१४ मानसका रूप और माहात्म्य

दोहा

मूल (दोहा)

जस मानस जेहि बिधि भयउ जग प्रचार जेहि हेतु।
अब सोइ कहउँ प्रसंग सब सुमिरि उमा बृषकेतु॥ ३५॥

अनुवाद (हिन्दी)

यह रामचरितमानस जैसा है, जिस प्रकार बना है और जिस हेतुसे जगत् में इसका प्रचार हुआ, अब वही सब कथा मैं श्रीउमा-महेश्वरका स्मरण करके कहता हूँ॥ ३५॥

मूल (चौपाई)

संभु प्रसाद सुमति हियँ हुलसी।
रामचरितमानस कबि तुलसी॥
करइ मनोहर मति अनुहारी।
सुजन सुचित सुनि लेहु सुधारी॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीशिवजीकी कृपासे उसके हृदयमें सुन्दर बुद्धिका विकास हुआ, जिससे यह तुलसीदास श्रीरामचरितमानसका कवि हुआ। अपनी बुद्धिके अनुसार तो वह इसे मनोहर ही बनाता है। किंतु फिर भी हे सज्जनो! सुन्दर चित्तसे सुनकर इसे आप सुधार लीजिये॥ १॥

मूल (चौपाई)

सुमति भूमि थल हृदय अगाधू।
बेद पुरान उदधि घन साधू॥
बरषहिं राम सुजस बर बारी।
मधुर मनोहर मंगलकारी॥

अनुवाद (हिन्दी)

सुन्दर (सात्त्विकी) बुद्धि भूमि है, हृदय ही उसमें गहरा स्थान है, वेद-पुराण समुद्र हैं और साधु-संत मेघ हैं। वे (साधुरूपी मेघ) श्रीरामजीके सुयशरूपी सुन्दर, मधुर, मनोहर और मङ्गलकारी जलकी वर्षा करते हैं॥ २॥

मूल (चौपाई)

लीला सगुन जो कहहिं बखानी।
सोइ स्वच्छता करइ मल हानी॥
प्रेम भगति जो बरनि न जाई।
सोइ मधुरता सुसीतलताई॥

अनुवाद (हिन्दी)

सगुण लीलाका जो विस्तारसे वर्णन करते हैं, वही राम-सुयशरूपी जलकी निर्मलता है, जो मलका नाश करती है; और जिस प्रेमाभक्तिका वर्णन नहीं किया जा सकता, वही इस जलकी मधुरता और सुन्दर शीतलता है॥ ३॥

मूल (चौपाई)

सो जल सुकृत सालि हित होई।
राम भगत जन जीवन सोई॥
मेधा महि गत सो जल पावन।
सकिलि श्रवन मग चलेउ सुहावन॥
भरेउ सुमानस सुथल थिराना।
सुखद सीत रुचि चारु चिराना॥

अनुवाद (हिन्दी)

वह (राम-सुयशरूपी) जल सत्कर्मरूपी धानके लिये हितकर है और श्रीरामजीके भक्तोंका तो जीवन ही है। वह पवित्र जल बुद्धिरूपी पृथ्वीपर गिरा और सिमटकर सुहावने कानरूपी मार्गसे चला और मानस (हृदय) रूपी श्रेष्ठ स्थानमें भरकर वहीं स्थिर हो गया। वही पुराना होकर सुन्दर, रुचिकर, शीतल और सुखदायी हो गया॥ ४-५॥

दोहा

मूल (दोहा)

सुठि सुंदर संबाद बर बिरचे बुद्धि बिचारि।
तेइ एहि पावन सुभग सर घाट मनोहर चारि॥ ३६॥

अनुवाद (हिन्दी)

इस कथामें बुद्धिसे विचारकर जो चार अत्यन्त सुन्दर और उत्तम संवाद (भुशुण्डि-गरुड़, शिव-पार्वती, याज्ञवल्क्य-भरद्वाज और तुलसीदास और संत) रचे हैं, वही इस पवित्र और सुन्दर सरोवरके चार मनोहर घाट हैं॥ ३६॥

मूल (चौपाई)

सप्त प्रबंध सुभग सोपाना।
ग्यान नयन निरखत मन माना॥
रघुपति महिमा अगुन अबाधा।
बरनब सोइ बर बारि अगाधा॥

अनुवाद (हिन्दी)

सात काण्ड ही इस मानस-सरोवरकी सुन्दर सात सीढ़ियाँ हैं, जिनको ज्ञानरूपी नेत्रोंसे देखते ही मन प्रसन्न हो जाता है। श्रीरघुनाथजीकी निर्गुण (प्राकृतिक गुणोंसे अतीत) और निर्बाध (एकरस) महिमाका जो वर्णन किया जायगा, वही इस सुन्दर जलकी अथाह गहराई है॥ १॥

मूल (चौपाई)

राम सीय जस सलिल सुधासम।
उपमा बीचि बिलास मनोरम॥
पुरइनि सघन चारु चौपाई।
जुगुति मंजु मनि सीप सुहाई॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीरामचन्द्रजी और सीताजीका यश अमृतके समान जल है। इसमें जो उपमाएँ दी गयी हैं वही तरङ्गोंका मनोहर विलास है। सुन्दर चौपाइयाँ ही इसमें घनी फैली हुई पुरइन (कमलिनी) हैं और कविताकी युक्तियाँ सुन्दर मणि (मोती) उत्पन्न करनेवाली सुहावनी सीपियाँ हैं॥ २॥

मूल (चौपाई)

छंद सोरठा सुंदर दोहा।
सोइ बहुरंग कमल कुल सोहा॥
अरथ अनूप सुभाव सुभासा।
सोइ पराग मकरंद सुबासा॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो सुन्दर छन्द, सोरठे और दोहे हैं, वही इसमें बहुरंगे कमलोंके समूह सुशोभित हैं। अनुपम अर्थ, ऊँचे भाव और सुन्दर भाषा ही पराग (पुष्परज), मकरन्द(पुष्परस) और सुगन्ध हैं॥ ३॥

मूल (चौपाई)

सुकृत पुंज मंजुल अलि माला।
ग्यान बिराग बिचार मराला॥
धुनि अवरेब कबित गुन जाती।
मीन मनोहर ते बहु भाँती॥

अनुवाद (हिन्दी)

सत्कर्मों (पुण्यों) के पुञ्ज भौंरोंकी सुन्दर पंक्तियाँ हैं, ज्ञान, वैराग्य और विचार हंस हैं। कविताकी ध्वनि वक्रोक्ति, गुण और जाति ही अनेकों प्रकारकी मनोहर मछलियाँ हैं॥ ४॥

मूल (चौपाई)

अरथ धरम कामादिक चारी।
कहब ग्यान बिग्यान बिचारी॥
नव रस जप तप जोग बिरागा।
ते सब जलचर चारु तड़ागा॥

अनुवाद (हिन्दी)

अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष—ये चारों, ज्ञान-विज्ञानका विचारके कहना, काव्यके नौ रस, जप, तप, योग और वैराग्यके प्रसंग—ये सब इस सरोवरके सुन्दर जलचर जीव हैं॥ ५॥

मूल (चौपाई)

सुकृती साधु नाम गुन गाना।
ते बिचित्र जलबिहग समाना॥
संतसभा चहुँ दिसि अवँराई।
श्रद्धा रितु बसंत सम गाई॥

अनुवाद (हिन्दी)

सुकृती (पुण्यात्मा) जनोंके, साधुओंके और श्रीरामनामके गुणोंका गान ही विचित्र जल-पक्षियोंके समान है। संतोंकी सभा ही इस सरोवरके चारों ओरकी अमराई (आमकी बगीचियाँ) हैं और श्रद्धा वसन्त ऋतुके समान कही गयी है॥ ६॥

मूल (चौपाई)

भगति निरूपन बिबिध बिधाना।
छमा दया दम लता बिताना॥
सम जम नियम फूल फल ग्याना।
हरि पद रति रस बेद बखाना॥

अनुवाद (हिन्दी)

नाना प्रकारसे भक्तिका निरूपण और क्षमा, दया तथा दम (इन्द्रियनिग्रह) लताओंके मण्डप हैं। मनका निग्रह, यम (अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह), नियम (शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वरप्रणिधान) ही उनके फूल हैं, ज्ञान फल है और श्रीहरिके चरणोंमें प्रेम ही इस ज्ञानरूपी फलका रस है। ऐसा वेदोंने कहा है॥ ७॥

मूल (चौपाई)

औरउ कथा अनेक प्रसंगा।
तेइ सुक पिक बहुबरन बिहंगा॥

अनुवाद (हिन्दी)

इस (रामचरितमानस) में और भी जो अनेक प्रसङ्गोंकी कथाएँ हैं, वे ही इसमें तोते, कोयल आदि रंग-बिरंगे पक्षी हैं॥ ८॥

दोहा

मूल (दोहा)

पुलक बाटिका बाग बन सुख सुबिहंग बिहारु।
माली सुमन सनेह जल सींचत लोचन चारु॥ ३७॥

अनुवाद (हिन्दी)

कथामें जो रोमाञ्च होता है वही वाटिका, बाग और वन हैं; और जो सुख होता है, वही सुन्दर पक्षियोंका विहार है। निर्मल मन ही माली है जो प्रेमरूपी जलसे सुन्दर नेत्रोंद्वारा उनको सींचता है॥ ३७॥

मूल (चौपाई)

जे गावहिं यह चरित सँभारे।
तेइ एहि ताल चतुर रखवारे॥
सदा सुनहिं सादर नर नारी।
तेइ सुरबर मानस अधिकारी॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो लोग इस चरित्रको सावधानीसे गाते हैं, वे ही इस तालाबके चतुर रखवाले हैं और जो स्त्री-पुरुष सदा आदरपूर्वक इसे सुनते हैं, वे ही इस सुन्दर मानसके अधिकारी उत्तम देवता हैं॥ १॥

मूल (चौपाई)

अति खल जे बिषई बग कागा।
एहि सर निकट न जाहिं अभागा॥
संबुक भेक सेवार समाना।
इहाँ न बिषय कथा रस नाना॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो अति दुष्ट और विषयी हैं वे अभागे बगुले और कौवे हैं, जो इस सरोवरके समीप नहीं जाते। क्योंकि यहाँ (इस मानस-सरोवरमें) घोंघे, मेढक और सेवारके समान विषय-रसकी नाना कथाएँ नहीं हैं॥ २॥

मूल (चौपाई)

तेहि कारन आवत हियँ हारे।
कामी काक बलाक बिचारे॥
आवत एहिं सर अति कठिनाई।
राम कृपा बिनु आइ न जाई॥

अनुवाद (हिन्दी)

इसी कारण बेचारे कौवे और बगुलेरूपी विषयी लोग यहाँ आते हुए हृदयमें हार मान जाते हैं। क्योंकि इस सरोवरतक आनेमें कठिनाइयाँ बहुत हैं। श्रीरामजीकी कृपा बिना यहाँ नहीं आया जाता॥ ३॥

मूल (चौपाई)

कठिन कुसंग कुपंथ कराला।
तिन्ह के बचन बाघ हरि ब्याला॥
गृह कारज नाना जंजाला।
ते अति दुर्गम सैल बिसाला॥

अनुवाद (हिन्दी)

घोर कुसंग ही भयानक बुरा रास्ता है; उन कुसंगियोंके वचन ही बाघ, सिंह और साँप हैं। घरके काम-काज और गृहस्थीके भाँति-भाँतिके जंजाल ही अत्यन्त दुर्गम बड़े-बड़े पहाड़ हैं॥ ४॥

मूल (चौपाई)

बन बहु बिषम मोह मद माना।
नदीं कुतर्क भयंकर नाना॥

अनुवाद (हिन्दी)

मोह, मद और मान ही बहुत-से बीहड़ वन हैं और नाना प्रकारके कुतर्क ही भयानक नदियाँ हैं॥ ५॥

दोहा

मूल (दोहा)

जे श्रद्धा संबल रहित नहिं संतन्ह कर साथ।
तिन्ह कहुँ मानस अगम अति जिन्हहि न प्रिय रघुनाथ॥ ३८॥

अनुवाद (हिन्दी)

जिनके पास श्रद्धारूपी राह-खर्च नहीं है और संतोंका साथ नहीं है और जिनको श्रीरघुनाथजी प्रिय नहीं हैं, उनके लिये यह मानस अत्यन्त ही अगम है। (अर्थात् श्रद्धा, सत्संग और भगवत्प्रेमके बिना कोई इसको नहीं पा सकता)॥ ३८॥

मूल (चौपाई)

जौं करि कष्ट जाइ पुनि कोई।
जातहिं नीद जुड़ाई होई॥
जड़ता जाड़ बिषम उर लागा।
गएहुँ न मज्जन पाव अभागा॥

अनुवाद (हिन्दी)

यदि कोई मनुष्य कष्ट उठाकर वहाँतक पहुँच भी जाय, तो वहाँ जाते ही उसे नींदरूपी जूड़ी आ जाती है। हृदयमें मूर्खतारूपी बड़ा कड़ा जाड़ा लगने लगता है, जिससे वहाँ जाकर भी वह अभागा स्नान नहीं कर पाता॥ १॥

मूल (चौपाई)

करि न जाइ सर मज्जन पाना।
फिरि आवइ समेत अभिमाना॥
जौं बहोरि कोउ पूछन आवा।
सर निंदा करि ताहि बुझावा॥

अनुवाद (हिन्दी)

उससे उस सरोवरमें स्नान और उसका जलपान तो किया नहीं जाता, वह अभिमानसहित लौट आता है। फिर यदि कोई उससे (वहाँका हाल) पूछने आता है, तो वह (अपने अभाग्यकी बात न कहकर) सरोवरकी निन्दा करके उसे समझाता है॥ २॥

मूल (चौपाई)

सकल बिघ्न ब्यापहिं नहिं तेही।
राम सुकृपाँ बिलोकहिं जेही॥
सोइ सादर सर मज्जनु करई।
महा घोर त्रयताप न जरई॥

अनुवाद (हिन्दी)

ये सारे विघ्न उसको नहीं व्यापते (बाधा नहीं देते) जिसे श्रीरामचन्द्रजी सुन्दर कृपाकी दृष्टिसे देखते हैं। वही आदरपूर्वक इस सरोवरमें स्नान करता है और महान् भयानक त्रितापसे (आध्यात्मिक, आधिदैविक, आधिभौतिक तापोंसे) नहीं जलता॥ ३॥

मूल (चौपाई)

ते नर यह सर तजहिं न काऊ।
जिन्ह कें राम चरन भल भाऊ॥
जो नहाइ चह एहिं सर भाई।
सो सतसंग करउ मन लाई॥

अनुवाद (हिन्दी)

जिनके मनमें श्रीरामचन्द्रजीके चरणोंमें सुन्दर प्रेम है, वे इस सरोवरको कभी नहीं छोड़ते। हे भाई! जो इस सरोवरमें स्नान करना चाहे वह मन लगाकर सत्संग करे॥ ४॥

मूल (चौपाई)

अस मानस मानस चख चाही।
भइ कबि बुद्धि बिमल अवगाही॥
भयउ हृदयँ आनंद उछाहू।
उमगेउ प्रेम प्रमोद प्रबाहू॥

अनुवाद (हिन्दी)

ऐसे मानस-सरोवरको हृदयके नेत्रोंसे देखकर और उसमें गोता लगाकर कविकी बुद्धि निर्मल हो गयी, हृदयमें आनन्द और उत्साह भर गया और प्रेम तथा आनन्दका प्रवाह उमड़ आया॥ ५॥

मूल (चौपाई)

चली सुभग कबिता सरिता सो।
राम बिमल जस जल भरिता सो॥
सरजू नाम सुमंगल मूला।
लोक बेद मत मंजुल कूला॥

अनुवाद (हिन्दी)

उससे वह सुन्दर कवितारूपी नदी बह निकली, जिसमें श्रीरामजीका निर्मल यशरूपी जल भरा है। इस(कवितारूपिणी नदी) का नाम सरयू है, जो सम्पूर्ण सुन्दर मङ्गलोंकी जड़ है। लोकमत और वेदमत इसके दो सुन्दर किनारे हैं॥ ६॥

मूल (चौपाई)

नदी पुनीत सुमानस नंदिनि।
कलिमल तृन तरु मूल निकंदिनि॥

अनुवाद (हिन्दी)

यह सुन्दर मानस-सरोवरकी कन्या सरयू नदी बड़ी पवित्र है और कलियुगके (छोटे-बड़े) पापरूपी तिनकों और वृक्षोंको जड़से उखाड़ फेंकनेवाली है॥ ७॥

दोहा

मूल (दोहा)

श्रोता त्रिबिध समाज पुर ग्राम नगर दुहुँ कूल।
संतसभा अनुपम अवध सकल सुमंगल मूल॥ ३९॥

अनुवाद (हिन्दी)

तीनों प्रकारके श्रोताओंका समाज ही इस नदीके दोनों किनारोंपर बसे हुए पुरवे, गाँव और नगर हैं; और संतोंकी सभा ही सब सुन्दर मङ्गलोंकी जड़ अनुपम अयोध्याजी है॥ ३९॥

मूल (चौपाई)

रामभगति सुरसरितहि जाई।
मिली सुकीरति सरजु सुहाई॥
सानुज राम समर जसु पावन।
मिलेउ महानदु सोन सुहावन॥

अनुवाद (हिन्दी)

सुन्दर कीर्तिरूपी सुहावनी सरयूजी रामभक्तिरूपी गङ्गाजीमें जा मिलीं। छोटे भाई लक्ष्मणसहित श्रीरामजीके युद्धका पवित्र यशरूपी सुहावना महानद सोन उसमें आ मिला॥ १॥

मूल (चौपाई)

जुग बिच भगति देवधुनि धारा।
सोहति सहित सुबिरति बिचारा॥
त्रिबिध ताप त्रासक तिमुहानी।
राम सरूप सिंधु समुहानी॥

अनुवाद (हिन्दी)

दोनोंके बीचमें भक्तिरूपी गङ्गाजीकी धारा ज्ञान और वैराग्यके सहित शोभित हो रही है। ऐसी तीनों तापोंको डरानेवाली यह तिमुहानी नदी रामस्वरूपरूपी समुद्रकी ओर जा रही है॥ २॥

मूल (चौपाई)

मानस मूल मिली सुरसरिही।
सुनत सुजन मन पावन करिही॥
बिच बिच कथा बिचित्र बिभागा।
जनु सरि तीर तीर बन बागा॥

अनुवाद (हिन्दी)

इस (कीर्तिरूपी सरयू) का मूल मानस (श्रीरामचरित) है और यह (रामभक्तिरूपी) गङ्गाजीमें मिली है, इसलिये यह सुननेवाले सज्जनोंके मनको पवित्र कर देगी। इसके बीच-बीचमें जो भिन्न-भिन्न प्रकारकी विचित्र कथाएँ हैं वे ही मानो नदीतटके आस-पासके वन और बाग हैं॥ ३॥

मूल (चौपाई)

उमा महेस बिबाह बराती।
ते जलचर अगनित बहुभाँती॥
रघुबर जनम अनंद बधाई।
भवँर तरंग मनोहरताई॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीपार्वतीजी और शिवजीके विवाहके बराती इस नदीमें बहुत प्रकारके असंख्य जलचर जीव हैं। श्रीरघुनाथजीके जन्मकी आनन्द-बधाइयाँ ही इस नदीके भँवर और तरंगोंकी मनोहरता है॥ ४॥

दोहा

मूल (दोहा)

बालचरित चहु बंधु के बनज बिपुल बहुरंग।
नृप रानी परिजन सुकृत मधुकर बारि बिहंग॥ ४०॥

अनुवाद (हिन्दी)

चारों भाइयोंके जो बालचरित हैं, वे ही इसमें खिले हुए रंग-बिरंगे बहुत-से कमल हैं। महाराज श्रीदशरथजी तथा उनकी रानियों और कुटुम्बियोंके सत्कर्म (पुण्य) ही भ्रमर और जल पक्षी हैं॥ ४०॥

मूल (चौपाई)

सीय स्वयंबर कथा सुहाई।
सरित सुहावनि सो छबि छाई॥
नदीनाव पटु प्रस्न अनेका।
केवट कुसल उतर सबिबेका॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीसीताजीके स्वयंवरकी जो सुन्दर कथा है, वही इस नदीमें सुहावनी छबि छा रही है। अनेकों सुन्दर विचारपूर्ण प्रश्न ही इस नदीकी नावें हैं और उनके विवेकयुक्त उत्तर ही चतुर केवट हैं॥ १॥

मूल (चौपाई)

सुनि अनुकथन परस्पर होई।
पथिक समाज सोह सरि सोई॥
घोर धार भृगुनाथ रिसानी।
घाट सुबद्ध राम बर बानी॥

अनुवाद (हिन्दी)

इस कथाको सुनकर पीछे जो आपसमें चर्चा होती है, वही इस नदीके सहारे-सहारे चलनेवाले यात्रियोंका समाज शोभा पा रहा है। परशुरामजीका क्रोध इस नदीकी भयानक धारा है और श्रीरामचन्द्रजीके श्रेष्ठ वचन ही सुन्दर बँधे हुए घाट हैं॥ २॥

मूल (चौपाई)

सानुज राम बिबाह उछाहू।
सो सुभ उमग सुखद सब काहू॥
कहत सुनत हरषहिं पुलकाहीं।
ते सुकृती मन मुदित नहाहीं॥

अनुवाद (हिन्दी)

भाइयोंसहित श्रीरामचन्द्रजीके विवाहका उत्साह ही इस कथा-नदीकी कल्याणकारिणी बाढ़ है, जो सभीको सुख देनेवाली है। इसके कहने-सुननेमें जो हर्षित और पुलकित होते हैं, वे ही पुण्यात्मा पुरुष हैं, जो प्रसन्न मनसे इस नदीमें नहाते हैं॥ ३॥

मूल (चौपाई)

राम तिलक हित मंगल साजा।
परब जोग जनु जुरे समाजा॥
काई कुमति केकई केरी।
परी जासु फल बिपति घनेरी॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीरामचन्द्रजीके राजतिलकके लिये जो मङ्गल-साज सजाया गया, वही मानो पर्वके समय इस नदीपर यात्रियोंके समूह इकट्ठे हुए हैं। कैकेयीकी कुबुद्धि ही इस नदीमें काई है, जिसके फलस्वरूप बड़ी भारी विपत्ति आ पड़ी॥ ४॥

दोहा

मूल (दोहा)

समन अमित उतपात सब भरतचरित जपजाग।
कलि अघ खल अवगुन कथन ते जलमल बग काग॥ ४१॥

अनुवाद (हिन्दी)

सम्पूर्ण अनगिनत उत्पातोंको शान्त करनेवाला भरतजीका चरित्र नदी-तटपर किया जानेवाला जपयज्ञ है। कलियुगके पापों और दुष्टोंके अवगुणोंके जो वर्णन हैं वे ही इस नदीके जलका कीचड़ और बगुले-कौए हैं॥ ४१॥

मूल (चौपाई)

कीरति सरित छहूँ रितु रूरी।
समय सुहावनि पावनि भूरी॥
हिम हिमसैलसुता सिव ब्याहू।
सिसिर सुखद प्रभु जनम उछाहू॥

अनुवाद (हिन्दी)

यह कीर्तिरूपिणी नदी छहों ऋतुओंमें सुन्दर है। सभी समय यह परम सुहावनी और अत्यन्त पवित्र है। इसमें शिव-पार्वतीका विवाह हेमन्त ऋतु है। श्रीरामचन्द्रजीके जन्मका उत्सव सुखदायी शिशिर ऋतु है॥ १॥

मूल (चौपाई)

बरनब राम बिबाह समाजू।
सो मुद मंगलमय रितुराजू॥
ग्रीषम दुसह राम बनगवनू।
पंथकथा खर आतप पवनू॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीरामचन्द्रजीके विवाह-समाजका वर्णन ही आनन्द-मङ्गलमय ऋतुराज वसंत है। श्रीरामजीका वनगमन दुःसह ग्रीष्म-ऋतु है और मार्गकी कथा ही कड़ी धूप और लू है॥ २॥

मूल (चौपाई)

बरषा घोर निसाचर रारी।
सुरकुल सालि सुमंगलकारी॥
राम राज सुख बिनय बड़ाई।
बिसद सुखद सोइ सरद सुहाई॥

अनुवाद (हिन्दी)

राक्षसोंके साथ घोर युद्ध ही वर्षा-ऋतु है, जो देवकुलरूपी धानके लिये सुन्दर कल्याण करनेवाली है। रामचन्द्रजीके राज्यकालका जो सुख, विनम्रता और बड़ाई है वही निर्मल सुख देनेवाली सुहावनी शरद्-ऋतु है॥ ३॥

मूल (चौपाई)

सती सिरोमनि सिय गुन गाथा।
सोइ गुन अमल अनूपम पाथा॥
भरत सुभाउ सुसीतलताई।
सदा एकरस बरनि न जाई॥

अनुवाद (हिन्दी)

सती-शिरोमणि श्रीसीताजीके गुणोंकी जो कथा है, वही इस जलका निर्मल और अनुपम गुण है। श्रीभरतजीका स्वभाव इस नदीकी सुन्दर शीतलता है, जो सदा एक-सी रहती है और जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता॥ ४॥

दोहा

मूल (दोहा)

अवलोकनि बोलनि मिलनि प्रीति परसपर हास।
भायप भलि चहु बंधु की जल माधुरी सुबास॥ ४२॥

अनुवाद (हिन्दी)

चारों भाइयोंका परस्पर देखना, बोलना, मिलना, एक-दूसरेसे प्रेम करना, हँसना और सुन्दर भाईपन इस जलकी मधुरता और सुगन्ध हैं॥ ४२॥

मूल (चौपाई)

आरति बिनय दीनता मोरी।
लघुता ललित सुबारि न थोरी॥
अदभुत सलिल सुनत गुनकारी।
आस पिआस मनोमल हारी॥

अनुवाद (हिन्दी)

मेरा आर्तभाव, विनय और दीनता इस सुन्दर और निर्मल जलका कम हलकापन नहीं है (अर्थात् अत्यन्त हलकापन है)। यह जल बड़ा ही अनोखा है, जो सुननेसे ही गुण करता है और आशारूपी प्यासको और मनके मैलको दूर कर देता है॥ १॥

मूल (चौपाई)

राम सुप्रेमहि पोषत पानी।
हरत सकल कलि कलुष गलानी॥
भव श्रम सोषक तोषक तोषा।
समन दुरित दुख दारिद दोषा॥

अनुवाद (हिन्दी)

यह जल श्रीरामचन्द्रजीके सुन्दर प्रेमको पुष्ट करता है, कलियुगके समस्त पापों और उनसे होनेवाली ग्लानिको हर लेता है। संसारके (जन्म-मृत्युरूप) श्रमको सोख लेता है, सन्तोषको भी सन्तुष्ट करता है और पाप, ताप, दरिद्रता और दोषोंको नष्ट कर देता है॥ २॥

मूल (चौपाई)

काम कोह मद मोह नसावन।
बिमल बिबेक बिराग बढ़ावन॥
सादर मज्जन पान किए तें।
मिटहिं पाप परिताप हिए तें॥

अनुवाद (हिन्दी)

यह जल काम, क्रोध, मद और मोहका नाश करनेवाला और निर्मल ज्ञान और वैराग्यका बढ़ानेवाला है। इसमें आदरपूर्वक स्नान करनेसे और इसे पीनेसे हृदयमें रहनेवाले सब पाप-ताप मिट जाते हैं॥ ३॥

मूल (चौपाई)

जिन्ह एहिं बारि न मानस धोए।
ते कायर कलिकाल बिगोए॥
तृषित निरखि रबि कर भव बारी।
फिरिहहिं मृग जिमि जीव दुखारी॥

अनुवाद (हिन्दी)

जिन्होंने इस (राम-सुयशरूपी) जलसे अपने हृदयको नहीं धोया, वे कायर कलिकालके द्वारा ठगे गये। जैसे प्यासा हिरन सूर्यकी किरणोंके रेतपर पड़नेसे उत्पन्न हुए जलके भ्रमको वास्तविक जल समझकर पीनेको दौड़ता है और जल न पाकर दुखी होता है, वैसे ही वे (कलियुगसे ठगे हुए) जीव भी (विषयोंके पीछे भटककर) दुःखी होंगे॥ ४॥

दोहा

मूल (दोहा)

मति अनुहारि सुबारि गुन गन गनि मन अन्हवाइ।
सुमिरि भवानी संकरहि कह कबि कथा सुहाइ॥ ४३(क)॥

अनुवाद (हिन्दी)

अपनी बुद्धिके अनुसार इस सुन्दर जलके गुणोंको विचारकर, उसमें अपने मनको स्नान कराकर और श्रीभवानी-शङ्करको स्मरण करके कवि (तुलसीदास) सुन्दर कथा कहता है॥ ४३(क)॥

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