन सर्बदा सुखु पावहीं॥

अनुवाद (हिन्दी)

अपनी वाणीको पवित्र करनेके लिये तुलसीने रामका यश कहा है। (नहीं तो) श्रीरघुनाथजीका चरित्र अपार समुद्र है, किस कविने उसका पार पाया है? जो लोग यज्ञोपवीत और विवाहके मङ्गलमय उत्सवका वर्णन आदरके साथ सुनकर गावेंगे, वे लोग श्रीजानकीजी और श्रीरामजीकी कृपासे सदा सुख पावेंगे।

सोरठा

मूल (दोहा)

सिय रघुबीर बिबाहु जे सप्रेम गावहिं सुनहिं।
तिन्ह कहुँ सदा उछाहु मंगलायतन राम जसु॥ ३६१॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीसीताजी और श्रीरघुनाथजीके विवाह-प्रसङ्गको जो लोग प्रेमपूर्वक गायें-सुनेंगे, उनके लिये सदा उत्साह (आनन्द)-ही-उत्साह है; क्योंकि श्रीरामचन्द्रजीका यश मङ्गलका धाम है॥ ३६१॥

भागसूचना

मासपारायण, बारहवाँ विश्राम

मूलम् (समाप्तिः)

इति श्रीमद्रामचरितमानसे सकलकलिकलुषविध्वंसने प्रथमः सोपानः समाप्तः।

अनुवाद (समाप्ति)

कलियुगके सम्पूर्ण पापोंको विध्वंस करनेवाले श्रीरामचरितमानसका यह पहला सोपान समाप्त हुआ॥

मूलम् (समाप्तिः)

(बालकाण्ड समाप्त)

Misc Detail

॥श्रीगणेशाय नमः॥
श्रीजानकीवल्लभो विजयते

भागसूचना

श्रीरामचरितमानस (द्वितीय सोपान)