५१ धनुषभंग

दोहा

मूल (दोहा)

राम बिलोके लोग सब चित्र लिखे से देखि।
चितई सीय कृपायतन जानी बिकल बिसेषि॥ २६०॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीरामजीने सब लोगोंकी ओर देखा और उन्हें चित्रमें लिखे हुए-से देखकर फिर कृपाधाम श्रीरामजीने सीताजीकी ओर देखा और उन्हें विशेष व्याकुल जाना॥ २६०॥

मूल (चौपाई)

देखी बिपुल बिकल बैदेही।
निमिष बिहात कलप सम तेही॥
तृषित बारि बिनु जो तनु त्यागा।
मुएँ करइ का सुधा तड़ागा॥

अनुवाद (हिन्दी)

उन्होंने जानकीजीको बहुत ही विकल देखा। उनका एक-एक क्षण कल्पके समान बीत रहा था। यदि प्यासा आदमी पानीके बिना शरीर छोड़ दे, तो उसके मर जानेपर अमृतका तालाब भी क्या करेगा?॥ १॥

मूल (चौपाई)

का बरषा सब कृषी सुखानें।
समय चुकें पुनि का पछितानें॥
अस जियँ जानि जानकी देखी।
प्रभु पुलके लखि प्रीति बिसेषी॥

अनुवाद (हिन्दी)

सारी खेतीके सूख जानेपर वर्षा किस कामकी? समय बीत जानेपर फिर पछतानेसे क्या लाभ? जीमें ऐसा समझकर श्रीरामजीने जानकीजीकी ओर देखा और उनका विशेष प्रेम लखकर वे पुलकित हो गये॥२॥

मूल (चौपाई)

गुरहि प्रनामु मनहिं मन कीन्हा।
अति लाघवँ उठाइ धनु लीन्हा॥
दमकेउ दामिनि जिमि जब लयऊ।
पुनि नभ धनु मंडल सम भयऊ॥

अनुवाद (हिन्दी)

मन-ही-मन उन्होंने गुरुको प्रणाम किया और बड़ी फुर्तीसे धनुषको उठा लिया। जब उसे (हाथमें) लिया, तब वह धनुष बिजलीकी तरह चमका और फिर आकाशमें मण्डल-जैसा (मण्डलाकार) हो गया॥ ३॥

मूल (चौपाई)

लेत चढ़ावत खैंचत गाढ़ें।
काहुँ न लखा देख सबु ठाढ़ें॥
तेहि छन राम मध्य धनु तोरा।
भरे भुवन धुनि घोर कठोरा॥

अनुवाद (हिन्दी)

लेते, चढ़ाते और जोरसे खींचते हुए किसीने नहीं लखा (अर्थात् ये तीनों काम इतनी फुर्तीसे हुए कि धनुषको कब उठाया, कब चढ़ाया और कब खींचा, इसका किसीको पता नहीं लगा); सबने श्रीरामजीको (धनुष खींचे) खड़े देखा। उसी क्षण श्रीरामजीने धनुषको बीचसे तोड़ डाला। भयङ्कर कठोर ध्वनिसे (सब) लोक भर गये॥ ४॥

छंद

मूल (दोहा)

भरे भुवन घोर कठोर रव रबि बाजि तजि मारगु चले।
चिक्करहिं दिग्गज डोल महि अहि कोल कूरुम कलमले॥
सुर असुर मुनि कर कान दीन्हें सकल बिकल बिचारहीं।
कोदंड खंडेउ राम तुलसी जयति बचन उचारहीं॥

अनुवाद (हिन्दी)

घोर, कठोर शब्दसे (सब) लोक भर गये, सूर्यके घोड़े मार्ग छोड़कर चलने लगे। दिग्गज चिग्घाड़ने लगे, धरती डोलने लगी, शेष, वाराह और कच्छप कलमला उठे। देवता, राक्षस और मुनि कानोंपर हाथ रखकर सब व्याकुल होकर विचारने लगे। तुलसीदासजी कहते हैं, जब (सबको निश्चय हो गया कि) श्रीरामजीने धनुषको तोड़ डाला, तब सब ‘श्रीरामचन्द्रजीकी जय’ बोलने लगे।

सोरठा

मूल (दोहा)

संकर चापु जहाजु सागरु रघुबर बाहुबलु।
बूड़ सो सकल समाजु चढ़ा जो प्रथमहिं मोह बस॥ २६१॥

अनुवाद (हिन्दी)

शिवजीका धनुष जहाज है और श्रीरामचन्द्रजीकी भुजाओंका बल समुद्र है। (धनुष टूटनेसे) वह सारा समाज डूब गया, जो मोहवश पहले इस जहाजपर चढ़ा था (जिसका वर्णन ऊपर आया है)॥ २६१॥

मूल (चौपाई)

प्रभु दोउ चापखंड महि डारे।
देखि लोग सब भए सुखारे॥
कौसिकरूप पयोनिधि पावन।
प्रेम बारि अवगाहु सुहावन॥

अनुवाद (हिन्दी)

प्रभुने धनुषके दोनों टुकड़े पृथ्वीपर डाल दिये। यह देखकर सब लोग सुखी हुए। विश्वामित्ररूपी पवित्र समुद्रमें, जिसमें प्रेमरूपी सुन्दर अथाह जल भरा है,॥ १॥

मूल (चौपाई)

रामरूप राकेसु निहारी।
बढ़त बीचि पुलकावलि भारी॥
बाजे नभ गहगहे निसाना।
देवबधू नाचहिं करि गाना॥

अनुवाद (हिन्दी)

रामरूपी पूर्णचन्द्रको देखकर पुलकावलीरूपी भारी लहरें बढ़ने लगीं। आकाशमें बड़े जोरसे नगाड़े बजने लगे और देवाङ्गनाएँ गान करके नाचने लगीं॥ २॥

मूल (चौपाई)

ब्रह्मादिक सुर सिद्ध मुनीसा।
प्रभुहि प्रसंसहिं देहिं असीसा॥
बरिसहिं सुमन रंग बहु माला।
गावहिं किंनर गीत रसाला॥

अनुवाद (हिन्दी)

ब्रह्मा आदि देवता, सिद्ध और मुनीश्वरलोग प्रभुकी प्रशंसा कर रहे हैं और आशीर्वाद दे रहे हैं। वे रंग-बिरंगे फूल और मालाएँ बरसा रहे हैं। किन्नरलोग रसीले गीत गा रहे हैं॥ ३॥

मूल (चौपाई)

रही भुवन भरि जय जय बानी।
धनुषभंग धुनि जात न जानी॥
मुदित कहहिं जहँ तहँ नर नारी।
भंजेउ राम संभुधनु भारी॥

अनुवाद (हिन्दी)

सारे ब्रह्माण्डमें जय-जयकारकी ध्वनि छा गयी, जिसमें धनुष टूटनेकी ध्वनि जान ही नहीं पड़ती। जहाँ-तहाँ स्त्री-पुरुष प्रसन्न होकर कह रहे हैं कि श्रीरामचन्द्रजीने शिवजीके भारी धनुषको तोड़ डाला॥ ४॥

Misc Detail