०४ खल-वन्दना

मूल (चौपाई)

बहुरि बंदि खल गन सतिभाएँ।
जे बिनु काज दाहिनेहु बाएँ॥
पर हित हानि लाभ जिन्ह केरें।
उजरें हरष बिषाद बसेरें॥

अनुवाद (हिन्दी)

अब मैं सच्चे भावसे दुष्टोंको प्रणाम करता हूँ, जो बिना ही प्रयोजन, अपना हित करनेवालेके भी प्रतिकूल आचरण करते हैं। दूसरोंके हितकी हानि ही जिनकी दृष्टिमें लाभ है, जिनको दूसरोंके उजड़नेमें हर्ष और बसनेमें विषाद होता है॥ १॥

मूल (चौपाई)

हरि हर जस राकेस राहु से।
पर अकाज भट सहसबाहु से॥
जे पर दोष लखहिं सहसाखी।
पर हित घृत जिन्ह के मन माखी॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो हरि और हरके यशरूपी पूर्णिमाके चन्द्रमाके लिये राहुके समान हैं(अर्थात् जहाँ कहीं भगवान् विष्णु या शङ्करके यशका वर्णन होता है, उसीमें वे बाधा देते हैं) और दूसरोंकी बुराई करनेमें सहस्रबाहुके समान वीर हैं। जो दूसरोंके दोषोंको हजार आँखोंसे देखते हैं और दूसरोंके हितरूपी घीके लिये जिनका मन मक्खीके समान है(अर्थात् जिस प्रकार मक्खी घीमें गिरकर उसे खराब कर देती है और स्वयं भी मर जाती है, उसी प्रकार दुष्ट लोग दूसरोंके बने-बनाये कामको अपनी हानि करके भी बिगाड़ देते हैं)॥ २॥

मूल (चौपाई)

तेज कृसानु रोष महिषेसा।
अघ अवगुन धन धनी धनेसा॥
उदय केत सम हित सब ही के।
कुंभकरन सम सोवत नीके॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो तेज (दूसरोंको जलानेवाले ताप) में अग्नि और क्रोधमें यमराजके समान हैं, पाप और अवगुणरूपी धनमें कुबेरके समान धनी हैं, जिनकी बढ़ती सभीके हितका नाश करनेके लिये केतु (पुच्छल तारे) के समान है, और जिनके कुम्भकर्णकी तरह सोते रहनेमें ही भलाई है॥ ३॥

मूल (चौपाई)

पर अकाजु लगि तनु परिहरहीं।
जिमि हिम उपल कृषी दलि गरहीं॥
बंदउँ खल जस सेष सरोषा।
सहस बदन बरनइ पर दोषा॥

अनुवाद (हिन्दी)

जैसे ओले खेतीका नाश करके आप भी गल जाते हैं, वैसे ही वे दूसरोंका काम बिगाड़नेके लिये अपना शरीरतक छोड़ देते हैं। मैं दुष्टोंको (हजार मुखवाले) शेषजीके समान समझकर प्रणाम करता हूँ, जो पराये दोषोंका हजार मुखोंसे बड़े रोषके साथ वर्णन करते हैं॥ ४॥

मूल (चौपाई)

पुनि प्रनवउँ पृथुराज समाना।
पर अघ सुनइ सहस दस काना॥
बहुरि सक्र सम बिनवउँ तेही।
संतत सुरानीक हित जेही॥

अनुवाद (हिन्दी)

पुनः उनको राजा पृथु (जिन्होंने भगवान् का यश सुननेके लिये दस हजार कान माँगे थे) के समान जानकर प्रणाम करता हूँ, जो दस हजार कानोंसे दूसरोंके पापोंको सुनते हैं। फिर इन्द्रके समान मानकर उनकी विनय करता हूँ, जिनको सुरा (मदिरा) नीकी और हितकारी मालूम देती है (इन्द्रके लिये भी सुरानीक अर्थात् देवताओंकी सेना हितकारी है)॥ ५॥

मूल (चौपाई)

बचन बज्र जेहि सदा पिआरा।
सहस नयन पर दोष निहारा॥

अनुवाद (हिन्दी)

जिनको कठोर वचनरूपी वज्र सदा प्यारा लगता है और जो हजार आँखोंसे दूसरोंके दोषोंको देखते हैं॥ ६॥

दोहा

मूल (दोहा)

उदासीन अरि मीत हित सुनत जरहिं खल रीति।
जानि पानि जुग जोरि जन बिनती करइ सप्रीति॥ ४॥

अनुवाद (हिन्दी)

दुष्टोंकी यह रीति है कि वे उदासीन, शत्रु अथवा मित्र, किसीका भी हित सुनकर जलते हैं। यह जानकर दोनों हाथ जोड़कर यह जन प्रेमपूर्वक उनसे विनय करता है॥ ४॥

मूल (चौपाई)

मैं अपनी दिसि कीन्ह निहोरा।
तिन्ह निज ओर न लाउब भोरा॥
बायस पलिअहिं अति अनुरागा।
होहिं निरामिष कबहुँ कि कागा॥

अनुवाद (हिन्दी)

मैंने अपनी ओरसे विनती की है, परन्तु वे अपनी ओरसे कभी नहीं चूकेंगे। कौओंको बड़े प्रेमसे पालिये; परन्तु वे क्या कभी मांसके त्यागी हो सकते हैं?॥ १॥

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