०६ रामरूपसे जीवमात्रकी वन्दना

मूल (दोहा)

जड़ चेतन जग जीव जत सकल राममय जानि।
बंदउँ सब के पद कमल सदा जोरि जुग पानि॥ ७ (ग)॥

अनुवाद (हिन्दी)

जगत् में जितने जड़ और चेतन जीव हैं, सबको राममय जानकर मैं उन सबके चरणकमलोंकी सदा दोनों हाथ जोड़कर वन्दना करता हूँ॥ ७(ग)॥

मूल (दोहा)

देव दनुज नर नाग खग प्रेत पितर गंधर्ब।
बंदउँ किंनर रजनिचर कृपा करहु अब सर्ब॥ ७ (घ)॥

अनुवाद (हिन्दी)

देवता, दैत्य, मनुष्य, नाग, पक्षी, प्रेत, पितर, गन्धर्व, किन्नर और निशाचर सबको मैं प्रणाम करता हूँ। अब सब मुझपर कृपा कीजिये॥ ७(घ)॥

मूल (चौपाई)

आकर चारि लाख चौरासी।
जाति जीव जल थल नभ बासी॥
सीय राममय सब जग जानी।
करउँ प्रनाम जोरि जुग पानी॥

अनुवाद (हिन्दी)

चौरासी लाख योनियोंमें चार प्रकारके (स्वेदज, अण्डज, उद्भिज्ज, जरायुज) जीव जल, पृथ्वी और आकाशमें रहते हैं, उन सबसे भरे हुए इस सारे जगत् को श्रीसीताराममय जानकर मैं दोनों हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ॥ १॥

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