१३ मानसनिर्माणकी तिथि

मूल (चौपाई)

एहि बिधि सब संसय करि दूरी।
सिर धरि गुर पद पंकज धूरी॥
पुनि सबही बिनवउँ कर जोरी।
करत कथा जेहिं लाग न खोरी॥

अनुवाद (हिन्दी)

इस प्रकार सब संदेहोंको दूर करके और श्रीगुरुजीके चरणकमलोंकी रजको सिरपर धारण करके मैं पुनः हाथ जोड़कर सबकी विनती करता हूँ, जिससे कथाकी रचनामें कोई दोष स्पर्श न करने पावे॥ १॥

मूल (चौपाई)

सादर सिवहि नाइ अब माथा।
बरनउँ बिसद राम गुन गाथा॥
संबत सोरह सै एकतीसा।
करउँ कथा हरि पद धरि सीसा॥

अनुवाद (हिन्दी)

अब मैं आदरपूर्वक श्रीशिवजीको सिर नवाकर श्रीरामचन्द्रजीके गुणोंकी निर्मल कथा कहता हूँ। श्रीहरिके चरणोंपर सिर रखकर संवत् १६३१ में इस कथाका आरम्भ करता हूँ॥ २॥

मूल (चौपाई)

नौमी भौम बार मधुमासा।
अवधपुरीं यह चरित प्रकासा॥
जेहि दिन राम जनम श्रुति गावहिं।
तीरथ सकल तहाँ चलि आवहिं॥

अनुवाद (हिन्दी)

चैत्र मासकी नवमी तिथि मंगलवारको श्रीअयोध्याजीमें यह चरित्र प्रकाशित हुआ। जिस दिन श्रीरामजीका जन्म होता है, वेद कहते हैं कि उस दिन सारे तीर्थ वहाँ (श्रीअयोध्याजीमें) चले आते हैं॥ ३॥

मूल (चौपाई)

असुर नाग खग नर मुनि देवा।
आइ करहिं रघुनायक सेवा॥
जन्म महोत्सव रचहिं सुजाना।
करहिं राम कल कीरति गाना॥

अनुवाद (हिन्दी)

असुर, नाग, पक्षी, मनुष्य, मुनि और देवता सब अयोध्याजीमें आकर श्रीरघुनाथजीकी सेवा करते हैं। बुद्धिमान् लोग जन्मका महोत्सव मनाते हैं और श्रीरामजीकी सुन्दर कीर्तिका गान करते हैं॥ ४॥

दोहा

मूल (दोहा)

मज्जहिं सज्जन बृंद बहु पावन सरजू नीर।
जपहिं राम धरि ध्यान उर सुंदर स्याम सरीर॥ ३४॥

अनुवाद (हिन्दी)

सज्जनोंके बहुत-से समूह उस दिन श्रीसरयूजीके पवित्र जलमें स्नान करते हैं और हृदयमें सुन्दर श्यामशरीर श्रीरघुनाथजीका ध्यान करके उनके नामका जप करते हैं॥ ३४॥

मूल (चौपाई)

दरस परस मज्जन अरु पाना।
हरइ पाप कह बेद पुराना॥
नदी पुनीत अमित महिमा अति।
कहि न सकइ सारदा बिमल मति॥

अनुवाद (हिन्दी)

वेद-पुराण कहते हैं कि श्रीसरयूजीका दर्शन, स्पर्श, स्नान और जलपान पापोंको हरता है। यह नदी बड़ी ही पवित्र है, इसकी महिमा अनन्त है, जिसे विमल बुद्धिवाली सरस्वतीजी भी नहीं कह सकतीं॥ १॥

मूल (चौपाई)

राम धामदा पुरी सुहावनि।
लोक समस्त बिदित अति पावनि॥
चारि खानि जग जीव अपारा।
अवध तजें तनु नहिं संसारा॥

अनुवाद (हिन्दी)

यह शोभायमान अयोध्यापुरी श्रीरामचन्द्रजीके परमधामकी देनेवाली है, सब लोकोंमें प्रसिद्ध है और अत्यन्त पवित्र है। जगत् में (अण्डज, स्वेदज, उद्भिज्ज और जरायुज) चार खानि (प्रकार) के अनन्त जीव हैं, इनमेंसे जो कोई भी अयोध्याजीमें शरीर छोड़ते हैं वे फिर संसारमें नहीं आते (जन्म-मृत्युके चक्करसे छूटकर भगवान् के परमधाममें निवास करते हैं)॥ २॥

मूल (चौपाई)

सब बिधि पुरी मनोहर जानी।
सकल सिद्धिप्रद मंगल खानी॥
बिमल कथा कर कीन्ह अरंभा।
सुनत नसाहिं काम मद दंभा॥

अनुवाद (हिन्दी)

इस अयोध्यापुरीको सब प्रकारसे मनोहर, सब सिद्धियोंकी देनेवाली और कल्याणकी खान समझकर मैंने इस निर्मल कथाका आरम्भ किया, जिसके सुननेसे काम, मद और दम्भ नष्ट हो जाते हैं॥ ३॥

मूल (चौपाई)

रामचरितमानस एहि नामा।
सुनत श्रवन पाइअ बिश्रामा॥
मन करि बिषय अनल बन जरई।
होइ सुखी जौं एहिं सर परई॥

अनुवाद (हिन्दी)

इसका नाम रामचरितमानस है, जिसके कानोंसे सुनते ही शान्ति मिलती है। मनरूपी हाथी विषयरूपी दावानलमें जल रहा है, वह यदि इस रामचरितमानसरूपी सरोवरमें आ पड़े तो सुखी हो जाय॥ ४॥

मूल (चौपाई)

रामचरितमानस मुनि भावन।
बिरचेउ संभु सुहावन पावन॥
त्रिबिध दोष दुख दारिद दावन।
कलि कुचालि कुलि कलुष नसावन॥

अनुवाद (हिन्दी)

यह रामचरितमानस मुनियोंका प्रिय है, इस सुहावने और पवित्र मानसकी शिवजीने रचना की। यह तीनों प्रकारके दोषों, दुःखों और दरिद्रताको तथा कलियुगकी कुचालों और सब पापोंका नाश करनेवाला है॥ ५॥

मूल (चौपाई)

रचि महेस निज मानस राखा।
पाइ सुसमउ सिवा सन भाषा॥
तातें रामचरितमानस बर।
धरेउ नाम हियँ हेरि हरषि हर॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीमहादेवजीने इसको रचकर अपने मनमें रखा था और सुअवसर पाकर पार्वतीजीसे कहा। इसीसे शिवजीने इसको अपने हृदयमें देखकर और प्रसन्न होकर इसका सुन्दर ‘रामचरितमानस’ नाम रखा॥ ६॥

मूल (चौपाई)

कहउँ कथा सोइ सुखद सुहाई।
सादर सुनहु सुजन मन लाई॥

अनुवाद (हिन्दी)

मैं उसी सुख देनेवाली सुहावनी रामकथाको कहता हूँ, हे सज्जनो! आदरपूर्वक मन लगाकर इसे सुनिये॥७॥

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