३६ भगवान् का वरदान

दोहा

मूल (दोहा)

जानि सभय सुर भूमि सुनि बचन समेत सनेह।
गगनगिरा गंभीर भइ हरनि सोक संदेह॥ १८६॥

अनुवाद (हिन्दी)

देवता और पृथ्वीको भयभीत जानकर और उनके स्नेहयुक्त वचन सुनकर शोक और सन्देहको हरनेवाली गम्भीर आकाशवाणी हुई—॥ १८६॥

मूल (चौपाई)

जनि डरपहु मुनि सिद्ध सुरेसा।
तुम्हहि लागि धरिहउँ नर बेसा॥
अंसन्ह सहित मनुज अवतारा।
लेहउँ दिनकर बंस उदारा॥

अनुवाद (हिन्दी)

हे मुनि, सिद्ध और देवताओंके स्वामियो! डरो मत। तुम्हारे लिये मैं मनुष्यका रूप धारण करूँगा और उदार (पवित्र) सूर्यवंशमें अंशोंसहित मनुष्यका अवतार लूँगा॥ १॥

मूल (चौपाई)

कस्यप अदिति महातप कीन्हा।
तिन्ह कहुँ मैं पूरब बर दीन्हा॥
ते दसरथ कौसल्या रूपा।
कोसलपुरीं प्रगट नरभूपा॥

अनुवाद (हिन्दी)

कश्यप और अदितिने बड़ा भारी तप किया था। मैं पहले ही उनको वर दे चुका हूँ। वे ही दशरथ और कौसल्याके रूपमें मनुष्योंके राजा होकर श्रीअयोध्यापुरीमें प्रकट हुए हैं॥ २॥

मूल (चौपाई)

तिन्ह कें गृह अवतरिहउँ जाई।
रघुकुल तिलक सो चारिउ भाई॥
नारद बचन सत्य सब करिहउँ।
परम सक्ति समेत अवतरिहउँ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उन्हींके घर जाकर मैं रघुकुलमें श्रेष्ठ चार भाइयोंके रूपमें अवतार लूँगा। नारदके सब वचन मैं सत्य करूँगा और अपनी पराशक्तिके सहित अवतार लूँगा॥ ३॥

मूल (चौपाई)

हरिहउँ सकल भूमि गरुआई।
निर्भय होहु देव समुदाई॥
गगन ब्रह्मबानी सुनि काना।
तुरत फिरे सुर हृदय जुड़ाना॥

अनुवाद (हिन्दी)

मैं पृथ्वीका सब भार हर लूँगा। हे देववृन्द! तुम निर्भय हो जाओ। आकाशमें ब्रह्म(भगवान्)की वाणीको कानसे सुनकर देवता तुरंत लौट गये। उनका हृदय शीतल हो गया॥ ४॥

मूल (चौपाई)

तब ब्रह्माँ धरनिहि समुझावा।
अभय भई भरोस जियँ आवा॥

अनुवाद (हिन्दी)

तब ब्रह्माजीने पृथ्वीको समझाया। वह भी निर्भय हुई और उसके जीमें भरोसा (ढाढ़स) आ गया॥ ५॥

दोहा

मूल (दोहा)

निज लोकहि बिरंचि गे देवन्ह इहइ सिखाइ।
बानर तनु धरि धरि महि हरि पद सेवहु जाइ॥ १८७॥

अनुवाद (हिन्दी)

देवताओंको यही सिखाकर कि वानरोंका शरीर धर-धरकर तुमलोग पृथ्वीपर जाकर भगवान् के चरणोंकी सेवा करो, ब्रह्माजी अपने लोकको चले गये॥ १८७॥

मूल (चौपाई)

गए देव सब निज निज धामा।
भूमि सहित मन कहुँ बिश्रामा॥
जो कछु आयसु ब्रह्माँ दीन्हा।
हरषे देव बिलंब न कीन्हा॥

अनुवाद (हिन्दी)

सब देवता अपने-अपने लोकको गये। पृथ्वीसहित सबके मनको शान्ति मिली। ब्रह्माजीने जो कुछ आज्ञा दी, उससे देवता बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने (वैसा करनेमें) देर नहीं की॥ १॥

मूल (चौपाई)

बनचर देह धरी छिति माहीं।
अतुलित बल प्रताप तिन्ह पाहीं॥
गिरि तरु नख आयुध सब बीरा।
हरि मारग चितवहिं मतिधीरा॥

अनुवाद (हिन्दी)

पृथ्वीपर उन्होंने वानरदेह धारण की। उनमें अपार बल और प्रताप था। सभी शूरवीर थे; पर्वत, वृक्ष और नख ही उनके शस्त्र थे। वे धीर बुद्धिवाले (वानररूप देवता) भगवान् के आनेकी राह देखने लगे॥ २॥

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